अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी

उस्ताज़े ज़मन शहंशाहे सुखन हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

नाम व नसब

आप का इस्मे गिरामी “मुहम्मद हसन रज़ा खान” है, लक़ब: शहंशाहे सुखन, उस्ताज़े ज़मन, ताजदारे फ़िक्रों फ़न, सिलसिलए नसब इस तरह है: मुहम्मद हसन रज़ा खान बिन, मौलाना मुफ़्ती नकी अली खान बिन, रज़ा अली खान अलैहिमुर रह्मा।

विलादत शरीफ

हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! 22/ रबीउल अव्वल 1276/ हजिरि मुताबिक़ 19/ अक्टूबर 1859/ ईसवी को ज़िला बरैली शरीफ यूपी इण्डिया में आप की पैदाइश हुई, आप की विलादत बसआदत से मुतअल्लिक़ ये रिवायत मशहूर है, के जब आप की पैदाइश हुई और आप के दादा जान हज़रत अल्लामा रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किए गए तो देख कर गोद में लिया और फ़रमाया “मेरा ये बेटा मस्तान होगा”
चुनांचे ये कोल बिलकुल सच साबित हुआ, इश्के रिसालत में डूबी हुई अपनी नातिया शायरी से हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! खुद भी मस्त हुए, और दूसरों को भी मस्त और बे खुद फरमाते रहे।

तालीमों तरबियत

हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तालीमों तरबियत मुकम्मल तौर पर वालिद मुहतरम हज़रत अलमा मुफ़्ती नकी अली खान रहमतुल्लाह अलैह और आप के बड़े भाई मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के ज़ेरे आतिफ़त हुई, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के ईमा यानि इशारे पर क़ाइम होने वाला मशहूर तालीमी इदारा “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” का तारीखी नाम हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ही ने तजवीज़ किया था, और आप ही इस मदरसे के पहले मोहतमिम भी बनाए गए।

इजाज़तो खिलाफत

कुदवतुल वासिलीन, नूरुल आरिफीन सिराजुस सालिकींन हज़रत अल्लामा शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी कादरी बरकाती मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! के दस्ते हक परस्त पर बैअत हुए और खिलाफत से नवाज़े गए।

सीरतो ख़ासाइल

माहिरों इल्मो फ़न, शहंशाहे सुखन, उस्ताज़े ज़मन, सुख़नवरे खुशबयान, नाज़िमे शीरीं ज़बा हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! इल्मो फ़न और शेरो सुखन की कहकशाओं में आप के नाम की वही हैसियत है जो सितारों के खुरमुट में चाँद की है, सीरत व तज़किरा निगारी में इन के ज़बानो बयान की जामे जामेईयत का कोई हम पल्ला नज़र नहीं आता, रद्दे बातिल अहकाके हक में आप की महारत और सलाबत (ठोस) व पुख्तगी अपनी नज़ीर आप है, अगर मुख़्तसर जुमले में मौलाना! को नज़्मों नस्र का “बेताज बादशाह कहा जाए तो यकीनन कोई मुबालगा आमेज़ी न होगी,

हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! का मजमूआ नातिया कलाम शायरी की बहुत सारी खूबियों और ख़ुसुसियात से सजा और तमाम तर फन्नी महासिन से मुज़य्यन और आरास्ता है, मोज़ोआत का तनव्वो (किस्म किस्म, मुख्तलिफ) फ़िक्र की हमागीरी, मुहब्बते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पाकीज़ह जज़्बात की फ़रावानी के असरात जाबजा मिलते हैं, आप के कलाम में अंदाज़े बयान की नुदरत (अनोखा,नया पन) भी है और फ़िक्रों तख़य्युल की बुलंदी भी, माना आफ़रीनी (तहसीन का कलमा) भी है, तसव्वुफ़ाना आहंगी भी, इस्तिआरा साज़ी भी है, पैकरे तराशी भी तर्ज़े अदा का बांकपन भी है, जिद्दत तराज़ी भी है, रंगे तग़ज़्ज़ुल की आमेज़िश भी है इजाज़ो इख्तिसार और तरकीब साज़ी भी है, इस्तिआरा साज़ी, तश्बीहात, इक्तिबासात, फ़साहतो बलाग़त, हुस्ने तालील, व हुस्ने तशबीब, हुस्ने तलब, व हुस्ने तज़ाद, तलमीहात, तलमिआत, वगेरा सनअतों की जलवागरी भी अरबी और फ़ारसी का गहरा रचाओ भी अल गर्ज़ आप का पूरा कलाम खुद आगही, काइनात आगही और खुदा आगही के आफ़ाकि तसव्वुर से हमकिनार है।

मगर क्या कहा जाए उर्दू अदब के उन मुअर्रिख़ीन व नाकीदीन (ऐब व हुनर को जाँच ने वाला) और शुआरा के तज़किरा निगारों को जिन्हों ने गिरोही अस्बियत और जानिबदारियत के तंग हिसार में मुक़य्यद व महबूस (कैद किया हुआ) हो कर उर्दू के इस अज़ीम शायर के ज़िक्रे खेर से अपनी किताबों को यकसर खाली रखा।

में अपने भाई का कलाम सुनता हूँ

हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! का नातिया कलाम और नातियाँ ग़ज़लें बर्रे सगीर हिन्दो पाक में यकसां तौर पर मकबूल हैं, हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! की नातिया शायरी पर दाग देहलवी! की इस्लाह नहीं हुई, बल्के आप के बड़े भाई मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! कभी कभार बा नज़रे इस्लाह देख लिया करते थे, वो इन की नातों के मद्दाह थे, एक मकाम पर मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! की शायराना अज़मत का ऐतिराफ़ करते हुए फरमाते हैं:”में अपने छोटे भाई हसन मियां! या हज़रत अल्लामा काफी मुरादाबादी का कलाम सुनता हूँ, (इस लिए के इन का कलाम मीज़ान शरीअत में तुला हुआ होता है) अगरचे हज़रत अल्लामा काफी मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह! के यहाँ राइना का इस्तिमाल भी मौजूद है, अगर वो अपनी गलती पर आगाह हो जाते तो यक़ीनन इस लफ्ज़ को बदल देते, आप के नातिया दीवान से चंद अशआर मुलाहिज़ा फरमाएं:

अजब रंग पर है बहारे मदीना
के सब जन्नते हैं निसारें मदीना

ढूंढा ही करे सदरे क़ियामत के सिपाही
वो किस को मिले जो तेरे दामन में छुपा हो

कहैंगे और नबी इज़्हबू इला गैरी
मगर हुज़ूर के लब पर अना लहा होगा

जो सर पे रखने को मिलजाए नाले पाके हुज़ूर
तो फिर कहेंगें के ताजदार हम भी हैं सभी

आप बहतीरीन नस्र निगार भी थे, आप की निगरानी में और मीर महमूद अली आशिक बरैली (जो हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के शागिर्द थे) की इदारत में फ़रवरी 1903/ ईसवी में “गुलदस्ताए बहार बे ख़ज़ा” इससे क़ब्ल हफ्तावार रोज़ अफ्ज़ु 1902/ को जारी हो चुका था,

आप की तसानीफ़

  1. ज़ोक नात
  2. समरे फसाहत
  3. दीने हसन
  4. इंतिख्वाबे शहादत
  5. समसामे हसन
  6. सागर कैफ
  7. निगारिस्ताने लताफत
  8. कहरूद दियान अला मुर्तद दियान
  9. आइनाये क़ियामत
  10. तुज़की मुर्तज़वी दर इसबाते तफ्ज़ील शैख़ैन

आप का निकाह मस्नून

हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के जद्दे अमजद हज़रत शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्लाह खान कंधारी! के फ़रज़न्द सआदत यार खान थे, जिन के तीन फ़रज़न्द (1) मुहम्मद आज़म खान, (2) मुहम्मद मुअज़्ज़म खान, और मुहम्मद मुकर्रम खान थे, मुहम्मद मुअज़्ज़म खान साहब! की नसल में हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! थे, और मुहम्मद आज़म खान! के बिरादरे औसत मुहम्मद मुअज़्ज़म खान के फ़रज़न्द आज़म खान, इन के फ़रज़न्द अलीमुल्लाह खान! की दुख्तर नेक अख्तर असगरी बेगम! के हमराह आप का अक़्द मस्नून हुआ, गोया उस्ताज़े ज़मन! मुहम्मद आज़म खान के फ़रज़न्द नसबी थे, तो मुहम्मद मुअज़्ज़म खान, के फ़रज़न्द निस्बती करार पाए।

हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के तीन साहबज़ादे थे, (1) हज़रत मौलाना हकीम हुसैन रज़ा खान, (2) हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान, (3) फारूक रज़ा खान, और एक साहबज़ादी अनवार फातिमा उर्फ़ अन्नो बी! थी।

हज्जे बैतुल्लाह की ज़ियारत

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में आप की दुआ मकबूल हुई, और ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन की देरीना ख्वाइश 1325/ हिजरी में पूरी हुई, आप हज के लिए तशरीफ़ ले गए, तमाम मनासिके हज बहुत सेहत मंदाना तरीके और पुर ख़ुलूस जज़्बे से अदा किए, और दीदारे गुम्बदे गज़खरा से मुशर्रफ हुए।

विसाले पुर मलाल

आप की वफ़ात 3/ शव्वालुल मुकर्रम 1326/ हिजरी मुताबिक़ 1908/ ईसवी में हुई, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने आप की नमाज़े जनाज़ाह पढाई, और कब्रे अनवर में अपना दस्ते अक़दस रखा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त आप की तुर्बत पर रहमतो नूर की बारिश फरमाए।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुकद्द्स सिटी स्टेशन कब्रिस्तान सिविल लाइन ज़िला बरैली शरीफ यूपी इंडिया में ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है, ।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • तजल्लियाते ताजुश्शरिया
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत

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