हज़रत ख्वाजा शैख़ ताजुद्दीन सम्भली नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा शैख़ ताजुद्दीन सम्भली नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-1)

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा शैख़ ताजुद्दीन सम्भली रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, के जलीलुल क़द्र असहाब व रुफ्क़ा में से थे, और आप हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से बैअत मुरीद होने से क़ब्ल आप हज़रत ख्वाजा शैख़ अल्लाह दाद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में थे जो हज़रत सय्यद अली तवाम रहमतुल्लाह अलैह के खुलफ़ा में से थे,
राहे सुलूक की मंज़िलें हासिल करने ,के लिए शुरू में जब हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह मुख्तलिफ मशाइखे उज़्ज़ाम की खिदमत हाज़िर होते थे, उसी दौरान हज़रत ख्वाजा शैख़ ताजुद्दीन सम्भली रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, को सम्भल के इलाका हज़रत ख्वाजा शैख़ अल्लाह दाद रहमतुल्लाह अलैह की इरादत मुरीदी सुहबत के लिए मश्वरा दिया था, जब हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, ने इस्तिखारा किया तो हज़रत ख्वाजगान के अकाबिर से इस के लिए इजाज़त नहीं पाई इस लिए आप ने दूसरी तरफ रुख किया, हज़रत ख्वाजा शैख़ ताजुद्दीन सम्भली रहमतुल्लाह अलैह! के अपने मुर्शिद के खलीफा मजाज़ बल्के नाइब थे, लेकिन हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, की सुहबत और तरबियत फीयूज़ो बरकात के इश्तियाक में इनकी खिदमत में बहुत अरमान के साथ पहुंचे,

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, आप की ये तलब बहुत पसंद आई इस लिए नज़र बरकात आप के शामिल फरमाकर अपनी खल्वत व महफ़िल का ख़ास जलीस और अनीस हमनशीन बना दिया, कहा जाता के हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, की सुहबत में सब से ज़ियादा रहने वाले आप ही थे, अहवालो असरार के मालूम करने में आप बहुत दिलेर थे, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, ने अकाबिर नक्शबंदिया की निस्बतों से आप को मुस्तफ़ीज़ फरमाकर तरीक़ए तालीम की इजाज़त दी, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, से सब से पहले खिलाफत आप ही ने पाई।

वफ़ात

हज़रत ख्वाजा शैख़ ताजुद्दीन सम्भली नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह 1040/ हिजरी में मक्का शरीफ चले गए और वहीँ 1050/ हिजरी में वफ़ात पाई।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

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