ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान क़ादरी बरेलवी की ज़िन्दगी

ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान क़ादरी बरेलवी की ज़िन्दगी (पार्ट- 2)

बा शरआ कर बा शरआ रख बा शरआ हम को उठा
हज़रते “ताजुश्शरिया” बा सफा के वास्ते
ऐ खुदा मसलके अहमद रज़ा पे रख सदा
मेरे मुर्शिद सय्यदी अख्तर रज़ा के वास्ते

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

रईसुल उलमा, ताजुल अतकिया,आफ़ताबे शरीअतो तरीकत, शैखुल मुहद्दिसीन, मुफ्तिए वक़्त, मुफक्किर, सिराजुल मुफ़स्सिरीन, फखरुल मुहद्दिसीन, जुब्दतुल आरफीन, इमामुल कामिलीन, मुर्शिदे करीम, सुफीये कामिल, काज़ियुल कुज़्ज़ात फिल हिंद, नबीराए आला हज़रत, वारिसे उलूमे मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! मज़हरे हुज्जतुल इस्लाम, शहज़ादए मुफ़स्सिरे आज़म, जानशीने मुफ्तिए आज़म हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान ताजुश्शरिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! आप सिलसिलए आलिया कादिरिया रज़विया के बियालीसवे इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप अपने वालिद माजिद और अपने नाना जान हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की तमाम खूबियों के जामे थे, आप की शख्सीयत व हक्कानियत इस्लाम की बोलती तवीर थी, बेश्तर गैर मुस्लिम आप के चेहराए मुबारक को देख कर हल्का बगोशे इस्लाम हुए आप के हुस्ने ज़ाहिरी का ये आलम था के एक नज़र में देखने वाला पुकारता उठता के वाकई आप अल्लाह के वली हैं।

बैअतो खिलाफत

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को बचपन ही में हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने बैअत! कर लिया था आप खुद ही लिखते हैं “में बचपन से ही हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह से दाखिले सिलसिला हो गया हूँ” और तकरीबन बीस साल बाद हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने मिलाद शरीफ की महफ़िल में “खिलाफ़तो इजाज़त” भी अता कर दी,
हज़रत मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी लिखते हैं:

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत अल्लामा मौलाना साजिद अली खान रहमतुल्लाह अलैह बरेलवी मोहतमिम दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम, को हुक्म दिया के 15, जनवरी 1962, ईस्वी 8, शाबान 1381, हिजरी को सुबह आठ बजे घर पर महफिले मिलाद शरीफ का इनईकाद किया जाए, मिलाद पढ़ने वाले हज़रात उलमा व मशाइख, और तलबाए मदारिस व फ़ारिगुत तहसील होने वाले तलबा को दावते शिरकत दी जाए, शदीद सर्दी के मौसम के में कई हज़ार लोगों ने मिलाद शरीफ की इस खुसूसी तक़रीब में शिरकत की, महफ़िल मिलाद शरीफ के आखिर में हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए और हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को बुलवाया, अपने करीब बिठाया, दोनों हाथ अपने हाथों में ले कर तमाम सलासिल आलिया कादिरिया, सोहरवर्दिया, नक्शबंदिया, चिश्तिया, और जमी सलासिल अहादीस की इजाज़त व खिलाफत से सरफ़राज़ फ़रमाया: तमाम औराद व वज़ाइफ़, आमाल व अशग़ाल, दलाईलुल खैरात, हिज़्बुल बहर, ताविज़ात वगेरा की इजाज़त मरहमत फ़रमाई,
इस मोके पर हज़रत मुजाहिदे मिल्लत हज़रत अल्लामा हबीबुर रहमान अब्बासी रहमतुल्लाह अलैह रईसे आज़म उड़ीसा, हज़रत बुरहाने मिल्लत मुफ़्ती बुरहानुल हक जबलपुरी, हज़रत अल्लामा मौलाना ख़लीलुर रहमान मुहद्दिसे अमरोहा, हज़रते अल्लामा मुफ़्ती मुश्ताक अहमद निज़ामी इलाहबाद, हज़रत मुफ़्ती नज़ीरूल अकरम नईमी मुरादाबाद, हज़रत अल्लामा मौलाना मुहम्मद हुसैन संभली, हज़रत अल्लामा मौलाना अनवार अहमद शाहजहांन पूरी, शम्सुल उलमा हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ़्ती शम्सुद्दीन जाफरी जौनपुरी, हज़रत अल्लामा कमाल अहमद तुळशीपुरी, हज़रत मौलाना शाबान अली हिब्बानी गोंडवी, सूफी अज़ीज़ अहमद बरेलवी वगेरा जैसे जय्यद उलमा व मशाइख मौजूद थे, सभी हज़रात ने उठ उठ कर यके बाद दीगरे “ताजुश्शरिया” को मुबारक बादियाँ दीं,

15, जनवरी 1962, ईस्वी की बात है के उस मजलिस में हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह से शम्सुल उलमा मुफ़्ती काज़ी शम्सुद्दीन अहमद जाफरी और मुफ़्ती बुरहानुल हक जबलपुर ने दरयाफ्त किया के हज़रत! आप का जानशीन कौन होगा? तो आप ने जवाब दिया के: “जानशीन अपने वक़्त पर ही होगा जिसे होना है और “हज़रत ताजुश्शरिया” के मुतअल्लिक़ फ़रमाया के: इस “ताजुश्शरीया” लड़के से बहुत उम्मीदें व बस्ता हैं,

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने आखरी अय्याम में अपनी जानशिनी के मुतअल्लिक़ एक तहरीर खुद लिखी जिस में हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को अपना जानशीन और काइम मकाम नाम ज़द कर दिया, इस तहरीर का अक्स “सीरते ताजुश्शरिया सफा नंबर 13,” पर है जिस में खुत्बा के बाद सब से पहला जुमला ये लिखा है: “में अख्तर मियां सल्लमहू, को अपना काइम मकाम करता हूँ”

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपनी ज़िन्दगी की कामयाबी व कामरानी के पीछे सब कुछ हज़रत सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह का फैज़ान, और उनकी निगाहें करम का सदक़ा समझते हैं,

ताजुश्शरिया को मारहरा मुक़द्दसा मुतह्हरा से “खिलाफत

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को अपने नाना जान के अलावा मारहरा मुक़द्दसा! से भी खिलाफत! हासिल थी, चुनांचे 14, 15, नवम्बर 1984/ ईसवी को मारहरा मुक़द्दसा मुतह्हरा! में “उर्से क़ासमी” की तक़रीब में हज़रत अहसनुल उलमा मुफ़्ती सय्यद हसन मियां बरकाती रहमतुल्लाह अलैह सज्जादा नशीन खानकाहे बरकातिया मारहरा! ने हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह का इस्तकबाल किया, “काइम मकाम हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द अल्लामा अज़हरी ज़िंदाबाद” के नारे से किया, और मजमा कसीर में उल्मा व मशाइख और फुज़्ला व दानिश्वरों की मौजूदगी में “जानशीने मुफ्तिए आज़म ताजुश्शरिया” को ये कह कर: फ़कीर आस्ताना आलिया कादिरिया बरकातिया नूरिया सज्जादा की हैसियत से काइम मकाम मुफ़्ती आज़म अल्लामा अख्तर रज़ा खान साहब रहमतुल्लाह अलैह को सिलसिलए कादिरिया बरकातिया नूरिया की तमाम “खिलाफ़तो इजाज़त” अता करता हूँ, पूरा मजमा सुनले, तमाम बरकाती भाई सुनलें और ये उल्माए किराम भी जो उर्से क़ासमी मे मौजूद हैं इस बात के गवाह रहें, इस के बाद अहसनुल उलमा हज़रत मुफ़्ती सय्यद हसन मियां बरकाती रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की तसदार बंदी की और नज़र भी पेश की,

हुज़ूर सय्यदुल उलमा अल्लामा शाह सय्यद आले मुस्तफा बरकाती मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! ने जमी तमाम सलासिल की इज़ाज़तों खिलाफत अता फ़रमाई, और ख़लीफ़ए मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! हज़रत अल्लामा मुफ़्ती बुरहानुल हक जबलपुरी रहमतुल्लाह अलैह ने भी तमाम सलासिल और हदीस शरीफ की इजाज़त से नवाज़ा था,

वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहीम रज़ा खान जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह ने भी फ़रज़न्दे अर्ज मंद को क़ब्ले फरागत ही आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! का जानशीन बनाया, और तहरीर भी इनायत फ़रमाई, रेहाने मिल्लत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती रेहान रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह “मोहतमिम दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” अपनी इरादत बैअत! में शाए होने वाले “माह नामा आला हज़रत” में बा उन्वान “कवाइफ़ दारुल उलूम” में तहरीर फरमाते हैं: “वाज़ेह हो के ये तहरीर उस ज़माने की है जब हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द अल्लामा मुफ़्ती इब्राहीम रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह की तबीयत बहुत ज़ियादा अलील थी, और सारे लोगों को ये उम्मीद थी के अब मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द अल्लामा इब्राहिम रज़ा जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह ज़ाहिरी दुनिया से रुखसत हो जाएंगें” बा बझे अलालत ये तवक्को नहीं के अब ज़ियादा ज़िन्दगी हो, इस बिना पर ज़रूरत थी के दूसरा काइम मकाम हो, लिहाज़ा हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को अपना काइम मकाम व जानशीन आला हज़रत! बना दिया गया, जानाशिनी का अमामा बांधा गया और इबा पहनाई गई, ये दस्तार और इबा अहले बनारस की तरफ से थी।

ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन

हर मोमिन बिलख़ुसूस आशिके सादिक की तमन्ना होती है के मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की ज़ियारत से खुद को मुश्शर्रफ करे अल्लाह पाक ने हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को इस शरफ़ से भी नवाज़ा है, आप ने छेह 6, हज किए हैं, पहला हज 1403/ हिजरी मुताबिक़ 4/ सितम्बर 1983/ ईस्वी, दूसरा हज 1405/ हिजरी मुताबिक 1986/ ईस्वी, तीसरा हज 1406/ हिजरी मुताबिक़ 1987/ ईस्वी, चौथा हज 14029/ हिजरी मुताबिक़ 2008/ ईस्वी, पांचवां हज 1430/ हिजरी मुताबिक़ 2009/ ईस्वी, छटा हज 1431/ हिजरी मुताबिक़ 2010/ ईस्वी, में किया, इसके अलावा अनगनित बेशुमार आप ने उमरा किया और मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की हाज़री दी कभी कभी साल में दो चार बार मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा हाज़िर हो जाते थे।

नसबंदी के खिलाफ

इंद्रा गाँधी साबिक वज़ीरे आज़म हिन्द का मिजाज़ आमराना था, उन के दौर इक्तिदार में अवाम पर ज़ुल्मो जब्र किया गया, कॉंग्रेस पार्टी की सारी क़ुव्व्त का इर्तिकाज़ सिर्फ और सिर्फ इंद्रा गाँधी की ज़ात थी, उन्होंने ये सब बिला शिरकत गैर इक्तिदार पर अपनी गिरफ्त काइम रखने के लिए ही किया था, वो सियासी मुख़ालिफ़ीन को बे दर्दी से कुचल देने के लिए सख्त से सख्त अक़दाम करने में भी कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं करती थीं, इंद्रा गाँधी के साथ उन के बेटे संजय गांधी का ताना शाही नज़रिया पसे पुश्त काम कर रहा था, 1975, ईस्वी में पूरे मुल्क में हंगामी हालात का ऐलान कर दिया गया, तमाम शहरियों के बुनियादी हुकूक सल्ब कर लिए गए, रकीबों को कैदे सलासिल में जकड़ कर कैद कर दिया गया, “मीसा” जैसा जाबिर कानून को नाफिज़ुल अमल कर दिया गया, इन तमाम हालात के साथ ही दो से ज़ियादा बच्चा पैदा करने पर सख्ती से पाबंदी आईद कर दी गई, और उन लोगों पर नसबंदी करना ज़रूरी करार दे दिया है, पुलिस अवाम को जबरन पकड़ पकड़ कर नसबंदी करा रहि थी इसी बीच में नसबदि के जवाज़ या अदमे जवाज़ पर शरई नुक़्तए नज़र जानने और अमल करने के लिए “दारुल इफ्ता बरैली” से अवाम ने रुजू करना शुरू कर दिया, दूसरी तरफ देओबंद के दारुल इफ्ता! से कारी मुहम्मद तय्यब मोहतमिम दारुल उलूम देओबंद ने नसबंदी के जाइज़ होने का फतवा दे दिया, मुल्क की हैजानि कैफियत और उम्मते मुस्लिम में इंतिशार को देखते हुए जाबिरो ज़ालिम हुकूमत के खिलाफ ताजदारे अहले सुन्नत हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के हुक्म पर “हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” ने नसबंदी के हराम व नाजाइज़ होने का फतवा सादिर फ़रमाया, इस फतवे पर हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह! के अलावा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती क़ाज़ी अब्दुर रहीम बस्तवी, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती रियाज़ अहमद सीवानी रहमतुल्लाह अलैह के दस्तखत हैं, फतवे की इशाअत के बाद हुकूमत ने इस बात के लिए दबाओ डाला के ये फतवा वापस ले लिया जाए मगर हज़रते मुफ़्ती आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने फतवे से रुजू करने से इंकार कर दिया और नुमाईंदिगाने हुकूमत से साफ़ साफ कह दिया के फतवा क़ुरआनो हदीस की रौशनी में लिखा गया है किसी सूरत में भी वापस नहीं लिया जा सकता।

आप के अलक़ाबात

जानशीने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म ने वैसे तो हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की हयाते ज़ाहिरी में तब्लीगी सफर का आगाज़ कर दिया था मगर बा ज़ाब्ता तौर पर पहला तब्लीगी सफर 1984 ईस्वी हिजरी 1404 में सौराष्ट्र गुजरात का दौरा फ़रमाया, विरावल, पुर बन्दर, जाम जोध पुर, अपलिटा, धोराजी, और जैतपुर होते हुए 15 अगस्त 1984 ईस्वी हिजरी 1404 को अमरेली तशरीफ़ ले गए | वहां हज़ारों लोग दाखिले सिलसिलए आलिया क़ादरिया, बरकातिया, रजविया, हुए रात 12 बजे से 2 बजे तक जानशीने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की तक़रीर हुई और 18 अगस्त को जूना गढ़ में “बज़्मे रज़ा” की जानिब से एक जलसा रज़ा मस्जिद में रखा गया | जिसमे अमीरे शरीअत हाजी नूर मुहम्मद रज़वी मार्फानी ने “ताजुल इस्लाम” का लक़ब दिया| जिसकी ताईद मुफ्तिए गुजरात मौलाना मुफ़्ती अहमद मियां ने की|

फकीहे इस्लाम का लक़ब

जानशीने मुफ्तिए आज़म को सदरुल मुफ्तीन, सनादुल मुहक़्क़िक़ीन और फकीहे इस्लाम का लक़ब 1984 ईस्वी हिजरी 1404 में रामपुर के मशहूर आलिमे दीन हज़रत मौलाना मुफ़्ती सय्यद शाहिद अली रज़वी शैखुल हदीस अल्जामिआतुल इस्लामिया गंज क़दीम रामपुर खलीफा व तिलमीज़ हुज़ूर मुफ्तिए आज़म मौलाना शाह मुस्तफा रज़ा बरेलवी ने दिया|

मुफक्किरे अहले सुन्नत का लक़ब

मुफक्किरे अहले सुन्नत फकीहे आज़म और शैखुल मुहद्दिसीन का लक़ब 14 शव्वालुल मुकर्रम 1405 हिजरी 1985 ईस्वी को मौलाना हकीम मुज़फ्फर अहमद रज़वी, बदायूनी, खलीफा ताजुल उलमा सय्यद औलादे रसूल मुहम्मद मियां मारेहरवी ने दिया | इसके अलावा मसलन ताजुश्शरिया मरजाउल उलमा वल फुज़्ला वगैरह फ़ज़िलतुश शैख़ हज़रत अल्लामा व मौलाना शैख़ मुहम्मद बिन अल्वी मालकी शैखुल हरम मक्का मुअज़्ज़मा, क़ुत्बे मदीना हज़रत अल्लामा व मौलाना शाह ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह खलीफा व शागिर्द आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी जैसे जय्यद अकाबिर उलमा व मशाइख ने अलक़ाबात से नवाज़ा जिसकी एक तवील फेहरिस्त है | शरई काउंसिल ऑफ इंडिया में मुल्क भर से आये जय्यद उल्माए किराम व मुफ्तियाने इज़ाम ने नवम्बर 2005 ईस्वी में “काज़ियुल क़ुज़्ज़ात फिल हिन्द” का लक़ब दिया।

सऊदी मज़ालिम की कैफियत ताजुश्शरिया की ज़बानी

हज़रत ताजुश्शरिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपनी शरीके हयात (पीरानी अम्मा साहिबा) के साथ हज्जो ज़ियारत के लिए तशरीफ़ ले गए थे, अरफ़ात से वापस लौटने के बाद सऊदी हुकूमत ने रात के वक़्त मक्का मुअज़्ज़मा में आप को क़याम गाह से गिरफ्तार कर लिया, बिला वजह 11, दिन तक जेल में रख कर बगैर मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की ज़ियारत कराए हिंदुस्तान भेज दिया, मन्दर्जा ज़ैल सुतूर में हज़रत की ज़बानी पूरी रिपोर्ट पेश है:

मुंबई 13, सितम्बर 1986/ ईस्वी 1407/ हिजरी में मर्चन्ट रोड मीनार मस्जिद के करीब रज़ा अकेडमी मुंबई के ज़ेरे एहतिमाम हज़रत ताजुश्शरिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के मक्का मुअज़्ज़मा में बेजा गिरफ्तारी पर सऊदी हुकूमत के खिलाफ एक शानदार इजलास मुनअकिद हुआ जिस की सदारत मुहद्दिसे कबीर हज़रत अल्लामा मुफ़्ती ज़ियाउल मुस्तफा अमजदी रज़वी मद्दा ज़िल्लाहुल आली! ने फ़रमाई, मुंबई के उलमा अइम्मा मसाजिद, के अलावा बाहर से आए हुए अकाबिर उलमा ने शिरकत फ़रमाई, मजमा तकरीबन पचास हज़ार अफ़राद पर मुश्तमिल था मजमा जोशे एहतिजाज में सऊदी हुकूमत के खिलाफ नारे बुलंद करता रहा, आखिर में हज़रत ताजुश्शरिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने सऊदी हुकूमत में अपनी गिरफ़्तारी और ज़ियारत मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा के बगैर वापस किए जाने से मुतअल्लिक़ अपना ये मुख़्तसर सा बयान दिया,

13, अगस्त 1986/ रात में तीन बजे अचानक सऊदी हुकूमत के सी, आई, डी, और पुलिस के लोग मेरी क़याम गह पर आए और मुझे बेदार कर के पासपोर्ट तलब किया, मेरे साथ मेरी पर्दा नशीन बीवी थीं, में ने उन्हें बाथ रूम में भेज दिया, फिर सी, आई, डी, ने बाथ रूम को बाहर से मुक़फ्फल कर दिया, और वो लोग सिपाहियों के साथ मेरे कमरे में दाखिल हुए, मुझ पर रिवाल्वर के निशाने पर हरकत ना करने की वार्निग दी, मेरे सामान की तलाशी ली, मेरे पास हज़रत अल्लामा मौलाना सय्यद अल्वी मालकी रहमतुल्लाह अलैह की दी हुई चंद किताबें और कुछ किताबें आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की दलाईलुल खैरात थी इन तमाम किताबों को अपने कब्ज़े में लिया मुझ से टेली फोन की डायरी मांगी जो मेरे पास न थी, मेरा, मेरी बीवी का और मेरे साथियों के पासपोर्ट टिकट और किताबें हमराह ले कर मुझे सी, आई, डी, आफिस लाए और यके बाद दीगरे मेरे रुफ्क़ा महबूब और याकूब को भी उठा लाए,

मुझ से रात में रस्मी गुफ्तुगू के बाद पहला सवाल ये किया के आप ने जुमा कहाँ पढ़ा? में ने कहा के में मुसाफिर हूँ मेरे ऊपर जुमा फ़र्ज़ नहीं, लिहाज़ा में ने अपने घर में ज़ोहर पढ़ी, मुझ से पूछा के तुम हरम में नमाज़ नहीं पढ़ते हो? में ने कहा में हरम से दूर रहता हूँ हरम में तवाफ़ के लिए जाता हूँ, इस लिए में हरम में नमाज़ नहीं पढ़ सकता मुझ से कहा के आप क्यों अपने मोहल्ले की मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ते? में ने कहा के बहुत से लोग हैं जिन्हें में देखता हूँ के वो मोहल्ला की मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ते तो मुझ से ही क्यों बाज़ पुर्स करते हैं, मुझ से फिर भी इसरार किया गया तो में ने कहा के मेरे मज़हब में और आप लोगों के मज़हब में इख्तिलाफ है, आप हंबली कहलाते हैं और में हनफ़ी हूँ, और हनफ़ी मुक्तदी की रियायत गैर हनफ़ी इमाम अगर ना करे तो हनफ़ी की नमाज़ सही नहीं होगी, इस वजह से में नमाज़ अलैहदा पढता हूँ, मुझ से हज़रत अल्लामा सय्यद अल्वी मालकी रहमतुल्लाह अलैह की किताबों के मुतअल्लिक़ पूछा के ये तुम्हें कैसे मिलें? में ने कहा के ये किताबें मुझे उन्होंने ने चंद रोज़ पहले दी हैं, जब में उन से मिलने गया था, मुझ से सवाल किया के ये पहली मुलाकात थी, में ने कहा हाँ! ये पहली मुलाकात थी, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! की चंद किताबें देख कर जो नात और मसाइल हज के मुतअल्लिक़ थीं पूछा उन से तुम्हारा किया रिश्ता है? में ने कहा के वो मेरे दादा थे,
इस मुख़्तसर सी इन्कोव्वारी के बाद मुझे रात गुज़र जाने के बाद फजर के वक़्त जेल भेज दिया गया, दस बजे फिर इसी आई, डी, से गुफ्तुगू हुई, उस ने मुझ से पूछा के हिंदुस्तान में कितने फिरके हैं, शीआ कादियानी, वगेरा चंद फिरके गिनाए और मेने वाज़ेह किया के इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने कादियानियों का रद्द किया है, और उस के रद्द में छेह रिसाले वगेरा लिखें हैं, हम पर कुछ लोग तुहमत लगाते हैं, और आप को ये बताया है के हम कादियानी एक हैं, ये गलत है, और वही लोग हमे “बरेलवी” कहते हैं जिससे ये वहम होता है के “बरेलवी” किसी नए मज़हब का नाम है ऐसा नहीं है बल्कि हम “अहले सुन्नत व जमात” हैं,

सी, आई, डी, के पूछने पर में ने बताया के इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह ने किसी नए मज़हब की बुनियाद नहीं डाली बल्के उनका मज़हब वही था जो हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा व ताबईन और हर ज़माने के सालिहीन का मज़हब है, और ये के हम अपने आप को “अहले सुन्नत व जमात” कहिलवाना ही पसंद करते हैं और हमे इस मकसद से “बरेलवी” कहना के किसी नए मज़हब के पेरू हैं, हम पर बुहतान है सी, आई, डी, के पूछने पर में ने “वहाबी” और सुन्नी” का फर्क मुख़्तसर तौर पर वाज़ेह किया, में ने कहा के हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इल्मे ग़ैब, और उनकी शफ़ाअत, और उन से तवस्सुल, और इस्तिमदाद और उन्हें पुकार ने के मुनकिर हैं और इन उमूर को शिर्क बताते हैं जब के हमारा ये अक़ीदा है के हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से तवस्सुल जाइज़ है, और उन्हें पुकारना भी और ये के वो सुनते भी हैं और अल्लाह पाक के बताये से ग़ैब को भी जानते हैं, और अल्लाह पाक ने उनको शफ़ाअत का मनसब अता फ़रमाया, और इल्मे ग़ैब पर, सी, आई, डी, के पूछने पर आयाते कुरआन से में ने दलीलें काइम कीं और ये साबित किया के नुबुव्वत इत्तिला अलल ग़ैब ही का नाम है, और नबी वही है जो अल्लाह के बताने से इल्मे ग़ैब की ख़बरें दे, और ये के नबी के वास्ते से हर मोमिन ग़ैब जन्नत है जैसा के कुरआन मुकद्द्स में मन्सूस है सी, आई, डी, के पूछने पर में ने कहा के हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बाद विसाल भी ग़ैब की खबर है इस लिए के हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नुबुव्वत बाकी है और नुबुव्वत ग़ैब जानने ही को कहते हैं फिर ये के आयतों में ऐसी कैद नहीं है जिससे ज़ाहिर है के बाद विसाल हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमइल्मे ग़ैब नहीं जानते,

एक और नशिश्त में सी, आई, डी, के पूछने पर में ने तवस्सुल की दलील में वबतगू इलइही वसीला! आयात पढ़ी और ये बताया के ची हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से तवस्सुल मिनजुमला आमाले सालिहा है, और ये के किसी अमल का सालेह होना और वसीला होना इस शर्त पर मोकूफ है के वो मकबूल हो, सरकारे दो आलम हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बिला शुबह मकबूल बारगाहे उलूहियत हैं, बल्के सय्यदुल मक़बूलीन हैं, तो उन से तवस्सुल बदर्जा ओला जाइज़ है और तवस्सुल शिर्क नहीं,

सी, आई, डी, के कहने पर में ने मज़ीद कहा के किसी से इस तौर पर मदद माँगना के अल्लाह के सिवा उस को मुस्तकिल और फ़ाइल समझे शिर्क है और हम इस तौर पर किसी से मदद मांगने के काइल नहीं हैं, हाँ अल्लाह की मदद का वसीला जान कर किसी मकबूल बारगाह से मदद मांगना हर गिज़ शिर्क नहीं सी, आई, डी, के एक सवाल के जवाब में कहा के हम में और वहाबियों में ये फर्क है के वो हमे तवस्सुल वगेरा उमूर की बिना पर काफिरो मुशरिक बताते हैं, लेकिन हम उन को महिज़ इस बिना पर काफिरो मुशरिक नहीं कहते (यानि इस के वुजूहात और हैं)

दूसरे दिन मेरे इन बयानात की रौशनी में सी, आई, डी, ने मेरे लिए एक इकरार नामा उसने खुद लिखकर मुझे सुनाया जो यूं था “में फुला इब्ने फुला बरेलवी मज़हब का मुती फर्माबरदार हूँ” में ने एतिराज़ किया के में बारहा काह चुका हूँ के बरेलवी कोई मज़हब नहीं है और अगर कोई नया मज़हब बा नामे बरेलवी है तो में उससे बरी हूँ, आगे इकरार नामा में उसने यूं लिखा के इमाम अहमद रज़ा का पैरो हूँ और बरेलवी में से एक हूँ, और हमारा अक़ीदा है के हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से तवस्सुल और इस्तिगासा और उनको पुकारना जाइज़ है, और हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ग़ैब जानते हैं और वहाबी इन उमूर को शिर्क बताते हैं और ये के में उन के पीछे इस वजह से नमाज़ नहीं पढता हूँ हम सुन्नियों को मुशरिक बताते हैं, इकरार नामा के आखिर में मेरे मुतालबा पर उसने इज़ाफ़ा किया के “बरेलवीयत” कोई नया मज़हब नहीं है, और हम लोग अपने आप को “अहले सुन्नत व जमात” कहिलवाना ही पसंद करते हैं, फिर मुख्तलिफ नशिश्तों में बार बार व्ही सवालात दुहराए बाद में मुझ से मेरे सफर लंदन के बारे में पूछा और कहा के क्या वहां आप ने किसी कॉन्फरेंस में शिरकत की है में ने जवाब दिया के कॉन्फरेंस, हुकूमत के पैमाने और सियासी सतह पर होती है हम लोग ना सियासी हैं ना किसी हुकूमत से हमारा राब्ता है, सी आई डी, के पूछने पर में ने बताया के लंदन के इस इजलास में जिस में में शरीक था, बनाम बरैलवीयत मसाइल पर मुबाहिसा ना हुआ, बल्के इत्तिहादे इस्लाम और तंजीमुल मुस्लिमीन पर तकारीर हुईं ,और इस जैसे का खर्च वहां के सुन्नी मुसलमानो ने उठाया और उस में ये मुतालबा किया गया के इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के पेरू अहले सुन्नत व जमात को “राब्ताए आलम इस्लामी” में नुमाईंदिगी दी जाए जिस तरह “नदवीयों” वगेरा को राब्ता में नुमाईंदिगी हासिल है,

सी, आई, डी, के पूछने पर में ने बताया के ये तजवीज़ बिल इत्तिफाक राय पास हो गई थी, तीसरी नशिश्त में जब दो नशिश्तों की तफ्तीश खत्म हो चुकी और मेरा इकरार नामा खुद तय्यर कर चुके, तो मुझ से एक बड़े सी, आई, डी, ऑफिसर ने कहा के में आप का आप के इल्म, उम्र और शख्सीयत की वजह से एहतिराम करता हूँ, और आप से मख़सूस औकात में दुआओं का तालिब हूँ, गिरफ्तारी का सबब मेरे पूछने पर उसने बताया के आप का केस मामूली है, वरना इस वक़्त जब सिपाही हथकड़ी डाल कर आप को लाया था, में आप की हथकड़ी ना खुलवाता,

मुख्तसर ये के मुसलसल सवालात के बावजूद मेरा जुर्म मेरे बार बार पूछने के बाद भी मुझे न बताया, बल्के यही कहते रहे के मेरा मुआमला अहमियत नहीं रखता, लेकिन इस के बावजूद मेरी रिहाई में ताख़ीर की और बगैर इज़हारे जुर्म से मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की हाज़री से मोकूफ रखा, और ग्यारा 11, दिनों के बाद जब मुझे जद्दा रवाना किया गया तो मेरे हाथों में जद्दा ईयर पोर्ट तक हथकड़ी पहनाए रखी, और रास्ता में नमाज़े ज़ोहर के लिए मौका भी न दिया गया इस वजह से मेरी नमाज़ ज़ोहर क़ज़ा हो गई।

बैनुल अक्वामि एहतिजाजी मुज़ाहिरा

सितम्बर 1986/ ईसवी मुताबिक 1407/ हिजरी में दौरान हज हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को हुकूमत सऊदी अरब ने मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में बिला जुर्म सिर्फ गलबए नजदीयत की खातिर गिरफ्तार कर के ग्यारा 11, दिन तक कैदो बंद में रखा, और मज़ीद सितम ये के उन्हें दयारे हबीब हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हाज़री से भी महरूम कर दिया, लेकिन हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपने मौक़िफ़ और मसलक पर कायम रहे और उनके पाए सिबात में लग़्ज़िश नहीं आई,
आप की गिरफ्तारी से आलमे इस्लाम में गम व गुस्से की एक लहर दौड़ गई थी, और ना सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि बैरूने हिन्द बेश्तर इस्लामी और गैर इस्लामी ममालिक में सवादे आज़म अहले सुन्नत के एहतिजाजात का लम्बा सिलसिला शुरू हो गया, अखबारात व रसाइल ने भी हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की इस बेजा गिरफ्तारी की मज़म्मत की, वल्ड इस्लामिक मिशन बर्तानिया, रज़ा अकेडमी मुंबई, सुन्नी जमीअतुल उल्माए इस्लाम पाकिस्तान, और छोटी बड़ी अंजुमनों व जमातों ने ज़बरदस्त एहतिजाजी मुज़ाहिरे पूरे बर्रे सगीर में किए, और हुकूमते सऊदिया से मुआफी का मुतालबा किया।

शाह फ़ाहिद, शहज़ादा अब्दुल्लाह और तुर्की बिन अब्दुल अज़ीज़ से मुलाकात

हज़रत ताजुश्शरिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की गिरफ्तारी के रद्दे अमल में शहज़ादा अब्दुल्लाह मौजूद बादशाह और तुर्की बिन अब्दुल अज़ीज़ वज़ीरे ममलिकत से तवील मुलाकातें कीं, जिन में हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अर्शदुल कादरी, हज़रत अल्लामा मौलाना शाह अहमद नूरी, हज़रत मौलाना सय्यद गुलाम सय्यदैन, हज़रत अल्लामा शाहिद रज़ा नईमी, हज़रत शाह मुहम्मद जिलानी सिद्दीकी, हज़रत मौलाना यूनुस कश्मीरी, हज़रत मौलाना अब्दुल वहाब सिद्दीकी, और शाह फ़रीदुल हक और दीगर उल्माए अहले सुन्नत ने हुक्मराने सऊदिया को पुर ज़ोर अंदाज़ में गिरफ्तारी पर एहतिजाज दर्ज कराया, और हरमैन शरीफ़ैन में हर मसलक के लोगों को अपने अक़ीदे के मुताबिक नमाज़ पढ़ने और दीगर अरकान के करने पर मुतालबा किया, जिस पर इन सरबरहाने ममलिकत ने फ़ौरन मंज़ूर कर लिया और उम्मते मुस्लिम के लिए सऊदी हुकूमत ने एक ऐलानिया जारी किया के:

हरमैन शरीफ़ैन में हर मसलक व मज़ाहिब के लोग अब आज़ादाना अपने तौर तरीकों से इबादत करेंगें, कंज़ुल ईमान पर पाबंदी मेरे हुक्म से नहीं लगाईं है, मुझे इस का इल्म भी नहीं है, अब मिलाद की महफ़िल आज़ादाना तरीके पर होंगी, किसी पर मुसल्लत नहीं किया जाएगा, सुन्नी हुज्जाज किराम के साथ कोई ज़ियादती नहीं होगी,

बिला आखिर कुर्बानी रंग लाइ अहले सुन्नत के एहतिजाजात ने हुकूमत सऊदिया को ये सोचने पर मजबूर कर दिया, और लंदन में सऊदी फ़रमा रवा शाह फहद बिन अब्दुल अज़ीज़ को ये ऐलान करना पड़ा के “हर मैन शरीफ़ैन में हर मसलक के लोगों को उन के तरीके पर इबादात करने की आज़ादी होगी, अरकान वल्ड इस्लामिक मिशन बर्तानिया ने लंदन में शाह फहद और उन के भाई प्रिंस तुर्की इब्ने अब्दुल अज़ीज़ शहज़ादा अब्दुल्लाह से मुलाकात कर के इख़्तिलाफ़ी मसाइल पर मज़ाकिराह के सिलसिले में गुफ्तुगू की, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अर्शदुल कादरी रहमतुल्लाह अलैह ने सऊदी सफीर को बाज़बान अरबी एक मेमरण्डम भी दिया, 21, मई 1987/ ईसवी मुताबिक 1407/ हिजरी, को सऊदी सिफारत खाना दिल्ली से हज़रत ताजुश्शरिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के दौलत कदे पर एक फोन आया और खुद सफीरे सऊदिया बराए हिंदुस्तान मिस्टर फवाद सादिक मुफ़्ती ने आप को ये खबर दी के: हुकूमत सऊदी अरब ने आप को ज़ियारते मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा और उमराह के लिए एक माह का खुसूसी वीज़ा दिया है, और हम आप से गुज़िश्ता मुआमलात में माज़रत ख्व्वाह हैं,
हज़रत ताजुश्शरिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी 24, मई 1987/ ईसवी मुताबिक 1407/ हिजरी, को सऊदी फिलाइट से वाया जद्दा मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा पहुंचे, सऊदी सिफारत खाना ने आप की आमद की इत्तिला टीलेक्स जद्दा और मदीना शरीफ हवाई अड्डों पर दे दी थी, सऊदी सफीर मिस्टर फवाद सादिक मुफ़्ती ने इस मुआमले में काफी दिल चस्पी ली, हज़रत ताजुश्शरिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी उमराह और मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की ज़ियारत से मुशर्रफ हो कर सऊदी में सोला रोज़ क़याम के बाद वतन वापस आए, दिल्ली हवाई अड्डाः और बरैली जक्शन पर हज़रों अकीदत मंदों और मुरीदों ने पुर जोश इस्तकबाल किया और खेर मकदम किया।

अकीदत औलियाए किराम

अल्लाह वाले महबूबे इलाही से बड़ी अक़ीदतो मुहब्बत रखते हैं, उनका अदब करते हैं, उन की बारगाह में हाज़रियाँ देते हैं, उन के वसीले से दुआएं मांगते हैं, उन की रवीश को अपनाते हैं, उन का ज़माने भर में खत्बा पढ़ते हैं, उन के दरसे वाबस्तगी डीनो दुनिया के लिए कामयाबी का जरिया समझते हैं, गरज़ के एक अल्लाह वाले को अल्लाह वाले से बड़ी उनसीयत होती है, अक़ीदतों मुहब्बत रही है, हज़रत ताजुश्शरिया वली इब्ने वली, वली इब्ने वली हैं, के उन्हें देखने से खुदा याद आता है लिहाज़ा उन के अंदर औलियाए किराम की, मशाइखे इज़ाम, उल्माए ज़विल एहतिराम के मज़ारात पर हाज़री दी है, बरैली शरीफ, में सिटी कब्रिस्तान में आराम फ़रमा खानवादा रज़विया के अफ़राद बिलख़ुसूस इमामुल उलमा हज़रत अल्लामा रज़ा अली, रईसुल मुताकल्लिमीन हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नक़ी अली खान, उस्ताज़े ज़मन हज़रत अल्लामा हसन रज़ा, दरगाहे आला हज़रत, दरगाह शाह दाना वली, दरगाह सदरुल उलमा अल्लामा मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन में जब भी मौका मिलता है हाज़री दिया करते हैं,

बदायूं शरीफ! में हज़रत ख्वाजा शैख़ हसन शाही, व हज़रत ख्वाजा अबू बक्र बदरुद्दीन मूयेताब उर्फ़ छोटे बड़े सरकार, सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया बदायूनी सुम्मा देहलवी, के वालिद माजिद हज़रत सय्यद अहमद बुखारी, मारहरा मुक़द्दसा के बुज़ुर्गाने दीन, बिलगीराम शरीफ के बुज़ुर्गाने दीन, सादाते किराम कालपी शरीफ,, सद रुश्शरिया अमजद अली, हज़रत हाफिज़े मिल्लत, बिलख़ुसूस क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी!, मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया बदायूनी सुम्मा देहलवी, बुज़ुर्गाने देहली! बुज़ुर्गाने मुंबई बुज़ुर्गाने अहमद आबाद, सय्यदना रिज़्क़ुल्लाह शाह दाता!

रेफरेन्स हवाला

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