शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु

हज़रत सय्यदना शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

खानए दिल को ज़िया दे रूए ईमा को जमाल
शाह ज़िया मौला जमालुल औलिया के वास्ते

आप की विलादत

आप की विलादत मुक़द्दसा 973, हिजरी मुताबिक 1566, ईसवी में बा मकाम कोड़ा जहांना बाद हसनवाँ ज़िला फतेहपुर यूपी इण्डिया में हुई ।

इस्म शरीफ

आप का इस्मे गिरामी “शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु” है।

आप के वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का इस्मे गिरामी “हज़रत मखदूम जहानियाँ” बिन बहाउद्दीन सालार आलम हनफ़ी है ।

पैदाइश की बशारत

अभी आप का वुजूद इस खाकदाने गीती पर आया भी नहीं था के आप की पैदाइश से पहले ही हज़रत फ़कीर खुदा बख्श रहमतुल्लाह अलैह, जिन की उमर शरीफ एक सौ बीस साल की थी, उन्होंने बशारत दी के हज़रत मखदूम जहानियाँ के घर में “जमाल” आएगा, यहाँ तक के जब आप की विलादत मुबारका हुई तो आप का मुबारक नाम “शैख़ जमाल” रखा गया ।

नसब नामा शरीफ

आप का शजराए नसब साहिबे “शिमामतुल अम्बरिया” ने इस तरह बयान फ़रमाया है: हज़रत मखदूम जहानिया सानी बिन, शाह बहाउद्दीन बिन, हज़रत क़ुत्बुल अक्ताब शाह सालार बुद, बिन मखदूम शाह हैबतुल्लाह बिन, शाह सालार राजी बिन, मखदूम शहाबुद्दीन उर्फ़ हबीबुल्लाह बिन, मखदूम ख़्वाजा मियां बिन, मखदूम शहाबुद्दीन सालिस बिन, शाह इमादुद्दीन बिन, शाह नजमुद्दीन बिन, मखदूम शाह शमशुद्दीन बिन, मखदूम शहाबुद्दीन चहारम बिन, मखदूम शहा इमाद बिन, शाह रज़ीउद्दीन बिन, मखदूम शहा अब्दुल करीम बिन मखदूम शाह जाफर बिन, मखदूम शाह हमज़ाह बिन, मखदूम शाह काज़िम बिन, मखदूम शाह हसन मेहदी बिन, मखदूम शाह ईसा बिन, मखदूम शाह मुहद्दिस बिन, सय्यद हसन अरीज़ बिन, मखदूम सय्यद अली अरीज़ बिन, सय्यदना इमाम जाफर सादिक बिन, सय्यदना इमाम मुहम्मद बाकर बिन, सय्यदना इमाम ज़ैनुल आबिदीन बिन, सय्यदना इमामे हुसैन बिन, सय्यदना अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

आप के खानदानी हालात और औरंगज़ेब आलम गिर रदियल्लाहु अन्हु

हज़रत शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु के बिरादरे हकीकी जिन का नाम हज़रत मौलाना शाह मुबारक रहमतुल्लाह अलैह था, उन के नबीरा की औलाद में एक बुज़रुग (जिन का नाम मुल्ला अबू सईद साहब उर्फ़ फभे दानिशमंद हुए हैं जिन का नसबी सिलसिला इस तरह है, “मुल्ला अबू सईद साहब उर्फ़ फभे दानिशमंद, बिन मौलाना शाह खुर्रम बिन मौलाना मुहम्मद हाशिम, बिन मौलाना शाह मुबारक, बिन हज़रत मखदूम जहानियाँ सानी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन” मुल्ला अबू सईद उर्फ़ फभे साहब दानिशमंद रहमतुल्लाह अलैह बहादुर शाह बिन आलम गीर के उस्तादे मुहतरम थे और “दानिश मंद” आप का शाही खिताब लक़ब है।

हज़रत शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु के वालिद गिरामी हज़रत मखदूम जहानिया सानी रहमतुल्लाह अलैह बहुत बड़े बुज़रुग गुज़रे हैं जिन का विसाल तकरीबन 960, हिजरी में हुआ, और आप ही की तस्नीफ़ है एक किताब जिस का नाम “असरारे जहाँ बानी” जो अज़कार व अशग़ाल सूफ़ियाए कामिलीन पर मुश्तमिल है, ये किताब सूबा कलकत्ता में छप चुकी है, आप बहुत बड़े उल्माए मुहक़्क़िक़ीन में से थे, एक वक़्त आप ने कुतबे दरसिया के लिए मुअय्यन किया था तो दूसरा वक़्त ज़िक्र व शुग्ल व तलकीन के लिए वक़्फ़ था बड़े बड़े उल्माए वक़्त आप से दरस व फ़ैज़ो बरकात लेने के लिए हाज़िर होते थे, नीज़ बड़े बड़े सूफ़ियाए किराम अपने वक़्त के आप के खुलफ़ा की फहरिस्त में शमिल हैं, आप के साहब ज़ादे हज़रत शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु एक ख़ास इम्तियाज़ी शान के मालिक हैं और आप के साहब ज़ादे के खलीफा हज़रत सय्यदना मीर मुहम्मद काल्पवि रहमतुल्लाह अलैह अपने शैख़ के अज़ीम खुलफाए किराम में शामिल हैं, और इल्मे शरीअत में आप ही के एक शागिर्द हज़रत मुल्ला अब्दुर रसूल साहब, जो मुल्ला लुत्फुल्लाह साहब के उस्तादे मुहतरम थे, और हज़रत मुल्ला लुत्फुल्लाह साहब रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मुल्ला जीवन रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 1130, हिजरी) के उस्ताद थे, और हज़रत मुल्ला जीवन रहमतुल्लाह अलैह शहंशाहे हिंदुस्तान हज़रत औरंग ज़ेब आलम गीर रहमतुल्लाह अलैह के उस्ताद और “नूरुल अनवार”, व तफ़्सीरे अहमदिया” के मुसन्निफ़ हैं, हज़रत क़ुत्बुल अक्ताब मखदूम जहानिया सानी रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद माजिद शाह बहाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के शागिर्द व खलीफा थे, और हज़रत शाह बहाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के खुलफ़ा अपने ज़माने के मश्हूरो मारूफ मशाइख़ीने हिन्द में शुमार होते थे, और हज़रत ग़ौस शाह बहाउद्दीन अपने वालिद मुहतरम हज़रत सालार बुद हक्कानी रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा थे।

आप का वतन

आप का वतन कोड़ा जहाना बाद है जो आप ही के खानदानी बुज़ुरगों ने आबाद किया था, आप के आबाओ अजदाद दादा परदादा बादशाह सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश के ज़माने में मुल्के रब और मुल्के रूम से हिंदुस्तान बा गरज़े जिहाद तशरीफ़ लाए थे, मुहिम बंगाला में सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश के साथ शरीक हुए और वापसी पर मकाम सुल्तानपुर में रिहाइश इख़्तियार फ़रमाई, जब दिल्ली की सल्तनत में कमज़ोरी पैदाई हुई और तवाईफुल (बदनज़्मी, बद इन्तिज़ामी) का दौर शुरू हुआ यहाँ तक के शरकियों ने अपनी हुकूमत शुरू कर के जौनपुर को अपना दारुल सल्तनत बना लिया तो उस वक़्त हज़रत सुल्तानुल औलिया हज़रत मखदूम सालार बुध रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद हज़रत शाह हैबतुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ने शाही शर्की को साथ ले कर के “राजा दो मन” से जिहाद किया और उससे फ़तेह कामयाबी हासिल की, और उस के दारुल सल्तनत “आ टी हा” का नाम बदल कर फतेहपुर रखा और वहीँ आप रहने लगे, ये वो ज़माना था जिस वक़्त हज़रत मखदूम सालार बुध रहमतुल्लाह अलैह जौनपुर में इल्मे दीन हासिल करने में मसरूफ बिज़ी थे, इल्मे शरीअत की तकमील के बाद आप जौनपुर ही में हज़रत बहाउद्दीन नथ्थू जौनपुरी से बैअत का शरफ़ हासिल किया, और तकमीले सुलूक के बाद खिलाफत से सरफ़राज़ किया गया, इस के बाद अपने वतन की तरफ वापस इस सफर में आप के साथ आप के मुरीदों और शागिर्द का काफिला जो तकरीबन सात सौ की तादाद पर मुशतमिल था सब के सब आप के साथ में थे, आप ने अपने इस सफर को इस तरह शुरू किया के पहले दिल्ली जा कर वहां औलियाए किराम के मज़ारात पर हाज़री देंगें फिर वतन को वापस जाएंगें। क्यूंकि दिल्ली शरीफ भी “मदीनतुल औलिया” यानि औलियाए किराम का शहर व मदफ़न है, दिल्ली शरीफ में तकरीबन डेड़ दो सौ औलियाए किराम सूफ़ियाए इज़ाम आराम फरमा हैं,

रास्ते में राजा अरगुल की अमला दारी थी जो निहायत मुतअस्सिब हिन्दू था, और आप का मामूल था के जहाँ नमाज़ का वक़्त होता आप रुक जाते और जमात के साथ नमाज़ अदा करते, राजा अरगुल की अमला दारी में एक जगह ज़ोहर की नमाज़ से जब फारिग हुए तो आप को इत्तिला मिली के तीस हज़ार फौज ले कर राजा अरगुल! आप को कत्ल करने की नियत से आ रहा है, आप ने लोगों को हुक्म दिया के सुन्नत पढ़ कर बहुत जल्द दुश्मने खुदा के लिए तय्यार हो जाओ, चुनांचे जिहाद हुआ और ज़ोहर से दूसरे दिन दोपहर तक बराबर मुकाबला होता रहा, बिला आखिर राजा अरगुल मारा गया और उस का बेटा आप के हाथ पर तौबा कर के ईमान ले आया और मुस्लमान हो गया, आप ने उस का नाम “बिजली खान” रखा और बाकी निस्फ़ दिन के क़याम के बाद शब में आप ने फ़रमाया: वो तीन दिन क़याम कर के दिल्ली का सफर क्या जाएगा, इसी शब ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! ने आप से इरशाद फ़रमाया: “तुम कहीं! न जाओ बल्के इसी जंगल को साफ़ कर के यहीं क़याम करो, सदियों तक तुम्हारी औलाद व अहफ़ाद (बेटे के बेटे, बेटी की बेटी) से लोगों को दीने इस्लाम की रौशनी मिलेगी और बड़े बड़े औलियाए कामिलीन तुम्हारी औलाद व अहफ़ाद से होंगें” चुनांचे आप ने इस मुबारक ख्वाब को लोगों से बयान फ़रमाया और जंगल की सफाई करने का हुक्म दिया ।

कोड़ा जहाना बाद व औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह

इस जंगल में घास कुन कूड़ा काफी मिक़्दार में था जिस की वजह से लोगों ने इस मकाम का नाम ही कोड़ा रख दिया, आप ने वहां खानकाह, मस्जिद और रहने का घर बन वाया और बिजली खान ने किला बन वाया और मस्जिद भी बनवाई जो इस वक़्त तक कस्बे में मौजूद है और जिस पर तामीर की तारीख भी कुंदा है, बिजली खान चूंके आप का मुरीद था इस लिए अपनी सआदत व नेक बख्ती वहां के क़याम में देखि, चुनांचे इस के मुकीम होने से कोड़ा शहर निहायत वसई, बा रोंकन और आबाद हो गया शाह जहाँ बादशाह जब अपनी शहज़ादगी के ज़माने में इस खानदान में मुरीद हुआ तो कोड़ा शरीफ से मुत्तसिल शाह जहांबाद को आबाद किया जो इस वक़्त तक जहाँ आबाद के नाम से मशहूर है, चुनांचे पुराने कागज़ात में ही नहीं बल्के मौजूदा गोरमेंट के कागज़ात में भी “शाह जहांबाद” देखा जाता है इस तअल्लुक़ की बिना पर कोड़ा को कोड़ा जहाना बाद कहते हैं ।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! की मज़कूरा बाला बशारत ही की बरकत है के वो वीरान जंगल अब “कोड़ा जहाना बाद शरीफ” बन गया, हज़रत शाहंशाह औरंज़ेब आलम गीर रहमतुल्लाह अलैह आप ने भी शुजाअ के मुकाबले के लिए जाते हुए जब कोड़ा के करीब पहुंचे तो अदब के साथ सवारी से उतर पड़े और पैदल चलने लगे, इस कस्बे के छेह सौ उल्माए किराम एक वली सिफत बादशाह के इस्तकबाल को गए, हज़रत शाहंशाह औरंज़ेब आलम गीर रहमतुल्लाह अलैह को जब मालूम हुआ के ये सभी उल्माए किराम एक ही खानदान से है और सभी हज़रत मखदूम सालार बुध रदियल्लाहु अन्हु की औलाद में से हैं, तो निहायत तअज्जुब हुआ और अपने दादा उस्ताद हज़रत मुल्ला लुत्फुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु (उस्ताद मुल्ला जीवन रदियल्लाहु अन्हु) के यहाँ पांच रोज़ मेहमान रहे और इन से दुआएं ले कर मुकाबले को गए और कोड़ा से पांच कोस के फासले पर एक मकाम खजूवाह है जहाँ शुजाअ से मुकाबला हुआ, बावजूद ये के औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की ज़ियादा तर फौज रात में शुजाअ की फौज में शामिल हो गई थी और सिर्फ दो हज़ार फौज ही औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के पास बाकी रह गई थी मगर इस किल्लत के बावजूद हज़रत औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ही को फ़तेह व कामयाबी हासिल हुई और तमाम वाक़िआत इस तरह पेश आए जिस तरह दुरवेशों ने कोड़ा ने पहले ही खबर दी थी,
चुनांचे वापसी पर हज़रत औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने दो हफ्ते क़याम फ़रमाया: क़स्बा कोड़ा उस ज़माने में “दारुल फुज़्ला” के नाम से मशहूर था मगर हज़रत औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने उस का नाम “दारुल औलिया” रख दिया ।

आप की तालीमों तरबियत

आप अपने वालिद माजिद हज़रत मखदूम जहानियाँ रहमतुल्लाह अलैह की तरबियत व आगोश में ही परवान चढ़े और सब से पहले वालिद माजिद ही से “शरफ़े बैअत” हासिल किया और खिलाफत के मंसबे जलीला पर फ़ाइज़ हुए, फिर आप के वालिद माजिद ने आप की तालीम व तरबियत पूरी कर ने के लिए हज़रत क़ाज़ी ज़ियाउद्दीन जिया रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में भेजा जहाँ पांच साल तक इल्मे दीन तहसीले उलूम ज़ाहिरी व बातनी हासिल फ़रमाया ।

आप के फ़ज़ाइल

क़ुत्बुल अक्ताब, शैखुल असहाब, रहनुमाए शरीअत व तरीकत, हज़रत शैख़ जमालुद्दीन उर्फ़ “शैख़ जमालुल औलिया” रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया कादिरिया रज़विया के उन्तीसवें इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप के फ़ज़ाइल व मनाक़िब बेशुमार हैं, आप मादर ज़ाद वली हैं और निस्बत आली रखते हैं, जब आप सात साल के हुए तो फुकरा दुरवेशों की खिदमत करने लगे और जब आप 22, साल के हुए तो आप को इशारा मिला इमामुल अइम्मा सिराजुल उम्माह हज़रत सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु तहसील उलूम में मशगूल हो गए और बीस साल तक इल्मे दीन शरीअत व तरीकत सीखते रहे, आप ने बिला वास्ता अरवाहे मुबारका हज़रत सय्यदना मुहीयुद्दीन अब्दुल कादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु, हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रदियल्लाहु अन्हु, और हज़रत शैख़ बदीउद्दीन क़ुत्बुल मदार मकनपुरी रदियल्लाहु अन्हु, से फैज़े ओवैसिया हासिल फ़रमाया और बुज़ुरू गाने अस्र से फैज़ व खिरकाए खिलाफत चरों सिलसिलों से हासिल फ़रमाया ।

आप के तालबे इल्मी का वाकिअ

मन्क़ूल है के शुरू बचपन में आप की तबीअत निहायत गबी (जल्दी सबक याद न होना) थी आप को मदरसे के तलबा बराए तमस्खुर मज़ाक में “जमाले औलिया” पुकारते थे, ये मज़ाक आप को पसंद नहीं था, और मदरसे से भाग कर एक गार में छुप गए, एक दिन हज़रत शैख़ ज़ियाउद्दीन रदियल्लाहु अन्हु ने दरयाफ्त फ़रमाया के जमाल, कहाँ है? पूछने के बाद मालूम हुआ के वो तीन दिन से मदरसे से ग़ाइब हैं, इस लिए आप ने फ़रमाया: में भी तलाश कर रहा हूँ और तुम भी तलाश करो जा कर, हज़रत शैख़ ज़ियाउद्दीन रदियल्लाहु अन्हु तलाश कर ने के लिए जंगल में तशरीफ़ ले गए तो आप ने देखा के एक गार में बैठ कर हज़रत शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु रो रहे हैं, शैख ने आवाज़ दी के ऐ जमाल! क्यों रोते हो? आप ने कहा तलबा मुझ पर खन्दा ज़नी और हसीं से जमाले औलिया पुकारते हैं? शैख़ ने इरशाद फ़रमाया: चलो में ने तुझे “औलिया” कर दिया, फिर आप गार से बाहर तशरीफ़ लाए, तो हज़रत शैख़ ज़ियाउद्दीन रदियल्लाहु अन्हु, ने अपना पैरहन आप को अता फ़रमाया, उस रोज़ से आप पर असरारे विलायत मुन्कशिफ़ हुए और ज़कावते ज़हन पैदा हुई के तलबा देख कर दंग रह गए, उलूमे ज़ाहिरी सीखने के बाद शैख़ ने आप को रहे सुलूक तै कराए और खिरकाए कादिरिया से मुशर्रफ फरमाकर अपना ख़लीफ़ए खास बना लिया ।

राहे सुकुल की मंज़िलें तय करने के बाद आप अपने वतन तशरीफ़ लाए और वहां मुस्तकिल क़याम फरमा कर दरस व तदरीस व इफ़ादाए उलूमे ज़ाहिरी व बातनि में मशगूल हुए और आप की खिदमत में रह कर हज़रत सय्यद मुहम्मद सईद काल्पवि रहमतुल्लाह अलैह से मुतव्वल बैज़ावी तक पढ़ा, और भी कसीर उल्माए किराम व मशाइख़ीने इज़ाम से आप ने फ़ैज़ो बरकात हासिल किए ।

आप के असातिज़ाए किराम

आप ने जिन उल्माए किराम व मशाइख़ीने इज़ाम से उलूमे ज़ाहिरी व बातिनी हासिल किया उनके अस्मा ये हैं:

  1. आप के वालिद माजिद हज़रत शैख़ जहानिया सानी
  2. हज़रत शैख़ कियामुद्दीन बिन शैख़ कुतबुद्दीन बिन शैख़ अड्डहन जौनपुरी
  3. हज़रत शैख़ क़ाज़ी ज़ियाउद्दीन उर्फ़ शैख़ जिया रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन

आप के खुलफाए किराम में किताब “मुनाज़िराए रशीदिया” के मुसन्निफ़ :-

आप के खुलफाए किराम की मुकम्मल फहरिस्त न मिल सकी जिन हज़रात के नाम मुबारक हमे मिले हैं वो हस्बे ज़ैल हैं,

(1) हज़रत सय्यद मुहम्मद बिन अबी सईद काल्पवि रदियल्लाहु अन्हु,

(2) हज़रत शैख़ यासीन बिन अहमद बनारसी रदियल्लाहु अन्हु, आप ने हज़रत मखदूम शाह तय्यब बनारसी रदियल्लाहु अन्हु, से फ़ैज़ो बरकात हासिल किए और फिर इस के बाद हज़रत शैख़ जमालुल औलिया कोड़ा जहाना बादी फतेहपुरी रदियल्लाहु अन्हु से भी इक्तिसाबे फैज़ हसासिल किया और खिलाफ़तो इजाज़त भी हासिल की, आप हज़रत शैख़ मियां अफ़ज़ल और हज़रत दीवान शैख़ अब्दुर रशीद जौनपुरी की खिदमत में हाज़िर हुए और क़ुत्बे, नोह, मंतिक, फ़िक़्ह, उसूले फ़िक्हा, और बाज़ रसाइल और हिमकत की तहसील फ़रमाई और इन बुज़ुर्गों की खिदमत में सात आठ साल रहे इसी बीच में साल में एक बार बनारस आ कर हज़रत मखदूम शाह तय्यब बनारसी की खिदमत में हाज़िर होते और फ़ैज़ो बरकात हासिल फरमाते, आप की एक ख़ास तस्नीफ़ “मनाक़िबुल आरफीन” है जो 1054, हिजरी में आप ने तहरीर फ़रमाई है, इस किताब में आप ने अपने सिलसिले के तमाम मशाइख का तज़किरा तहरीर किया है, और आप का विसाल 1074, हिजरी में हुआ, आप का मज़ार शरीफ झोंसी में है, हज़रत मखदूम शाह ताजुद्दीन के मज़ार के पास में ही है,

(3) हज़रत शैख़ मुहम्मद रशीद बिन मुस्तफा जौनपुरी रहमतुल्लाह अलैह, आप का लक़ब शमशुल हक, फ़य्याज़, दीवान हैं हज़रत शाह जमाल मुहम्मद मुस्तफा बिन अब्दुल हमीद के साहब ज़ादे (बेटा) 1000, हिजरी में मोज़ा (गाऊं) बरोना ज़िला जौनपुर में पैदा हुए, मौलाना अफ़ज़ल जौनपुरी से तकमीले उलूम की हज़रत शैख़ नुरुल हक बिन मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से इल्मे हदीस सीखा और वालिद से मुरीद हुए, (जो शैख़ मुहम्मद बिन हज़रत शैख़ मुहम्मद बिन हज़रत बंदगी निज़ामुद्दीन अमेठी के मुरीद थे) कसबे बातिन किया और खिलाफत हासिल की, फिर हज़रत शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु कोड़ा जहाना बादी, की खिदमत में हाज़िर हुए और इक्तिसाबे फैज़ हासिल किया, और आप से खिलाफत पाई, शुरू में दरस देते थे, फिर सब तर्क (छोड़ना) कर के क़ुत्बे हक़ाइक़ के मुताले में मसरूफ हो गए, हज़रत शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी रदियल्लाहु अन्हु की किताबों से शग़फ़ बे हद मुहब्बत थी, आप के औसाफ़ व ख़सलतों का तज़किरा सुन कर बादशाहे हिंदुस्तान शाह जहां बाद शाह ने मुलाकात की दरख्वास्त की, मगर आप ने इंकार कर दिया, ज़िक्रे जेहर बहुत करते थे, और हर काम शरीअत के मुताबिक़ ही करते थे, हज़ार हा मखलूके खुदा ने आप के दरबार से फ़ैज़ो बरकात और हिदायात, पाई, आप का विसाल मुबारक, 9, रमज़ानुल मुबारक 1083, हिजरी मुताबिक 29, दिसम्बर 1602, ईसवी को फजर की नमाज़ की सुन्नते पढ़ते हुए हुआ, ये मोमिन के लिए एक काबिले रश्क मोत है, आप की किताबों में मश्हूरो मारूफ किताब “मुनाज़ीरए रशीदिया” आलिम कोर्स में पढ़ी जाने वाली किताब है, और इस के अलावा दसियों किताबे आप की तस्नीफ़ हैं।

(4) हज़रत शैख़ लुत्फुल्लाह कोड़वी जहाना बादी, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, |

(तारीखे शीराज़े हिन्द, तज़किराह कामिलाने रामपुर, तज़किरा उल्माए अहले सुन्नत)

आप के औरादो अशग़ाल

आप के वसीयत नामे में आखरी अशग़ाल विर्द पंज वक्त्ता भी मज़कूर है जो इस तरह है:
बाद नमाज़े फजर: 21, बार “लाइलाहा इलल्लाह और आखिर में मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” पढ़ें,
बाद नमाज़े ज़ोहर: 11, बार कलमाए तौहीद, बाद नमाज़े असर व मगरिब व इशा 21, बार कलमाए तौहीद,
बाद नमाज़े जुमा: कलमाए तौहीद 41, बार और पांचो वक़्त के फ़र्ज़ों के बाद “सुब्हानअल्ल्हा 33, बार,
“अलहम्दु लिल्लाह 33, बार और अल्लाहु अकबर 34, बार पढ़ें और दस बार कुलहु वल्लाह शरीफ और दुरुद शरीफ भी पढ़ें और हर रोज़ रात में सत्तर बार अस्तगफार पढ़ें ।

वफ़ात व उर्स

आप का विसाल मुबारक ईदुल फ़ित्र की रात 1040, हिजरी मुताबिक़ मई 1631, ईसवी को हुआ ।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार शरीफ कस्बा कोड़ा जहाना बाद ज़िला फ़तेह पुर हसंवा मुल्के हिंदुस्तान में मरजए खलाइक है ।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला
  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • उम्दतुस सहाइफ़
  • बरकाते औलिया
  • शिमामतुल अम्बर

Share this post