हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

बैअतो खिलाफत

शैख़े आली मकाम, मुक़्तदाए कोम, हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीदो खलीफा! और इमाम थे, आप बड़े साहिबे हाल, खुश, खलीक मिजाज़, और बुलंद हिम्मत बुज़रुग थे, और अहले तसव्वुफ़ के तमाम औसाफ़ से आरास्ता व पेरास्ता थे, आप का ज़ोके समां निहायत कवि था,
साहिबे “सेरुल औलिया” लिखते हैं के जब हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! बैअत से मुशर्रफ! हुए, तो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने हुक्म दिया के ख्वाजा नूह को तालीम दिया करो, ख्वाजा नूह और उनके बड़े भाई ख्वाजा हारुन दोनों आप के हमशीराह ज़ादा थे, और आप उन्हें निहायत लुत्फ़ो करम से अपने फ़रज़न्दों की तरह तालीमों तरबियत देते थे, और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के खास दोस्त अहबाब और खिदमत गारों के साथ परवरिश पाने लगे, आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के लिए अक्सर वुज़ू का पानी मुहय्या करते थे, रफ्ता रफ्ता आप मरतबाए तकमील तक पहुंच गए, आप कुरआन शरीफ निहायत खुश इल्हानी से पढ़ते थे, आप के दिल में ये तमन्ना थी, के,

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की मस्जिद में इमामत करना चाहते थे, और ये बात मुमकिन ना थी, क्यूंके इस उहदे पर आपने हज़रत ख्वाजा मुहम्मद बिन शैख़ बदरुद्दीन इसहाक रहमतुल्लाह अलैह को जो हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के नवासे थे, इनको मुकर्रर किया हुआ था, जब किसी ख़ास मसरूफियत की वजह से वो नमाज़ नहीं पढ़ाते थे, तो उनकी जगह पर उनके छोटे भाई हज़रत ख्वाजा मूसा इमामत करते थे,
चुनांचे एक दफा हज़रत ख्वाजा मुहम्मद और हज़रत ख्वाजा मूसा हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की ज़ियारत के लिए पाकपटन पाकिस्तान गए हुए थे, ख्वाजा इकबाल खादिम ने इनकी बजाए हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को नमाज़ पढ़ाने के लिए आगे कर दिया, हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने इस खूबी से किरात पढ़ी, के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! पर कैफियत तारी हो गई, नमाज़ से फारिग होने के बाद आप ने हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की आखरी उमर तक हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह!
इमामत के फ़राइज़ अंजाम देते रहे, आप की वफ़ात के बाद हज़रत ख्वाजा शैख़ मौलाना शहाबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! खुल्दाबाद शरीफ महराष्ट्र चले गए, और वहां मखलूके खुदा की रुश्दो हिदायत करने लगे, उसके बाद खुल्दाबाद शरीफ महराष्ट्र देहली वापस आए और मुद्दत तक मसनदे इरशाद पर जलवा अफ़रोज़ रहे,
आप की वसीयत के मुताबिक आप के बाद आप के बेटे हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन सज्जादानशीन बने, हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन! मुरीदीन की तरबियत में ख़ास शान रखते थे, आप बड़े कवीयुल हाल थे, आप के कमालात का अंदाज़ा इस बात से हो सकता है के हज़रत ख्वाजा मसऊद बेग जैसे शाहबाज़ आप के मुरीद व तरबियत याफ्ता थे।

विसाल

आप की वफ़ात दिल्ली में हुई और दिल्ली के मुज़ाफ़ात में अपने घर के अंदर तद्फीन हुई अफ़सोस के आप की तारीखे विसाल ना मिल सकी,

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

मिरातुल असरार

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