हज़रत ख्वाजा शैख़ अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा शैख़ अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

सीरतो ख़ासाइल

साहिबे क़द्रो मन्ज़िलत, “अली मौला” हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! आप भी बदायूं में आराम फरमा हैं, एक मर्तबा हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह बदायूं में अपने मकान की दहलीज़ पर बैठे हुए थे, के एक दही बेचने वाला दही की हांडी अपने सर पर रखे हुए इधर से गुज़रा जो “काठर” नामी गाऊं का बाशिंदा था, जहाँ डाकू रहते थे, ये दही फरोश एक डाकू ही था, जब इस की नज़र हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह के चेहरए अनवर पर पड़ी तो इस की दिल की दुनिया ही बदलने लगी, फिर जब बागौर चेहरे पर नज़र डाली तो पुकार उठा, ऐसे लोग भी दीने मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में होते हैं? फ़ौरन ही मुशर्रफ बा इस्लाम हो गए ईमान ले आया,
हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह ने इन का नाम “अली” रखा, इस्लाम क़ुबूल करने के बाद वो अपने मकान में गए, और एक लाख जीतल (जीतल ये आप के ही ज़माने का सिक्का होता था) ला कर मुर्शिद! के कदमो में डाल दिया, मुर्शिद! ने फ़रमाया तुम ये रकम अपने पास रखो और जहाँ में कहूँ वहां इस को खर्च करना, मुर्शिद! ने अहले ज़रूरत हाजतमन्द को ये रकम देने का हुक्म दिया, मगर जिस को भी देना पांच जीतल देना, कुछ ही दिनों में सारी रकम ख़त्म हो गई सिर्फ एक ही जीतल रह गया, हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने दिल में सोचा मेरे पास अब सिर्फ एक जीतल रह गया है, और मुर्शिद! की सब से छोटी बख्शिश पांच जीतल की होती है, अगर किसी को कुछ देना चाहेंगे तो में क्या करूंगा, हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह अभी ये सोच ही रहे थे के एक सवाली आया, मुर्शिद! ने कहा अली! इस को एक जीतल दे दो,
हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह” हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह की निगाहे कीमिया असर से सिर्फ मुशर्रफ बा इस्लाम ही न हुआ बल्के “साहिबे हाल वलिए कामिल” बन गए, अहले बदायूं आप को “अली मौला” कहते थे, और अक़ीदतो एहतिराम का इज़हार करते थे।

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया

हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! अज़ीम सूफ़ियाए किराम ज़मानाए कदीम से हैं, हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद हैं, बहुत सी करामात अपने शैख़ से इन्होने हासिल कीं, और आप ने सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के सर मुबारक पर दस्तारे फ़ज़ीलत! अपने दस्ते मुबारक से बाँधी थी, सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपना सर आप के सामने झुका दिया था, आप ने दुआ फ़रमाई थी, के हक तआला तुम को उल्माए दीन से करे, चुनांचे आप की दुआ क़ुबूल हुई,

किताब खैरुल मजालिस! हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल: है के बदायूं में उस ज़माने में दो “अली मौला” नाम के बुज़रुग थे, एक अली मौला बुज़रुग जो मुरीद हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह के थे, और बा वक़्ते दस्तार बंदी सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के आप को बुलाया गया अज़ीम मकबूलियत के मालिक और साहिबे यकीन थे, आप कुछ नहीं जानते थे, पंज वक्ता नमाज़ अदा करते थे, जुमला मशाइखे इज़ाम व उल्माए किराम आप का अदब करते थे, लोग आप के कदम को बोसा देते थे, जो कोई उन को देख लेता तहक़ीक़ के साथ तो वो जान लेता के ये तो खुदा के दोस्त हैं,
आप के पीरो मुर्शिद हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह!
जब बंग्गाल के लिए रवाना हुए तो हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! भी साथ चनले लगे, मुर्शिद ने कहा तुम वापस जाओ, आप ने कहा में किस के पास जाऊं मेरा कौन? हैं जब थोड़ी दूर और चले तो मुर्शिद ने फ़रमाया के तुम वापस जाओ तो हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने अर्ज़ किया आप मेरे पीर और मखदूम! हैं आप के बगैर में यहाँ क्या करूंगा, मुर्शिद ने फ़रमाया तुम वापस जाओ, ये शहर तुम्हारी हिमायत में है,
हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! बदायूं आए और अपने फीयूज़ो बरकात से लोगों को फैज़ पहुंचने लगे।

वफ़ात

आप का विसाल 647/ हिजरी बताते हैं लेकिन इस कोई सही सुबूत नहीं, वल्लाहु आलम,
सेरुल आरफीन! अख़बारूल अखियार! और दीगर क़ुतुब में मुस्तनद हालात लिखे हैं, हज़रत ख्वाजा अली मौला बुज़रुग बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! हम अस्र हैं सुल्तानुल आरफीन हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही रहमतुल्लाह अलैह के।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक बदायूं में सुल्तानुल आरफीन हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही रहमतुल्लाह अलैह के बन में है, आप के मज़ार शरीफ से तख़मीनन (अंदाज़ा) बीस कदम के फैसले पर मरजए खलाइक है।


“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन

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