हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

बैअतो खिलाफत

अमीरुल फुकरा हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! मुल्के ईरान के शहर नखशब के रहने वाले थे, आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “ज़ियाउद्दीन नख्शबी” अगरचे इस्म मंसूब है मगर आप इसे बतौरे तखल्लुस इस्तेमाल करते थे, और ज़ियाउद्दीन नख्शबी से मशहूर हैं, बचपन ही में अपने वालिद के साथ बदायूं आ गए थे, यहीं आ कर आप ने तालीमों तरबियत हासिल की और नशो नुमा के मदारिज तय किए, उलूमे शरीअत के साथ तसव्वुफ़ व सुलूक की मंज़िलें भी तय कीं,
हज़रत शैख़ फरीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह से शरफ़े बैअत हासिल किया, इल्मे तिब मौसीक़ी पर भी आप को उबूर हासिल था, आलिमे बा कमाल, सुफिये बासफा, दुरवेशे कामिल, मुफक्किर मुहक्किक, मुदककिक और साहिबे इत्तिका बुज़रुग थे,
इल्मो अदब फ़िकरो शऊर, और शेरो सुखन, से फ़ितरी लगाओ रखते थे, आप की शायरी आरिफाना होती थी, जिस में इश्के हकीकी का रंग पाया जाता था, इस में जज़्बों की ऐसी तपिश महसूस होती थी के पढ़ने वाला और सुनने वाला दोनों सोज़ो गुज़ार और सुररुरो निशात की कैफियत से दोचार हो जाते थे और अस्र व तासीर की ऐसी शिद्दत हुआ करती थी के हर शेर कोई न कोई करिश्मा ज़रूर दिखाता था।

आप की तसानीफ़

हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने इल्मी फैज़ान से एक जहाँ को आबाद किया और मुर्दा दिलों में भी हयात की लहरें बेदार कीं, तस्नीफो तालीफ़ से भी आप काफी हद तक दिलचस्प थे, आप की शख्सियत मुतन्नो थी, कहीं दरसो तदरीस की हवा हमवार फरमाते तो कहीं निगाहें कीमिया अस्र से काम लेते और कभी तहरीर की दुनिया में अपनी फ़िक्री तवानाई से धूम मचाते, आप की शख्सीयत व सलाहियत और इल्मी लियाकत का मुख़्तसर जाइज़ा था, ऐसी अज़ीम व बरतर शख्सीयत अब नसीब में कहाँ? हज़रत! की तस्नीफ़ात में मुन्दर्जा ज़ैल किताबें हैं, हर किताब अपनी जगह मारकतुल आरा और अपने मोज़ू पर नादिरो नायाब है:
(1) तूती नामा
(2) शरहे दुआए सुरयानी
(3) ज़ुज़ीयात व कुल्लियात
(4) नसाहे व मवाइज़
(5) गुलरेज़
(6) अशराए मुबश्शरा
(7) सिलकुस सुलूक

सीरतो ख़ासाइल

हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने समाजो मुआशिरा और अख़लाक़ो किरादर में सुधार लाने के लिए बे इंतहा कोशिशें कीं और ज़िन्दगी में ख़ुलूस लिल्लाहियत, जज़्बए बेलौस पैदा करने की शऊरी तौर पर जिद्दो जहिद की, यही सबब है के आप ने तसव्वुफो सुलूक और रिवायत व दिरयात की महफ़िलें सजाईं, इस तरह आप ने दानिश गाह की ज़रूरतों को पूरा किया और खानकाही निज़ाम को भी बर करार रखा, तसव्वुफो सुलूक ऐसा कीमियाई असर रखता है जो पथ्थरों को मोम कर देता है और ज़हन के तरीक गोशों में नूर की लहर पैदा कर देता है, क्लबों जिगर में हैरत अंगेज़ तौर पर इन्किलाब बरपा कर देता है, तसव्वुफ़ कोई रहबानीयत नहीं के इससे नज़रें चुराई जाएं, ये तो रहबरों रहनुमा है, एक अज़ीम क़ाइद है, इस की ज़ियाओं में रास्ते दिखाई देते हैं।

वफ़ात

आप का विसाल 751/ हिजरी में हुआ।

मज़ार मुक़द्दस

आप का मज़ार शरीफ हज़रत पीर मक्का शाह! के मज़ार के कुछ फासले पर है, ज़िला बदायूं शरीफ यूपी इंडिया में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन

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