हज़रत शैख़ ख्वाजा मुहीयुद्दीन काशानी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत शैख़ ख्वाजा मुहीयुद्दीन काशानी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

खानदानी हालात

आप के आबाओ अजदाद एक अरसे तक मुल्के तबरिस्तान में हुकूमत की, उन का दारुल खिलाफत मुल्के ईरान! का शहर “काशान” था, आप के दादा हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन काशानि को चंगेज़ खां की कत्लो गारत गरी ने तरके सुकूनत पर मजबूर किया, आप सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! के दौरे हुकूमत में हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए, और आप मुल्तान शहर में रहते थे, और एक मदरसे में पढ़ाया करते थे, आप इल्मो दियानत दारी में मशहूर थे, हज़रत ख्वाजा शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह रोज़ वहां जा कर नमाज़ पढ़ते थे, एक रोज़ क़ाज़ी साहब ने उन से दर्याफ्त किया के वो क्यों अपने यहाँ से इस कद्र दूर आ कर और मुक्तदी बनकर नमाज़ पढ़ते हैं, हज़रत ख्वाजा शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने जवाब दिया में इस हदीस पर अमल करता हूँ,
“जिस ने परहेज़गार आलिम के पीछे नमाज़ अदा की गोया उसने नबी मुरसल के पीछे नमाज़ अदा की” आप शहर मुल्तान से दिल्ली तशरीफ़ लाए,
एक मर्तबा का वाक़िआ है के बादशाह ने आप को बुलाया, जब आप तशरीफ़ ले गए बादशाह हरम गाह में था, और सय्यद नूरुद्दीन मुबारक बादशाह के दाएं तरफ और क़ाज़ी फखरुल अइम्मा बादशाह की दूसरी हरमगाह से बाहर बैठे हुए थे, क़ाज़ी साहब जब बाहर तशरीफ़ लाए, उन्होंने आप से दरयाफ्त किया, के आप कहाँ बैठेंगें? क़ाज़ी साहब! ने जवाब दिया के: “उलूम के साए के नीचे” जब आप बादशाह के करीब पहुचें और सलाम किया, बादशाह आप की ताज़ीम के लिए खड़ा हुआ, आप का दस्ते मुबारक पकड़ा, आप को हरमगाह के अंदर ले गया, और निहायत इज़्ज़त के साथ बिठाया,
और आप के सुपुर्द बादशाह ने कज़ा का उहदा दिया और आप इस उहदाए ज़लीला पर फ़ाइज़ हो कर बा हुस्ने खूबी अंजाम देते रहे।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का इस्मे गिरामी “हज़रत क़ाज़ी जलालुद्दीन काशानी” अपने वालिद माजिद हज़रत क़ाज़ी कुतबुद्दीन काशनी की वफ़ात के बाद उनकी जगह पर कज़ा के उहदे पर मामूर रह।

इस्मे गिरामी

आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “मुहियुद्दीन” है लेकिन आप क़ाज़ी मुहियुद्दीन काशानी के नाम से मशहूर हैं।

तालीमों तरबियत

हज़रत शैख़ ख्वाजा मुहीयुद्दीन काशानी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की इब्तिदाई तालीमों तरबियत वालिद माजिद की आग़ोशे आतिफ़त में हुई, उलूमे ज़ाहिरी की तहसील व तकमील से आप जल्द ही फारिग हो गए, अपने वालिद के इन्तिकाल के बाद आप ने मंसबे कज़ा के उहदे को ज़ीनत बख्शी।

बैअतो खिलाफत

हज़रत शैख़ ख्वाजा मुहीयुद्दीन काशानी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ! कुछ अरसे क़ज़ा के उहदे पर मामूर रहने के बाद आप का दिल दुनिया से और दुनियावी मुआमलात से हट गया, आप को सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के हलकए इरादत में दाखिल होने की सआदत हासिल करने की आरज़ू पैदा हुई, और आप सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए, और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को मुरीद फ़रमाया, और खिरकाए खिलाफत से भी आप को सरफ़राज़ किया।

महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की नज़रे करम

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को अपना एक कम्बल अता फ़रमाया, आप इस कम्बल को ताज़ीमों तकरीम के साथ अपने घर लाए और एहतियात से घर में रख दिया, कुछ दिनों के बाद आप ने संदूक खोला और वो कंबल निकाला उसको बोसा दिया, आँखों से लगाया, उस कंबल में निहायत उम्दा खुशबु बसी हुई थी, आप इसी तरह से संदूक खोलते रहे, और कम्मबल की ज़ियारत करते रहे, कई साल गुज़र गए, लेकिन कम्बल की खुशुबू में कमी नहीं आई, आप को सख्त तअज्जुब हुआ, आखिर एक दिन कंबल को एक दिन खूब अच्छी तरह धोया, जितना आप कंबल को धोते थे, खुशबु और तेज़ होती थी, ये वाकिअ आप ने अपने पीरो मुर्शिद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह!ने की खिदमत में अर्ज़ किया, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने चश्मे पुर आब होकर फ़रमाया, काज़ी साहब ये मेरी हिम्मत है जिस को मुहिब्बाने ज़ाते बारी तआला में रखा गया।

आप की सीरतो ख़ासाइल

हज़रत शैख़ ख्वाजा मुहीयुद्दीन काशानी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे करामत बुज़रुग थे, इल्मो हिल्म इबादतों रियाज़त, ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, में मशहूर थे, आप शहर के उस्ताद थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की बहुत इज़्ज़त करते थे, आप सल्फ सालिहीन के तरीके पर अमल करते थे, तबियत में इंतिहाई सादगी थी, तकल्लुफ से बरी थे, इसार पसंद थे, इरादत यानि मुरीद व खिलाफत से मुशर्रफ होने के बाद आप दुनियावी मुआमलात से अलग हो गए बाकी ज़िन्दगी फ़क्ऱो फाका उसरत, तंगी, कनाअत तवक्कुल में गुज़ारी।

आप की पंदो नसाहे

हज़रत शैख़ ख्वाजा मुहीयुद्दीन काशानी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को जब सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने जो खिलाफत नामा आप को अता फ़रमाया था उसमे से कुछ पंदो नसाहे पेश करते हैं:
तुम को तारिके दुनिया रहना चाहिए, दुनिया व अहले दुनिया की तरफ मेल ना करना, और जागीर कुबूल ना करना और बादशाहों का सिला क़ुबूल ना करना और अगर मुसाफिर तुम्हारे पास मेहमान आए और तुम्हारे पास कुछ ना हो तो ऐसे मोके को खुदा की नेमतों में से नेमत और गनीमत समझना, और अगर तुमने ऐसा ही किया और मुझ को यकीन है के तुम ऐसा ही करोगे तब तुम मेरे खलीफा हो, और अगर तुमने ऐसा ना किया तो खुदा मुसलमानो पर खलीफा है।

तरको तजरीद

सआदते इरादत यानि मुरीदी से मुशर्रफ होने और खिरकाए खिलाफत पाने के बाद आप दुनिया और अहले दुनिया और दुनियावी मुआमलात से बिलकुल अलग हो गए, तरको तजरीद (शादी ना करना) आप का शिआर हो गया और आप ने क़ज़ा का उहदा भी छोड़ दिया मुस्तफी हो गए,

सुल्तान की पेशकश

दुनियावी वसाइल लिवाज़िमात मुनक़ता करने के बाद आप को सख्त दुश्वारी पेश आई, फ़क्ऱो फाका की नौबत पहुंची, तंगी उसरत ग़ुरबत से गुजरने लगी, आप के एक मोतक़िद ने बगैर आप के बताए इल्म और इजाज़त के इस हाल की खबर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को दी, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को जब आप का ये हाल मालूम हुआ उसने हुक्म दिया के क़ज़ा का उहदा जो क़ाज़ी साहब की मीरास है, इन को बहुत इनआमात के साथ तफ़वीज़ किया जाए, चुनांचे क़ज़ा के उहदे की सनद तय्यार की गई, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने बहुत कोशिश की के वो उहदा आप कबूल फ़रमालें,
आप को जब ये मालूम हुआ, आप अपने पीर रोशन ज़मीर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए, और पूरा वाक़िआ अर्ज़ किया के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी बगेर उनकी दरख्वास्त और ख्वाइश के उनको क़ज़ा के उहदे! की सनद देना चाहता है, आप का जैसा हुक्मे आली हो, उस पर अमल किया जाए,
जवाब! सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इस बात को पसंद नहीं किया, इरशाद फ़रमाया के: तुम्हारे दिल में अभी भी दुनिया की ख्वाइश है, आप को रंज हुआ, के ऐसी बात सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इस तरह क्यों फ़रमाया: आप सारी बात समझ गए और उसी तरह आप ने फ़क्ऱो फाका में ज़िन्दगी गुज़ारना शुरू की, तरको तजरीद पर कायम रहे फक्र दरवेशी को अपने लिए बाइसे फख्र और सआदत समझा।

पीरो मुर्शिद की शफकत

एक बार आप सख्त बीमार हो गए, बज़ाहिर बचने की कोई उम्मीद ना थी, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को जब आप की बिमारी का इल्म हुआ, बा नफ़्से नफीस इयादत को तशरीफ़ ले गए, आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ताज़ीम के लिए उठे, उसी वक़्त से मर्ज़ में कमी हुई, जब सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! वापस तशरीफ़ ले गए, आप ने कहा के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बज़ाहिर इयादत देख भाल को तशरीफ़ लाए थे, मगर वो मुझ को ठीक कर गए।

विसाल

आप का इन्तिकाल 15, रबीउल अव्वल 719, हिजरी को हुआ।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक बस्ती हज़रत निज़ामुद्दीन दिल्ली में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के ऐहाते कैंपस! में ही मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • ख़ज़ीनतुल असफिया
  • मिरातुल असरार

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