हज़रत ख्वाजा शैख़ हुस्सामुद्दीन चिश्ती मुल्तानी गुजराती रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा शैख़ हुस्सामुद्दीन चिश्ती मुल्तानी गुजराती रहमतुल्लाह अलैह

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा शैख़ हुस्सामुद्दीन चिश्ती मुल्तानी गुजराती रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे “सेरुल औलिया” लिखते हैं के आप ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, और इश्को सिमा में मुमताज़ और उलूमे ज़ाहिरी व बातनि के जामे थे, चुनांचे इल्मे फ़िक़्ह, में हिदाया! और इल्मे सुलूक में किताब “कुव्वतुल क़ुलूब” और “अह्याउल उलूम” के आप हाफ़िज़ थे, तरको तजरीद में आप बे नज़ीर थे, और इल्म मुआमला में आप सहाबए किराम के मसलक पर थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के “दस खुलफ़ा में से आप चौथे खलीफा” थे, और आलमे तफ़रीद में आप ने बहुत सफर किए, एक मर्तबा खानए काबा की ज़ियारत के बाद आप दिल्ली वापस पहुंचे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का दस्तूर था के जुमा के दिन नमाज़े फजर के बाद आप किलोखड़ी तशरीफ़ ले जाते थे, वहां नहर के किनारे एक मकान आप के लिए मख़सूस था, जहाँ आप कैलूला फरमाते और नमाज़े जुमा किलोखड़ी में पढ़ने के बाद शाम के वक़्त गियासपुरा तशरीफ़ ले आते, हज़रत ख्वाजा शैख़ हुस्सामुद्दीन चिश्ती गुजराती रहमतुल्लाह अलैह! अगर किलोखड़ी की मस्जिद के कोने में मशगूल हो गए,

इस ख़याल से के नमाज़ से फरागत के बाद कदम बोसी का शरफ़ हासिल कर सके, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को नूरे बातिन से ये बात मालूम हो गई, आप ने हज़रत ख्वाजा अबू बक्र मुसल्ला दार रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया के हज़रत ख्वाजा शैख़ हुस्सामुद्दीन चिश्ती गुजराती रहमतुल्लाह अलैह! ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन से अभी वापस आया हैं और मस्जिद के कोने में बैठा हुआ हैं, उसे बुलालाओ, वो जा कर उन्हें बुलालाओ, आप ने कदम बोसी से मुशर्रफ हो कर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से फैज़े सुहबत हासिल किया और किस्म किस्म की नवाज़िशात से मालामाल हुए, उस के बाद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया के जो शख्स बैतुल्लाह की ज़ियारत से मुशर्रफ होना चाहता हैं तो उसे हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत के लिए अलग से नियत कर के जाना चाहिए ताके खासुल ख़ास ज़ियारत का मुस्तहिक़ बने,

वफ़ात

जब सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के विसाल के बाद सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक शाह ने तमाम मशाइख व उल्माए किराम को जमा कर के खुल्दाबाद शरीफ की तरफ रवाना किया, जहाँ उसने शहर दौलताबाद बनवाया था, उसी साल हज़रत ख्वाजा शैख़ हुस्सामुद्दीन चिश्ती गुजराती रहमतुल्लाह अलैह! गुज़रात चले गए, वहां आप से ख्वारिक आदात का ज़हूर हुआ, आप उस इलाके के साहिबे विलायत बुज़रुग थे और वहीँ आप आठ 8, ज़ी काइदा 736, ईसवी को विसाल हुआ।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार शरीफ क़स्बा पाटन, सूबा गुजरात में मरजए खलाइक हैं।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

मिरातुल असरार

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