आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 12)

कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौलाना हज़रते अहमद रज़ा के वास्ते

“आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की कश्फ़े करामात”

ट्रेन पुल पर जा कर रुक गई

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी भी अल्लाह पाक के “वलीए कामिल” हैं आप भी “साहिबे तसर्रुफ़” बुज़रुग थे, तसर्रुफ़ के हवाले से चंद वाक़िआत पेशे खिदमत हैं, नबीरए मुहद्दिसे सूरति अल हाज फ़ज़्लुस समद शाह साहब फरमाते हैं के: 1331, हिजरी में जब के में दस साल का था आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! बरैली शरीफ जाने के लिए पीलीभीत के स्टेशन पर तशरीफ़ ले गए, ट्रेन तय्यार थी टिकट वगेरा ले लिए गए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इरशाद फ़रमाया: नमाज़ मगरिब पढ़ ली जाए, किसी साहब ने कहा ट्रेन छूट जाएगी, आप ने इरशाद फ़रमाया: अगर ट्रेन छूट जाती है तो जाए अब तो पहले नमाज़ ही पढेंगें और इंशा अल्लाह फ़कीर के बगैर ट्रेन नहीं जाएगी, इधर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने नमाज़ शुरू की उधर ट्रेन छोट गई, जब सलाम फेरा तो ट्रेन का दूर तक पता नहीं था, सुन्नतें वगेरा पढ़ीं, फिर वज़ाइफ़ पढ़ना शुरू कर दिए, चंद मिंट के बाद देखा गया के एक जम्मे ग़फ़ीर (भीड़) के साथ रेलवे के मुलाज़मीन व अफसरान आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की तरफ चले आ रहे हैं, जब करीब आए तो खादिम ने अर्ज़ किया के: क्या मुआमला पेश आया? तो बताया के ट्रेन पुल पर जा कर रुक गई है अब ना आगे बढ़ती है ना पीछे हटती है रास्ता भी बंद हो चुका है और दोनों तरफ ट्रेफिक भी रुक गया है और इंजन में भी कोई खराबी मालूम नहीं होती है, लोगों ने हमे बताया के बरैली! के बहुत बड़े बुज़रुग! नमाज़ पढ़ रहे थे, उन्होंने ये ट्रेन रोक दी है हमारी गलती माफ़ की जाए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को जलाल आ गया और फ़रमाया: “अगर किसी में ताकत हो तो ट्रेन ले जा कर दिखाए, ट्रेन फ़कीर ने नहीं रोकी बल्के फ़कीर जिस अल्लाह पाक! की नमाज़ पढ़ रहा था उस वहदहू ला शरीक ने रोकी है,

अफसरान ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पाऊ पकड़ लिए और अर्ज़ किया के: अब हमारी गलती माफ़ कर दी जाए आप ने इरशाद फ़रमाया के उसी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने चाहा तो ट्रेन चलेगी, उस को वापस स्टेशन लाया जाए, डिराईवर वगेरा गए दोबारा ट्रेन को आगे चलाना चाहा नहीं चली, जब पीछे वापस किया तो चलपड़ी, आखिर कार गाड़ी स्टेशन वापस आई, आप इस में तशरीफ़ फरमा हुए उस के बाद ट्रेन बरैली शरीफ रवाना हुई।

गाड़ी एक घंटा लेट हो गई

मौलाना इरफ़ान अली साहब बीसलपुरी का बयान है के: सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी दो मर्तबा बीसलपुर तशरीफ़ लाए, पहली मर्तबा साढ़े दस बजे दिन के बा ज़रिए रेल गाड़ी रौनक अफ़रोज़ हुए, और शाम को वापसी का इरादा कर लिया, गोया सिर्फ चंद घंटे का क़याम (रुका, ठरना) था, बीसलपुर के मुसलमानो के लिए आप के फीयूज़ो बरकात से मालामाल होने का बहुत कम मौका था मगर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने सब के दामने मुराद को भरा, बाज़ हज़रात के मकान पर भी तशरीफ़ ले गए वापसी में स्टेशन एक घंटा देर कर के पहुंचे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के करम से उस वक़्त तक गाड़ी स्टेशन ना आई थी, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के सामने आई, इत्मीनान से आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी गाड़ी में बैठे जब गाड़ी चलने लगी तो लोगों ने बतौरे इज़हारे अकीदत कहा के ये आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की करामत थी के गाड़ी पूरे एक घंटा लेट आई।

नमाज़ पढ़ने तक गाड़ी रुकी रही

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: एक बार उर्से मुहद्दिसे सूरति में शिरकत के बाद पीलीभीत से वापसी रेल गाड़ी से हुई, नवाब गंज स्टेशन पर जहाँ गाड़ी सिर्फ दो मिनट रूकती है, नमाज़े मगरिब का वक़्त हो गय, (फुकहा मुहद्दिसीन, व मुजद्दिदे आज़म सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का यही फतवा है के चलती ट्रेन में नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं है) आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने गाड़ी रुकते ही तक्बीरे इक़ामत फरमा कर गाड़ी के अंदर ही नियत बांध ली गालिबन पांच हज़रात ने इक़्तिदा की, इन में, में भी था, लेकिन अभी शरीके जमाअत नहीं होने पाया था के मेरी नज़र गैर मुस्लिम गार्ड पर पड़ी जो पलेटफार्म पर खड़ा सब्ज़ झंडी हिला रहा था, में ने खिड़की से झांक कर देखा के गार्ड ने इंजन डिराइवर को रवानगी का कागज़ दे दिया जिस के ये माना थे के गाड़ी छोट रही है, मगर ये ख़याल गलत साबित हुआ, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इत्मीनान के साथ आराम से तीनो रकअते अदा कीं और जिस वक़्त दाएं जानिब सलाम फेरा तो गाड़ी चल पड़ी, मुक्तादियों की ज़बान से बे साख्ता सुब्हानल्लाह निकल गया, इस करामत में काबिले गौर ये बात थी के अगर जमाअत पलेटफार्म पर खाड़ी होती तो ये कहा जा सकता था के गार्ड ने एक बुज़रुग हस्ती को देख कर गाड़ी रोक ली होगी, ऐसा ना था बल्के नमाज़ गाड़ी के अंदर पड़ी गई थी, इस थोड़े वक़्त में गार्ड को क्या खबर हो सकती थी के एक अल्लाह का महबूब बंदा फ़रिज़ाए नमाज़ गाड़ी में अदा करता है।

इंशा अल्लाह पलेटफार्म पर

हज़रत मुफ़्ती बुरहानुल हक जबलपुरी अपनी किताब “इकरामे इमाम अहमद रज़ा” में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की एक करामत कुछ यूं तहरीर फरमाते हैं सुबह चार बजे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी हज़रत मौलाना हामिद रज़ा खान साहब, हाजी किफ़ायतुल्लाह साहब और ख़ादिमें बुरहान गाड़ी पर स्टेशन के लिए रवाना हुए, में ने अर्ज़ किया, हुज़ूर! ऐन नमाज़ के वक़्त गाड़ी रवाना होगी, नमाज़े फजर कहा अदा की जाएगी? आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने मुस्कुरा कर फ़रमाया: “इंशा अल्लाह पलेटफार्म पर” स्टेशन पहुंचने पर मालूम हुआ के गाड़ी चालीस मिंट लेट है, पलेटफार्म पर जानमाज़, चादरें रुमाल वगेरा बिछा लिए गए और कसीर जमाअत नेआला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पीछे नमाज़े फजर अदा की ये आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की करामत थी के इत्मीनान के साथ नमाज़ से फारिग हुए।

और आप पीलीभीत तशरीफ़ ले गए

मौलाना इरफ़ान अली साहब बीसलपुरी का बयान है के: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी जब पहली बार बीसलपुर में तशरीफ़ लाए तो वापसी पर अहले “खमरिया” ने स्टेशन पर हाज़िर हो कर इल्तिजा की के आप वापसी पर “खमरिया” तशरीफ़ ले चलें, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया: इस दफा तो नहीं, अल बत्ता अगर दूसरी दफा बीसलपुर आना हुआ तो इंशा अल्लाह वापसी में “खमरिया” भी आऊंग, दूसरी बार जब आप तशरीफ़ लाए तो अहले “खमरिया” फिर स्टेशन पर हाज़िर हुए और वापसी में “खमरिया” में क़याम फरमाने के वास्ते अर्ज़ किया, उल्माए किराम व खादिमाने इज़ाम जो हमरिकाब थे, आपस में मुख्तलिफ हुए, बाज़ की राय ये थी के अहले “खमरिया” की आरज़ू पूरी करनी चाहिए जब के बाज़ अहबाब की ख्वाइश थी के आप पीलीभीत तशरीफ़ ले जाएं, शैख़ अब्दुल लतीफ़ साहब! ने अर्ज़ किया के हुज़ूर! पीलीभीत ही तशरीफ़ ले चलें “खमरिया” में क़याम ना फरमाएं, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया गाड़ी चलने पर एक वज़ीफ़ा पढता हूँ अगर वो वज़ीफ़ा “पोटा, स्टेशन” आने से पहले खत्म हो गया तो इंशा अल्लाह अहले “खमरिया” मुझे खमरिया ले जाने के लिए स्टेशन पर मौजूद ही होंगें और में पीलीभीत चला जाऊँगा और अगर खत्म नहीं हुआ तो खमरिया वाले आए हुए होंगें लिहाज़ा वहां क़याम करूंगा, वज़ीफ़ा “पोटा, स्टेशन” आने से पहले ही खत्म हो गया, स्टेशन पर अहले “खमरिया” में से कोई शख्स न मिला और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी पीलीभीत तशरीफ़ ले गए।

मुरीद को ज़ालिमों से बचा लिया

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: जनाब मंसूब अहमद साहब कादरी रज़वी तहज्जुद गुज़ार हस्ती हैं, एक रोज़ उनके अहबाब में से दो शख्स मिलने आए और अपने साथ बाजार में उस तरफ ले गए जहाँ एक तवाइफ़ का मकान था, दोनों तरफ से आदमियों ने उनके हाथ मज़बूती से पकड़ लिए और खींच कर तवाइफ़ के दरवाज़े तक ले गए, वो दो थे और ये अकेले, इन्होने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से रुजू किया और दिल ही दिल में मदद तलब की, देखते क्या है के हुज़ूर सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी बहुत सफ़ेद पोशाक पहने जलवा फरमा हैं और वो भी इस शान से के दोनों हाथ से असा मुबारक पर ज़ोर दिए हुए हैं, और थोड़ी असा मुबारक पर कायम है, मौसूफ़ का बयान है के जिस वक़्त मेरी नज़र हुज़ूर पर पड़ी मेरे जिस्म में ऐसी ताकत आ गई के बावजूद कमज़ोर होने के इन दोनों की पकड़ से अपने आप को छुड़ा लिया और दौड़ कर अपने घर लोट आया।

घड़े में पानी भर गया

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: एक रोज़ फजर के वक़्त हज़रत पीरानी साहिबा देखती हैं के किसी घड़े में पानी नहीं, मजबूरन आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से दरयाफ्त किया गया, के नमाज़ का वक़्त जा रहा है किसी घड़े में पानी नहीं है, क्या किया जाए? आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ये बात सुनकर फ़ौरन एक घड़े के ऊपर दस्ते मुबारक रख कर इरशाद फरमाते हैं के, “पानी तो इस घड़े में ऊपर तक भरा हुआ है लो वुज़ू कर लो” देखा तो वाकई पानी घड़े में ऊपर तक भरा हुआ था।

दरवाज़े पर शेर का पहरा

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: जिस मकान में हज़रत मौलाना हसन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह (आला हज़रत के मंजले भाई) रहते थे उस की शुमाली दिवार बरसात में गिर गई, आरज़ी तौर पर परदे का एहतिमाम व इंतिज़ाम कर लिया गया, यही मकान आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का कदीम आबाई मकान था और पहले आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी भी इसी मकान में तशरीफ़ रखते थे, मस्लए कुर्बानी (गए की कुर्बानी) की वजह से मुखालिफत की बिना पर रात के वक़्त आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! पर एक गैर मुस्लिम ने उस गिरी हुई दिवार की तरफ से हमला करना चाहा मगर जब उस तरफ आने का क़स्द करता तो एक शेर ज़ेरे दिवार घूमते हुए देखता, बिला आखिर अपने इरादे से बाज़ रहा, सुबह को हाज़िरे खिदमत हो कर माफ़ी चाहि और सारा वाक़िआ बयान किया, हाफिज़े हकीकी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपने महबूब बन्दों की इसी तरह हिफाज़त फरमाता है।

दो शेरो ने हिफाज़त की

इसी तरह का एक वाक़िआ मौलवी बरकात अहमद साहब का बयान है के: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का अक्सर का मामूल था के रात के बराह साढ़े बारा बजे तक मस्जिद में वज़ाइफ़ वगेरा पढ़ा करते थे, उस ज़माने में वहाबी आप के सख्त खिलाफ थे, चुनांचे उन के एक गिरोह ने कमेटी बनाई और ये मश्वरा किया के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रात बराह बजे तक वज़ीफ़ा पढ़ते हैं और बाकी सारे लोग पहले ही सो जाते हैं क्यों ना रात के बाराह बजे जा कर हज़रत! को तलवार से क़त्ल करदें, अगर ये हो गया तो फिर इन जैसा आदमी सुन्नियों को नहीं मिल सकता, चुनांचे दो वहाबी इस इरादे से पोन बराह बजे आए और मस्जिद के करीब पहुंच गए, जब आप मस्जिद से बाहर सड़क पर तशरीफ़ लाए तो इन लोगों ने चाहा के आप पर वार करें, लेकिन क्या देखते हैं के दो शेर! आप के दाएं और बाएं हैं और आप के साथ साथ मस्जिद के दरवाज़े से मकान के फाटक तक साथ चलते रहे, जब आप अपने दौलत खाने में तशरीफ़ ले गए तो वो दोनों शेर गायब हो गए।

ज़मीन के नीचे की रकम को जान लिया

नबीरए मुहद्दिसे सूरति कारी अहमद साहब! का बयान है के: पोलीभीत की सय्यदानी साहिबा ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में अर्ज़ किया हज़रत! एक साल हो गया में ने कुछ रूपए और अशर्फियाँ अपने कमरे के एक कोने में गाड़ दिए थे मगर अब वहां देखती हूँ तो नहीं हैं, लड़की की शादी करीब है और इसी लिए रखे थे, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया: के वो अब उस जगह नहीं हैं बल्के वहां से हटकर कोठरी में फलां जगह पहुंच गए हैं, उस जगह तलाश किए गए तो सब के सब मिल गए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इरशद फ़रमाया: “बगैर बिस्मिल्लाह कहे अगर रूपया दफन किया जाए तो वो अपनी जगह कायम नहीं रहता।

हमने तुझे रिहा कर दिया

“तजल्लियते आला हज़रत” में है के: 1901, ईस्वी का वाक़िआ है के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के एक मुरीद अमजद अली खान कादरी रज़वी शिकार के लिए गए, इन्होने जब शिकार पर गोली चलाई तो निशाना गलती से किसी राहगीर को गोली लगी जिससे वो ख़त्म हो गया, पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, कोर्ट में क़त्ल साबित हो गया और फांसी की सज़ा सुना दी गई, अज़ीज़ो अक़रबा तारिख से पहले रोते हुए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बारगाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया हुज़ूर! दुआ फरमा दें, आप ने इरशाद फ़रमाया “जाओ हमने उसे रिहा कर दिया” तारीख से कुछ पहले घर वाले मुलाकात के लिए पहुंचे तो अमजद अली साहब कहने लगे आप सब मुत्मइन रहो मुझे फांसी नहीं हो सकती क्यों के मेरे पिरो मुर्शिद सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फरमा दिया है के:

“हमने तुझे रिहा कर दिया” रो धोकर लोग वापस चले गए, फांसी की तारिख वाले दिन मामता की मारी माँ रोती हुई अपने लाल का आखरी दीदार करने पहुंची ऐतिकाद हो तो ऐसा! माँ की खिदमत में भी बड़े एतिमाद के साथ अर्ज़ किया “माँ रंजीदह ना हो घर जाओ! इंशा अल्लाह आज का नाश्ता में घर आ कर ही करूंगा, वालिदा के जाने के बाद अमजद अली को फांसी के तख्ते पर लाया गया, गले में फंदा डालने से पहले हस्बे दस्तूर जब आखरी आरज़ू पूछी गई तो कहने लगे क्या करोगे पूछ कर? अभी मेरा वक़्त नहीं आया, वो लोग समझे के मोत की दहशत से दिमाग फेल हो गया है, चुनांचे फंदा गले में पहना दिया गया, इतने में “तार आ गया” के मलका विक्टोरिया की ताजपोशी की ख़ुशी में इतने इतने कातिल और कैदी छोड़ दिए जाएं, फ़ौरन फांसी का फंदा निकाल कर उनको तख्ते से उतार कर रिहा कर दिया गया उधर घर पर कोहराम मचा हुआ था और लाश लाने का इंतिज़ाम हो रहा था के अमजद अली साहब फांसी घर से सीधे अपने घर आ पहुंचे और कहने लगे, नाश्ता लाओ! में ने कह दिया जो कह दिया था के इंशा अल्लाह नाश्ता घर आ कर करूंगा।

ख्वाब में आ कर जलने से बचा लिया

मौलवी सय्यद सरदार अहमद बिन सय्यद मुसाहिब (जो आला हज़रत के मुरीद थे और आला हज़रत के घर के सामने इनका मकान था) ने कहा के: में मुलाज़िमत के सिलसिले में नैनीताल पहाड़ पर था चूंकि वहां सर्दी बहुत पढ़ती है, कोयलों की अँगीठीन मेरे पलंग के पास रहती थी, जब तक में जगता रहता और सोते वक़्त उठा दिया करता था, एक रोज़ इत्तिफाक से वो पलंग के पास ही रह गई और अख़बार देखते देखते सो गया, सोते में किसी वक़्त लिहाफ का एक किनारा अंगीठी में चला गया और लिहाफ ने आग पकड़ली और जलने लगा, ख्वाब में देखता हूँ मेरे कपड़े जल रहे हैं और आकाए नेमत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी फरमा रहे हैं “सरदार अहमद कपड़े बुझाओ” फ़ौरन आँख खुल गई देखा के वाकई लिहाफ में आग लगी है और हज़रत करीब ही तशरीफ़ फरमा हैं, “सरदार अहमद आग बुझाओ” में ने चाहा के पहले आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के कदम चूम्लूं फिर आग बुझाऊँ जैसे ही आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की तरफ बढ़ा हज़रत नज़रों से गायब हो गए, मेने कपड़े बुझाए, चार उंगल लिहाफ जल गया था।

हम इसी तरह आया करते हैं

सद रुश्शारिया मौलाना अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की वफ़ात के चंद रोज़ बाद में ने उन्हें ख्वाब में देखा, तकरीबन दस बजे दिन का वक़्त होगा, ज़नाने मकान से कुछ कागज़ हाथ में लिए हुए आए और जिस पलंग पर बाहर तशरीफ़ हुआ करते थे इस के करीब हस्बे दस्तूर कुर्सियां पड़ीं हुईं थीं, एक कुर्सी पर में भी बैठा हुआ था, अपने पलंग के पास तशरीफ़ ला कर वो तमाम कागज़ात मेरे हवाले किए, उस वक़्त मेरी ज़बान से निकला के आप का तो इन्तिकाल हो चुका है, आप कैसे तशरीफ़ लाए? फ़रमाया: “हम इसी तरह आया करते हैं” ख्वाब से बेदार होने के बाद में ने ये तसव्वुर किया के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी क़िब्ले का मकसद ये है के जिस तरह मेरे ज़मानाए हयात में तुम ये सब काम अंजाम दिया करते थे अब भी ये चीज़ें तुम्हारे सुपुर्द की जाती हैं, लोगों की तहरीर का जवाब देना तुम्हारे ही मुतअल्लिक़ किया जाता है, चुनांचे उस के बाद बिला तकल्लुफ इस खिदमते इफ्ता वगेरा को में अंजाम देता रहा और समझ लिया के जिस तरह आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने अपनी हयात में इस काम को तफ़वीज़ फ़रमाया था अब भी इसी काम को मुझ से लेना चाहते हैं और जो कुछ दुश्वारियां होंगी उस में वो खुद मदद गार होंगें, चुनांचे कभी बावजूद अपनी मालो मताआ के इस मुआमले में दुश्वारी ना आई।

विसाल के बाद मदद फरमाना

जनाब मुहम्मद हुसैन रज़वी साहब का बयान है के: माहे शाबान 1313, हिजरी में मेरी अहलिया को रान में तीन गिल्टियाँ निकली में फ़ौरन आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के मज़ार शरीफ पर हाज़िर हुआ और रो कर दुआ मांगी के हुज़ूर! एक लड़की सवा महीने की है और दूसरे सब बच्चे भी छोटे छोटे हैं, हुज़ूर! मेरा घर तबाह हो रहा है, दुआ फरमाइए आप अपनी हयात में मुझ से फ़रमाया करते थे के पीर! हश्र में, कब्र, में हर जगह मदद करता है हुज़ूर इस मुश्किल वक़्त से ज़ियादा कौन सा वक़्त होगा जब इमदाद की जाएगी, मेरे लिए दुआ फरमाएं, इसी हालत में बहुत रोया, इस के बाद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के दोनों शहज़ादों की खिदमत में हाज़िर हुआ उन्होंने दुआ फ़रमाई, तावीज़ दिए, ग़ुस्साला का पानी दिया के इसको पिलाइए, गिल्टियों पर लगाना अज़ानें पढ़ना, घर आ कर देखता हूँ के मर्ज़ आधा रह गया, इससे पहले इन्हें सरसाम हो गया था, एक माह तक पूरा असर रहा ज़बान बिलकुल लकड़ी हो गई थी, छेह माह तक हालत खराब रही, अब अल हम्दुलिल्लाह बिलकुल ठीक हैं, अहलिया के अय्यामे बिमारी में मंझली लड़की ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को ख्वाब में देखा फरमाते हैं, “तेरे वालिद इस कदर ना उम्मीद क्यों हो गए गए हैं उन से कह दो आराम हो जाएगा, चुनांचे दिनबदिन सेहत होती गई।

जा अच्छी हो जाएंगी

मौलाना एजाज़ अली खान साहब का बयान है के: मेरी भावज यानि भावी बीमार हो गईं, तमाम लोग ना उम्मीद हो गए थे, वालिदा मुहतरमा ने फ़रमाया के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के मज़ार मुबारक! पर जा कर अर्ज़ कर में हाज़िर हुआ और बच्ची को पायंती यानि पैरों में डाल दिया, खुदा की कसम फ़ौरन फ़रमाया: जा अच्छी हो जाएंगी, में आया वालिदा साहिबा से अर्ज़ किया उसी वक़्त से सेहत शुरू हो गई 20, 22, दिन में बिलकुल अच्छी हो गईं।

आप के ज़ेवरात सब महफूज़ हैं

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! फरमाते है के: एक मर्तबा मिर्ज़ा अब्दुर रहमान बेग कादरी साकिन मुहल्लाह “बुखार पूरा” बरैली शरीफ के सोने चांदी के तमाम ज़ेवरात चोरी हो गए, सख्त परेशान के रात को ख्वाब में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए हुज़ूर! इरशाद फरमाते हैं के “मिर्ज़ा साहब” आप के ज़ेवरात सब महफूज़ हैं घबराइए नहीं मगर इस में चांदी हमारी है उन्होंने अर्ज़ किया हुज़ूर! फिर मुझे किस तरह मिलेंगें? फ़रमाया फलां शख्स ने तुम्हारे मकान के सामने ही दफन किया है तलाश करो इंशा अल्लाह मिल जाएंगें, सुबह को उठा कर चोर पकड़ा जाता है जो के वहीँ का रहने वाला है उसे डराते धमकाते हैं, बिला आखिर वो शख्स मिर्ज़ा साहब के मकान से मुत्तसिल जो खंडर पड़ा था वहां ले जाता है, देखा के वहां ज़मीन जा बजा खुदी पड़ी है, उस शख्स से पूछा जाता है बताओ कहाँ दफ़न किया है? उसने कहा ज़ेवर ज़रूर में ने दफ़न किया और इसी खंडर ही में दफन किया था मगर अब में नही कह सकता हूँ के वो कहाँ हैं मुझे खुद रात भर तलाश करते हुए गया है मगर पता नहीं चला इतना पता चला है के हर जगह में ने ही खोदी है, गरज़ चंद आदिमियों ने जुस्तुजू की और बिला आखिर उस खंडर में एक तरफ टूटी फूटी कोठरी नज़र आई, उसे जो खुदा तो तमाम ज़ेवरात एक जगह से निकल आए, मिर्ज़ा साहब ने इसी ख़ुशी में बड़ी धूम धाम से हुज़ूर के मज़ार शरीफ पर चादर चढ़ाई।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • सवानेह आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा
  • हयाते आला हज़रत
  • फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
  • इमाम अहमद रज़ा अरबाबे इल्मो दानिश की नज़र में
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • हयाते मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी
  • इमाम अहमद रज़ा रद्दे बिदअतो व मुन्किरात
  • इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़

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