आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 11)

कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौलाना हज़रते अहमद रज़ा के वास्ते

“आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की कशफो करामात”

निगाहों से मर्ज़ को खींच लिया

नबीराए मुहद्दिसे सूरति जनाब मौलाना कारी अहमद साहब बयान करते हैं के: 8, रबीउल आखिर 1335, हिजरी को हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह में उर्स शरीफ के मोके पर रस्सियों में जकड़े हुए एक मुसलमान नौजवान दीवाने को आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में पेश किया गया पागल के रिश्तेदारों ने बयान किया के कुछ माह से ये पागल है, हज़ारों इलाज किए गए कोई फ़ायदा नहीं हुआ, पागल खाने में इस लिए दाखिल नहीं किया के वहां मरीज़ों को बहुत मारते हैं हम बड़ी उम्मीद के साथ हुज़ूर की खिदमत में आए हैं, इन के छोटे छोटे बच्चे हैं तमाम घर वाले परेशान हैं, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! तमाम वाक़िआत सुनने के बाद चंद मिनट इस दीवाने की तरफ बहुत गौर से देखते रहे, ऐसा मालूम होता था के आप निगाहों से मर्ज़ को खींच रहे हैं, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के निगाह मिलाते ही दीवाने की मजनूना हरकत में इफाका आराम होना शुरू हो गया और थोड़ी ही देर में वो इसी जगह बेहस व हरकत हो कर गिर पड़ा, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इस के रिश्तेदारों से फ़रमाया अब ये ठीक है, रस्सियां खोल दो और घर ले जाओ, और रोज़ाना एक मुनक्का थोड़े दूध के साथ खिला दिया करो, खुदा के फ़ज़्ल से दीवाना अब तक और अपने नौजवान लड़कों के साथ कारोबार ज़िन्दगी में मसरूफ है।

पठान खान दान से हूँ तबीयत सख्त हैं

शैखुल हदीस हज़रत अल्लामा व मौलाना अल हाज सय्यद शाह मुहम्मद दीदार अली साहब अलवरी रहमतुल्लाह अलैह के सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा शाह नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह से दोस्ताना तअल्लुक़ात बहुत ही वसी करीबी थे, एक बार आप मुरादाबाद तशरीफ़ लाए तो सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा शाह नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के बरैली शरीफ में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की ज़ियारत के लिए चलिए, हज़रत मौलाना शाह दीदार अली अलवरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया “में उन्हें जनता हूँ” पठान खानदान, से हैं तबीयत सख्त, और गुस्सा ज़ियादा हैं, अल गरज़ ये के सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा शाह नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह अपने दोस्ताना ज़ोर के तहत इन्हें बरैली शरीफ ले गए, जब मोहल्ला सौदागिरान में आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के दरे अक़दस पर पहुंचे और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से मुसाफा हुआ तो हज़रत मौलाना शाह दीदार अली अलवरी रहमतुल्लाह अलैह ने कहा हुज़ूर! मिजाज़ कैसे हैं? आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया सय्यद साहब! क्या पूछते हैं पठान खान दान से हूँ, तबीयत सख्त, और गुस्सा ज़ियादा हैं! हज़रत शैखुल मुहद्दिसीन! हैरान थे के मुरादाबाद में हम दो के दरमियान जो गयफ्तुगू हुई थी आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने अपने कशफो करामत से उसे मालूम कर लिया और वही अलफ़ाज़ दुहराए और येभी जान लिया के में सय्यद! हूँ, अल्लाहु अकबर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की दस्त बोसी फ़रमाई “सिलसिलए रज़वीय” में दाखिल हुए और उसी वक़्त खिलाफत से भी नवाज़ दिए गए।

आप के चलते ही मरीज़ को शिफा हो गई

जनाब ज़काउल्लाह खान साहब का बयान है के: एक बार शेरपुर, ज़िला पीलीभीत शरीफ, में मंगल खान, बाला खान साहिबान (जो वहां के बहुत बड़े रईस थे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के बड़े मोतक़िद थे, उन के) रिश्तेदारों में कोई औरत बीमार हो गई, “शेरपुर” से कुछ लोग आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को लेने के लिए हाज़िर हुए और बहुत तरह से ज़रूरत ज़ाहिर की तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने तशरीफ़ ने जाने का वादा फरमा लिया, गर्मी का मौसम था, ये खादिम और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के भांजे जनाब अली अहमद खान साहब मरहूम हज़रत के हमराह थे, “पूरन पुर स्टेशन” पर बहुत से हज़रात इस्तकबाल के लिए मौजूद थे, हज़रत को बड़े आराम व आफ़ियत के साथ शेर पुर ले गए, जैसे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी वहां पहुचें मंगल खान साहब या बाला खान साहब खादिम को याद नहीं के कौन थे गरज़ दो भाइयों में से एक साहब तशरीफ़ लाए और अर्ज़ किया के हुज़ूर! शायद आप रेल गाड़ी पर सवार हो रहे होंगें के मरीज़ा को अल्लाह पाक के फ़ज़्ल से शिफा होनी शुरू हो गई, अब हुज़ूर के कदम मुबारक आ गए हैं बिलकुल सेहत हो जाएगी, इंशा अल्लाहुल अज़ीज़, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने दो यौम वहां क़याम फ़रमाया, मरीज़ा अल्लाह पाक के फ़ज़्ल से अच्छी हो गई, बड़ी खातिर व अदब व ताज़ीम के साथ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को रुखसत किया गया।

उसके बाद जाड़ा नहीं आया

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: मेरे छोटे भाई मुश्ताक अली कादरी रज़वी को कई महीने से हर तीसरे रोज़ जाड़ा सर्दी बुखार आजाया करता था, जिस के बाइस नक़ाहत बहुत बढ़ गई थी और वो बिलकुल ज़र्द पड़ गया था, इस की तीमार दारी की वजह से आस्ताने की हाज़री में देर होने लगी, एक रोज़ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने बाद नमाज़े फजर मेरी गैर हाज़री में हाजी किफ़ायत साहब से वजह मालूम की, उन्होंने जो वाक़िआ था बयान कर दिया, फ़रमाया: में अभी देखने जाऊँगा और काशानए अक़दस में तशरीफ़ ले गए के उसी वक़्त में भी पहुंच गया, हाजी साहब ने फ़रमाया आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी आप के यहाँ तशरीफ़ लिए जा रहे हैं, में सुनते ही भागता हुआ मकान पर पंहुचा, अभी दस बारह मिंट हुए होंगे के हाजी साहब ने दस्तक दी में बाहर आया और अर्ज़ किया तशरीफ़ लाइए! मेरे भाई ने तअज़ीमन खड़ा होना चाहा मगर आप रहमतुल्लाह अलैह ने उनकी कमज़ोरी देखते हुए मना फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया “वुज़ू कर लीजिए” में ने वुज़ू करने के बाद हुज़ूर ने अपने रुमाल से एक टुकड़ा रोटी का (जिस पर शायद आयते करीम लिखी थी) मरीज़ को अता फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ कर खा लीजिए, इस ने हुक्म की तामील की, इस के बाद फिर कभी जाड़ा! नहीं आया।

सांप काटने का इलाज

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! ही का बयान है के: एक रोज़ बादे मगरिब में मकान पर खाना खा रहा था के मेरे भाई कनाअत अली हवास बाख्ता आए और कहने लगे मुझे जल्दी से आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पास ले चलो, मेरे पैर में सांप ने काट लिया है, मेरा सर चकरा रहा है, में ने देखा तो उनके पाऊं काबू में न थे, गरज़ हम काशानए अक़दस के करीब पहुंचे ही थे के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी इशा की नमाज़ के लिए जा रहे थे, हालांके उन दिनों नमाज़े इशा कुछ देर कर के होती थी मगर उस रोज़ अव्वल ही वक़्त तशरीफ़ ले आए, में बढ़ कर दस्त बोस हुआ और इस वाकिए की इत्तिला की के जिस का आप पर इस कदर असर हुआ के बावजूद कनाअत अली के करीब होने के फरमाने लगे सय्यद साहब कहाँ हैं? में ने इशारे से बताया, आप वहीँ सड़क पर कुछ पढ़ने लगे मगर कनाअत अली के कहने से मस्जिद में पहुंच कर मुझ से चिराग करीब मगा कर देखा तो डसने का निशाँन था, हुज़ूर देर तक कुछ पढ़ते रहे और उस जगह अपना दस्ते मुबारक फेरते रहे और आखिर में दम करने के बाद तस्कीन देह अल्फ़ाज़ में फ़रमाया: बावर्ची खाने में चूहे ने काटा होगा नज़र आप की सांप पर पड़ी, कनाअत अली ने अर्ज़ किया: हुज़ूर एक तमन्ना है, फ़रमाया: वो किया? अर्ज़ किया हुज़ूर! थोड़ासा लोआबे दहन अगर इस जगह लगा देंगें तो में बच जाऊँगा, आप ने फ़रमाया इस में क्या रखा है, में ने वो दुआएं जो हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाई हैं पढ़ कर दम कर दीं हैं इंशा अल्लाह आप को कुछ नुकसान ना पहुंचेगा,

उन्होंने फिर अर्ज़ किया हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सच्चा नाइबे रसूल जनता हूँ, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहु अन्हु के पाए मुबारक पर अपना लुआब दहन लगाया था, अगर हुज़ूर लुआब दहन लगा देंगें तो मुझे इत्मिनाने कलबी होगा, ये सुन कर आप ज़रा कबीदा खातिर हुए जिस पर कनाअत अली बा अंदाज़े मयूसाना खामोश हो गए इन की ये कैफियत देख कर फ़रमाया: अच्छा तुम नहीं मानते हो तो लाओ में (सय्यद अय्यूब अली ने) बढ़ कर लुआब दहन मुबारक लेने के लिए अपना सीधा हाथ फैला दिया मगर आप ने मेरे हाथ को हटा कर खुद अपने हाथ मुबारक से लुआब दहन लगते हुए फ़रमाया: बस अब तो आप का कहना हो गया, उन्होंने अर्ज़ की हुज़ूर! फ़सील पर चल कर हाथ धोलें फ़रमाया अच्छा चलिए, और कनाअत अली लोटा भर कर खुद लाए और तेज़ी के साथ मोटी धार से पानी डालना शुरू किया, हुज़ूर बार बार मना फरमाते रहे बस कीजिए, ये असराफ है मगर उन्होंने ता वक़्ते लोटे का पानी खत्म ना कर लिया बाज़ ना आए, उस के बाद नमाज़े ईशा हुई और हुज़ूर वज़ाइफ़ से फारिग हो कर जब तशरीफ़ ले जाने लगे तो कनाअत अली से फ़रमाया सय्यद साहब! आप बिलकुल इत्मीनान से आराम फरमाओ और सुबह को खैरियत भेजना।

थोड़ी देर में बरैली शरीफ

बरैली शरीफ के रहने वाले एक कोचवान बग्गी वाले का बयान है के: एक मर्तबा असर के वक़्त के करीब आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने मुझे याद फ़रमाया, मेरी घोड़ी बिलकुल थक गई थी मगर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के याद फरमाने के बाद मुझे कुछ अर्ज़ करने की जुरअत ना हुई और बारगाह में हाज़िर हो गया,आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इरशाद फ़रमाया चलो (और उसमे तशरीफ़ फरमा हो गए, गाड़ी चल पड़ी) गरज़ नैनीताल रोड पर गाड़ी रवाना हुई, जब गाड़ी लारी इसटेंड पर पहुंची फ़रमाया: पीलीभीत वाली सड़क पर चलना है, गरज़ उधर गाड़ी रवाना हुई, करीब एक मील की मुसाफत तय की होगी की के पीलीभीत की इमारतें नज़र आने लगीं, सुब्हानल्लाह! आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी सीधे आस्तानए हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह पर तशरीफ़ लाए और उन से दरयाफ्त फ़रमाया? शाह साहब ने फ़रमाया: अभी अभी ख़याल हुआ के मौलाना अहमद रज़ा खान! की ज़बान से नात शरीफ सुन्ना चाहिए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फ़ज़ाइल बयान किए, इस के बाद बरैली वापस तशरीफ़ ले आए, और अभी मगरिब का वक़्त नहीं हुआ था बरैली शरीफ आ कर नमाज़े मगरिब अदा फ़रमाई, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी असर की नमाज़ हनफ़ी उसूल पर ताख़ीर से अदा फरमाते थे, लिहाज़ा असर से मगरिब बहुत कम वक़्त होता था, आप की करामत है के मुख़्तसर वक़्त में एक घोड़ा गाड़ी पर दूसरे शहर तशरीफ़ ले गए और वहां पर बयान भी फ़रमाया और वापस तशरीफ़ लाए, और दूसरी करामत ये है के उधर हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह के दिल में ख्याल गुज़रा इधर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को खबर हो गई की जनाब हाजी साहब! याद फरमाते हैं।

ज़माने और वक़्त का तवील हो जाना

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की हयाते तय्यबा पर जब हम निगाह डालते हैं तो अंदाज़ा होता है के आप की पूरी ज़िन्दगी इस करामत की नो से इबारत है, अल्लाह पाक ने उन के लिए वक़्त में बड़ी बरकत रखी थी, फ़क्त चार साल की उमर में आप ने नाज़राह क़ुरआने पाक ख़त्म किया, तेराह साल दस महीने और चार दिन की उमर में तमाम उलूमें अकलिया व नकलिया अपने वालिद माजिद से हासिल कर के फारिगुत तहसील हो गए, 1856, ईस्वी से 1971, तक की 65, साला हयात में आप ने तकरीबन 100, बल्कि इससे ज़ाइद उलूम व फुनून पर एक हज़ार क़ुतुब व रसाइल तस्नीफ़ फरमाए, इश्को ईमान से भर पूर तर्जुमाए कुरआन दिया जो कंज़ुल ईमान के नाम से मशहूर है! 22000, सफ़हात से ज़ियादा पर मुश्तमिल फ़िक़्ही मसाइल का खज़ाना “फतावा रजविया” की शक्ल में अता फ़रमाया,

अगर हम उनकी इल्मी व तहक़ीक़ी खिदमात को 65, साला ज़िन्दगी के हिसाब से जोड़ें तो (दौरे तालीम के 14, साल निकाल कर) हर 19, दिन में हमे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी एक किताब! देते हुए नज़र आते हैं, (जबके इस हिसाब को कुल वक़्त पर तकसीम किया गया है जिस में सोना, खाना, पीना, तदरीस, घरेलू मसरूफियात, इबादात और अस्फार वगेरा शामिल नहीं, अगर इन के औकात निकाल दिए जाएं तो शायद हिसाब घंटों में आए, एक तहक़ीक़ के मुताबिक आप ने हर पांच घंटे में एक किताब का तोहफा उम्मते मुस्लिम को दिया, मुख़्तसर ज़िन्दगी में इतना काम ये आप की बय्यन करामत है, एक मुतहर्रिक रिसर्च इंस्टीटूट का जो काम था आप ने तनहे तनहा अंजाम दे कर अपनी जामे व हमा सिफ़त शख्सीयत के ज़िंदह नुकूश छोड़े।

सिर्फ साड़े आठ घंटे में किताब लिखी

किताब “अद्दौलतुल मक्किया” भी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की ज़िंदा जावेद करामत है के आप ने बुखार की शिद्द्त में बगैर किताब की मदद के महज़ अपनी खुदा दाद याद दाश्त के बलपर तफ़ासीर, अहादीस, और क़ुत्बे अइम्मा की असल इबारतों के हवाला जाते कसीरा नकल फरमाते हुए सिर्फ साड़े आठ घंटे की क़लील मुददत में तस्नीफ़ फ़रमाई, जिस में हक़ाइक़ व दकाइक, मआरिफ़ व अवारिफ के बहरे ज़ख़्ख़ार लहरे मार रहे हैं इस के दलाईले कातीआ व बराहीन सातिआ बागियों की सर कूबी के लिए ताज़ा दम लश्कर है, किताब! मज़कूरा का तर्ज़े तहरीर ऐसा है गोया मुआनी बदीआ की पाकीज़ह लड़ियों में अरबी अदब के खुशनुमा मोती पिरोए हैं।

आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु की दुआ से औलाद

मुहम्मद ज़हूर खान साहब! का बयान है के: मेरी शादी को 12, साल हो गए, कोई औलाद नहीं थी, दिल में इस की तमन्ना थी, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया के औलाद के लिए दुआ फरमा दें, आप ने शफकत फरमाते हुए औलाद की दुआ फ़रमाई! अल्लाह पाक ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की दुआ व तवज्जुह से एक फ़रज़न्द अता फ़रमाया, उस वक़्त में शरफ़े बैअत से मुशर्रफ ना हुआ था, दिल में तमन्ना थी के आखिर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के विसाल के बाद शहज़ादाए आला हज़रत हज़रत हुज्जतुल इस्लाम मौलाना शाह हामिद रज़ा खान साहब कलकत्ता तशरीफ़ लाए उस वक़्त गुलामी की इज़्ज़त हासिल हुई।

आप को फांसी नहीं होगी

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: खान बहादुर असगर ली खान साहब वकील व रईस पुराना शहर के छोटे भाई, जनाब मुहम्मद खान साहब एक कत्ल के मुक़दमे में गिरफ्तार हुए, इस परेशानी के आलम में एक रोज़ असर के वक़्त मस्जिद मुहल्लाह सौदागिरान में आ कर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के कदम बोस हुए और अपनी परेशानी का इज़हार किया और शरफ़े बैअत से मुशर्रफ हुए और तालिबे दुआ हुए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने दुआ फरमाते हुए तस्कीन बख्श कलमात इरशाद फरमाते हुए यूं इरशाद फ़रमाया “इंशा अल्लाह आप को फांसी नहीं होगी” फिर उनको अपने साथ लेकर फाटक में तशरीफ़ लाए, यहाँ जो खुद्दाम व मुतावस्सिलीन मौजूद थे उन से भी मौसूफ़ के लिए दुआ करवाई और फ़रमाया के जहाँ चालीस मुसलमान होते हैं वहां एक अल्लाह का “वली” ज़रूर होता है और यहाँ तो अल हम्दुलिल्लाह चालीस से ज़ियादा मुसलमान हैं, इंशा अल्लाह इनकी दुआ ज़रूर मकबूल होगी,

इस के बाद आपने कुछ पढ़ने के लिए बता दिया, मौलाना ज़फरुद्दीन बिहारी रहमतुल्लाह अलैह (हयाते आला हज़रत” में तहरीर फरमाते हैं: गालिबन अंदाज़ा ये है के “हस्बुनल्लाहू वा नेमल वकील” 450, मर्तबा अव्वल और आखिर दुरूद शरीफ, तीन तीन बार पढ़ने को फ़रमाया होगा, इस लिए के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी उमूमन फौजदारी के मुकदमे में मुद्दा अलैह को ये बताया करते थे, और बारहा का तजुर्बा है के हमेशा इस मुकदमे में कामयाबी होती रही और क्यों ना हो के ये कुरानी दुआ तालीमे इलाही से है, चुनांचे मुकदमा खुला, सिर्फ कुछ दिनों जेल में रहे, और फांसी से अल्लाह पाक ने उन्हें बच्चा लिया।

छेह घंटे सूरह दुहा पर बयान

सय्यद अज़हर ली साहब (साकिन मुहल्लाह ज़खीरा) का बयान है के: एक मर्तबा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी हज़रत मुहिब्बे रसूल मौलाना शाह अब्दुल कादिर साहब के उर्स शरीफ में बदायूं शरीफ तशरीफ़ ले गए, वहां 9, बजे सुबह से 3, बजे तक कामिल छेह घंटे “सूरह दुहा” पर हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बयान हुआ, दौरान तक़रीर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया के इसी सूरत मुबारिका की कुछ आयात करीमा की तफ़्सीर में 80, जुज़ तकरीबन छेह सौ सफ़हात लिख कर छोड़ दिए हैं, इतना वक़्त कहाँ से लाऊँ के पूरे कलाम पाक की तफ़्सीर लिख सकूं।

दिल की हालत बदल गई

बरैली शरीफ में एक साहब रहते थे जो बुज़ुर्गाने दीन को अहमियत नहीं देते थे और पिरि मुरीदी को पेट का ढकोसला कहते थे, उन के खानदान के कुछ लोग आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से बैअत थे, वो लोग एक दिन किसी तरह बहला फुसला कर उन को आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की ज़ियारत के लिए चले, रास्ते में एक हलवाई की दूकान पर गरम गरम इमरतियाँ तली जा रहीं थीं, देख कर इन साहब के मुँह में पानी आ गया, कहने लगे, ये इमरतियाँ खिलाओ तो चलूँगा, उन हज़रात ने कहा के वापसी में खिलाएंगें पहले चलो, बहरे हाल सब लोग आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बारगाह में हाज़िर हो गए इतने में एक साहब गरम गरम इमरतियों की टोकरियां ले कर हाज़िर हुए, फातिहा के बाद सब को तकसीम हुईं, दरबारे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का ये कायदा था की सादाते किराम और दाढ़ी वालों को दुगना हिस्सा मिलता था, चूंके उन साहब की दाढ़ी नहीं थी लिहाज़ा इन को एक ही इमरती मिली, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया इन को दो दे दीजिए, तकसीम करने वाले ने अर्ज़ की हुज़ूर! इन के दाढ़ी नहीं है, आप ने मुस्कुराकर फ़रमाया: इन का दिल चाह रहा है एक और दे दीजिए, ये करामत देख कर उन के दिल की कैफियत बदल गई और वो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के मुरीद हो गए और बुज़ुर्गाने दीन की ताज़ीम करने लगे।

कश्फ़ से मालूम कर लिया के भूका हूँ

मौलाना इरफ़ान अली साहब बीसलपुरी का बयान हैं के: मेरी भतीजी जिस की उमर सोला साल थी और वो अपने माँ बाप की इकलौती बच्ची थी, एक मुह्लिक मर्ज़ में मुब्तला हो गई, में उन दिनों पीलीभीत में मुलाज़िम था, इस की बिमारी की खबर सुन कर बीसलपुर चला आया, जब मेने उस को पुकारा तो उसने ऑंखें खोल दीं, और बोली के “बरैली शरीफ के पीरो मुर्शिद का तावीज़ लादो” (वो भी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ही की मुरीदा थी) चुनांचे में बरैली शरीफ हाज़िर हुआ, बा वजहे परेशानी खाना नहीं खाया जाता था, सय्यद जमीरुल हसन साहब जिलानी के इसरार से चंद लुक़मे खाए जो गले से ना उतरे, सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के दौलत खाना पर हाज़िर हुआ, नो या दस बजे रात का वक़्त था, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने अपने कश्फे बातिन से मालूम कर लिया के में भूका हूँ और परेशान भी, आप अंदर तशरीफ़ ले गए और तकरीबन सेर भर इमरतियाँ मुझे अता फ़रमाई, एक इमरती खाना था के कुल परेशानी दूर हो गई भूक भी खत्म हो गई और भतीजी की शिफा का इंतिज़ाम भी हो गया।

एक टुकड़ा और मिल जाता

हज़रत मौलाना अल हाज गुलाम मुहीयुद्दीन ने एक वाक़िआ बयान किया के: मेरे वालिद माजिद हज़रत मौलाना गुलाम जिलानी साहब (हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां पीलीभीती के भांजे) कुछ मसाइल की मालूमात के लिए बरैली शरीफ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमते बा बरकत में हाज़िर हुए, में भी वालिद साहब के साथ हो लिया, मेरी उमर उस वक़्त ग्यारा साल की थी, मुझे याद हैं के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की खिदमत में कुछ सवालात पेश किए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने उसी वक़्त जवाबात इनायत फरमाए, उस के बाद वालिद साहब ने इजाज़त चाही आप ने फ़रमाया आज नहीं कल जाना, लिहाज़ा उस दिन आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के काशानए अक़दस पर क़याम रहा, शाम को खाने में मुख्तलिफ किस्म के खाने थे और शाही टुकड़े भी थे, कारी गुलाम मुहीयुद्दीन साहब का बयान हैं के में ने जब शाही टुकड़ा खाया तो बहुत लज़ीज़ था, मेरे दिल में ये ख़याल आया के एक शाही टुकड़ा और मिल जाता इधर मेरे दिल में ख़याल आना था उधर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने अपने आगे से एक शाही टुकड़ा उठा कर मुस्कुराते हुए मेरी तरफ बढ़ाया और हुक्म फ़रमाया अंदर से शाही टुकड़े और ले आओ, वालिद साहब ने अर्ज़ किया हुज़ूर! ये बच्चा मीठा बहुत कम खाता हैं इतना नहीं खा सकेगा, इस पर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने इरशाद फ़रमाया के “गुलाम मुहीयुद्दीन का खाने का जी चाहता हैं” इस के बाद एक शाही टुकड़ा देते हुए फ़रमाया बेटा खूब खाओ मीठा, इस मोके पर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की दो करामात मुझ पर ज़ाहिर हुईं एक तो मेरे दिल की बात जान ली, दूसरा मेरा नाम लिया, घर पर आ कर वालिद माजिद साहब ने मुझ से पूछा के सच बताओ तुमने खाते वक़्त क्या सोचा था, तो मेने अर्ज़ किया मेरे दिल में ये ख़याल था के एक और मिल जाता, ये सुन कर वालिद साहब बहुत देर तक रोते रहे और फ़रमाया के लोग आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को क्या जानें वो तो बहुत बड़े औलियाए कमिलीन में से हैं।

देख कर बैअत

जनाब सैय्यद सरदार अहमद का बयान हैं के: एक मर्तबा रमज़ान शरीफ का वाक़िआ हैं के नमाज़े असर के वास्ते मस्जिद में था, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी भी तशरीफ़ फरमा थे हज़रत ने मेरी तरफ मुखातिब हो कर फ़रमाया तुम किस से बैअत हो? में ने कहा में किसी से भी नहीं, हज़रत ने फ़रमाया वसीला बहुत अच्छी चीज़ हैं, बगैर वसीला अल्लाह पाक के दरबार में गुज़ारना दुश्वार हैं, में सुन कर चुप रहा, उस वक़्त मेरी उमर सोला साल थी, में ने आप के कहने का कुछ ख़याल ना किया, जिसे को एक साल गुज़र गया, दूसरे साल वही असर का वक़्त था, हज़रत ने फ़रमाया पिछले रमज़ान में, में ने शायद तुम से कुछ कहा था, मुझे फ़ौरन याद आ गया, के हुज़ूर ने बैअत के ताल्लुक से फ़रमाया था, के सिलसिला बहुत अच्छी चीज़ हैं, फिर भी में चुप रहा, उसी रोज़ रात को सहरी खा कर सो गया, ख्वाब में देखता हूँ के एक बहुत बड़ा मकान हैं और उस में फाटक लगा हुआ हैं, दरवाज़े पर एक शख्स पहरा दे रहा हैं, में ने उस के अंदर देखा के कुछ बड़े खूबसूरत लोग बैठे हैं, में ने भी अंदर जाने का ख्याल किया लेकिन पहरेदार ने मुझे रोक दिया, तब में उसी दरवाज़े के मकान पर खड़ा हो गया, एक शख्स अंदर से तशरीफ़ लाए, उन्होंने पहरे वाले से कहा अंदर आने दो, फिर में अंदर चला गया,

वहां जा कर देखा के एक बहुत बड़ी मेज़ रखी हैं उस के पास तीन कुर्सियां हैं, एक कुर्सी जो बीच में हैं इस में एक खूबसूरत बुज़रुग निहायत ही नफीस पोशाक पहने तशरीफ़ फरमा हैं और दाएं बाएं कुर्सियों पर दो और अशखास तशरीफ़ रखते हैं, उन में से एक शख्स कुछ कागज़ात उन बुज़रुग के सामने पेश करता हैं, वो मेरे बारे में हुक्म फरमाते हैं के इस को फांसी दे दी जाए, दूसरे लोग अर्ज़ करते हैं के इस बारे में मौलाना अहमद रज़ा खान! कुछ कहना चाहते हैं तब वो बुज़रुग आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की तरफ मुतवज्जेह हुए और फ़रमाया के मौलवी क्या कहना चाहते हो? उस वक़्त तक में ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को नहीं देखा था के वहां मौजूद हैं, तब मेरी नज़र हज़रत पर पड़ी और देखा के हज़रत भी वहां मौजूद हैं, उस के बाद हज़रत क़िबला खड़े हुए और कहा के हुज़ूर के यहाँ का गुलाम हैं इस दफा इस को माफ़ किया जाए, तब उन बुज़रुग ने फ़रमाया के मौलवी इनकी सिफारिश करते हैं इस बार इस को माफ़ किया जाए, इतने में फजर की अज़ान से मेरी आंख खुल गई, मस्जिद में आया, नमाज़ के बाद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से अर्ज़ की हुज़ूर! मुझे बैअत कर लीजिए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए इरशाद फ़रमाया देख कर बैअत! इस के बाद आप ने मुझे बैअत फरमा कर सीने से लगा लिया और बहुत खुश हुए।

कामिल तहारत करें

मौलाना मुबीनुद्दीन साहब अमरोहवी बयान करते हैं के: एक बार अमरोहा से हाफ़िज़ मुहम्मद शफी साहब, मुहम्मद इब्राहीम खान साहब और रफीक अहमद साहब बरैली शरीफ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में हाज़िर हुए, “बीबी जी मस्जिद” में जलसा मुनअकिद था, इन तीनो असहाब के वालिद हाफ़िज़ करामतुल्लाह साहब नात ख्वां थे, ये ज़िला अमरोहा के मुन्तख़ब नात ख्वां, शब् बेदार आबिदो ज़ाहिद बुज़रुग थे, इस जलसे में उन्होंने कई नातें सुनाईं, जैसे से फारिग हो कर ये आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में हाज़िर हुए, उस वक़्त नात ख्वानी के अदब का तज़किराह था, इसी सिलसिले में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इरशाद फ़रमाया के हाफ़िज़ साहब नात ख्वां तो बहुत अच्छे हैं लेकिन इनकी तहारत में नुकसान हैं इन्हें चाहिए के कामिल तहारत किया करें जब हाफ़िज़ साहब मज़कूरा से कहा गया के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इरशाद फ़रमाया हैं तो गौर करने के बाद बोले के बिल कुल सच फ़रमाया हैं, में इस्तिंजा सिर्फ ढेले से क्या करता हूँ पानी से नहीं करता, फिर गालिबन इसी मर्तबा या इस के बाद रफीक अहमद साहब और हाफ़िज़ मुहम्मद शफी अहमद साहब और मुहम्मद इब्राहीम खान साहब आप के सिलसिले में दाखिल हुए।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • सवानेह आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा
  • हयाते आला हज़रत अज़
  • फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
  • इमाम अहमद रज़ा अरबाबे इल्मो दानिश की नज़र में
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • हयाते मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी
  • इमाम अहमद रज़ा रद्दे बिदअतो व मुन्किरात
  • इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़

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