हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

नाम व लक़ब

हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के अलक़ाब व आदाब के बारे में हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती अलैहिर रहमा! ने किताब “मिरातुल असरार” में लिखते हैं के:
आप का असली नाम “शैख़ अहमद है, और लक़ब “नूरुल हक” है, और आप को सर हल्कए अक्ताब! भी कहते हैं, आप बड़े आली मकान बुज़रुग थे, गायत सोज़ दर्द से आप पर हर वक़्त गिरयाए सोज़ तारी रहता था, ज़ोके समा में बहुत गुलू था, तरबियत मुरीदीन और उनके मुआमलात हल करने में आप बेनज़ीर थे, इब्तिदाए हाल से इंतिहातक आप अपने वालिद माजिद के मुरीदो खलीफा और जानशीन रहे।

तालीमों तरबियत

हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! इल्मे दीन हासिल करने के लिए अपने वालिद माजिद की खानकाह से कभी बाहर नहीं गए मुकम्मल दीनी तालीम इल्मे ज़ाहिरी व बातनि पंडवा शरीफ में रहकर हासिल फरमाते रहे और अपने हम अस्र उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम पर तव्वफुक (ऊँचाई होना, फौकियत) ले गए, आप के असातिज़ाए किराम में हज़रत शैख़ हमीदुद्दीन अहमद हुसैन नागोरी सुम्मा पंडवी! का नाम आता है, और आप अपने वालिद माजिद मख़्दूमुल आलम हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के नामवर शागिर्दों में शुमार होते हैं, आप के इल्मी तबाहुर का अंदाज़ा आप के अक़वाल और इल्मी आसार से बाखूबी लगाया जा सकता है,
मुअर्रीख़े अहले सुन्नत मुफ़्ती गुलाम सरवर लाहोरी रहमतुल्लाह अलैह! “ख़ज़ीनतुल असफिया” में लिखते हैं के: हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हिंदुस्तान के मशहूर मशाइखे किराम में माने जाते हैं, आप बड़े साहिबे इश्को मुहब्बत और ज़ोको शोक के मालिक थे, साहिबे तसर्रूफो कमालात हे, अपने वालिद माजिद की खिदमत में रहकर रूहानी व इरफ़ानी और राहे सुलूक की मंज़िलें तय कीं, और दर्जाए कुतबियत को पहुचें, और इस तरह आप “क़ुत्बे आलम” के ख़िताब से मशहूर हुए।

फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद मुसाफा करना

फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद एक दूसरे से मुसाफा करने में क्या राज़ है? इस की हिकमत बयान करते हुए, हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! बयान फरमाते हैं:
असल बात ये हैं के जब कोई मुसाफिर सफर से वापस आता है तो वो अपने दोस्तों से मुसाफा करता है, और दुर्वेश जब नमाज़ पढ़ता है, तो वो इस में इस कद्र मुस्तग़रक हो जाता है के वो अपनी ज़ात को भूल जाता है, और जब नमाज़ खत्म करता है तो गोया उसने बातनि सफर तय कर लिया, और नमाज़ में सलाम फेरने के बाद उसको अपना शऊर होने लगता है इस लिए मशाइखे किराम बाह्म एक दूसरे से सलाम व मुसाफा करते है।

आपका नफ़्स कुशी करना व खिलाफत मिलना

ज़ाहिरी उलूम से फरागत के बाद मुर्शिदे कामिल ने नफ़्स कुशी के लिए खानकाहे अलाईया और लंगर खाना की ज़िम्मेदारी आप के सुपुर्द फ़रमाई तकरीबन आठ सालों तक आप ने लंगर खाने का इन्तिज़ामो इनसिराम संभाला, आनाज व गल्ला फ़राहम करने, जंगलों से लकड़ियां काट कर लाना ये सब काम आप खुद अपने हाथों से अंजाम दिया करते थे, इस तरह आप ने आठ सालों तक फुकरा व मसाकीन और कलंदर व दुरवेशों की खूब ज़ियाफ़त की, फिर वालिद मुहतरम ने खानकाहे अलाईया! में इल्म हासिल करने वाले उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम और दुर्वेश महमानो की खिदमत आप के सुपुर्द फ़रमाई,
उनके वुज़ू ग़ुस्ल, पेशाब पाखाना के लिए पानी मुहय्या करना, सर्दियों में वुज़ू ग़ुस्ल के लिए पानी गरम करना, उनके कपडे साफ़ करना, और दीगर ज़रूरियाते ज़िन्दगी के सामान मुहय्या करना, आप के ज़िम्मे ही था, इस खिदमत को भी आप ने बहुस्ने खूबी अंजाम दी, उस दौरान मुराकिबा व मुशाहिदा ज़िक्रो फ़िक्र और रियाज़त व मुजाहिदा की मश्को तमरीन भी होती रही, जब मुर्शिद को यकीन हो गया के, साहबज़ादा नूरुल हक़! राहे सुलूक की मंज़िलों के शहसवार बनचुके हैं और मार्फ़त व सुलुक की सवारी पर सवार होने के लाइक हो गए हैं, तो आप को इन ख़िदमतों से बरी कर दिया गया और “इजाज़तों खिलाफत! से नवाज़ कर राहे सुलूक व मार्फ़त का कामिल तालिब बना दिया गया, अब आप मुकम्मल तौर पर इस मैदान में मसरूफो मुंहमिक हो गए, मनाज़िले सुलूक की बारीकियों से आगाह होने लगे, और अपने वालिद माजिद हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! से क्या क्या हासिल किया होगा? मनाज़िले सुलूक की कितनी मंज़िलें आप ने तय की होंगीं? इस का अंदाज़ा हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के मुन्दर्जा ज़ैल! फरमान से लगाया जा सकता है,

राहे सुलूक की निन्नानवे मंज़िलें

मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “अख़बारूल अखियार” में तहरीर फरमाते हैं के: मेरे शैख़ ने फ़रमाया के: बुज़ुर्गाने सल्फ़ ने असमाउल हुस्ना! की तरह सुलूक की निन्नानवे मंज़िलें मुकर्रर की हैं ताके सालिक इन तमाम पर चलकर मुकम्मल हो सके और हमारे सूफ़िया किराम ने सुलूक की 15, पन्द्रा मंज़िलें मुकर्रर की हैं,
मज़कूरा फरमान से अंदाज़ा होता है के आप ने अपने वालिद माजिद हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! से सुलूको मार्फ़त की 99, वे या कम से कम 15, मंज़िलों की तालीम हासिल फ़रमाई थी मगर आप ने अपने मुरीदीन व मुतवस्सिलीन के लिए सिर्फ तीन मज़िलें मुकर्रर फरमाई चुनांचे फरमाते हैं के:
मंज़िल अव्वल, ये के खुदा के यहाँ हिसाब होने से पहले ही अपने नफ़्स का मुहसबा कर लिया जाए,
मंज़िल दोम, ये है के जिस के दो दिन बराबर रहे नेकी ना करने में वो ख़सारे में है,
मंज़िल सोम, ये है के फ़कीर इस तरह इबादत करे के दिल के तमाम खयालात खत्म हो जाए,
इन तीन तरीकों की तकमील के बाद इंशा अल्लाह सालिक की अपनी मंज़िल भी मुकम्मल हो जाएग।

रियाज़ातो मुजाहिदा

हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, और रियाज़तो मुजाहिदा की आखरी मंज़िल पर फ़ाइज़ थे जो अखस्सुल ख़ास का दर्जा है, हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने नफ़्स कुशी और मुजाहिदा में ऐसी ऐसी मशक्क़तें बर्दाश्त कीं जिन के बारे में अक्ल फैसला करने से क़ासिर है, साहिबे “मिरातुल असरार” हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती अलैहिर रह्मा! लिखते हैं के:
आप इबादात व रियाज़ात में इस कद्र मुजाहिदा करते थे, के ताकते बशरी से बाहर था, हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की मुताबिअत में आप कुँए में उल्टा लटकर “सलाते माक़ूस” पढ़ते थे, पहली रात आप ने चारसो रकअत पढ़ीं, एक रात आप का दस्तार मुबारक कुएं में गिर गया आप के वालिद माजिद को जब ये बात मालूम हुई आप कुँए से बाहर तशरीफ़ ले गए और देखा के आप के साहबज़ादे ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! नग्गे सर कुँए से बाहर आ रहे हैं, आप ने फ़रमाया ऐ नूर! दूसरा दस्तार हम से तलब ना करना, ये कहना था के दस्तार कुँए से आ गई और आप ने उठा कर सर पर बांधा,
हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने सरज़मीने बंगाल में दीने इस्लाम की अज़ीम खिदमतें अंजाम दीं, सिलसिले चिश्तिया निज़ामिया को आप की ज़ात से गैर मामूली फरोग मिला।

नाज़ुक दौर

हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! जिस ज़माने में वो मसनदे इरशाद पर जलवा अफ़रोज़ थे, बंगाल की सियासत बड़े नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी, राजा गनेश (जो भटोरिया ज़िला राज शाही का जागीर दार था) बंगाल के तख़्त पर काबिज़ हो गया था, और मुसलमानो की ताकतों कुव्वत को ख़त्म करना चाहता था, हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने बराहे रास्त और हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह की वसातत से सुल्तान इब्राहिम शरकी को बंगाल पर हमला करने की दावत दी हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह के मजमूए मक़तूबात में वो दिल चस्प खुतूत खास तौर से मुताले के काबिल हैं, जिन में उस सियासी कश्मकश की तफ्सील दर्ज है, हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह ने जो खत! हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के मक़तूबात के जवाब में लिखा था, वो बंगाल में सूफ़ियाए किराम के कारनामे पर काफी रौशनी डालता है।

विसाल

हज़रत शैख़ ख्वाजा नूरुल हक़ क़ुत्बे आलम बंगाली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का विसाल का 11, ज़ी काइदा 813, हिजरी को है।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुकद्द्स पंडवा शरीफ सूबा बंगाल में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

मिरातुल असरार
ख़ज़ीनतुल असफिया

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