हज़रत ख्वाजा शैख़ ज़ियाउद्दीन बरनी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा शैख़ ज़ियाउद्दीन बरनी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा शैख़ ज़ियाउद्दीन बरनी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप मक़बूले खासो आम थे, आप निहायत लतीफ़ तबअ और ज़रीफ़ खुश तबियत मिजाज़ थे, जिस मजलिस में तूतिए खुश गुफ़्तार मौजूद होते, सब लोगों के कान उनकी तरफ होते आप तमाम फ़ज़ाइल से आरास्ता और तमाम उलूम से बहरा मंद खुशनसीब थे, आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के “बहुत मुकर्रब थे” आप अक्सर ऊंचे ऊचें सवाल करते थे, और जवाब शफी हासिल करते थे, हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत ख्वाजा अमीर हसन आला रहमतुल्लाह अलैह आप के बड़े करीबी दोस्त थे,
अवाइल शुरू उमर ही में आप ने अपने वालिद माजिद के साथ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से बैअत करली मुरीद हो गए, और अपने शैख़ से इस क़द्र मुहब्बत करते थे के उन के साथ गियासपुर में सुकूनत इख़्तियार करली थी और तमाम उमर वहीँ गुज़ारदी और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की महरबानी रोज़ बढ़ने लगी, आप तारीख दानी में अच्छी लियाकत इस्तेआदाद रखते थे, आप की सलाहीयत की वजह से सुल्तान मुहम्मद तुगलक शाह के दरबार में आली रुतबे पर मुकर्रर किए गए, इससे मालो दौलत और जाहो मन्ज़िलत की कोई हद ना रही, इस के बाद आप ने गोशा नशीनी इख़्तियार करली और बादशाह की तरफ से आप को माकूल वज़ीफ़ा मिलता रहा,
आप ने कई किताबें भी लिखीं हैं, मसलन सनाए मुहम्मदी, सलाते कबीर, इनायत नामा, और “तारीखे फ़िरोज़ शाही” आप की मशहूर किताब है।

विसाल

गालिबन आप का इन्तिकाल 738, हिजरी को हुआ।

मज़ार शरीफ

हज़रत ख्वाजा शैख़ ज़ियाउद्दीन बरनी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार मुबारक बस्ती हज़रत निज़ामुद्दीन दिल्ली में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के ऐहाते कैंपस! में ही मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • ख़ज़ीनतुल असफिया
  • मिरातुल असरार

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