मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु

हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

दे मुहम्मद के लिए रोज़ी कर अहमद के लिए
खाने फ़ज़्लुल्लाह से हिस्सा गदा के वास्ते

आप की विलादत

क़ुत्बुल औलिया हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु आप की विलादत मुक़द्दसा 1006, हिजरी मुताबिक 1598, ईसवी में कालपी शरीफ उत्तर प्रदेश मुल्के हिन्द में हुई, ।

इस्म मुबारक

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “हज़रत सय्यद मीर मुहम्मद कालपवी रदियल्लाहु अन्हु” है।

आप के वालिद मुहतरम

आप के वालिद माजिद का नाम “हज़रत अबू सईद” बिन, बहाउद्दीन बिन, इमादुद्दीन बिन, अल्लाह बख्श बिन, सैफुद्दीन बिन मजीदुद्दीन बिन, शमशुद्दीन बिन, शहाबुद्दीन बिन, उमर बिन, हामिद बिन, अहमद अज़्ज़ाहिद हुसैनी तिरमिज़ी सुम्मा कालपवी हैं, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु अभी अपनी वालिदा माजिदा के शिकम में ही थे के आप के वालिद मुहतरम “हज़रत अबू सईद रहमतुल्लाह अलैह” शहर दक्कन की जानिब तशरीफ़ ले गए और मफ्कूदुल खबर (वो शख्स जिस की कुछ खबर न हो, खोया हुआ, ला पता) हो गए, वालिद मुहतरम के खो जाने के 6, छेह माह बाद हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु इस दुनिया में तशरीफ़ लाए, और आप मादर ज़ाद वली पैदा हुए ।

आप की तालीमों तरबियत

हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु की वालिदा मुहतरमा अपने दौर की आरिफा थीं, उन्होंने अपने साए में परवरिश व परदाख्त की और इब्तिदाई तालीम की तरफ तवज्जुह दी, यहाँ तक के जब आप की उमर सात साल की हुई तो हज़रत शैख़ मुहम्मद यूनुस रहमतुल्लाह अलैह (जो अपने वक़्त के अज़ीम मुहद्दिस थे) की बारगाह में पहुंचे और इन से कसबे इल्म फ़रमाया बहुत सी किताबें पढ़ीं और इल्मे हदीस की सनद भी हासिल की , इस के बाद आप जाज मऊ तशरीफ़ ले गए और वहां मौलाना उमर जाज मऊ से पढ़ा और इक्तिसाबे फैज़ हासिल फ़रमाया,

फिर इस के बाद “हज़रत सय्यदना शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु” कोड़ा जहाना बादी ज़िला फतेहपुरी जो अपने दौर के जय्यद आलिम वा आरिफ और हज़रत मखदूम जहानियाँ रदियल्लाहु अन्हु के साहबज़ादे थे, जिन की बारगाह में बड़े बड़े उल्माए किराम इल्मे दीन हासिल करते थे और फख्र महसूस किया करते थे, और बड़ी से बड़ी मुश्किलात रफा दफा करने में आप को शोहरत हासिल थी, इन की बारगाह में हाज़िर हुए और इन से मसाबीह पढ़ी, गरज़ के आप ने इन तीनो की सुह्बते बा बरकत से इल्मे ज़ाहिरी व बातनि हासिल किया अपने दौर के जय्यद उल्माए किराम में आप का शुमार होने लगा ।

खानदानी हालात

आप का आबाई वतन मुल्के ईरान का इलाका “तिरमिज़” था, आप के आबाओ अजदाद दादा वगेरा तिरमिज़ से हिजरत कर के जालंधर तशरीफ़ लाए और आप के वालिद माजिद हज़रत मीर सय्यद अबू सईद ने वहां से कालपी शरीफ को अपना वतन बनाया इस लिए आप तिरमिज़ी सादात किराम से हैं और इसी की निस्बत से आप तिरमिज़ी कहलाते हैं ।

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

क़ुत्बुल औलिया, सय्यदुल औलिया, बुरहानुल असफिया, मज़हरे अनवाआ, मज़हरे अक्सामे करामत, हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया क़ादिरिया रज़विया के तीसवें 30, इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप की ज़ात बड़ी बा करामत थी, हर तालिबे हक की तलब को पूरी फरमाते, आप की ज़बाने पाक गोया बहरे इरफ़ान थी, शरीअत की गुथ्थियों के सुलझाने में आप के हम अस्रो में कोई आप का मद्दे मुक़ाबिल नहीं था, और आप ऐसे साहिबे कमाल थे के लालो गोहर की कोई हकीकत आप की नज़र में न थी, आप की तवज्जुह अहयाए क़ुलूब की ज़ामिन थी, आप दर्जाए कुतबियते कुबरा पर फ़ाइज़ थे, आप के फ़ैज़ाने करम से बड़े बड़े साहिबे कमाल औलियाए अस्र पैदा हुए, इबादत व रियाज़त, तकवाओ तहारत के साथ आला दर्जे के मुदर्रीस थे, बेशुमार तालबाने इल्म आप की फैज़े सुहबत से इल्म के आफताब व माहताब बन कर शरीअते मुतह्हरा की इशाअत व तब्लीग फ़रमाई आप उल्माए रब्बानीन में से थे, और आप को दर्जाए “कुतबीयत” हासिल था । आप ही के ज़रिए ये सिलसिला मारहरा शरीफ यूपी पहुंचा, फिर वहां से बरेली शरीफ और बदायूं शरीफ उत्तर प्रदेश पहुंचा ।

बैअतो खिलाफत

आप जब हज़रत सय्यदना शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु कोड़ा जहाना बादी फतेहपुरी की खिदमत में इल्म हासिल करने के वास्ते तशरीफ़ ले गए तो आप की आली ज़रफ व सलाहीयत को देखते हुए अपने सिलसिले में मुरीद फ़रमाया और तमाम सलासिल जैसे क़ादिरिया, चिश्तिया, सोहर वर्दिया, नक्श बन्दिया, मदारिया की इज़ाज़तों खिलाफत से सरफ़राज़ फ़रमाया, जिस की तफ्सील इस तरह है:

हज़रत सय्यदना शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु को सिलसिलए चिश्तिया में हज़रत मखदूम जहानियाँ से खिलाफत हासिल थी, और सिलसिलए मदारिया में, हज़रत शैख़ कयामुद्दीन से, और सिलसिलए नक्श बन्दिया, में खिलाफत हासिल थी, और सिलसिलए क़ादिरिया में हज़रत शैख़ क़ाज़ी ज़ियाउद्दीन जिया मारूफ काज़ी जिया नीयूत्नी रदियल्लाहु अन्हु से हासिल थी, और इन सभी सलासिल में हज़रत सय्यदना शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु कोड़ा वि के साथ सुलूक की मंज़िलें तय फ़रमाई,।

आप अपने पीरो मुर्शिद की बारगाह में वुज़ू के लिए पानी दिया करते थे और जब हज़रत सय्यदना शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु कोड़ा वि मस्जिद से मकान तशरीफ़ ले जाते, हमराह साथ में आप भी तशरीफ़ ले जाते जब फरमाते वापस जाओ तो चले जाते, अक्सर ऐसा इत्तिफाक हुआ के मकान पहुंचने के वक़्त मुर्शिद ने नहीं कहा के वापस जाओ आप दरवाज़े पर रात भर खड़े रहते जब तहज्जुद के वक़्त पीरो मुर्शिद दरवाज़ह खोलते आप दरवाज़े पर ग़लबाए नींद की वजह से टेक लगाए खड़े रहते दरवाज़ह खुलने पर गिर पढ़ते पीरो मुर्शिद से दस्त बस्ता अर्ज़ करते के नींद आ गई तो पीरो मुर्शिद फरमाते हम कहने को भूल गए पीरो मुर्शिद की नज़रे शफकत आप पर बहुत थी ।

पीरो मुर्शिद की करम नवाज़ी

हज़रत सय्यदना शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु कोड़ा वि ने अपने आखरी अय्याम में एक रोज़ जुमला मुरीदों को गुलगुला अता फ़रमाया, आप पीछे से तशरीफ़ लाए, पीरो मुर्शिद ने दोनों हाथ में गुलगुले ले कर आप से फ़रमाया लीजिए, आप ने दोनों हाथ से जुब्बे का दामन फैला दिया, पीरो मुर्शिद ने इरशाद फ़रमाया की पूँजी थोड़ी है और तुमने दामन बड़ा फैला दिया और फ़रमाया के इतनी पुश्तों तक तुम्हारी नस्ल में करामत बे मशक्क्त के रहेगी, अब तुम जाओ तुम्हारा हिस्सा हज़रत सय्यद अमीर अबुल उला अकबर आबादी रहमतुल्लाह अलैह (अकबर आबाद का नया नाम आज के दौर में आगरा है) के पास है, बाज़ कहते हैं के गुलगुले सात थे या नो थे या गियारह चुनांचे वो करामत आप के खानदान में बराबर चली आ रही है ।

आप की इबादतो रियाज़त

आप की इबादतो रियाज़त का आलम भी एक अजीब अहमियत का हामिल है, हर वक़्त आप पर एक कैफियत तारी रहती दिल गिरियां रखते थे, अक्सर आंसुओं से कई रुमाल तर हो जाते थे पांचों वक़्त की नमाज़ बा जमात अदा फरमाते सात साल की उमर से नमाज़े बा जमाअत की पाबंदी की कभी क़ज़ा न हुई, आखरी उमर में 26, साल तक बराबर रोज़े से रहे सिवाए उन दिनों के जिस में रोज़े रखना हराम है, बाकी तमाम दिनों रोज़े रखते थे, नाराए तकबीर आप इस ज़ज्ब व शोक से लगाया करते थे के सामईन तड़प जाते थे ।

आप की दुआ

ऐ नफ़्स में कितने साल का तज़किरा करूँ के हर मरतबा कागज़ को सियाह करता है और अपने नामए आमाल को सियाह करता है इलाही इस सियाही को सफेदी से बदल दे और किरामान कातिबीन जो हमारे नामए आमाल को लिखने पर मुतअय्यन हैं, तकलीफ की बातों को दूर रखें, उन से मुझ को कयामत के दिन शर्मंदा मत कर अगरचे गुनाहों से भारा नामए आमाल तेरी बारगाह की तरफ पेश किया हो, तू अपने फ़ज़्ल से तौफीक दे कर फ़ुज़ूल बकवास से में बाज़ रहू और जो काम तुझ को पसंद व महबूब है, उस की कोशिश करूँ और जो काम तेरी मर्ज़ी के खिलाफ है इससे परहेज़ करूँ ऐ अल्लाह! तू जानता है के जब तेरे हबीब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम शरीफ आता है तो मेरे दिल में कितनी ख़ुशी हासिल होती है, इसी ख़ुशी व मसर्रत के सदके में गैर मुनासिब बातों से महफूज़ रख और जो मुनासिब हैं उस पर कायम रख इन दुआओं को तेरी बारगाह की तरफ रुजू करने के सबब कुबूल फरमा वस्सलाम ।

मसनदे दर्स व तदरीस

आप अपने मुर्शिदे कामिल से फ़ैज़ो बरकात हासिल करने के बाद उन की इजाज़त व हुक्म के मुताबिक़ अपने वतन कालपी शरीफ तशरीफ़ लाए और दर्स व तदरीस का आगाज़ फ़रमाया जो एक ज़माने तक जारी रहा, बे शुमार अफ़राद ने आप से फियूज़ु बरकात हासिल किए और ये कदीम इस्लामी दर्स गाहें इन्हीं सूफ़ियाए किराम मशाईखिने इज़ाम से आबाद थीं जिन से दर्स गाहों से बड़े बड़े अदीब, आबिद, ज़ाहिद, आलिम, फ़ाज़िल, तजुर बेकार मुहक्किक, पैदा हुए थे, जिन का रोबो इल्म की हिदायत व रहबरी का अंजाम देता था, इन्हीं अज़ीम दर्स गाहों के फैज़ याफ्ता हज़रात में हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु हैं ।

हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह से भी फियुज़ो बरकात हासिल फरमाए थे, वो वाक़िआ इस तरह है के एक रात आप ने हज़रत ख़्वाना बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह को ख्वाब में देखा और ख्वाब ही में आप से इरशाद फ़रमाया: ऐ मीर मुहम्मद! एक शैख़े तरीकत अपने सिलसिले के हैं जो साहिबे मक़ामाते आलिया पर फ़ाइज़ हैं इन का क़याम अकबराबाद (आगरा) में हैं, इस लिए अब तुम अकबराबाद (आगरा) जाओ इस सिलसिले को भी हासिल करो,

मगर हज़रत ने नाम की बशारत से आगाह नहीं फ़रमाया: आप ख्वाब से बेदार हुए और आगरा का क़स्द फ़रमाया, यहाँ तक के जब आप आगरा पहुंचे तो मालूम हुआ के फिल वक़्त आगरा में दो अज़ीम बुज़रुग मौजूद हैं, जिन से मखलूके खुदा फैज़ याब हो रही है एक बुज़रुग हज़रत मीर नुमान खलीफा हज़रत शैख़ अहमद मुजद्दिदे अल्फिसानी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह और दूसरे बुज़रुग हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह हैं, आगरा पहुंच कर आप ने हज़रत नुमान की ख़ानक़ाह पर चलने की ताकीद फ़रमाई लेकिन डोली उठाने वाले ने आप को बजाए हज़रत मीर नुमान रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह के बजाए हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह पर ले गए, आप को जब मालूम हुआ के ये हज़रत मीर अबुल उला रहमतुल अलैह की खानकाह है तो आप इस जगह से पालकी से नहीं उतरे और बैठे ही बैठे हुक्म दिया के हज़रत मीर नुमान रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह पर पालकी ले चलो? जब पालकी ले कर रवाना हुए लेकिन बजाए हज़रत नुमान रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह पर पहुंचने के आप फिर हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह पर पहुंचे, पालकी फिर वापस हुई इसी तरह चंद बार हुआ, यहाँ तक के आप ने पालकी से उतर कर सोचा के अल्लाह पाक की मरज़ी ही यही है और खानकाह में दाखिल हुए, हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह उस वक़्त खानकाह के सेहन में तशरीफ़ फरमा थे, हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह ने आप को देख कर एक नारा लगाया इससे आप के जिस्म में कोई हरकत नहीं हुई, इस के बाद हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह ने आप का हाथ पकड़ कर दूसरा नारा लगाया, तो उस वक़्त आप ज़ब्त न कर सके और बदन में जुम्बिश, हाथ में लग़्ज़िश और क्लब में हरकत पैदा हुई और इसी हरकत के साथ आप के क्लब में “निस्बते अबुल उलाईया” पहुंच गई, इस के बाद आप कई माह हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह की सुह्बते बा बरकत में रहे और जब आप वापस होने लगे तो आप को हज़रत खाव्जा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की तस्बीह अता फ़रमाई और बैअतो खिलाफत सिलसिलए आलिया कादिरिया, चिश्तिया, नक्शबंदिया, मदारिया, अबुल उलाईया, से सरफ़राज़ फ़रमाया, यहाँ तक के अपने वतन कालपी तशरीफ़ लाए और दरस व तदरीस व मसनदे रुश्दो हिदायत पर जलवा अफ़रोज़ हुए, फिर दस साल के बाद आप हज़रत शैख़ अमीर अबुल उला अहरारी अकबर आबादी (आगरा) रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में पहुंचे चार माह तक आप के फियूज़ो बरकात से मुस्तफ़ीज़ हुए ।

नोट: आप को याद रहे “अकबराबाद” सूबा उत्तर प्रदेश का मश्हूरो मारूफ शहर है इसी शहर में “ताज महल” भी है और आज के दौर में इस शहर का नया नाम “आगरा” है और “अकबराबाद” पुराने ज़माने का नाम है ।

हिन्द के राजा हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह का फैज़ान

आप ने हज़रत ख्वजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार मुबारक पर भी हाज़री दी, जब आप के मज़ार मुबारक पर तशरीफ़ ले गए तो हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह ज़ाहिर हुए और आप से ये इरशाद फ़रमाया जब तुम मेरे मुल्क में आए हो तो तुम्हे चाहिए के मेरे तरीके को भी अपनाओ, चुनांचे हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह ने आलमे बातिन में चिश्तिया फैज़ान से नवाज़ कर दीगर सलासिल की इजाज़त भी अता फ़रमाई, जिससे आप आला मर्तबे पर फ़ाइज़ हुए, यहाँ तक के आप का मामूल था के हर साल सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे पुर अनवार की ज़ियारत के लिए अजमेर तशरीफ़ ले जाते, एक रोज़ आप मज़ार मुबारक के रूबरू हाज़िर थे के यकायक आप पर हालत तारी हुई, इस के बाद हज़रत ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए और आप के हाथ में बर्ग तम्बूल इनायत फ़रमाया, फिर आप जब अपनी हालत पर आए तो आप के दस्ते मुबारक में बर्ग तम्बूल मौजूद था, हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में आप की रूहानियत का ये आलम था के जिस जगह भी आप चाहते रूहानी मुलाकत से मुशर्रफ हो जाते और फ़ैज़ो बरकात हासिल फरमाते ।

आप की तस्नीफी खिदमात

तस्नीफी व इल्मी मैदान में भी आप एक अहम व अबकरि शख्सीयत थे, चंद रसाइल आप के बे हद मशहूर हैं जिन में अक्सर दाईरा शाह अजमल इलाह आबाद में शाह अजमल लाइब्रेरी में मौजूद हैं: जिन की तफ्सील हस्बे ज़ैल है:

  1. तफ़्सीर सूरह फातिहा अरबी
  2. तफ़्सीर सूरह युसूफ
  3. कितबुत तरावीह अरबी
  4. रिसाला तहक़ीक़ रूह फ़ारसी मतबूआ
  5. रिसाला वह्दतुल वुजूद अरबी
  6. इर्शादुस सालिकीन
  7. रिसालतुल गिना फ़ारसी
  8. रिसाला अक़ाइद सूफ़िया मतबूआ
  9. रिसाला व इरादात अरबी
  10. रिसाला अमल वल मअमूल फ़ारसी
  11. रिसाला शुग्ल कूज़ाह
  12. हक़ाइक़ व मारफअत फ़ारसी
  13. मरातिबुल गिना वल वसूले इलल्लाह फ़ारसी,।
                                   "कशफो करामात"
बदकार को नेकोकार बना दिया

मन्क़ूल: है के एक शख्स साहिबे दोलतो सरवत था और मुतअद्दिद गुनाहों में मुब्तला रहता था, इस की आदत ये थी जिस दुरवेश का शोहरा चर्चा सुनता उन की सुहबत में जाता, बिला आखिर एक बार इस ने सोचा के कालपी शरीफ हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में चलना चाहिए और अपने दिल में ये ख़याल किया के अगर पहली बार देखने के साथ ही मेरे ऊपर कोई कैफियत तारी हो गई तो में अपने तमाम गुनाहों से तौबा कर लूँगा, और अगर कोई कैफियत तारी नहीं होगी तो अलल ऐलान शराब नोशी करूंगा? जब वो हज़रत की बारगाह में पहुंचा तो देखते ही बेहोश हो गया और काफी देर तक बेहोशी के आलम में पड़ा रहा जब होश में आया तो गिरिबान चाक कर दिया और फक्र फकीरी इख़्तियार कर के “तारिकुद दुनिया” हो गया, आप ने अपने कश्फ़ से आइन्दः हालात का मुशाहिदा फ़रमाया और एक उम्दा जोड़ा और खादिम उस के पास रवाना फ़रमाया, इस ने खिलअत को क़ुबूल न किया, खादिम ने हर चंद जिद्दो जाहिद की मगर ये इंकार ही करता रहा आखिर कार हज़रत तशरीफ़ लाए और इससे इरशाद फ़रमाया: तुम मेरी इरादत की वजह से सआदत मंद हो चुके हो, इस लिए तुम्हे जो कुछ भी दिया जा रहा है, इसे क़ुबूल कर लो तुम क्या जानते हो के इस में क्या राज़ है? यहाँ तक के इस ने खिलअत को पहना और फिर इस पर राज़े सरबस्ता मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर होना, खुलना, आने वाले हालात से आगाह हो जाना) हुए और वो आप के दर का खादिम हो गया ।

ज़िंदा आदमी की नमाज़े जनाज़ह

आप हमेशा दरियाए जमना का पानी इस्तिमाल करते थे, एक दिन आप दरिया से पानी ले कर चले आ रहे थे सादाते महमूद पूरा ने इम्तिहान के तौर पर एक ज़िंदह आदमी को कफ़न पहना कर जनाज़ह आप के पास रख दिया और आप से कहा हज़रत नमाज़ पढ़ा दीजिए, आप ने कहा ज़िंदह आदमी की नमाज़ नहीं है, उन्होंने इसरार किया के ज़िंदह नहीं है, चुनांचे आप ने नमाज़ पढ़ी कहते हैं के जिस वक़्त आप ने अल्लाहु अकबर कहा उस वक़्त इस की जान निकल गई, वो इन्तिज़ार में थे के अब उठता है लेकिन वो न उठा आप ने नमाज़ खत्म कर दी जब लोगों ने देखा के वो मुरदह है तब आप से कहा, आप ने फ़रमाया: जैसा तुम ने किया वैसा पाया ।

आप की औलादे अमजाद

आप का निकाह मुबारक जालंधर के क़ाज़ी की साहब ज़ादी हज़रत बीबी फतह फलक से हुआ, जिन के बतन से दो साहबज़ादे हज़रत मीर सय्यद अहमद और हज़रत सय्यद अहमद क़ुत्बे आलम और एक बेटी सय्यदह नाज़ फलक, पैदा हुईं, हज़रत सय्यद अहमद क़ुत्बे आलम का विसाल 5, साल की उम्र में हो गया अपने वालिद के सामने ही ।

आप के खुलफाए किराम

आप की फैज़ बख्श खानकाह से वक़्त के अज़ीम दानिश्वर और साहिबे फ़ज़्लो कमाल का एक काफिला तय्यर हुआ जो इस्लाम की बेश बहा खिदमात अंजाम देकर खुद भी तारिख साज़ बनकर चमके चंद के असमाए गिरामी ये दर्ज ज़ैल हैं:
आप के मुमताज़ तिरिन ख़लीफ़ए अजल क़ुत्बुल अक्ताब

(1) “हज़रत शैख़ मुहम्मद अफ़ज़ल इलाह आबादी हैं” जिन्हें आप ने तमाम सलासिल की खालफतो इजाज़त से नवाज़ा था, आप के बारे हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद तिरमिज़ी कालपवि रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं के “अगर अल्लाह पाक मुझ से पूछेगा के तुमने दुनिया में क्या हासिल किया और मेरे लिए क्या तोहफा लाया तो कह दूँगा के “शाह अफ़ज़ल” को हासिल किया और तोहफा लाया,
(2) आप के दूसरे खलीफा हज़रत मुहम्मद आशिक रहमतुल्लाह अलैह थे जो अपने वक़्त के बड़े साहिबे मक़ामात बुज़रुग गुज़रें हैं,
(3) तीसरे खलीफा हाजी जुनैद रहमतुल्लाह अलैह,
(4) चौथे खलीफा हज़रत शैख़ अब्दुल हकीम मोहानी रहमतुल्लाह अलैह,
(5) पांचवे खलीफा हज़रत शैख़ कमाल अफसरी रहमतुल्लाह अलैह, इन लोगों का शुमार अपने अहिद के बड़े बड़े लोगों में होता है, अपने अपने दौर के साहिबे तसानीफे कसीरा और साहिबे बयाज़े शोआरा में होता है, शैख़ कमाल अफसरी आरिफ़े वक़्त और शायरे बाकमाल की हैसियत से मश्हूरो मारूफ हैं,
(6) छटे खलीफा हज़रत शैख़ अब्दुल मोमिन अकबराबादी रहमतुल्लाह अलैह,
(7) सातवे खलीफा हज़रत मीर सय्यद मुहम्मद वारिस निज़ामाबादी रहमतुल्लाह अलैह,
(8) आठवे खलीफा हज़रत शैख़ करक्ति रहमतुल्लाह अलैह,
(9) खलीफा हाजी वली मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह, जिन का नामे नामी किताब तस्वीय के सिलसिले में हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह, के सामने पेश हुआ तो हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह, ने इन के नाम मुबारक को दायरे में लिख दिया, गरज़ के हाजी वली मुहम्मद मशहूर शख्सीयत के मालिक थे, आप की शोहरत व तक्वा को वक़्त का सुल्तान तस्लीम करता था,
(10) दसवे खलीफा हज़रत सय्यद मुज़फ्फर रहमतुल्लाह अलैह,
(11) गियारवे खलीफा हज़रत हाफ़िज़ ज़ियाउल्लाह बिलगीरामि रहमतुल्लाह अलैह, आप की किताब “दस्तूरुस सियासत” को शोहरत हासिल है रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, आप के खुलफ़ा में सब के सब अपने वक़्त के जय्यद आलिम, मुसन्निफ़, मुहद्दिस फकीह मुफ़स्सिर हुए हैं ।

विसाले पुरमलाल व उर्स

आप का विसाल 26, शाआबानुल मुअज़्ज़म बा उमर 65, साल 1071, हिजरी बरोज़ पीर के दिन हुआ ।

मज़ार मुबारक

कालपी शरीफ शहर के बाहर दख्खिन और पच्छिम कोने में एक मील के फासले पर है, इस में कई इमारते हैं एक मकबरा जो मस्जिद के सेहन के सामने है जुनूब की तरफ इसी के अंदर पच्छिम की जानिब आप का मज़ार शरीफ है यूपी इण्डिया में ।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला
  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • बयाज़े शाह अजमल इलाह आबादी
  • (माह नामा कलीम शाबान 1354, हिजरी इलाह आबादी
  • ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल
  • मक्तूबात कलमी जिल्द अव्वल अज़ शाह खूबुल्लाह इलाहाबादी रहमतुल्लाह अलैह
  • क़ुत्बुल औलिया
  • आइनये कालपी
  • हयाते औलियाए कालपी

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