हज़रत सय्यद शाह आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत सय्यद शाह आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत बसआदत

शहज़ादए सय्यदुल उलमा, सय्यदे मिल्लत हज़रत सय्यद शाह आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश 6/ रमज़ानुल मुबारक 1356/ हिजरी 14/ अगस्त 1946/ ईसवी को कासगंज ज़िला एटा में हुई।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक “सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा सय्यद मियां कादरी मारहरवी” रहमतुल्लाह अलैह! हैं, और आप के दादा जान का नाम हज़रत “सय्यद शाह बशीर हैदर आले इबा कादरी रहमतुल्लाह अलैह! हैं।

नाम व लक़ब

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह है।

तालीमों तरबियत

हज़रत सय्यद शाह आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह ने इब्तिदाई तालीम का आगाज़ “मदरसा कासिमुल बरकात” से हुआ, कुरआन मजीद हाफ़िज़ अब्दुर रहमान साहब से पढ़ा, फ़ारसी की तालीम अपने चचा जान हुज़ूर अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की, बचपन ही में अपने वालिद माजिद सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा सय्यद मियां कादरी रहमतुल्लाह अलैह के साथ मुंबई चले गए, पिराइमरी हाशिमिया स्कूल! से हासिल की साथ ही साथ वालिद माजिद दीनी तालीम और खानदानी उलूम की तालीम व तरबियत फरमाते रहे, मारहरा शरीफ से हाई स्कूल तक की तालीम हासिल करने के बाद जामिया मिल्लिया तशरीफ़ ले गए और वहां से उलूम में ऍम ऐ, की डिग्री हासिल की, तालीम के बाद UPSC, इम्तिहान में कामयाबी हासिल की, हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह “इन्फॉर्मेशन ब्रॉड कास्टिंग” के महकमे में मुख्तलिफ उहदों पर फ़ाइज़ रहे सर्विस के आखरी सालों में शिलांग में “प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो

डायरेक्टर” की हैसियत से सबक दोश हुए,
हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह की तमाम तालीम आप के वालिद माजिद हज़रत सय्यदुल उलमा! और हुज़ूर अहसनुल उलमा की ज़ेरे सायाए करम में हुई, वालिद माजिद हज़रत सय्यदुल उलमा! की सुहबत ने इन को तमाम दीनी व दुनियावी मुआमलात में हर तरह से पक्का कर दिया था, हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह बचपन ही से किताबों का खूब मुताला करते थे, सैंकड़ों किताबें पढ़ने के बाद इन का ज़हन अल फ़ाज़ का पारख बन गया था, लफ्ज़ से क्या सोते फूट रहे हैं? किस लफ्ज़ की अदबी व तारीखी हैसियत किया है? इस पर इन को मलका हासिल था।

बैअतो खिलाफत

हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह को बैअत व खिलाफत अपने वालिद माजिद सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा सय्यद मियां कादरी मारहरवी” रहमतुल्लाह अलैह! से हासिल थी, हज़रत अहसनुल उलमा ने भी अपने सज्जादा नाशिनी के मोके पर हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह और अमीने मिल्लत! को सब से पहले खिलाफत अता फ़रमाई खानकाहे बरकातिया की ये पुरानी रिवायत है के नया साहिबे सज्जादा सब से पहले अहले खानदान को खिलाफत से सरफ़राज़ करता है।

आप की शेरो शायरी

हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह दीनी व दुनियावी उलूम पर गहरी नज़र रखते थे, वो इल्मे रियाज़ी और इल्मे मुसीक़ी में गहरी दिल चस्पी रखते थे, आप की ज़हानत, मालूमाते आम्मा, पर मज़ाके तबियत के सभी लोग काइल थे, हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह नस्र और नज़्म दोनों फुनून में बेहद मुमताज़ और मुनफ़रिद थे, वो एक वक़्त में कई ज़बानो में महारत रखते थे, अंग्रेज़ी, उर्दू, हिंदी, ज़बानें तो कमाल के दर्जे तक मिली थीं, नात गोई हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह का खास मैदान था, उर्दू, हिंदी, संस्किर्त तक में नातें लिखीं, बहुत कहीं और बहुत अच्छी कहीं, नात गोई के फन से हज़रत नज़्मी मियां! ने अपनी अलग शनाख्त बनाई, आप की नात गोई के हवाले से हज़रत शरफ़े मिल्लत फरमाते हैं: हज़रत नज़्मी मियां ने इरफान मुस्तफा से ले कर नवाज़िशें मुस्तफा तक का सफर बहुत वकार एहतियात और तसलसुल के साथ तय किया, खुद को इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी की चलती फिरती करामत तसव्वुर फरमाते, और शेरो शायरी में आप बिलकुल यगाना थे एक शेर में यूं ऐतिराफ़ करते हैं:

ये फैज़े किलके रज़ा है जो नात कहता हूँ
वगरना नात कहाँ और कहाँ कलम मेरा

सब से पहला दीवान ही मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के नातिया कलाम की तज़मीनो पर मुश्तमिल था, आप का तखल्लुस “नज़्मी” था, आखरी वक़्त तक नज़्मी अपने नज़्म नज़्मी से दुनिया भर के आशिकाने मुस्तफा के दरमियान मक़बूलो महबूब रहे, हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह के अशआर की एक निराली खूबसूरत जुज़ियात निगारी थी, छोटे छूटे टुकड़ों में कैफियत, वारदात और हालात को इतनी खूबसूरत और मुनासिब तरीकों से अशआर को मंज़र नाम पर लाते के शेर का हक अदा हो जाता, नाते मुस्तफा में आप बाज़ारी अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करने के सख्त मुखालिफ थे, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के बाद महफ़िलों में आप का कलाम सब से ज़ियादा पढ़ा और सुना जाता है, हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह खानकाहे बरकातिया की सुनहरी रिवायतों के अमीन थे, मुंबई में सर्विस करने के बावजूद उर्से कास्मि! उर्से सय्यदी! और उर्से नूरी! में एहतिमाम के साथ तशरीफ़ लाते और तमाम खानदानी मज़हबी रसूमात में आगे आगे रहते, “अपने चाहने वालों को ताज़ी रोटी खिला रहा हूँ” ये कह कर नातो मनकबत सुनाते।

हुज़ूर नज़्मी मियां मारहरवी को नसीहत

सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्द (बेटे) सय्यदे मिल्लत हज़रत हसनैन मियां नज़्मी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह “जामिया मिल्लिया” में तालीम हासिल कर रहे थे तब सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा रहमतुल्लाह अलैह ने इन को एक खत के ज़रिए जो नसीहत और तब्लीग अपने फ़रज़न्द लख्ते जिगर को की उस को देख कर ये अंदाज़ा होता है के वो बरकतियों के लिए इमानि नुस्खा है जो सभी के लिए है,

दीनो मज़हब के मुआमले में, में ने तुम्हे पुख्ता पक्का कर दिया है, तुम ने बरसों मेरे साथ रहकर तब्लीगी, दीनी, मज़हबी, उतार चढ़ाओ देखे हैं, वो अक़ाइद व उसूल के लाइक खानकाहे आलिया बरकातिया के बुज़ुर्गों से मुझे अमानत में मिले मेने तुम्हारे हौसले और ज़रूरत के लाइक अच्छी तरह तुम्हे बता दिए, इस मुआमले में सुनो सब की और रहो अपने घर की तालीमों मसलक पर, ये सब इस लिए लिख रहा हूँ के तुम पहली बार घर से बाहर निकले हो और बाहर तरह तरह की आबो हवा है मगर तुम अपनी खानकाह ही तालीमों तरबियत हरगिज़ न भूलना, तुम्हे अच्छी तरह पता है के तुम को हमने ये तरबियत दी है के दीनो मज़हब के मुआमले में किसी रिश्ते की कोई अहमियत नहीं, असल रिश्ता अपने आका मदनी ताजदार नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गुलामी का है, बदन का कोई हिस्सा अगर सड़ जाए तो में काट कर कचरे में डाल दूंगा और ये ना सोचूंगा के खुदा ना ख्वास्ता वो मेरा इकलौता एक ही बेटा! है, बस! इससे ज़ियादा कुछ नहीं कहना, सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा रहमतुल्लाह अलैह का ये खत सिर्फ एक बेटे को बाप का खत नहीं बल्के तमाम चाहने वालों और सिलसिले वालों के लिए भी तरबियत का सुनेहरा बाब है जो हर शख्स की रहनुमाई करेगा।

चश्मों चिरागे खानदाने बरकात

हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की पाकीज़ा फ़ज़ाओं में थे, सब्ज़ गुंबद का नूर निगाहों को तक़वीयत पहुंचा रहा था,
आखरी अशरे की एक शब् (रात) क़याम गाह होटल, में बज़्म सजाई गई, मुंबई के अहबाब ने इसरार किया, हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह की ज़ाते बा बरकात, रंग जम गया, ज़िक्र शुरू हो गया आशिके रसूल हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! का सुब्हानल्लाह! हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! आबरूए खानदाने बरकात हैं, जिन का ज़िक्र जब आता है तो मारहरा शरीफ की बरकतों का ज़हूर होने लगता है, आज भी मारहरा मुक़द्दसा की हर महफ़िल हर मजलिस हर बज़्म, चश्मों चिरागे खानदाने बरकातिया, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के तज़किराओं से गूँज रही है, हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! का जब ज़िक्र आता है तो शहज़ाद गाने शाह बरकतुल्ल! वालिहाना कैफो सुरूर में डूब जाते हैं हुज़ूर अमीने मिल्लत की ज़बान से हमने बकसरत ज़िक्रे रज़ा व हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह सुना, रफ़ीके मिल्लत हज़रत सय्यद नजीब हैदर नूरी भी हर गुफ्तुगू में वालिहाना अंदाज़ में रज़ा! व नूरी! की यादों की खुशबू बखेरते हैं: अपने मुर्शिद का ज़िक्रे जमील उल्फतों के साए में करते हैं,

ज़िक्र चल रहा था नज़्मी मियां! की उस महफ़िल का जो मकीने गुंबदे ख़ज़रा की अर्ज़े मुअमबर पे सजी हुई थी, ज़िक्र था हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! का सुब्हानल्लाह! मारहरा मुक़द्दसा से अटूट रिश्तों का बयान हुआ, कैसा आप लुत्फ़ अन्दोज़ हों, मालूमात में इज़ाफ़ा करें, सुनिए हज़रत सय्यद आले रसूल हसनैन मियां नज़्मी रहमतुल्लाह अलैह बयानकरते हैं के:

“मेरे खानदान के बहुत चहीते शहज़ाएदे थे (हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द) और मेरे खानदान के चश्मों चिराग व चिरागे खानदाने बरकात के बेटे थे, सरकार आला हज़रत के बेटे थे”

अपनी रस्मे सज्जादगी का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया: मेरे अब्बा “सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा सय्यद मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह” ने अपने वसीयत नामे में लिखा था के मेरे चेहल्लम के दिन हसनैन अपना इमामा, अपने चाचा हुज़ूर अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह से पहिनना, तो इसी वसीयत के मुताबिक हुज़ूर अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह ने इमामे का एक घेरा बांधा, और इस के बाद हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के हवाले कर दिया, क्यों के ये इन्ही का मनसब था सब से पहली नज़र तोहफे की शुरू हुई जो पहले दस रूपये के नोट आते थे, वो पांच नोट हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक लिफ़ाफ़े में दिए, अल्हम्दुलिल्लाह! वो खज़ाना आज भी मेरे पास है और में अपने आप को पता नहीं कितना गनी समझता हूँ, उस लिफ़ाफ़े के बलबूते पर, वो मुझे नज़र पेश की मेरी अम्मी ने उस लिफ़ाफ़े पर अपने हाथ से लिखा है, “हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की नज़रे सज्जादगी” वो मेरे पास अब भी महफूज़ है, में उस में से कभी निकाल लेता हूँ, जब पैसों की कमी महसूस होती है तो निकाल कर फिर से चूम कर रख देता हूँ, तो फिर से पैसा भर जाता है, ये मेरे हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! की करामत है,

हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुतअल्लिक़ हुज़ूर नज़्मी मियां रहमतुल्लाह अलैह मज़ीद फरमाते हैं: झलक देखें अल्लाह के वली (मुफ्तिए आज़म) अपनी रूह की नज़रों से देखा करते हैं, इन की रूहानी नज़रें बहुत तेज़ हुआ करती हैं,
बरैली शरीफ जब भी तशरीफ़ ले गया तो उस वक़्त मेरी मंज़िल हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द होते, अपनी मुहब्बतों का ज़िक्र फरमाते हैं के: में ने हाथ बढ़ा के सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द की दस्त बोसी की, उस के बाद हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द ने मेरे हाथ चूमे,
बारगाहे मुफ्तिए आज़म हिन्द से वापसी के ज़िम्न में फरमाते हैं: क्या क्या लाया में वहां से ये तो में जानता हूँ या मेरा अल्लाह जानता है

आप की तसानीफ़

आप की कलमी खिदमात के मैदान बहुत वसी हैं, आप ने तीन दर्जन से ज़ाइद क़ुतुब तस्नीफ़ फ़रमाईं जिन से ज़ियादा तर अँग्रेज़ी ज़बान में हैं शायरी का शोक तो वरसे में मिला था, आप की इल्मी व कलमी खिदमात ये हैं:
(1) नज़्मे इलाही: ये इंग्लिश ज़बान में सूरह बकरा की तफ़्सीर है जो बरतानिया u, k, और मलावी, के कई मदरसों में सिलेबस! में शामिल है,
(2) कलामे रहमानी: ये हिंदी ज़बान में आला हज़रत के मश्हूरे ज़माना तर्जुमाए कंज़ुल ईमान और सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती
सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की तफ़्सीर ख़ज़ाईनल इरफ़ान! का तर्जुमा है,
(3) मुस्तफा जाने रहमत: ये सीरतुन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर एक उम्दा किताब है,
(4) घर आँगन मीलाद: ये औरतों के लिए लिखी गई मिलादे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर एक उम्दा किताब है,
(5) मुस्तफा से आले मुस्तफा तक
(6) किया आप जानते हैं? उर्दू हिंदी: ज़बान ये इस्लामी मालूमात का बड़ा कीमती खज़ाना है कई मदरसों के सिलेबस! में शामिल है
(7) दिफ़ाए आला हज़रत,
(8) दिफ़ाए सबे सनाबिल
(9) शाने नाते मुस्तफा
(10) असरारे खानदाने मुस्तफा
(11) शरहे कसीदह बरदह शरीफ (उर्दू हिन्द, अंगेरजी) इमाम शरफुद्दीन बूसीरी रहमतुल्लाह अलैह के मशहूर ज़माना कसीदह बरदह शरीफ की
शरह,

आप का अक़्द मस्नून

आप का निकाह सय्यदह आमिना सुल्तान बुशरा खातून से हुआ, आप के तीन साहबज़ादे हुए, (1) सय्यद सिब्तैन हैदर, (2) सय्यद सफी हैदर, (3) सय्यद ज़ुल्फ़िकार हैदर, एक बेटे का इन्तिकाल बचपन में हो गया था।

आप के खुलफाए किराम

  1. आप के तीनो सबज़ाद गान
  2. हज़रत सय्यद मुहम्मद ओवैस मुस्तफा साहब ज़ैदी वास्ती बिलगिरामि
  3. हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती शरीफुल हक अमजदी साबिक सदर मुफ़्ती अल्जामियतुल अशरफिया मुबारकपुर आज़म गढ़
  4. मुहद्दिसे कबीर हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती ज़ियाउल मुस्तफ़ा सरबराहे आला जामिया अजादिया रज़विया! घोसी यूपी
  5. अल हाज सय्यद शाह हुसैन साहब सुल्तानपुर
  6. हज़रत मौलाना शब्बीर अहमद कादरी
  7. कारी मुहम्मद अख्तर बरकाती मगहर
  8. कारी अब्दुल कादिर मुंबई
  9. सूफी मुहम्मद इस्लाम मियां मुंबई
  10. हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुबेर कादरी नूरी मुंबई
  11. अल हाज मुहम्मद शौकत हुसैन खान पाकिस्तान
  12. अल हाज दुर्वेश अब्दुल हादी साहब डरबन साउथ अफ्रीका।

वफ़ात

आप का इन्तिकाल 1/ मुहर्रमुल हराम 1435/ हिजरी मुताबिक नवम्बर 2013/ ईसवी।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुकद्द्स मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी हिन्द में ज़ियारत गाहे खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

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रेफरेन्स हवाला

  1. बरकाती कोइज़
  2. तारीखे खानदाने बरकात
  3. तज़किरा मशाइखे मारहरा

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