हज़रत क़ाज़ी कमालुद्दीन जाफरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत क़ाज़ी कमालुद्दीन जाफरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

सीरतो ख़ासाइल

आलिमे शरीअत, हामिले तरीकत, हज़रत क़ाज़ी कमालुद्दीन जाफरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह, आप का नामे नामी इस्मे गिरामी, “कमालुद्दीन” था, और काज़ी नजमुद्दीन! लक़ब और सादाते हुसैनी से थे, आप का आबाई वतन मुल्के शाम था, हकीम इब्ने अरशद कुरतबी से उलूमे माकूलात और मनकूलात की तालीम हासिल की, मुहम्मद बख्तियार खिलजी के हमराह हज़ीरूद्दीन हसन नाज़िमे बदायूं के अहिद में बदायूं तशरीफ़ लाए थे,
बदायूं के जामा मस्जिद शम्शी के पास बूदो बाश यानि रिहाइश इख़्तियार की थी, ज़ी इल्म साहिबे तस्नीफ़ अज़ीम अपने वक़्त के अल्लामा थे, आप ने कई किताबें लिखीं आप की मशहूर किताब “मुगनी” है, आप आऊंला! के काज़ी थे, उमर के आखरी हिस्से में बदायूं के “काज़ियुल कुज़्ज़ात” बनाए गए थे, अपने मंसबे क़ज़ा को निहायत हुस्ने खूबी से अंजाम देते थे,
हज़रत क़ाज़ी कमालुद्दीन जाफरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह को बैअतो खिलाफत हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह से थी, पीरो मुर्शिद की मख़सूस तवज्जुह की बदौलत औलियाए किराम में शुमार होने लगा, हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह बदायूं आ कर मस्कन बनाया था, हज़रत क़ाज़ी कमालुद्दीन जाफरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह के मकान पर मिलने के लिए तशरीफ़ लाए थे,

हज़रत खाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल: है के हज़रत क़ाज़ी कमालुद्दीन जाफरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह जलीलुल क़द्र अल्लामा थे,
सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मन्क़ूल: है के हज़रत क़ाज़ी कमालुद्दीन जाफरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह बदायूं के हाकिम थे, और उन को बहुत से काम थे, शुगल क़ज़ा व दीगर कामो के बावजूद कुरआन शरीफ की अक्सर तिलावत करते थे, जब आप बूढ़े हो गए तो कुरआन पाक की तिलावत कसरत से करने लगे, लेकिन रोज़ाना ना हो सकी, तब लोगों ने उन से दरयाफ्त किया के “अब आप क्या पढ़ते हैं” फ़रमाया के सबआत अश्र पर में ने इक्तिफा की है के वो जामे जुमला औराद हैं।

वफ़ात

13/ मुहर्रमुल हराम 645/ हिजरी में आप का विसाल हुआ, बाज़ हज़रात इस का इंकार करते हैं के आप की तारीखे विसाल ये नहीं है कुछ और है बहरहाल जोभी हो अल्लाहो रसूल ज़ियादा बेहतर जानते हैं।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन

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