हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन छोटे सरकार बदायूनी मूएताब रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन छोटे सरकार बदायूनी मूएताब रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

नाम व लक़ब

शाहे विलायत हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन मूएताब छोटे सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! अजिल्ला मशाईखिने इज़ाम, सूफ़िया, व अकाबिर औलियाए किराम में हैं, आप का नाम “अबू बक्र” है, “बदरुद्दीन” ख़िताब है, अपने वक्त के क़ुत्बुल इरशाद थे, तमाम आलम में चमकते थे, क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ने बदायूं का मंसबे विलायत तफ़वीज़ फ़रमाया था, और शाहे विलायत! बदायूं कह कर ख़िताब किया था, और आज आप छोटे सरकार के नाम से मशहूर हैं, बाज़ कुत्ब में आप का नाम “बदरुद्दीन” और लक़ब “अबू बक्र” तहरीर है, और ये भी लिखा है के आप बालों या बानो की रस्सियां बुना करते थे, इसी सबब से “मूएताब” कहलाते थे।

वालिद माजिद

हज़रत ख्वाजा सय्यद आज़ुद्दीन अहमद यमनी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह हैं, आप हुसैनी सादाते किराम से हैं, आप के वालिद माजिद मुल्के यमन से तशरीफ़ लाए थे, बदायूं में सुकूनत रिहाइश मुस्तकिल तौर पर इख़्तियार की, उस वक़्त सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! की हुकूमत थी, और गालिबन सातवीं सदी हिजरी की शुरूआत होगी, क्युंके 670/ हिजरी में सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! तख़्त नशीन हुए थे,
हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! आप तीन भाई मशहूर हैं, अगरचे चौथे भाई का भी नाम मालूम होता है, लेकिन चौथे भाई के मज़ार का कहीं पता नहीं है और ना उनका ज़िक्र किसी किताब से मालूम होता है, और आप अपने बड़े से छोटे हैं जिन का नाम हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही उर्फ़ बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह हैं।

भाई बहन

हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन मूएताब छोटे सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! आप तीन भाई मशहूर हैं, सब से बड़े हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब उर्फ़ बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह, इन से छोटे ख्वाजा उस्मान थे, और सब से छोटे आप थे अगरचे एक भाई का नाम और मिलता है मगर मज़ार का सही पता चलता,
और आप की एक बहन थीं जिन का नाम बीबी ज़ैनब! था, जो आज भी “बन्नो बुआ” के नाम से मश्हूरो मारूफ हैं।

आप की औलादे अमजाद

हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन मूएताब छोटे सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! आप ने शादी नहीं की थी, अलबत्ता हज़रत मौलाना फर्ख़रूद्दीन को मिस्ल औलाद की तरह पाला था, इन को बेटा कह कर पुकारते थे, मुजाहिदात कराकर कामिल बना दिया था, आप को खिलाफत से सरफ़राज़ फ़रमाया था, और रेहलत के वक़्त वसीयत फ़रमाई थी तुम मेरी कब्र की हिफाज़त करना और दुआ दी थी तुम्हारा खुदा हाफ़िज़ है, तुम फारिगुल बाल रहोगे, किसी के आगे तुम को हाथ फैलाने की हाजत ना होगी, इन्हें हज़रत मौलाना फर्ख़रूद्दीन की औलाद में खुद्दाम दरगाह हैं जिन को पीरज़ादगान कहते हैं, वो अपने जद्दे अमजद के फरमान पर आज भी क़ाइम हैं और कब्र शरीफ की हिफाज़त करते हैं।

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन मूएताब छोटे सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने वालिदैन के सायाए आतिफ़त में नशो नुमा (परवरिश) हुई, क़ाज़ी हुस्सामुद्दीन मुल्तानी से तालीम हासिल की थी, और अपने शफीक भाई सुल्तानुल आरफीन हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही रोशन ज़मीर बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह से भी तरबियत पाई थी,
604/ हिजरी में अपने वालिद माजिद के हमराह बदायूं तशरीफ़ लाए थे, और मुत्तसिल जामा मस्जिद समशी! में सुकूनत इख़्तियार फ़रमाई, सुल्तानुल आरफीन हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही रोशन ज़मीर बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद व खिलफा थे,
अपने पीरो मुर्शिद के हुक्म से दिल्ली शरीफ तशरीफ़ ले गए और क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह से इक्तिसाबे फ़ैज़ो बरकात हासिल किए और खिलाफत हासिल की।


सीरतो ख़ासाइल

साहिबे अज़मतो विलायत, जामे उलूमे ज़ाहिरी व बातनी, पुरजलाल साहिबे वजदो हाल, तरको तजरीद में यगानाए रोज़गार ज़ुहदो वरा तकवाओ तदय्युन में मशहूर ज़माना, मुत्तकियो अबरार, वाक़िफ़े रुमूज़े परवरदिगार, इबादतों मुजाहिदात में बे नज़ीर, इश्के इलाही के असीर थे, मक़ामात बुलंद और करामात अर्जमन्द रखते थे, औलियाए किबार से हैं, अठ्ठावन साल मसनदे सज्जादगी पर मुतमक़्क़िन रहकर रुश्दो हिदायत जारी की दीने इस्लाम की खूब तब्लीग की, कभी किसी से नज़र क़ुबूल नहीं की, खाना बहुत कम खाते थे, ख़ल्वत नशीन ज़ियादा रहते थे, और अक्सर चिल्ला कशी में मशग़ूलो मसरूफ रहते, कई कई रोज़ तक खाने पीने की परवाना करते थे, बाद इंफिराग औरादो वज़ाइफ़ अक्सर चहल कदमी करते थे,
हज़रत मीरां जी मुलहिम शहीद रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार मुबारक की ज़ियारत को जाते तो नग्गे पैर ही जाते थे, हैबतो जलाल का ये आलम था के अज़ीम मशाईखे इज़ाम आप के सामने सर नीचा किए बैठे रहते थे, जब तक आप खुद किसी से मुखातिब न होते कोई शख्स लब कुशाई की जुरअत न करता, हर वक़्त हाजतमन्दों का हुजूम रहता था, जिस तरह हयाते ज़ाहिरी में आप का फैज़ था, इसी तरह बादे वफ़ात भी अल्ताफ़ो करम और फैज़ जारी जारी है।

शबे क़द्र की ज़ियारत

एक मर्तबा हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन मूएताब छोटे सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! रमज़ान करीम की सत्ताईसवीं शब् को अपने मकान की छतपर अनवारे इलाही देखने की गर्ज़ से नमाज़ नवाफिल में मशगूल थे, नीचे दालान में आप की वालिदा दुरूद शरीफ पढ़ रही थीं, अचानक अनवारे इलाही नमूदार हुए, आप की वालिदा नीचे से पुकार कर कहा जिस के देखने के शोक में तुम ऊपर गए हो, आओ देखो वो नीचे दालान में है, ये सुनते ही आप फ़ौरन नीचे आए और अनवारे इलाही की ज़ियारत से मुशर्रफ हो कर वालिदा के कदम चूम लिए।

किताब फवाईदुल वफाइद

सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मन्क़ूल है के: बदायूं! में दो भाई रहा करते थे, एक हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही रहमतुल्लाह अलैह, दूसरे हज़रत शैख़ बदरुद्दीन अबू बक्र मूएताब, हज़रत शैख़ बदरुद्दीन अबू बक्र मूएताब को में ने देखा था, और हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही रहमतुल्लाह अलैह को नहीं देखा ।

सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक

सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक! हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन मूएताब छोटे सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! से अकीदत रखता था, 772/ हिजरी में जब वो बदायूं आया था तो आप के आस्ताने पर हाज़िर हुआ था, तीन गाऊं वक़्फ़ कर के इस का किबाला मौलाना फखरुद्दीन की औलाद को अता कर गया था, इससे पेश तर तीन गाऊं की ज़मीन खिलजी सलातीन ने वक़्फ़ की थी ।

बादशाह अकबर

शहंशाह अकबर भी आप से अकीदत रखता था, इस की रानी औलाद की तमन्ना में एक बार आप के आस्ताने पर हाज़िर हुई थी, यहाँ से बशारत पा कर हज़रत शैख़ सलीम चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंची थी, शहंशाह अकबर ने दरगाह की मरम्मत कराइ थी जिस का कतबा दरगाह के अंदर नसब है।

ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल है, हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन मूएताब छोटे सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे विलायत थे, क़ुतुब साहब! के यहाँ मजलिसे मिलाद समा सुनने को आते थे,
अज़मते औलिया में लिखा है के हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन मूएताब छोटे सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! सौमो सलात नमाज़ रोज़ा के पाबंद थे, खाने पीने की परवरा नहीं करते थे, चिल्ला कशी ज़ियादा करते थे।

इन्तिक़ाले पुरमलाल

22/ रमज़ानुल मुबारक 690/ हिजरी को आप का इन्तिकाल हुआ।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक ईद गाह शम्शी के पीछे एक वसी और शानदार दरगाह के अंदर पुख्ता मौजूद है, ज़िला बदायूं शरीफ में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन
(3) अख़बारूल अखियार
(4) दो सरकारें

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