हज़रत सय्यदना ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-2)

हज़रत सय्यदना ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-2)

आप ने किताब वापस करदी

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं, जब में हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ और मुरीद हुआ तो में ने आप को अक्सर ये फरमाते सुना अपने मुखालिफीन और दुश्मनो को राज़ी रखो और आप हुक़ूक़ुल इबाद की अदाएगी पर बहुत ज़ोर देते थे,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं दिल्ली में क़याम के दौरान में ने एक शख्स से किताब पढ़ने की गर्ज़ से ली थी और वो किताब मुझ से गम हो गई थी और उसके अलावा में ने एक शख्स को बीस जीतल देने थे, में ने हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह का फरमान बार बार सुना तो दिल में ख़याल आया के आप मेरी कलबी कैफियत से बा खबर हैं, और में जब भी दिल्ली गया तो उन लोगों का जिन का मुझ पर हक़ है उन्हें राज़ी करूंगा, फिर वो वक़्त आया के में दिल्ली और मेरे पास किताब की कीमत अदा करने के लिए पैसे ना थे और ना ही बीस जीतल (जीतल पुराने ज़माने का सिक्का) थे के में वो उन्हें इस मुतअल्लिक़ शख्स को लोटा सकता जिससे में ने कपडे लिए थे और एक दिन मेरे पास दस जीतल पूरे आए और में उस शख्स के घर गया और उसे आवाज़ दी, वो बाहर आया में ने उससे कहा मेरे लिए मुमकिन नहीं के में तुमको बीस जीतल अदा कर सकूं मेरे पास इस वक़्त दस जीतल हैं तुम ये रख लो और बाकी इंशा अल्लाह जल्द ही दे दूंगा,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं उस ने मेरी बात सुनी तो कहा के तुम मुर्शिदे करीम के पास से आ रहे हो लिहाज़ा तुम मुझे दस जीतल ही दे दो और बाकी में तुम्हें माफ़ करता हूँ, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के फिर में उस शख्स के पास गया जिस की किताब मुझ से गुम हो गई थी, उसने मुझे देखा तो पूछा कैसे आए हो? में ने कहा में ने तुम से पढ़ने के लिए किताब ली थी वो मुझ से गुम हो गई में इस किताब को किसी और से हासिल करने की कोशिश करूंगा और उसकी नकल तुम को दे दूंगा, उसने मेरी बात सुनी तो बोला तुम जिस जगह से लोटे हो ये वहां की सुहबत का असर है और उसने मुझे वो किताब मुआफ करदी।

मुर्शिद और मुरीद की बातें

हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह जब बीमार हुए तो आप ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को शुहदा की कुबूर की ज़ियारत के लिए भेजा जो पाकपटन में मदफ़ून थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं जब में ज़ियारते कुबूर के बाद आप की खिदमत में हाज़िर हुआ तो आप ने फ़रमाया तुम्हारी दुआ ने असर न किया,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं मेरे पास पीरो मुर्शिद की बात का जवाब न था और फिर एक मर्तबा शुहदा की कुबूर से वापस लोटा और आप ने मुझ से यही फ़रमाया तो मेरा एक दोस्त अली जो वहां कुछ फासले पर मौजूद था उसने अर्ज़ किया, हुज़ूर हम नाकिस हैं और आप पीरे कामिल! हैं हम नाकिसों की दुआ कामिलीन के हक में कैसे असर कर सकती है? सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के अली की बात पीरो मुर्शिद ने ना सुनी और में ने इस की बात आप तक पहुचादी आप ने फ़रमाया: में अल्लाह पाक से दुआ करता हूँ के तुम जो कुछ भी मांगो अता करे,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह सब से पहले सूरह युसूफ हिफ़्ज़ करने की तलकीन फरमाते थे और फिर सूरह युसूफ की बरकत से पूरा कुरआन शरीफ पढ़ने वाले को हिफ़्ज़ हो जाता।

फ़रज़न्दे सानी और फ़रज़न्दे जानी

“सेरूल औलिया” में मन्क़ूल है सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं एक दिन में और मेरे पीरो मुर्शिद के साहबज़ादे आप की खिदमत में हाज़िर थे आप ने फ़रमाया: तुम दोनों मेरे बेटे हो, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं फिर हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने अपने साहबज़ादे (निज़ामुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह) की तरफ इशारा करते हुए फ़रमाया: तुम फ़रज़न्दे सानी! हो जब के ये “निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह” फ़रज़न्दे जानी है।

दिल का ज़ंग

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं में ने हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह को फरमाते हुए सुना है के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया लोहे की मानिंद दिल को भी ज़ंग लग जाता है और दिल का ज़ंग मोत की याद से और कुरआन शरीफ की तिलावत से ख़त्म होता है।

पाकपटन से दिल्ली रवानगी

हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को बुलाया और इन्हें दिल्ली जाने की नसीहत की और आप ने जब पीरो मुर्शिद की बात सुनी तो आब्दीदाह हो गए, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: अगरचे तुम ज़ाहिरी तौर पर मुझ से दूर रहोगे मगर बातनि तौर पर मेरे पास ही होंगे, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को रुखसत करते हुए फ़रमाया: “मौलाना निज़ामुद्दीन” (रहमतुल्लाह अलैह) में तुम्हे अल्लाह पाक के सुपुर्द किया।

हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह की पाकपटन आमद

हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह जो हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीदो खलीफा थे वो दिल्ली से पाकपटन तशरीफ़ लाए ताके आप की इयादत करे, उस वक़्त आप बीमार थे और मर्ज़ शिद्दत इख़्तियार कर चुका था, आप अपने हुजरे में एक चार पाई पर आराम फरमा रहे थे और हुजरे के बाहर आप के फ़रज़न्दगान और दीगर मुरीदींन के माबैन सज्जादा नाशिनी के मसले पर गुफ्तुगू हो रही थी, हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह ने हुजरे में दाखिल होना चाहा तो उन्हें रोक दिया गया मगर वो हुजरा का दरवाज़ा खोल कर अंदर दाखिल हो गए और अपना सर आप के कदमो में रख दिया, आप ने आँखें खोलीं और फ़रमाया: कब आए? हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया हुज़ूर! सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप की खिदमत में सलाम पेश किया, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! ने पूछा, मौलाना निज़ामुद्दीन कैसे हैं? फिर हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! ने अपना खिरका, मुसल्ला, असा, जो के जानशीनी की हकीकी अलामात थीं वो हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह को दें, और फ़रमाया: ये मौलाना निज़ामुद्दीन की अमानत हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! ने 5/ मुहर्रमुल हराम बा मुताबिक 1271/ ईसवी को विसाल फ़रमाया और आप ने विसाल के वक़्त वसीयत फ़रमाई के मेरे तमाम तबर्रुकात सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के सुपुर्द कर देना।

दिल्ली गियासपुर में आप की आमद

659/ हिजरी से ले कर 670/ हिजरी तक सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली में मुख्तलिफ मुकानो में क़याम फरमाते रहे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के रोज़ आप रहमतुल्लाह अलैह!होज़रानी! के पास एक बाग़ में तशरीफ़ ले गए, और आप रहमतुल्लाह अलैह ने वहां दो रकअत निफल अदा किए और मुनाजात में मशगूल हो गए, आप रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में ने अल्लाह पाक की बारगाह में दुआ की में अपनी मर्ज़ी से कहीं नहीं रहना चाहता जिस जगह मेरे दीन और दुनिया की खैरियत हो मुझे उस जगह पंहुचा दे, उस दौरान मुझे गैब से सुनाई दी के तुम ग्यासपुर चले जाओ, आप रहमतुल्लाह अलैह ग्यासपुर से वाकिफ नहीं थे के ये जगह किस शहर में मौजूद है, आप रहमतुल्लाह अलैह इसी शशो पंज में अपने एक दोस्त के घर तशरीफ़ ले गए, घर वालों की ज़बानी ये मालूम हुआ के वो दोस्त ग्यासपुर गया हुआ है, चुनांचे आप रहमतुल्लाह अलैह ने दोस्त की वापसी पर उससे ग्यासपुर का पता मालूम किया और ग्यासपुर तशरीफ़ ले गए,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जब ग्यासपुर तशरीफ़ लाए तो उस वक़्त यहाँ कोई आबादी ना थी, उस वक़्त ग्यासपुर में छप्पर! के मकान थे, आप ने दीगर मुरीदों के हमराह एक मकान किराए पर लिया और रिहाइश इख़्तियार की, मोज़ा ग्यासपुर उस जमना के किनारे आबाद था, मौलाना ज़ियाउद्दीन ने आप के लिए यहाँ पर एक बहुत बड़ी खानकाह तामीर करवाई, ये खानकाह तीन मंज़िला ईमारत थी जिसमे बेशुमार हुजरे थे, आप रहमतुल्लाह अलैह के खुलफाए किराम और दीगर मुरीदीन इन कमरों में रहा करते थे, और फिर इसी खानकाह से शरीअतो तरीकत, हकीकत मार्फ़त लोगों की हिदायत का काम होता था, और आप की खानकाह से बेशुमार लोगों को दीने इस्लामी रौशनी मिली और खूब फ़ैज़याब हुए,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह में इब्तिदा में निहायत ही फ़क्ऱो फाका उसरत और तंगदस्ती का आलम था।

आप की जूदो सखावत

“जवामिउल किलम” में मन्क़ूल है के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जब किसी को कुछ नज़राना वगेरा देते तो ये नहीं फरमाते के उसे फुलां चीज़ दे दो और फुला चीज़ ना दो बल्के इरशाद फरमाते के इन को कुछ दे दो, हज़रत ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह थैले में हाथ डालते और मुठ्ठी भर कर उस शख्स को दे देते,
आप की खानकाहे निज़ामिया का ये मामूल था के जब भी उर्स का मौका होता तो बिला इम्तियाज़ हर शख्स को खाना और नज़ारा दिया जाता था,
हज़रत ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के ख़ास खादिमो में थे, एक औरत को एक रूपया नकद और खाना भेजा हालांके सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तरफ से उस औरत का वज़ीफ़ा दो वक़्त का खाना और दो रूपये मुकर्रर थे, जब वो खुराक और रूपया उस औरत के पास पंहुचा तो उस औरत ने लाने वाले से कहा के ज़रूर तुमने मेरा बाकी वज़ीफ़ा चुराया है, उस शख्स ने हर चंद यही कहा के मुझे हज़रत ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह ने यही दे कर भेजा है, जब सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को पूरी सूरते हाल मालूम हुई तो आप ने हज़रत ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया के उस औरत को एक खुराक और एक रूपया और भिजवा दो वो औरत गरीब है, “तारीखे हिंदी” में मारकूम है:
के खानकाहे निज़ामिया! में तीन हज़ार उल्माए किराम व फुज़्ला के अलावा मुरीदीन और तालिबे इल्म हमा वक़्त मौजूद रहते थे, और आप की खानकाहे निज़ामिया से ही गुज़र बसर करते थे,

एक मर्तबा निहायत गर्मी के मौसम में ग्यासपुर में आग लग गई और बहुत से लोगों के मकान जल गए, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने जब ये देखा तो बहुत रूए, जब आग भुज गई तो हज़रत ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह को हुक्म दिया के जितने मकान जले हैं उनकी गिनती करो और हर मकान में दो दस्तर ख्वान, खाना और दो मटके पानी और दो अशर्फियाँ पहुचाओ, याद रहे के उस ज़माने में दो अशर्फियों से बहुत बड़ा छप्पर बना लेता था और दो दस्तर ख्वान कसीर जमात टीम के लिए काफी होता था।

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की हलाकत

“सेरुल औलिया” में मन्क़ूल है के सुल्तान कुतबुद्दीन खिलजी ने गयासपुर में एक नई मस्जिद तामीर कराई और तमाम उलमा व फुज़्ला को इस मस्जिद में नमाज़े जुमा पढ़ने का हुक्म दिया, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! और आप मोतक़िदीन के अलावा बाकी तमाम लॉग इस मस्जिद में नमाज़े जुमा की अदाएगी के लिए गए, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया के जामा मस्जिद किलोखड़ी की कदीम मस्जिद है और हमारी खानकाह से नज़दीक है इस लिए वो मस्जिद नमाज़े जुमा के लिए ज़ियादा हकदार है इस लिए हम किसी दूसरी मस्जिद में जुमा की नमाज़ पढ़ने नहीं जा सकते, हासीदीन ने सुल्तान कुतबुद्दीन को बहकाया के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को हाज़िर किया जाए, सुल्तान कुतबुद्दीन ने फरमान जारी किया के अगर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आइंदा हाज़िर न होंगे तो उनको ज़बरदस्ती हाज़िर किये जाए,
जब ये खबर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को मिली तो आप ने बजाए कुछ कहने के अपनी वालिदा माजिदा के मज़ार मुबारक पर हाज़री दी और अर्ज़ किया अगर बादशाह अपनी हरकतों से बाज़ ना आया तो में आइंदा आप की खिदमत में हाज़िर ना होंगा, इस के बाद आप अपनी खानकाह में वापस तशरीफ़ लाए, इस वाकिए के कुछ रोज़ बाद सुल्तान कुतबुद्दीन को उस के महल में खुसरू खान ने सर काट कर महल से नीचे फेंक दिया और खुद तख़्त पर बैठ गया ।

खुसरू खान का अंजाम

क़ुतुब सेर! में मन्क़ूल है के जब खुसरू खान तख़्त नशीन हुआ तो उसने सुल्तान कुतबुद्दीन खिलजी की तमाम औलाद को क़त्ल कर दिया और खुद कुतबुद्दीन की बीवी से शादी करली, तख़्त नशीन होने के बाद उसने उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम की खिदमत में तोहफे इरसाल किए जिन को बहुत से मशाइखे इज़ाम और उल्माए किराम ने कबूल कर लिया, सय्यद अलाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह और शैख़ वहीदुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह और शैख़ उस्मान सय्याह रहमतुल्लाह अलैह ने इन तहाईफ़ को कबूल नहीं किया, खुसरू खान ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में भी पांच लाख रूपये नज़राना भेजा आप रहमतुल्लाह अलैह ने उसी वक़्त फुकरा और मसाकीन में तकसीम कर दिया,
चार माह बाद गाज़ियुल मलिक ने शहर दीबालपुर से खुसरू खान पर फौज कशी और उसको क़त्ल कर के तख़्त नशीन हुआ, और “गयासुद्दीन तुगलक” का लफ्ज़ इख़्तियार किया, गयासुद्दीन तुगलक ने उन तमाम उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम से वो तहाईफ़ वापस ले लिए जो खुसरू खान ने उन्हें दिए थे, गयासुद्दीन तुगलक ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से भी पांच लाख रूपये का मुतालबा किया, आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के वो रकम बैतुल माल की थी और में ने मुस्तहक़ीन तक उसको पंहुचा दिया।

हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त

सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक को उस के अक़रबा ने इस बात पर आमादा करना शुरू कर दिया के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की मौजूदगी उसकी सल्तनत के लिए खतरा है, सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक उन दिनों बंगाल की मुहिम पर था, उस ने बंगाल से एक मकतूब लिखा जिस पर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को हुक्म दिया गया था के वो दिल्ली से निकल जाएं,
ख्वाजा अहमद अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह जो के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के अमीर ईमारत थे और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीद थे उन्होंने वो मकतूब आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किया, आप ने फ़रमाया के मकतूब के पीछे लिख दो “हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” यानि दिल्ली अभी दूर है और ये खत उस कासिद को वापस कर दो के बादशा को बंगाल पंहुचा दे,
उन दिनों सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की बाऊली तामीर हो रही थी, सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल से एक मकतूब रवाना किया जिस में हुक्म दिया गया था के कोई भी दुकानदार सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीदो और खुद्दाम को तेल मत बेचना ताके वो रात की तारीकी में काम न कर सकें, में बंगाल से वापस आ रहा हूँ और में हुक्म देता हूँ के वो मेरे आने से पहले दिल्ली छोड़ दें, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के इस मकतूब के बारे में बताया गया तो आप ने एक मर्तबा फिर फ़रमाया, “हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” जब दुकानदार ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के हुक्म की वजह से तेल बेचना बंद कर दिया और बाऊली पर काम भी रुक गया तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने अपने मुरीदों को हुक्म दिया के वो बाऊली की तामीर में दिन रात हिस्सा लें और बाऊली बनाने के दौरान जो पानी निकला था कूंडों में भर कर चिराग रोशन करें, चुनांचे जब मुरीदों ने पीरो मुर्शिद के हुक्म पर उस पानी को आग लगाईं तो वो पानी रोशन हो गया, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने ये वाज़ेह कर दिया था के वो लोगों के मुहताज नहीं हैं।

सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की हलाकत

जिस दिन सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक बंगाल से रवाना हुआ तो वली अहिद ने मुहम्मद शाह तुगलक ने दिल्ली शहर से बाहर एक नया शहर तुगलकाबाद के नाम से आबाद करने का हुक्म दिया और एक नया किला बनाने का हुक्म दिया ताके सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक का दिल्ली शहर में दाखले से पहले इस्तकबाल किया जा सके और उस दौरान वो शहर से बाहर इस शहर में क़याम करें, सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के क़याम के लिए शहर तुगलकाबाद में एक चौबी महल तीन दिन में तय्यार काया गया,
जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक इस महल में पंहुचा तो उस के लिए एक शानदार दावत का इंतिज़ाम किया गया, इस दावत में शहर के तमाम रईस हज़रात भी शामिल थे, वली अहिद ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की खिदमत में हाथी बतौरे नज़राना पेश किए, हाथी जैसे ही महल में दाखिल हुए सारा महल ज़मीन बोस हो गया और सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक अपने दीगर उमरा के हमराह उस महल के मलबे तले दबकर हलाक हो गया, यूं सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का ये कोल पूरा हो गया “हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” यानि दिल्ली अभी दूर है।

सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक की हुकूमत

सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की हलाकत के बाद सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक! तख़्त नशीन हुआ, सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक इब्तिदा में नेक और रहम दिल इंसान था, इस ने ही सब से पहले सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का मज़ार मुबारक तामीर कराया, इस के बाद ये सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के खुलफाए इज़ाम और मुरीदों के खिलाफ हो गया और इसने तमाम खुलफ़ा और मुरीदों बिल्खुसूस हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को सख्त तकलीफ पहुचाईं, जिस साल मुहम्मद शाह तुगलक तख़्त पर बैठा उसी साल सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने विसाल फ़रमाया, सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक 27/ साल हुकूमत करने के बाद ठठ्ठा! के मक़ाम पर दरियाए सिंध के नज़दीक बीमार हो कर मरा, सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक के मरने के बाद उस का भतीजा फ़िरोज़ शाह तुगलक तख़्त नशीन हुआ।

आप ने शादी नहीं की

क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के एक मर्तबा में ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से, में ने उन से शादी ना करने की वजह दरयाफ्त की तो उन्होंने फ़रमाया के मेरे पीरो मुर्शिद ने और उनके पीरो मुर्शिद, ने और पीरो मुर्शिद ने भी निकाह किया में सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंकार नहीं करता लेकिन में इस फरमाने इलाही से भी डरता हूँ के तुम्हारी दौलत और तुम्हारी औलाद तुम्हारे लिए फितना है, जब में इस फरमाने इलाही का मुताला करता हूँ तो मुझे खौफ होता है के कहीं सुन्नत की पैरवी में निकाह तो करलूं लेकिन खुदा के फ़राइज़ से गाफिल न हो जाऊं और औलाद के फ़ित्ने में मुब्तला हो जाऊं, मेरे पीरो मुर्शिद और उनके पीरो का ये कमाल था के वो कई कई शादियां करने के बाद भी अल्लाह पाक के अहकाम व फ़राइज़ से गाफिल ना हुए लेकिन में अपने आप को इस काबिल नहीं समझता।

मज़ामीर कव्वाली के मुतअल्लिक़ आप की राए

एक मर्तबा एक शख्स हाज़िर हुआ और अर्ज़ की के बाज़ दुर्वेश मज़ामीर के साथ कव्वाली सुनते हैं और रक्स करते हैं, आप ने फ़रमाया उनका ये फेल दुरुस्त नहीं, एक शख्स ने अर्ज़ किया के ऐसे लोगों से वजह दरयाफ्त करते हैं तो वो कहते हैं के हम ऐसे मस्त मुस्तग़रक थे के हम को ढोल बाजे की कुछ खबर नहीं, आप ने फ़रमाया के उनका ये कहना गलत है और वो हर गुनाह की निस्बत ऐसी बातें कह सकते हैं,
एक मर्तबा एक शख्स ने हाज़िर हो कर अर्ज़ की के फुला महफ़िल में आप के अहबाब ने मज़ामीर के साथ कव्वाली सनुई, आप ने फ़रमाया के में ने मना किया है के मज़ा मीर के साथ मत सुनो, अगर कोई तरीकत से गिरता है तो शरीअत में रहता है, अगर शरीअत से गिरता है तो उसका ठिकाना कहीं नहीं होता।

                                                       "आप की कशफो करामात"

खोया हुआ दस्तावेज़ मिल गया

“सेरुल आरफीन” में हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मन्क़ूल है, के एक मर्तबा एक शख्स के घर में आग लग गई जिससे उस का तमाम माल व असबाब जल गया, उसने भाग दौड़कर के शाही फरमान हासिल किया जिस में उस शख्स को शाही खज़ाना से माल देने का हुक्म नामा लिखा गया था, वो शख्स ये फरमान ले कर शाही ख़ज़ाने के पास जा रहा था के वो फरमान उस शख्स से गुम हो गया, वो शख्स रोता हुआ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुआ, आप रहमतुल्लाह अलैह ने उस शख्स से फ़रमाया के आज मेरे पीरो मुर्शिद शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! की नियाज़ फातिहा है तुम इस नियाज़ के लिए हलवा ले कर आओ,
वो शख्स उसी वक़्त गया और हलवाई की दुकान से हलवा लेने पहुंच गया, जब हलवाई ने हलवा ग़ाकज़ पर रखने के लिए कागज़ पकड़ा तो उस शख्स ने देखा के वो उस का गुमशुदा फरमान था,
उसने वो फरमान और हलवा लिया और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हो कर तमाम अहवाल से आगाह कर दिया, हाज़रीने मजलिस सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की करामत देख कर दंग रह गए।

जमना का पानी सोना बन गया

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल है के दिल्ली में एक शख्स सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से बहुत ज़ियादा अक़ीदतो मुहब्बत करता था, एक मर्तबा ये शख्स! सो अशर्फियाँ ले कर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुआ, आप रहमतुल्लाह अलैह ने इन अशर्फियों को कबूल नहीं फ़रमाया, ये शख्स बहुत रंजीदा हुआ आप रहमतुल्लाह अलैह ने इस का गम देखते हुए एक अशरफी कबूल फ़रमा ली, उसका गम फिर भी दूर न हुआ, आप रहमतुल्लाह अलैह ने उससे फ़रमाया के तुम दरियाए जमना को गौर से देखो, जब उसने दरियाए जमना को गौर से देखा तो दरिया ज़रे सुर्ख यानि लाल सोना बन गई, उस शख्स ने फ़ौरन ही अपना सर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के कदमो में रख दिया और माफ़ी तलब करने लगा, आप ने उस से फ़रमाया के मेरा राज़ किसी पर ज़ाहिर ना करना मगर वो अपनी ज़बान पर काबू न रख सका और खानकाह से बाहर आ कर हर शख्स से बयान करना शुरू कर दिया।

पानी मीठा हो गया

मन्क़ूल है के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह की तामीर के वक़्त एक कुंआ खोदा जा रहा था, जब कुंआ खोदा गया तो उसमे खारा पानी निकला, आप के खादिम हज़रत ख्वाजा इकबाल रहमतुल्लाह अलैह ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ की के कुँए का पानी खारा निकला है, आप ने फ़रमाया के तुम ये बात मुझ से सिमा के दौरान करना, चुनांचे हज़रत ख्वाजा इकबाल रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया के एक कलम और दवात लाओ, जब वो कलम और दवात लाए तो आप ने उस कागज़ पर कुछ लिखा और बंद कर के हज़रत ख्वाजा इकबाल रहमतुल्लाह अलैह को दे दिया और हुक्म दिया के इस को कुँए में डाल दो, जब वो कागज़ कुँए में डाला गया तो उसी वक़्त कुँए का पानी मीठा हो गया।

मुर्शिद की जूतियों के बदले सारी दौलत दे दी

हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह को अपने पीरो मुर्शिद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के साथ ऐसी वालिहाना अक़ीदतो मुहब्बत थी के आप फना फिश शैख़ के दर्जे पर पहुंच गए, इस का सुबूत इस वाकिए से मिलता है, “सफ़ीनतुल औलिया” में लिखा है:
के एक दफा एक गरीब शख्स सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की शुहरत सुनकर दूर दराज़ इलाके से सफर कर के आप की खिदमत में हाज़िर हुआ के हज़रत से माली मदद तलब करें, क्यों के आप की चौखट से कोई खाली नहीं जाता था, लेकिन इत्तिफाक से उस रोज़ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह में सिर्फ आप की पुरानी नालैंन मुबारक (जूते) के कोई चीज़ मौजूद ना थी,
जो आप रहमतुल्लाह अलैह उस गरीब आदमी को देते आप रहमतुल्लाह अलैह वही नालैंन मुबारक (जूते) उस गरीब को दे कर रुखसत कर दिया, उस गरीब ने सोचा भी न था के इतने अज़ीम बुज़रुग की बारगाह से उस को सिर्फ जूतियां ही मिलेंगीं, लेकिन उस को आप रहमतुल्लाह अलैह से कुछ अर्ज़ करने की हिम्मत न हुई, और वो गरीब वही पुरानी जूतियां लेकर वापस हो गया, और बहुत मायूस हुआ, वापस जाते हुए ये गरीब रास्ते में एक रात के लिए सराए में ठहर गया, इत्तिफ़ाक़ से उसी रात हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह भी बंगाल से दिल्ली अपने तिजारती सफर से लौटते हुए उस सराए में एक रात के लिए ठहर गए,
आप के पास बेपनाह मालो दौलत थी, रात भर आराम करने के बाद जब हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह सुबह उठे तो आप को अपने पीरो मुर्शिद की खुशबु महसूस हुई और आप ने फ़रमाया: “बूए शैख़ मी आयद” यानि मुझे अपने पीर की खुशबु आ रही है, तलाश के बाद हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने उस गरीब आदमी को सराए के एक कोने में बैठा हुआ देखा, आप ने उससे दरयाफ्त किया क्या तुम दिल्ली गए थे और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के पास से आ रहे हो?

उस आदमी ने मायूसी की हालत में जवाब दिया का हाँ, उसने तमाम वाक़िआ हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह के सामने बयान किया और कहा के में बड़ी उम्मीद ले कर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के पास गया था, लेकिन हज़रत ने मुझे ये अपनी बोसीदा जूतियां दे कर रुखसत कर दिया, हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने अपने मुर्शिद की नालैंन मुबारक (जूते) देखते ही उस आदमी से कहा के तुम ये जूतियां मुझे दे दो, और इस के बदले में ये मेरी तमाम दौलत ले लो, कहते हैं के उस वक़्त आप के पास बे पनाह मालो दौलत और पांच लाख रकम मौजूद थी, पहले उस गरीब आदमी ने सोचा के हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह मुझ गरीब से मज़ाक कर रहे हैं, भला टूटी जूतियों के बदले इतनी दौलत कौन दे सकता है के इंसान लम्हे भर में फ़कीर से शहंशाह बन जाए, लेकिन हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी बात दुहराई और वो नालैंन मुबारक (जूते) उस आदमी से ले लीं और तमाम दौलत दे कर पीर पर कुर्बान कर दी, और वो गरीब हूत खुश हुआ, उस को जितनी तलब थी उससे कई गुना ज़ियादा मिल गया,
जब हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह अपने पीरो मुर्शिद की जूतियां अपने सर पर रखे हुए दिल्ली सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए तो आप ने हज़रत अमीर खुसरू! से फ़रमाया के ऐ अमीर खुसरू! अपने सफर से मेरे लिए क्या लाए हो? अमीर खुसरू! ने फ़रमाया के हिंदुस्तान के रूहानी शहंशाह का तोहफा लाया हूँ, आप ने फ़रमाया क्या कीमत अदा करनी पड़ेगी, हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: अपनी तमाम हक़ीर दौलत देदी, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया बहुत ही सस्ती ख़रीदली! हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के हुज़ूर वो शख्स मेरी ये दौलत ले कर ही मुत्मइन हो गया, अगर वो मेरे पीर की जूतियों के बदले मेरी जान भी मांगता तो में बख्श देता ।

दुनिया की बादशाहत पेशब के कतरे के बराबर

जैसा के आप को मालूम है के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने सात बादशाहों का दौरे हुकूमत देखा है, जिन ,में से बाज़ आप से अकीदत रखते थे, और बाज़ हासिद और मुखालिफ थे, चुनांचे सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से बेपनाह अकीदत रखता था, लेकिन उस के बाद जब उस का दूसरा बेटा कुतबुद्दीन खलीजी वली अहिद सल्तनत खिज़र खान को महरूम कर के खुद तख्ते सल्तनत पर ग़ासिबाना कब्ज़ा कर लिया तो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से बुग़्ज़ो हसद रखने लगा,
एक रोज़ कुतबुद्दीन खलिजी आप की खानकाहे निज़ामिया से गुज़रा तो लोगों की चल पहल देख कर पूछने लगा ये कोनसी जगह है? उस के साथियों ने कहा ये सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह! है, हज़रत का नाम सुनकर बादशाह की पेशानी पर बल आ गया, और गुस्से में कहा के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से जा कर कहदो के करामात दिखाएं वरना यहाँ से चले जाएं उन्होंने दुनिया कमाने का ढूंग बना रखा है, थोड़ी ही दूर पंहुचा था, के बादशाह की तबियत ख़राब हो गई, और पेट में दर्द शुरू हो गया बड़े बड़े हकीमो को दिखाया गया मगर किसी का इलाज कारगर न हुआ और तकलीफ बढ़ी चली गई बादशाह को ख्याल आया के शायद ये इस गुस्ताखी का नतीजा है जो में ने हज़रत की शान में की थी,

फ़ौरन एक कासिद आप की खिदमत में भेजा, माफ़ी चाहि और दुआ का ख़्वास्तगार हुआ, हज़रत ने फ़रमाया बन्दा को खुदा की मर्ज़ी में दखल नहीं है, जिस को सुन कर शाही महल में सब मायूस हो गए, सब से ज़ियादा परेशांन बादशाह की माँ थी, उस के दिल में बेटे की मुहब्बत ने जोश मारा और फ़ौरन हज़रत की खिदमत में हाज़िर हुई आंसूं भरी आंखों से हज़रत को सारा हाल सुनाया और बेटे की तंदरुस्ती के लिए दुआ चाहि हज़रत ने फ़रमाया वो दुनिया चाहता है या ज़िन्दगी? माँ ने अर्ज़ किया ज़िन्दगी, उससे हिंदुस्तान की बादशाहत का फरमान मेरे नाम लिखवा कर ले आओ और एक शीशी में पेशाब भी ले आना, माँ फ़ौरन दौड़ी हुई शाही महल गई और बेटे से एक फरमाने सल्तनत लिखवाने के लिए कहा, बादशाह ने फ़ौरन कहा में तो पहले ही इन को दुनिया दार समझता हूँ चूंके जान अज़ीज़ होती है माँ के कहने सुनने से फरमान लिख दिया बेटे की मामता की मारी हुई शकिसता दिल और पेशाब की शीशी ले कर हज़रत की खिदमत में हाज़िर हुई सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! पेशाब और फरमान सामने रख कर सब हाज़रीन से फ़रमाया दुआ के लिए हाथ उठाओ और दुआ के बाद फरमाने शाही टुकड़े कर कर के उस पर पेशाब बहा दिया, और फ़रमाया फ़कीर के नज़दीक दुनिया की बादशाहत पेशाब के कतरे के बराबर है, जा तेरा बेटे तंदुरुस्त हो जाएगा, बादशाह की माँ दौड़ती हुई घर गई और बेटे को सेहतयाब पाया।

आप के चंद मशाहीर खुलफाए किराम के असमाए गिरामी
(1) हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी
(2) हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू
(3) हज़रत ख्वाजा अमीर हसन अला संजरी
(4) हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब
(5) हज़रत ख्वाजा सिराजुद्दीन उस्मान अखि सिराज
(6) हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन मुल्तानी
(7) हज़रत मौलाना वजीहुद्दीन पाटली
(8) हज़रत शैख़ अलाउद्दीन नीली
(9) हज़रत शैख़ क़ाज़ी मुहीयुद्दीन काशानी
(10) हज़रत मौलाना फाईहुद्दीन
(11) हज़रत मौलाना जमालुद्दीन
(12) ख्वाजा करीमुद्दीन समरकंदी
(13) हज़रत क़ाज़ी मुशर्रफ फ़िरोज़
(14) हज़रत शैख़ मुबारक गोपामी
(15) हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन
(16) हज़रत ख्वाजा अबू बक्र
(17) हज़रत मौलाना जलालुद्दीन ऊधी
(18) हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन बरनी
(19) हज़रत शैख़ कुतबुद्दीन मुनव्वर
(20) शैख़ वजीहुद्दीन युसूफ किलोखड़ी
(21) शैख़ शमशुद्दीन यहयाह
(22) शैख़ कमालुद्दीन याकूब
(23) हज़रत मौलाना फखरुद्दीन ज़ररादि रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

मलफ़ूज़ात शरीफ

(1) दुआ के वक़्त किसी गुनाह का ख़याल दिल में लाने के बजाए अल्लाह पाक की रहमत पर नज़र रखनी चाहिए,
(2) मर्दाने खुदा जो कुछ करते हैं अल्लाह के लिए करते हैं,
(3) जिस के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हों उस को दुनिया से क्या मतलब,
(4) दुनिया में कामयाबी उस वक़्त तक नहीं होती जब तक इंसान खिदमते खल्क न करे,
(5) दुनिया ऐसी चीज़ नहीं जिस को दोस्त रखा जाए या फिर इसे याद किया जाए,
(6) दुरवेशों को बादशाहों से कुछ गर्ज़ नहीं होता,
(7) माँ बाप की शफकत अल्लाह की रहमत है और वालिदैन का कहर अल्लाह का कहर है,

आप का विसाल

आप का विसाल 18/ रबीउस सानी 725/ हिजरी मुताबिक 1325/ ईसवी को हुआ,

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक दिल्ली में बस्ती हज़रत निज़ामुद्दीन में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
(2) औलियाए दिल्ली की दरगाहें
(3) मिरातुल असरार
(4) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द दो
(5) ख्वाजगाने चिश्त
(6) दिल्ली के 32/ ख्वाजा
(7) दिल्ली के बाईस 22/ ख्वाजा
(8) मरदाने खुदा
(9) सेरुल अक्ताब
(10) तज़किराए औलियाए हिन्दो पाकिस्तान

Share this post