हज़रत ख्वाजा शैख़ कुतबुद्दीन मुनव्वर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा शैख़ कुतबुद्दीन मुनव्वर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

बैअतो खिलाफत

जमी औसाफ़े मुतासव्विर, क़ुत्बे विलायत, हज़रत शैख़ जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह तमाम फ़ज़ाइले मशाइख से मौसूफ़ थे, हज़रत ख्वाजा शैख़ कुतबुद्दीन मुनव्वर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! इल्मो अक्ल इश्को समा में लासानी थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दस खुलफाए इज़ाम में से तीसरे खलीफा आप हैं,
इब्तिदाए हाल से इंतिहाए सुलूक तक आप ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की नज़रे शफकत में परवरिश पाई, आप पर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ख़ास तवज्जुह थी और इस लिहाज़ से आप तमाम अहबाब में मुमताज़ थे, आप को और हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक ही दिन खिलाफत! अता फ़रमाई और फ़रमाया के तुम दोनों भाई एक दूसरे से बगल गीर हो जाओ और एक दूसरे को मुबारक बाद दो,
चुनांचे “सेरुल औलिया” में इस का मुफ़स्सल ज़िक्र है, कहते हैं के क़स्बा हांसी में चार कुतब एक ही मकबरे में आराम कर रहे हैं, “अव्वल शैख़ जमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, दोम शैख़ अहमद रहमतुल्लाह अलैह, सोम शैख़ बुरहानुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, चहारम शैख़ कुतबुद्दीन मुनव्वर रहमतुल्लाह अलैह! आप ने अपनी उमर अपने आबाओ अजदाद की खानकाह में अल्लाह पाक की मुहब्बत और इबादत में गुज़ारदी, आप आखिर उमर तक खुश रहे और अरबाबे दौलत से दूर रहते थे, और कम या ज़ियादा गैब से जो मिल जाता उसी पर कनाअत करते थे, एक दफा सुल्तान मुहम्मद तुगलक शाह ने खानकाह के इख़राजात के लिए दो गाऊं का परवाना लिख कर आप के पास इरसाल किया, लेकिन आप ने कबूल न फ़रमाया और तवक्कुल पर जमे रहे, और आप को सिमा का बहुत शोक था।

वफ़ात

एक दफा एक कलंदर आप की खिदमत में जा कर बेहूदगी से पेश आया यानी जो कुछ शैख़ इनायत फरमाते थे, उस पर कनाअत नहीं करता था, जब उसने बहुत शोखी की तो शैख़ ने फ़रमाया के पहले इस मुर्दार को जो तुम्हारे पास है खर्च करो और उस के बाद मज़ीद तलब करो, सय्यद जमालुद्दीन आप के एक मुरीद थे, उन्होंने जब ये बात सुनी तो फ़ौरन आए और कलंदर की हिमयनि (पर्स बटुआ) खोल दिया, जो उसमे रकम थी बाहर निकल आई, उससे कलंदर बहुत शर्मिंदा हुआ,
आप के कमालात व करामात बहुत हैं,
जब आप का आखिर वक़्त आया तो अपने बेटे शैख़ नूरुद्दीन को अपनी जगह पर बिठाया और सुल्तान मुहम्मद बिन गियासुद्दीन तुगलक शाह के अहिद में आप की वफ़ात हुई, आप को अपने जद्दे बुज़ रुगवार के मकबरे में दफ़न किया गया, अफ़सोस के आप की तारीखे विसाल न मिल सकी।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

मिरातुल असरार

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