मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान

हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान कादरी बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

नाम व नसब

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “काज़िम अली खान” है, सिलसिलाये नसब इस तरह है: मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान बिन, मौलाना मुहम्मद आज़म खान बिन, जनाब सआदत यार खान बिन, जनाब मुहम्मद सईदुल्लाह खान बिन, अब्दुर रहमान बिन युसूफ खान कंधारी बिन, दौलत खान बिन, दाऊद खान।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम “हज़रत मुहम्मद आज़म खान” है।

छेह 6, गाऊं की जागीरें मिली

हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान रहमतुल्लाह अलैह! आप “हज़रत मुहम्मद आज़म खान” के फ़रज़न्द थे, आप हाफिज़े कुरआन होने के साथ साथ जय्यद आलिमे दीन भी थे, शहर बदायूं के तहसीलदार यानि सिटी मजिस्टिरेट! यानी (पुराने ज़माने में तहसीलदार! का उहदा (पोस्ट) आज कल के कमिश्नर के बराबर होता था) जब मुग़ल सल्तनत का ज़वाल शुरू हुआ तो हर तरफ बगावतों का शोर और हर सूबे में आज़ादी व खुद मुख्तारी का ज़ोर हो रहा था, उस वक़्त कोई तदबीर कारगर ना हुई तो हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान! रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली से लखनऊ आ गए इधर अंगरेज़ों का ज़ोर बढ़ता रहा और हुकूमत में ताअत्तुल पैदा हो गया, फिर आप ने ऊध! की सल्तनत से वाबस्ता हो गए फ़र्ज़े मंसबी की अदाएगी में हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान! रहमतुल्लाह अलैह! ने कारहाए नुमाया अंजाम दिए, जिस के सिले में सल्तनते ऊध! से बदायूं में जागीर अता की गई, और बदायूं का नज़्मों नस्क (तरतीब, इंतिज़ाम) आप के सुपुर्द किया गया, आप की इज़्ज़त अफ़ज़ाई व हिफाज़त के लिए दोसों सवारों की बटालीन (फौज) आप की खिदमत में रहती थी, आठ गाऊं आप को मिले थे, जिस में दो गाऊं आप ने अपने मुता अल्लिक़ीन को दे दिए थे, बकिया छेह 6, गाँव आप की जागीर में रहे, आप की जागीर मुन्दर्जा ज़ैल गाऊं में थी: (1) उसहैत, (2) नहतूर, (3) नकी पुर, (4) कर्तूली, (5) मिर्ज़ापुर, (6) नगला, ये गाऊं मुआफी व दवामी थे, और नसलन बादा नस्लिन आप के खानदान के पास रहे, कानून ख़ात्माए ज़मीन्दारी 1952/ के निफाज़ के बाद ज़ब्त कर लिए गए, ज़मीन्दारी के जुमला कागज़ात अब तक वर्सा के पास चली आ रही है।

रोहेलखण्ड की वजह तस्मिया

जिला बरैली! और इलाक़ाए बरैली को “रोहेलखण्ड” क्यों कहा जाता है? और इस का तारीखी पस मंज़र किया है? मालूमात में इज़ाफ़े के लिए मुख़्तसर वज़ाहत हदियाए नाज़रीन है: वैसे तो इस की वजह रोहेलखण्ड की शख्सीयत पर लिखी गई किताबों से सामने आती है, “लेकिन सय्यद अल्ताफ अली” “हयात हाफ़िज़ रहमत खान” में इस की जो वजह बयान की वो तारीखी पस मंज़र से करीब तर है वो ये है: अगानिस्तान में कंधार! के करीब कश्मीर से पूरब और कोहे काश्गर से उत्तर को कोहिस्तान का एक सिलसिला है, जिसे “रूह” कहा जाता है, अफगानिस्तानियों की वो जमात जो गज़नी! और गौर! से मुन्तक़िल हो कर उस को कोहिस्तान में आबाद हो गई वो रोहिला! कहलाने लगी, और जब रोहिला जमात का मायानाज़ व काबिले फख्र नौजवान लाहौर होता हुआ दिल्ली आया और दिल्ली से मआ खानदान मुन्तक़िल हुआ तो दीगर अफगानिस्तानियों को जमा फरमा कर अपने असल वतन “रूह” की शादाबी व ज़रख़ेज़ी को सामने रखते हुए और खानदानी लक़ब “रोहिला” को नयी ज़िन्दगी देने के लिए इस में एक लफ्ज़ संस्किरत खंड! हिस्से का इज़ाफ़ा कर दिया गया, इलाक़ाए बरैली को “रोहेलखण्ड” के नाम से एक सूबा बना दिया गया, रोहेलखण्ड में कई ज़िले थे, उन में बदायूं के हाकिम हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान! रहमतुल्लाह अलैह! थे, जिन्हें उस दौर में तहसीलदार कहा जाता था, और अब सिटी मजिस्टीरेट! कहा जाता है।

इजाज़तो खिलाफत

हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान! रहमतुल्लाह अलैह! दीनदार सुन्नी सहीहुल अक़ीदा अहले सुन्नत व जमात से थे, आप मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के पीरे तरीकत हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह के उस्ताज़े मुहतरम हज़रत शाह नूरुल हक फिरंगी महली बिन हज़रत मौलाना अनवारुल हक फिरंगी महली से सिलसिलए आलिया रज़्ज़ाकिया में मुरीद थे, और आप को अपने पीरो मुर्शिद से इजाज़त व खिलाफत हासिल की थी, आप बड़े आशिके रसूल थे, 12/ रबीउन नूर शरीफ को महफिले मिलाद शरीफ बड़े तुज़को एहतिशाम से मुनअकिद करते थे, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! तहरीर फरमाते हैं: हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान! रहमतुल्लाह अलैह! हर साल 12/ बारह रबीउल अव्वल को महफिले मिलाद मुबारक बड़े एहतिराम से मुनअकिद करते थे, अल्हम्दुलिल्लाह ये सिलसिला आज भी जारी है ।

अंग्रेज़ों की मुखालिफत

सलतनाते मुगलिया के ज़वाल के बाद अंग्रेज़ों ने तमाम उसूल व ज़ाब्ते और कानून बालाये ताक रख कर अहले हिन्द पर ज़ुल्मो ज़ियादती की, तो दरबार दिल्ली और अंग्रेज़ों के दरमियान खलीज वसी हो गई, आप बादशाहे दिल्ली की वकालत करने वाइसराय के पास कलकत्ता गए, अंजाम क्या निकला इस का हाल दरयाफ्त न हो सका, कयास कहता है के अंग्रेज़ों ने दरबार दिल्ली के मौक़िफ़ को तस्लीम नहीं किया होगा, शायद इस लिए आप और आप के साहबज़ादे इमामुल उलमा अल्लामा रज़ा अली! अंगरेज़ों के सख्त खिलाफ थे, और पहली जंगे आज़ादी में अंग्रेज़ों की ज़बरदस्त मुखालिफत की।

अक़्द “निकाह” व औलादे अमजाद

हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान! रहमतुल्लाह अलैह! ने तीन शादियां कीं, ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) से तीन औलादें हुईं, यानि दो फ़रज़न्द इमामुल उलमा हज़रत मौलना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह!, रईसुल हुक्मा हकीम ताकि अली खान, और एक दुख्तर ज़ीनत बेगम! उर्फ़ मोती बेगम, थीं, दूसरी ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) से,
तीन लड़कियां पैदा हुईं, (1) बदरून निसा, (2) सदरून निसा, (3) कमरून निसा, तीसरी ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) जिन का नाम सलूनी बेगम! था, जिन के बतन से एक लड़का जाफर अली खान! पैदा हुए, और ला वल्द फौत हुए,
हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान! रहमतुल्लाह अलैह! की नसल आप के दोनों फ़रज़न्दों इमामुल उलमा हज़रत मौलना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! और रईसुल हुक्मा हकीम तकी अली खान से चली, इमामुल उलमा हज़रत मौलना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! के एक ही साहबज़ादे इमामुल अतकिया हज़रत मौलाना मुफ़्ती नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह थे, और इमामुल उलमा के बिरादरे असगर हकीम तकी अली खान के साहबज़ादे हकीम हादी अली खान! थे, हकीम हादी अली खान के फ़रज़न्द हज़रत मौलाना सरदार वली खान! थे, (6/ सफारुल मुज़फ्फर 1395/ हिजरी मुताबिक 18, फ़रवरी 1975/ ईसवी को पीर गोठ, सिंध में आप का विसाल हुआ) और हज़रत मौलाना सरदार वली खान! के चार फ़रज़न्द हुए, (1) हज़रत मौलाना तक़द्दुस अली खान! (2) ऐजाज़ वली खान! (3) अब्दुल अली खान! (4) मुक़द्दस वली खान हुए, हज़रत मौलाना हाफ़िज़ काज़िम अली खान! रहमतुल्लाह अलैह! की दुख्तर ज़ीनत बेगम उर्फ़ मोती बेगम! की शादी बन्दे अली खान! से हुई थी।

विसाल

अफ़सोस की आप की तारीखे विसाल ना मिल सकी।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला
  • तजल्लियाते ताजुश्शरिया
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तज़किराए जमील

Share this post