नाम व नसब
साहिबे मशारिकुल अनवार काशिफे असरारे हकीकत, हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! हुसैन बिन मुहम्मद बिन हसन बिन हैदर अली अरवी उमरी सिगानी, आप का सिलसिलए नसब हज़रते सय्यदना उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु से मिल जाता है, आप का आबाई वतन सिगान, मरू! जो ईरान का शहर है इसी की निस्बत करते हुए सिगानी कहलाते हैं।
तालीमों तरबियत
हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने बदायूं में अपने वालिद मुहतरम और दूसरे असतिज़ाए किराम से इब्तिदाई तालीम हासिल की, फिर लाहौर गज़नी, और दूसरे इस्लामी शहर के अहले इल्मो फ़ज़ल से इक्तिसाबे फैज़ किया, मुताबह्हिर उल्माए किराम व मशाइख के कमालात ने इन के मर्तबे को इतना बुलंद कर दिया के हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! की शख्सीयत दुनियाए इस्लाम के सब से बड़े इल्मी मरकज़ बगदाद शरीफ के अंदर अकाबिर उल्माए किराम की सफे अव्वल में नुमाया हो गई, हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! के हालात, मुलाज़िमत और अस्फार के बारे में सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इरशाद फ़रमाया: वो इमाम सिगानी बदायूं के थे वहां से अलीगढ़ आए, और मुशर्रफ नाइब उहदे पर मुकर्रर हुए, मौलाना का तक़र्रुर जिस के साथ हुआ था, वो अभी अहिल था, लेकिन एक दिन इस मुशर्रफ ने कोई ऐसी बात कही के हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने तबस्सुम किया, मुशर्रफ ने गुस्से मे दवात इन की तर फेंकी, आप हट गए और रोशनाई आप तक न पहुंच सकी, जब मुशर्रफ की ना शाईश्ता हरकत देखि इस जगह पे खड़े हो गए और कहा के अब हमे ऐसे जाहिलों के साथ नशिश्तो बर्ख्वास्त नहीं करनी चाहिए, इस के बाद आप ने मज़ीद इल्म हासिल किया और उसी ज़माने में अली गढ़ के गवर्नर ने बेटे को तालीम देना शुरू की, जिस के मुआवज़े में चंद पैसे मिलते थे, और उसी पर कनाअत गुज़र बसर होती।
हज्जे बैतुल्लाह की हाज़री
जब हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने अलीगढ से हज का इरादा किया जूतों का एक जोड़ा खरीदा और पहना, पैदल एक मंज़िल सफर तय किया, जब थक गए और आप को यकीन हो गया के पैदल सफर करना मुमकिन नहीं, इसी ख्याल में के हाकिमे अलीगढ़ का बेटा घोड़े पर सवार हो कर दौड़ता हुआ, आया ताके आप को वापस ले जाए, जब वो वहां पंहुचा और हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! की उस पर नज़र पड़ी तो देखा के एक अच्छे घोड़े पर सवार हो कर आ रहा है तो आप ने दिल में सोचा अगर घोड़ा मुझे दे दे तो में आराम से सफर कर सकता हूँ, इसी फ़िक्र में थे के हाकिमे अलीगढ़ का बेटा करीब आ गया और हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! वापस नहीं होंगें तो अर्ज़ किया के इस घोड़े को कबूल फरमा लीजिये, हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने घोड़ा ले लिया और रवाना हो गए,
हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! के इस सफर का मकसद जहाँ हरमैन शरीफ़ैन की ज़ियारत और सआदत हज्जे बैतुल्लाह का हासिल करना था, वहीँ हरमैन शरीफ़ैन और दीगर इस्लामी बिलादो इमसार के उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम से फ़ैज़ो बरकात हासिल किया, चूंकि उस ज़माने में बहरी समंदरी सफर मुश्किल और हलाकत आफ़रीँ होता था, इस लिए आप ने खुश्की की राह से ये सफर किया, खुश्की का सफर भी मुसलसल नहीं किया बल्के सफर के दौरान जगह जगह क़याम करते रहे, लाहौर से गज़नी पहुंचे ये शहर उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम का मर्कज़ था, साहिबे नुज़हतुल खवातिर! ने लिखा है के सुल्तान कुतबुद्दीन ऐबक! ने आप को लाहौर का मंसबे क़ज़ा सौंपना चाहा मगर आप ने पसंद नहीं किया, और गज़नी चले गए जहाँ दरसो तदरीस में मशगूल हो गए, और वहां से ईराक आए और वहां के उल्माए किराम से इल्म हासिल किया, फिर मक्का मुअज़्ज़ा तशरीफ़ ले गए जहाँ हज के बाद एक साल तक मशाइखे इज़ाम से हदीस समाअत करते रहे।
आप की तसानीफ़
(1) मशारिकुल अनवार! नबविया सिहाहुल अख़बारूल मुस्तफ़विया
(2) मिस्बाहुद दुजा हदीसे मुस्तफा
(3) शरहे बुखारी
(4) अलउरूज़
मशारिकुल अनवारुल!
ये किताब इल्मे हदीस से मुतअल्लिक़ यूं तो हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! की कई किताबें हैं, इन सब से ज़ियादा शुहरत याफ्ता और अहम् मशारिकुल अनवार! है, इस किताब में आप ने मिश्क़ातुल मसाबीह! के तर्ज़ पर सही बुख़ारीओ मुस्लिम से हदीसों का एक इंतिख्वाब किया है,
हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! से मन्क़ूल: है हज़रत मौलाना रज़ियुद्दीन सिगानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपनी किताब “मशारिकुल अनवार” में जितनी हदीसें लिखी हैं वो सब सही हैं, अगर किसी हदीस में मौलाना को मुश्किल दरपेश होती तो उसी रात को ख्वाब में हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखते और इस हदीस को हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रूबरू पेश करते थे, और हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस की तसही फरमा देते थे।
वफ़ात
650/ हिजरी में हुई।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार मुबारक बग़दाद शरीफ में है या फिर ज़िला बदायूं शरीफ यूं पी इण्डिया में मरजए खलाइक है, वल्लाहु आलम।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन
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