हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा खान उर्फ़ जिलानी मियां की ज़िन्दगी

हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा खान उर्फ़ जिलानी मियां की ज़िन्दगी

बहरे जिलानी मियां जो परतवे फारूक थे
इम्तियाज़े हक्को बातिल दे गदा के वास्ते

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश मुबारक 10, रबीउल आखिर 1325, हिजरी मुताबिक 1907, ईस्वी यूपी में मशहूर ज़िला बरैली शरीफ मोहल्ला सौदागिरान में हुई, सुन्नत के मुताबिक दोनों कानो में अज़ान व इक़ामत कही गई और आप के दादा इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने छोहारा चबा कर तालू और ज़बान में मिला दिया और आप के मंझले दादा उस्ताज़े ज़मन शहंशाहे मुतग़ाज़्ज़ीलीन (ग़ज़ल, कहना, पढ़ना) हज़रत हसन रज़ा खान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी खबर पा कर उछल पड़े और बेसाख्ता आप की ज़बान मुबारक से ये मिश्रा निकला जो माद्दाए तारीखे विलादत करार पाया, “इल्मो उमर इकबालो ताले दे खुदा”

आप अक़ीक़ा

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने आप का अक़ीक़ा शहाना तौर पर एहतिमाम फ़रमाया, अज़ीज़ो अक़रबा अहिब्बा के अलावा दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! के सभी तलबा को आम दावत दी मतबख़ (बावर्ची) को इस बात की हिदायत फ़रमादि के जिन ममालिक या सूबा जात के तलबा दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! में हैं उन सब की ख्वाइश के मुताबिक़ खाना मिलाना चाहिए, चुनांचे अफ्रीकियों के लिए अफ़्रीकी तर्ज़ का खाना तय्यर किया गया और हिन्दुस्तानियों के लिए हिंदुस्तानी तर्ज़ का फिर काबुल वालों के लिए बड़ी बड़ी चपातियों और भुने गोश्त का एहतिमाम हुआ, तो बिहारियों यूपी वाले तलबा के लिए पुलाओ ज़र्दा और कोरमा, इस तरह बंगाली तलबा के लिए बदायूनी चावल का भात और मछली का इंतिज़ाम किया गया, गोया के अपनी नौईयत की ये बेमिसाल दावत! थी, जिस का एहतिमाम आप की विलादत पर मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने बा नफ़्से नफीस खुद फ़रमाया था।

इस्म शरीफ “नाम”

आप का अक़ीक़ा का नाम “मुहम्मद” रखा गया, गालिबन ये खुद मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने रखा, आप के वालिद माजिद हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! ने दीने हनीफ की तरफ निस्बत करते हुए आप का नाम “इब्राहीम रज़ा” तजवीज़ फ़रमाया, आप की दादी मुहतरमा ने पुकारने का नाम उर्फ़ “जिलानी मियां” रखा और आप का लक़ब “मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द” करार पाया।

आप की तालीमों तरबीयत

खानदान के दस्तूर के मुताबिक जब आप की उमर शरीफ चार साल, चार महीने, चार दिन, की हुई तो 14, शाबानुल मुअज़्ज़म बरोज़ चार शंबा (बुद्ध) 1329, हिजरी मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने ख़ानदान व शहर के मुअज़्ज़ बुज़ुरगों की मौजूदगी में आप की बिस्मिल्लाह ख्वानी! कराइ और तमाम हाज़रीन में शिरीनी तकसीम हुई, इस के बाद इस अपनी वालिदा मुकर्रमा मुअज़्ज़मह से “कुरआन शरीफ” नाज़रा और उर्दू की इब्तिदाई किताबें आप ने पढ़लीं,

दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम में तालीम हासिल करना

जब आप की उमर शरीफ सात साल की हुई तो आप “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” के असातिज़ाए किराम के हवाले कर दिए गए, काफिया, कुदूरि, फुसुले अकबरी, आप ने हज़रत मौलाना एहसान अली साहब मुहद्दिसे फैज़पुरी बिहारी से पढ़ीं, अरबी अदब और मिश्कात शरीफ, खुद हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने पढ़ाई, क़ुतुब मुतादाविला इल्मे हदीस व फ़िक़्ह की तकमील हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सरदार अहमद मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान से फ़रमाई, सेहा सित्ता! की बाज़ किताबें और इल्मे कलाम “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” के दीगर असातिज़ाए किराम से पढ़ीं, यहाँ तक के मुसलसल बाराह 12, साल तक “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” के नामवर काबिल असातिज़ाए किराम से उलूमो फुनून हासिल फरमाते रहे, जब उमर शरीफ उन्नीस साल चार माह की हो गई, तो 1344, हिजरी के जलसाए दस्तार फ़ज़ीलत में हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने मुअज़्ज़ असातीने इस्लाम की मौजूदगी में आप के सर पर “फ़ज़ीलत” की दस्तार रखी गई और अपनी नियाबत व खिलाफत से बहरा वर फ़रमाया, यहाँ तक के इल्मो फ़ज़्ल, ज़ुहदो तक्वा, खशीयत व मारफअत ने परवान चढ़ाया,

आप के मुतअल्लिक़ मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने इरशाद फ़रमाया था के: “एक वक़्त आएगा मेरा! ये बेटा वहाबियों देओबन्दियों की मुखालिफत में वो करेगा के सब से बढ़ जाएगा”।

अक़्द शरीफ “निकाह”

अय्यामे तिफ्ली (बचपन) में एक दिन मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के आगोश में आप और फकीहे अजल हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की बड़ी साहबज़ादी दोनों खेल रहे थे और मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! बाग़ बाग़ हो रहे थे इसी साअत सईद में अपने दोनों नामवर सबज़ादों को तलब फ़रमाया और दोनों कम सिन पोता पोती के दरमियान निकाह! कर दिया, फिर फरागत इल्मी जब आप की तालीम पूरी हो गई तो सुन्नते नबवी के मुताबिक रुखसती हुई।

आप अख़लाक़ो सीरत

आप अपने सूफ़ियाए किराम के कामिल नमूना और अखलाफ के लिए मशअले राहे मुक्तदा थे, क्यों के आप ने अपनी ज़िन्दगी को उस मुकद्द्स सांचे में ढाला था जिस में ढल जाने के बाद मरदे मोमिन पीरे कारवां बन जाता है जिस की अदाएं अहले दुनिया को दावते इस्लाह व फलाह दिया करती हैं, और जिसकी आदत भी इत्तिबाए हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! में रूहे इबादत बन जाती है, आप की आदते करीमा थी के ग़ुस्ल करने के बाद सर और दाढ़ी के बालों में हल्का तेल लगा कर कंगा फ़रमाया करते थे, और अगर सफर या दीनी मशग़ूलियत की वजह से ग़ुस्ल करने का मौका नहीं मिलता तो हर एक दिन या दो दिन के बाद कंगा करते और फरमाते थे ये सुन्नते रसूल ज़रूर है मगर बे ज़रूरत व हाजत फ़ुज़ूल है,

आम इस्तेमाल लिबास में ढीला ढाला पंजाबी कुरता जिस की आस्तीन पहुचों से नीचे होती, कभी कभी मामूली बादामी रंग और चिकन में भी इस्तेमाल करते मगर अक्सर सफ़ेद कुरता पहिनते और फरहत व ख़ुशी का इज़हार करते, खाने में रोटी भुना गोश्त, कद्दू, भिंडी, गोभी, और साग ज़ियादा पसंद करते थे, जब कोई इत्र पेश करता तो फरमाते अंग्रेजी सेंट तो नहीं है, अगर वो शख्स नफ़ी में जवाब देता तो बढ़ कर इत्र लगा लेते, हथेलिओं से मलकर सीने और बगल में लगाते, इत्र मलते वक़्त दुरूदे पाक की कसरत किया करते थे, दाएं करवट सोने का ख़ास एहतिमाम फरमाते, कभी कभी पाऊं रख कर चित भी सो जाया करते, सोने में खर्राटे की हल्की सी आवाज़ होती, तकिया होने के बावजूद दायां बाज़ू सर के नीचे रख कर सोया करते अगर किसी को औंधे मुँह सोया हुआ देखते तो सख्त नफरत का इज़हार फरमाते।

इजाज़तो खिलाफत

एक दिन हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह अपने मदरसे में फरमाने लगे के जब (मौलाना हुज्जतुल इस्लाम) का इन्तिकाल हुआ तो जिलानी मियां यहाँ नहीं थे, जब वापस आए तो लोगों को उन की खिलाफत पर एतिराज़ हुआ तो में ने कहा: अगर मौलाना की दी हुई खिलाफत पर एतिराज़ है तो में ने इन को अपनी खिलाफत दी, अब लोगों को एतिराज़ नहीं होना चहिए, मेरी इस हिमायत की वजह से बहुत से लोग इन की मुखालिफत से बाज़ आए और मदरसा इन के हवाले कर दिया गया।

ज़ियारते हरमैन तय्येबैन

1372, हिजरी में आप ज़ियारते हरमैन तय्येबैन से मुशर्रफ हुए मक्का मुकर्रमा हरम शरीफ के उलमा व मशाईखे इज़ाम ने अहादीसे करीमा व औराद मुख्तलिफ ख़ुसूसन दलाईलुल खैरात शरीफ और हिज़्बुल बहर शरीफ की इजाज़त मरहमत फ़रमाई और निस्बते आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की वजह से खूब खूब आप का इस्तकबाल किया।

शैखुल अरब अल्लामा ज़ियुद्द्दीन मदनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

1372, हिजरी में जब आप हज के लिए मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा तशरीफ़ ले गए, मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में क़याम के दौरान हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह सुबह शाम बारगाहे सरकारे दो आलम हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में देर तक हाज़िर रहते, एक दिन फजर की नमाज़ के बाद से नो बजे दिन तक रोज़ाए मुकद्द्स के सामने मोअद्दब खड़े हो कर सलातो सलाम पेश कर रहे थे के दिल में ये ख्याल पैदा हुआ: काश क़ुत्बे मदीना मौलाना ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात होती कसबे फैज़ का मौका मिलता, ये ख़याल दिल में आना था के आधे घंटे के बाद हज़रत क़ुत्बे मदीना मौलाना ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप के शानो पर हाथ रखा, जिससे चौंक पड़े, सलाम व मुआनिका हुआ फिर बारगाहे अक़दस में दोनों ने हदियाए सलाम पेश किया फिर मस्जिदे नबवी शरीफ से बाहर तशरीफ़ लाए हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह ने क़ुत्बे मदीना मौलाना ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी रहमतुल्लाह अलैह से दरयाफ्त फ़रमाया: ख़िलाफ़े मामूल दस बजे दिन आप की हाज़री यहाँ क्यों कर हुई जब के ये वक़्त आप के आराम का है हज़रत क़ुत्बे मदीना ने फ़रमाया:

हाँ में आराम करने की तय्यारी कर रहा था के फ़ौरन हाज़री के लिए दिल बे करार हो गया चुनांचे हाज़री दरबार का लिबास तब्दील किया और हाज़िर हो गया, तो सब से पहली मेरी निगाह आप पर पड़ी, में ने सोचा के आप के साथ में सलाम पेश करूँ, जवाब सुन कर हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह ने अपने इरादा कलबी का इज़हार फ़रमाया: हज़रत बी फ़ज़्लीही तआला आप इस वक़्त क़ुत्बे मदीना! हैं आप से लुत्फ़ो करम का साइल हूँ, हज़रत क़ुत्बे मदीना मौलाना ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: हुज़ूर ये सब कुछ आप ही की बारगाह से अता हुआ है, आप के जद्दे अमजद मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने जो कुछ मुझे अता फ़रमाया है वो सब आप को सोंपता हूँ के आप इस के सही अहिल हैं, इस के बाद दोनों हज़रात “कशानाए ज़िया” बाबे मजीदी! में तशरीफ़ लाए।

आप की सियासी बसीरत

हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपने आबाओ अजदाद के नक़्शे कदम पर रहकर मुसलमानो की सच्ची रहनुमाई फ़रमाई इस वाकिए का बयान इस तरह आप की हयात में मज़कूर है: हिंदुस्तान में हर तरफ अफरातफरी फैली हुई थी, अंग्रेज़ों की दहशत गर्दी की गरम बाज़ारी थी, लोग जेलों में ठूंसे जा रहे थे रियाया लरज़ां व तरसां थीं लेकिन आप इस हमाहमि से बे नियाज़ और सियासीयात से बहुत दूर थे लेकिन लीडरान कोमो मुल्क ने आप पर डोरे डाले और किसी तरह सियासियात में खींच लाए अंग्रेज़ों की शिद्दत से मुखालिफत शुरू फ़रमाई, सिविल नाफ़रमानियों की राहें हमवार कीं, लोगों के दुःख दर्द में काम आने लगे 1946, ईस्वी में आप को गिरफ्तार करने की बेहद कोशिश की मगर कोई तदबीर कारगर ना हुई ओर आप महफूज़ रहे, बिला आखिर 1947, ईस्वी का तारीखी इनखिला (किसी जगह को खाली कर के हट जाना) शुरू हुआ, जंगे आज़ादी के मुजाहिदीन से आप को हमदर्दी हो गई और शबो रोज़ इसी में मुंहमिक रहने लगे अंग्रेज़ों के भाग जाने के बाद जब ज़ुलम बर्बरियत का बाज़ार गर्म हुआ तो बहुत से बरैली के मुस्लिम बाशिंदे भी शहर को खेर बाद कह गए, लेकिन आप साबित कदम रहे मौजूदा हुक्म रान जमात ने उहदों का लालच दिया मगर आप ने क़ुबूल नहीं किया।

हिंदुस्तान ग़ीर सियाहत

मदरसों का तालीमी निज़ाम बड़ी हद तक सुधर चुका था, दीगर असातिज़ाए किराम के अलावा हज़रत मौलाना एहसान अली साहब क़िबला, हज़रत मौलाना मुहम्मद अहमद अल मदऊ जहांगीर साहब, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद अफ़ज़ल हुसैन मूंगिरि रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, और खुद आप निहायत मेहनत व मुहब्बत और जांफशनी से तदरीसी खिदमात अंजाम दे रहे थे, थोड़े ही दिनों में पूरे हिंदुस्तान के अंदर आप के ज़ुहदो तक्वा और ज़ोरे खिताबत का चर्चा होने लगा बड़े बड़े जलसों व जुलूस और कोंफीरेंसों में सदारत व क़ियादत के लिए बुलाए जाने लगे, कलकत्ता, मुंबई, यूपी, बिहार पंजाब, गुजरात, और राजिस्थान जहाँ जहाँ आप गए इल्मो अमल व वकारे रज़वियत का सिक्का बिठा दिया आप की इस हिंदुस्तान ग़ीर सियाहत की वजह से “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” को बहुत फायदा पंहुचा और माली एतिबार से भी इस की जाबों हाली दूर होने लगी, तकरीबन दो सौ बेरूनी तलबा ने “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में दाखिला लिया और हुज्जतुल इस्लाम का दौर दोबारा लोट आया, यहाँ तक के मज़कूरा शहरों के अलावा मुज़फ्फर पुर, सीतामढ़ी, तिराइ नेपाल, में भी सिलसिले का काफी फरोग हुआ और सिलसिलाये कदीरिया रज़विया का सिक्का बिठाया।

दरसो तदरीस

आप एक कामयाब मुदर्रिस भी थे, चुनांचे आप का मामूल था के फजर की नमाज़ के बाद थोड़ी देर औरादो वजाइफ में मशगूल रहते, इस के बाद नाश्ता करते और दरस गाह में चले जाते, अक्सर सलातो सलाम के तराना से क़ब्ल “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में आ जाते और वालिहाना अंदाज़ में लड़कों के साथ तराना सलातो सलाम में शरीक होते, इख्तिमाम सलाम पर निहायत इखलास व गिरियाओ ज़ारी के साथ दुआ फरमाते, फिर अपनी दरस गाह में आ जाते मुस्लिम शरीफ, तिर्मिज़ी शरीफ, मिश्कात शरीफ, और किताबुत तौहीद बहुत ही इंशराह सदर और मुनाज़राना ढंग से पढ़ाते थे, मुस्लिम शरीफ, शिफा शरीफ, पढ़ाते वक़्त उमूमन आप पर वज्दानी कैफियत तारी रहती और कभी कभी तो वारफता हो जाते, कभी कभी आप मुतावस्सितात भी बहुत ज़ोको शोक से पढ़ाते थे शाफिया ला इब्ने हाजिब! और काफिया तो ऐसा पढ़ाते के नहो कि! मुतादाविला क़ुतुब से तलबा को यकसर बे नियाज़ कर देते, अरबी अदब पढ़ाते वक़्त अरबी ज़बान ही में गुफ्तुगू फरमाते और तलबा को भी मजबूर करते के वो अरबी ही में हर किस्म की बातें करें।

आप के मशाहीर तलामिज़ाह (शागिर्द)

  1. हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद आरिफ रज़वी नानपारा यूपी,
  2. हज़रत मौलाना मज़हर हसन कादरी रज़वी बदायूनी,
  3. हज़रत मौलाना अब्दुर रहमान पुरनिया बिहार,
  4. हज़रत मुफ़्ती अब्दुल वाजिद कादरी होलेंड,
  5. हज़रत मौलाना मुहम्मद दाऊद मुज़फ्फर पुर,
  6. हज़रत मौलाना हाफ़िज़ राहत अली नानपारा,
  7. हज़रत मौलाना जर्रार कुंदरकी मुरादाबाद,
  8. हज़रत मौलाना बरकतुल्लाह रज़वी नानपारा यूपी,
  9. हज़रत मौलाना मुईनुद्दीन इन्दर चक दमका,
  10. हज़रत मौलाना शमशुद्दीन दीनाजपुर बंग्गाल,

आप के मशाहीर खुलफाए किराम

(1) रेहाने मिल्लत मौलाना रेहान रज़ा खान रहमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह साबिक मोहतमिम “दारुल उलूम
मन्ज़रे इस्लाम” बरैली,
(2) फकीहे इस्लाम ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान अज़हरी रहमतुल्लाह अलैह बरैली शरीफ,
(3) हज़रत मुफ़्ती अब्दुल वाजिद कादरी होलेंड,
(4) हज़रत मौलाना शम्सुल्लाह रज़वी हशमती मुहल्लाह भूरे खान पीलीभीत,
(5) हज़रत मौलाना अब्दुल हलीम रज़वी जिलानी मुजफ्फरपुर बिहार,
(6) हज़रत मौलाना सय्यद आफ़ाज़ अहमद रज़वी खारी खारीपार माती इस्लामपुर बंगाल ।

बे मिसाल मुबल्लिग

हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपने वक़्त के बेमिसाल खतीब और मसलके रज़वियत के बे नज़ीर नकीब थे आप की खिताबत में बला की तासीर थी चुनांचे एक मर्तबा आप “बाड़ा हिन्दूराओं दिल्ली” तशरीफ़ ले गए दो रोज़ा इजलास था, आप ने पहले ही दिन बड़ी वहाबियत सोज़ दलाइल व बारहीन से मुरस्सा तक़रीर की और बरैली शरीफ आए, दूसरे रोज़ हुज़ूर मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की तकरीर थी, हुज़ूर मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का बयान है:

सुबह को मेरे पास बाड़ा हिंदूराव दिल्ली! के बीस से ज़ाइद वहाबी आए और कहा: रात की तकरीर सुनकर हमे पूरी तरह इत्मीनान हो गया के आज तक हम गुमराही में थे और अपने अक़ीदए बातिल से तौबा की मुस्लमान हुए, नीज़ फरमाते हैं के में ने ये बारहा ये वाक़िआ देखा के आप की तकरीर के असर का जो किसी के तकरीर में, में ने नहीं देखा।

माह नाम आला हज़रत का इजरा

फरोगे सुन्नियत की खातिर ही आप ने “माह नाम आला हज़रत” का इजरा फ़रमाया जिसे तबलीग़े सुन्नियत का बेष बहा कारनामा अंजाम फ़रमाया, और पूरी तुंदी ही के साथ आप ने दीगर तमाम दीनी उमूर की अंजाम दही के साथ साथ माह नाम में अपने मज़ामीन की भी इशाअत का अहम बार अपने कन्धों पर उठाया, जिस को पढ़ कर उर्दू में आप का मर्तबा व मकाम समझ में आता है, इस माह नाम ने उस दौर में उर्दू अदब की भी बे पनाह खिदमत अंजाम दी और उर्दू में कार आमद और मुफीद बातें अवामुन नास तक पहुचाईं,

“अमन व आमान” इस उन्वान से आप के नसरी शह पारे बराबर “माह नाम आला हज़रत” में आते रहे, चुनांचे फरमाते हैं: अवाम मुस्लिमीन को अमन व आमान की ज़रूरत है और वो मफ्कूद है जैसा के हदीसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में पेश गोई मौजूद है के हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा से है के हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अलामाते कयामत के ज़िम्न में फ़रमाया: हर्ज और मर्ज बहुत होगा यानि कत्ल तो हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा ने कहा: सालिहीन मौजूद होंगें तो भी ऐसा होगा (देखो बरकत सालिहीन साबित हुई) तो हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: के जब खबीस ज़ाहिर होगा, दूसरी हदीस में है के जब खबीस बहुत हो जाएंगें इस खबीस से क्या मुराद है? इस को समझिये तो फिर हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया: क्या सालिहीन मौजूद होंगें तब भी ऐसा होगा? तो हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जब खबीस पैदा होगा या कसरत से हो जाएगें तो ऐसा होगा वो खबीस जो सालिहीन और औलियाए कामिलीन से जलते हैं और बरकत सालिहीन का इंकार करते हैं हदीस शाहिद है के बरकत सालिहीन से ऐसा नहीं होना चाहिए तो रसुले खुदा हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं के ऐसा जब होगा के बरकत सालिहीन के मुनकिर खबीस पैदा होंगे या बा कसरत होगें और तफ़ासीर में भी खबीस से मुराद मुनाफिक को लिया है, और खबीस के अदद हैं 1112, तो शैख़ नजदी जब मरा तो तारीख लिखी “इज़ा हलाकल खबीस” इस तारीख को हज़रत अहमद ज़ैनी दहलान मक्की ने लिखा है अपनी किताब अददुरारूर सुन्निय! में अब इस अदद को बा गौर देखो 1112, दो ज़ोज हासिल हुआ, एक अदद 11, है और दूसरे का 12, तो वो बरकत सालिहीन का मुनकिर मुआनिद (दुश्मनी करने वाला) हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का 1100, हिजरी में पैदा हुआ और 1200, हिजरी में मरा,

इसी तरह और भी उन्वानात के तहत आप बराबर दीनी खिदमात व इस्लाह व अक़ाइद पर भर पूर रौशनी डालते रहे, मज़ामीन में, मुआरिफुल कुरआन, सबीले मोमिनीन, अशआर मसनवी मौलाना रूम की तशरीह व उम्दह नुकात (बारीकियां), मुआरिफुल हदीस, हफवात मौदूदी, जैसे उन्वानात पर आप की कलमी व इल्मी यादगार हैं।

"कशफो करामात"

कशफो करामात

हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की ज़िन्दगी बेशुमार कशफो करामात से पुर हैं, जिस शुआबाए हयात पर निगाह डालिए आरिफाना अजाइब व गराइब को अपने दामनं में समेटे हुए है, कुदरत ने ज़बान में ख़ास असर वदीअत (सौंपना) है, ज़ैल में चंद करामात का ज़िक्र किया जाता है।

उस को रिहा कर दिया जाएगा

कानपूर के क़याम के दौरान एक औरत व मर्द हाज़िरे खिदमत हुए और रोते हुए अर्ज़ करने लगे के हुज़ूर! ये मेरी बहन है जिस के दो बच्चे हैं, इन सब की ज़िन्दगी का सहारा हमारा बहनोई था, जो बिला कुसूर खून के मुक़दमे में गिरफ्तार हो गया, आइंदा पेशी में फैसला है दुआ फरमा दीजिए के वो रिहा हो जाएं, आप ने दरयाफ्त फ़रमाया के वो सुन्नी हैं? जवाब मिला हैं! तो आप ने एक कागज़ पर “दुरुद शरीफ” लिखा और फ़रमाया के बीवी से कहो के इस दुरूदे इस्म आज़म को ज़बानी याद कर ले और कसरत से पढ़ा करे, फिर जेल में जहाँ उसका शोहर है मिलने के लिए जाए तो ये दुरुद उसे देकर हिदायत कर दे के दाएं बाज़ू पर बांध ले, खुदा ने चाहा तो वो बे दाग रिहा हो जाएगा, तकरीबन दस दिनों के बाद बहुत सी मिठाइयां और फूल व इत्र ले कर वही औरत व मर्द एक नए चेहरे के साथ हाज़िर हुए, तीनो कदम बोस हुए और अर्ज़ करने लगे: हुज़ूर! आज ही ये शख्स मुक़दमे से बरीउज़ ज़िम्मा कर दिया गया, जब के इस के दूसरे साथियों को जिस दवाम की सख्त सज़ा दी गई है, आप ने तीनो को दाखिले सिलसिला फ़रमाया और नमाज़ व दुरुद व इस्मे आज़म की पाबंदी की ताकीद फ़रमाई।

बारिश रुक गई

पुखरिया ज़िला सीता मढ़ी जो बिहार की मर्दुम ख़ेज़ आबादी है, इलाकाई एतिबार से सुन्नियत का मर्कज़ और शम्सुल उलमा हज़रत कमरुल आरफीन हज़रत मौलाना शाह वलियुर रहमान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की तालीमों तरबियत का सर सब्ज़ व शादाब गुलशन है, हज़रत अक्सर बेश्तर वहां तशरीफ़ ले जाते थे, और सालाना उर्स में पाबंदी के साथ शिरकत फरमाते और गिरदोह नवाह को फियूज़ो बरकात से नवाज़ते थे, एक बार आप वहीं तशरीफ़ फरमा थे के कर हड़, गाओं के कुछ लोग जो आप के गुलामो में से थे, हाज़िरे खिदमत हुए और अपने गाऊं चलने पर इसरार किया, हज़रत ने वादा फरमा लिया और कहा: आप लोग जाओ महफ़िल का इंतिज़ाम करो, में इंशा अल्लाह ज़रूर आऊँगा और मेरे साथ दूसरे लोग भी होंगें हज़रत को पुखरेरा और उस के गिरदो नवाह से काफी मुहब्बत थी,

दूसरे दिन बाद नमाज़े ज़ोहर पुखरेरा से कर हड़, गाऊं रवानगी हुई, एक बेल गाड़ी पर हज़रत के हमराह तीन आदमी बैठे हुए थे, जब के चालीस पचास आदमी गाड़ी के साथ साथ पैदल चल रहे थे, नाराए तक्बीरों रिसालत की सदाओं को सुनकर पुखरेरा, बाथ और राए पुर की आबादियां सड़क के किनारों पर उमंड पड़े और ज़ियारत से मुशर्रफ होने लगे, असर की नमाज़ राए पुर में पड़ी अब गाड़ी एक ऐसे मैदान से गुज़र रही थी, सामने दो ढाई मील की दूरी पर कर हड़, था, और पीछे राए पुर, इसी बीच में शुमाल से घटाएं बुलंद हुईं और देखते देखते ही पूरी फ़िज़ा पर छा गई, जब बूंदा बांदी शुरू हुई तो मेरे बगल में बैठे हुए मौलाना अब्दुल वहीद खान रहमतुल्लाह अलैह ने छाता बुलंद किया, हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी उस वक़्त कुछ पड़ रहे थे हाथ के इशारे से मना फरमा दिया और चंद लम्हों के बाद अपनी अंगुश्त शहादत पर कुछ दम किया, फिर आसमान की तरफ इशारा कर के घुमाया, इधर दायरा बनाने का सिलसिला खत्म नहीं हुआ था के बदल फटा और दाईरा की शक्ल में साफ हो गया हम लोग देखते रहे चारों जानिब बारिश हो रही है, लेकिन कोई आबादी नज़र नहीं आ रही है, लेकिन दरमियान में जहाँ बेल गाड़ी चल रही है जिस के साथ पंदिरा बीस आदमी पैदल चल रहे हैं वो बारिश से बिलकुल महफूज़ हैं, इस आलम में हज़रत ने फ़रमाया विरदे इस्मे आज़म से बारिश रोक भी सकते हो, हम लोग गुफ्तुगू करते हुए मगरिब के वक़्त कर हड़, गाऊं पहुंचे, शफीक साहब, के दरवाज़े पर गाड़ी रुकी, पूरी बस्ती बारिश से शराबोर थी, मगर बेल गाड़ी बिलकुल सूखी हुई थी हज़रत नीचे तशरीफ़ लाए, सामान उतारा गया, और दरी चादर भी उतार ली गईं उस के बाद गाड़ी पर भी बारिश शुरू हो गई, हम लोगों ने खुदा का शुक्र अदा किया, मगरिब की नमाज़ के बाद इसी दालान में हज़रात! की तकरीर शुरू हो गई, चूंके बारिश की वजह से बस्ती के तमाम लोग तकरीर से फ़ैज़याब नहीं हो सके इस लिए हज़रत ने दूसरे दिन भी वहीं क़याम फ़रमाया, फिर बा ज़ाब्ता महफ़िल का इंतिज़ाम हुआ।

आप की तसानीफ़

हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने छोटे छोटे दर्जनों रिसाले लिखे जिस में से चंद के नाम ये हैं: (1) ज़िकरुल्लाह, (2) नेमतुल्लाह, (3) हुज्जतुल्लाह, (4)फ़ज़ाइले दुरुद शरीफ, (5) तफ़्सीर सूरह बलद, (6) तशरीह कसीदह नुमानिया, (7) इन चंद किताबों के अलावा आप ने तर्जुमे भी फरमाए।

औलादे अमजाद

हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के कुल पांच साहबज़ादे और तीन साहबज़ादियाँ थीं जिन के असमाए गिरामी ये हैं: (1) रेहाने मिल्लत काइदे आज़म मौलाना मुहम्मद रेहान रज़ा खान कादरी बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, (2) जानशीने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द ताजुश्शरिया फकीहे इस्लाम मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान अज़हरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, (3) हज़रत मौलाना डॉक्टर कमर रज़ा खान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, (4) हज़रत मौलाना मन्नान रज़ा खान उर्फ़ मन्नानी मियां साहब क़िबला मद्दा ज़िल्लाहुल आली, (5) एक साहबज़ादे जो ताजुश्शरिया फकीहे इस्लाम मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान अज़हरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, से बड़े थे जिन का नाम “तनवीर रज़ा” था हज़रत उन्हें बहुत प्यार करते थे वो बचपन ही से जज़्बी कैफियत में गर्क रहते थे बिला आखिर वो मफ्कूदुल खबर हो गए (खो जाना गायब हो जाना) साहबज़ादियों के नाम ये हैं: (1) सरफ़राज़ बेगम, (2) सरताज बेगम, (3) दिलशाद बेगम, बड़ी साहबज़ादी का निकाह पीलीभीत शरीफ में जनाब शौकत अली खान साहब से हुआ जो कराची मुन्तक़िल हो गईं और वहीं मुस्तकिल बूद बाश रहन सहन इख़्तियार किया, इन को चार लड़के पैदा हुए, लड़कों के नाम ये हैं, (1) फरहत हुसैन, साआदि रज़ा, दूसरी बदायूं शरीफ में जनाब अब्दुल हबीब के निकाह में आईं, जिन से एक लड़का मुहम्मद अफ़रोज़, और चार लड़कियां हुईं, और तीसरी का अक़्द खानदान ही में जनाब यूनुस रज़ा खान से हुआ जो ला वलद हैं।

आप के मलफ़ूज़ात शरीफ

  1. अपने उयूब मुझे दूसरों की ऐब जुई से रोकते हैं,
  2. आलिम अगरचे फि नफ्सि ही बुरा हो फिर भी उसके मुतअल्लिक़ बुरे गुमान से बच्चों,
  3. खुदा ने दो कान और एक ज़बान दी है ताके सुनो ज़ियादा और बोलो कम,
  4. मखलूक में बद्द्तरीन शख्स वो है जिससे लोग पनाह मांगे,
  5. अपने इल्मो अमल पर गुरुर करना जिहालत से कम नहीं,
  6. अल्लाह पाक के फैसलों पर जो राज़ी हो जाए वो गनि है,
  7. जो शख्स आख़िरत का काम करता है खुदा उसकी दुनिया संवार देता है,
  8. हर कौम की इज़्ज़तो ज़िल्लत का दारो मदार उसके उलमा और उमरा पर होता है,
  9. जो शख्स खुदा का दोस्त नहीं वो तुम्हारा दोस्त कैसे हो सकता है,
  10. बुज़ुर्गी अख़लाक़ से है ना के निस्बत व खानदान से,
  11. सब से ज़ियादा अक्लमंद वो है जो बुज़ुरगों के अफआल की अच्छी तवील करे,
  12. इल्म बगैर अमल के वबाले जान है,

विसाले पुरमलाल

आप ने ग्यारह 11, सफारुल मुज़फ्फर 1385, हिजरी मुताबिक 12, जून 1965, ईस्वी बरोज़ दो शंबा (पीर) को सुबह सात बजे बा उमर 60, साल को हुआ, दूसरे दिन 12, सफारुल मुज़फ्फर हस्बे प्रोगराम नमाज़े जनाज़ा के लिए नात ख्वानी होते हुए मस्जिद नो मोहल्ला ले जाया गया मस्जिद नमाज़ के लिए ना काफी थी, इस लिए इस्लामिया कॉलिज के मैदान में नमाज़ सुबह आठ बजे हुई और हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद मुहम्मद अफ़ज़ल हुसैन रज़वी मूंगिरि रहमतुल्लाह अलैह ने पढ़ाई, कब्रे अतहर में हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद अफ़ज़ल हुसैन मूंगिरि, हज़रत अल्लामा मुहम्मद एहसान अली, हज़रत अल्लामा सय्यद आरिफ अली नानपारा, जनाब सज्जाद हुसैन साहब, और सय्यद मुहम्मद हिमायत रसूल कादरी ने जस्दे मुबारक को जनाब मौलाना हाफ़िज़ मुहम्मद अहमद साहब, हज़रत मुफ़्ती जहांगीरी खान आज़मी हज़रत सय्यद ऐजाज़ा हुसैन साहब, जनाब मुहम्मद ग़ौस खान साहब, जो कब्र शरीफ के अंदर थे उतारा और आराम से लिटा दिया।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के पहलू में मुहल्लाह सौदागिरान ज़िला बरैली शरीफ यूपी इण्डिया में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • मुफ्तिए आज़म हिन्द और उनके खुलफ़ा
  • तज़किराए उल्माए अहले सुन्नत
  • हयाते मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द

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