सीरतो ख़ासाइल
साहिबे दिल हज़रत ख्वाजा शैख़ वजीहुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह दुर्वेश हाहिबे दिल बुज़रुग थे, वालिद माजिद का इस्मे गिरामी हाजी सआदुद्दीन था, हज़रत ख्वाजा शैख़ वजीहुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह 599/ हिजरी में कुतबुद्दीन ऐबक! के हमराह बदायूं तशरीफ़ लाए थे, और आप ने दरसो तदरीस का सिलसिला जारी किया था, ज़ी इल्म साहिबे कमाल, ज़ुहदो तक़वा में बे मिसाल, सालिक गोशा नशीन आली ख़याल थे, रियाज़त व मुजाहिदात नीज़ करामात व खवारिक में बुलंद मकाम रखते थे, हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी और हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर पाकपटन रहमतुल्लाह अलैह के हम अस्र थे, दोनों हज़रात आप से बदायूं शरीफ मिलने आते थे, और आप इन्ही के यहाँ क़याम करते था, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर पाकपटन रहमतुल्लाह अलैह के छोटे भाई हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह भी आप से मिलने तशरीफ़ लाए थे, अपने मकान के करीब एक मस्जिद तामीर कराई थी, उसी में इबादतों रियाज़त करते थे, शाकिस्ता होने पर वो मस्जिद दोबारा से तामीर करा के अपने नाम का पथ्थर लगवा दिया है,
जब आप तशरीफ़ लाए तो हज़रत ख्वाजा शैख़ वजीहुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह अपनी बोरी पर बैठे हुए थे, जब हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह उन के मकान पर पहुंचे तो अपना जूता उतार कर हज़रत ख्वाजा शैख़ वजीहुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह के बराबर में बोरी पर बैठ गए, हज़रत ख्वाजा शैख़ वजीहुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने कुछ इल्तिफ़ात तवज्जुह और महरबानी नहीं फ़रमाई, बल्के बा ज़ाहिर अपने पास बैठ जाने से नाखुश हुए, इत्तिफाक से एक किताब आप के पास रखी हुई थी, हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने उस किताब को उठा कर देखा तो उस में ये लिखा हुआ था, के आखिर ज़माने में दुर्वेश मुतकब्बिर और मगरूर पैदा होंगें, अगर कोई नेक मर्द उनके पास आए और नज़दीक उन के चटाई पर जूता उतार कर बैठे तो दुर्वेश तकब्बुर से जल जाए और उस के तकलीफ देने की फ़िक्र में हो, हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने वो किताब हाथ में ले कर हज़रत ख्वाजा शैख़ वजीहुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह को दी के आप इस को देखिये, आप के हस्बे हाल इस किताब में लिखा हुआ है, जब, हज़रत ख्वाजा शैख़ वजीहुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने उस को पढ़ा तो बहुत मुनफाइल शर्मशार हुए, और हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह से माज़रत की, फिर हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह वहां मुकीम नहीं हुए और तशरीफ़ ले गए।
वफ़ात
आप की सही तारीखे विसाल हमे ना मिल सकी।
मज़ार मुबारक
आप के मज़ार मुबारक में इख़्तिलाह है बाज़ हज़रात कहते हैं के बदायूं शरीफ में ही है और बाज़ इस का इंकार करते हैं के आप का मज़ार बदायूं में नहीं है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन
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