हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन मुहमरा बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन मुहमरा बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

नामे मुबारक

आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “शैख़ शहाबुद्दीन मुहमरा” और वालिद माजिद का नाम “शैख़ जमालुद्दीन” था आप मुल्के ईरान के शहर मुहमरा! के रहने वाले थे इस लिए मुहमरा कहलाते हैं,

इजाज़तो खिलाफत

मलिकुश शोरा हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन मुहमरा बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह उलूमो फुनून के जामे थे, और इल्मे तसव्वुफ़ और इल्मे सुलूक से भी आप वाकिफ और इस के रम्ज़ शनास थे, हकीकतों मारफ़त के गव्वास और मुल्के ईरान के शहर मुह्मरा! से हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए और दिल्ली में क़याम फ़रमाया, और आप की तबियत मोज़ो मुनासिब थी और फ़िकरो ख़याल में गहराई, जज़्बों में लताफत व रानाई थी, ज़ख़ीरए अल्फ़ाज़ में बे पनाह वुसअत, उरूज़ व कवाफ़ी पर उबूर हासिल था, और शायरी का मलका भी, आप के वक़्त में शायरी भी होने लगी शेरो सुखन की बज़्म सजने लगी, “मुशायरा” होने लगा, और याराने ज़ोको शोक ने आप को “मलिकुश शोरा” का लक़ब अता किया था,
और आप “हज़रत ख्वाजा सूफी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह” के मुरीद व खलीफा हैं, आप ही के इमा यानि इशारे पर बदायूं तशरीफ़ लाए और सुकूनत इख़्तियार की, दर्राक ज़हीन, फ़य्याज़ फितरत और इल्मी सलाहियतों, फ़िक्री तवानाईयों ने चैन से बैठने नहीं दिया और खूब से खूब तर मशगूल रहे,
इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे उसूल, इल्मे हदीस, व तफ़्सीर फलसफा व मंतिक, और तसव्वुफ़ व सुलूक की खिदमात अंजाम देने लगे, दीगर तलामिज़ाह शागिर्दों के साथ हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी रहमतुल्लाह अलैह भी आप के शागिर्द हुए,
हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन मुह्मरा बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने इस शागिर्दी रशीद को वो सब कुछ अता कर दिया जो वो अता करना चाहते थे, किया दिया और कितना दिया? ये कहना मुश्किल है क्यों के इस का इन्हिसार हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन मुह्मरा बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की मुहब्बतों शफकत और हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी रहमतुल्लाह अलैह की अखाज़ तबियत पर है।

विसाल के सबक पढ़ाया

जब हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन मुहमरा बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह का इन्तिकाल हो गया, तो हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी रहमतुल्लाह अलैह जो आप के शागिर्द थे, तालीम आप की अभी पूरी नहीं हुई थी, एक रात ख्वाब में हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन मुहमरा बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह को देखा के आप फरमाते हैं, तुम हमारी कब्र पर आ कर पढ़ा करो, चुनांचे हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन नख्शबी रहमतुल्लाह अलैह ने ऐसा ही किया, मुश्किल से मुश्किल किताब का दर्स पढ़ते और आसानी से मतलब वगेरा हल हो जाते, इसी तरह हर रोज़ एक मुद्दत तक मज़ार पर सबक पढ़ते रहे, जब भी सबक पढ़ाते वक़्त ज़रूरत होती तो आप का हाथ मज़ार पाक से निकलता था,
अब भी मज़ार मुकद्द्स से ये फ़ैज़ो बरकात जारी है, के जो कोई तालिबे इल्म किसी किताब का मुताला मुश्किल समझता है और वो मज़ार शरीफ पर जा कर मुताला करता है तो मतालिब खुद बखुद हासिल हो जाते हैं,
दरसो तदरीस तालीम व तअल्लुम का ये हैरत अंगेज़ और दिल चस्प भी है, जो इस बात का गमाज़ है के हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन मुहमरा बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने क्या याद किया? और हज़रत शैख़ नख्शबी! ने किया लिया? इन उलझनों में पड़ना बेकार है, बस इस कद्र समझ लिया जाए के देने वाला भी अजीब था, और लेने वाला भी अजीब था, हज़रत शैख़ अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह भी आप के शागिर्दों में थे,
हज़रत मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “मुन्तखाबुत तवारीख” में हज़रत शैख़ मुह्मरा रहमतुल्लाह अलैह की शान में चंद कसीदे भी लिखे हैं, जो मुताले के लिए ज़रूरी है।

वफ़ात

17/ जमादिउस सानी 686/ हिजरी में आप का विसाल हुआ।

मज़ार मुक़द्दस

आप का मज़ार शरीफ हज़रत पीर मक्का शाह के मज़ार के कुछ फासले पर है, ज़िला बदायूं शरीफ यूपी इंडिया में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन
(3) सिलकुस सुलूक

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