हज़रत ख्वाजा शैख़ शमशुद्दीन मुहम्मद बिन यहया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा शैख़ शमशुद्दीन मुहम्मद बिन यहया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

बैअतो खिलाफत

महरमे असरार, गन्जीनए हिल्मो हया, मुक़्तदाए वक़्त हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन मुहम्मद बिन याह्या देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जिन को साहिबे “सियारुल औलिया” ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दस “खुलफाए इज़ाम! का सर हल्का यानि सरदार लिखा है, तमाम कमालाते ज़ाहिरी व बातनि से आरास्ता थे, इश्को मुहब्बत और वजदो समां में आप अपने अहबाब में मुमताज़ थे और उलूमे ज़ाहिरी में दिल्ली के तमाम उल्माए किराम! आप के शागिर्द होने पर फख्र करते थे, आप इस क़द्र बुलंद हिम्मत थे के तमाम मुरादात को आप ने एक तरफ फेंक कर मर्दाना वार इस कूचे में गामज़न हुए, इब्तिदाई हाल से ले कर इंतिहा तक इस दुनिया में आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तरह अहलो अयाल यानी बाल बच्चों से पाक रहे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर होने का सबब ये हुआ के एक दिन अय्यामे तातील में आप और आप के बिरादर हालाती हज़रत मौलाना सदरुद्दीन साहब! पातली कपडे धोने के लिए गयासपुर के करीब दरिया के किनारे गए हुए थे उन्होंने देखा के तमाम उल्माए किराम और अराकीन सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हो रहे हैं और उनके सामने ख़ाक बोसी करते हैं, लेकिन इन दोनों को अहले तसव्वुफ़ के साथ ऐतिकाद न था एक दूसरे से कहने लगे के इस आदमी ने जो ये शुहरत हासिल करली है, मालूम नहीं उसकी इल्मी हैसियत क्या है, चलो इन के पास जा कर देखलें, लेकिन हम सलाम कर के बैठ जाएंगे और दूसरे लोगों की तरह ज़मीन बोसी नहीं करेंगें,
चूंके अल्लाह पाक ने अपने दोस्तों की पेशानी में रोबो जलाल रखा है, देखते ही देखते दोनों भाइयों ने सर ज़मीन पर रख दिया, अल गर्ज़ वो इल्मी अश्काल जो उनके दिल में था सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपनी फिरासत बातिन से मालूम कर लिया और पहली मजलिस ही में उस का शाफ़ी जवाब दे दिया और दूसरी मजलिस में शरफ़े बैअत मुरीदी से मुशर्रफ हुए, हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन मुहम्मद बिन याह्या देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! कमाले सिद्क़ अख़लाक़ से तरक्की करते हुए मर्ताबए खिलाफत तक पहुंच गए यानि आप को खिलाफत भी हासिल हो गई ।

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इब्तिदा में आप से कुछ पढ़ा था, इस लिए वो हमेशा आप के सामने ज़ानूए अदब तह कर के बैठते थे, और उस्ताज़े मुहतरम के तमाम हुकूक अदा करते थे, हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन मुहम्मद बिन याह्या देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! पर फनाए अहदिय्यत का इस क़द्र ग़लबा था के ज़ाहिरी तकल्लुफ़ात की तरफ आप बिलकुल मुतवज्जेह नहीं होते थे, अगर उमरा रुऊसा में से कोई शख्स नियाज़मन्दी से पेश आता तो आप हैरान होते थे के क्या करते हैं, आप का एक खादिम था आप उसे इशारा कर देते थे के आने वाले से अच्छी तरह पेश आना चुनांचे वो उन के सामने खाना लाता और हर किस्म की खातिर मदारात करता था, अगर कोई शख्स नज़रो नियाज़ पेश करता था तो आप उसे हाथ नहीं लगाते थे बल्के वही खादिम उसे उठाकर इख़राजात खर्च वगेरा करता था, आप किसी को बैअत नहीं करते थे, अगर कोई शख्स ज़ियादा इज्ज़ो नियाज़ और इसरार करता तो आप उस का हाल मालूम कर के बैअत मुरीद! करते थे,
आप अक्सर फ़रमाया करते थे अगर खिलाफत नामा पर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का निशाने मुबारक ना होता तो में हरगिज़ इस कागज़ की निगेहदाश्त ना करता, गर्ज़ के आप की हिम्मत इन उमूर से बुलंद तर थी।

वफ़ात व मज़ार शरीफ

अफ़सोस की आप की तारीखे विसाल न मिल सका, आप का मज़ार मुबारक दिल्ली में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार शरीफ के करीब हज़रत मौलाना अलाउद्दीन के करीब ही में दफ़न किया गया, हज़रत मौलाना अलाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह आप के हम सबक और महरमे राज़ थे, आप का मज़ार मुबारक किब्लए हाजात बना हुआ है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मिरातुल असरार

Share this post