हज़रत मौलाना रज़ा अली खान

इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

नाम व लक़ब

इस्मे गिरामी “हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह!” लक़ब: इमामुल उलमा, कुदवतुस सुल्हा!
सिलसिलए नसब इस तरह है: इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! बिन, जनाब हाफ़िज़ काज़िम अली खान बिन, जनाब मुहम्मद आज़म खान बिन, जनाब मुहम्मद सआदत यार खान बिन, जनाब मुहम्मद सईदुल्लाह खान बिन, अब्दुर रहमान बिन, युसूफ खान कंधारी बिन दौलत खान बिन दाऊद खान रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

तारीखे विलादत

इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत मौलाना काज़िम अली खान रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्दे अकबर थे, और आप की पैदाइश मुबारक 1224/ हिजरी मुताबिक 1809/ ईसवी को ज़िला बरैली शरीफ यूपी इण्डिया में हुई।

तहसील इल्म

इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत मौलाना ख़लीलूर रहमान से टोनक, सूबा राजिस्थान हिन्द में तमाम उलूमे अकलिया व नकलिया की मुकम्मल तालीम हासिल की आप रहमतुल्लाह अलैह! ने सनादे फरागत 1247/ हिजरी में हासिल फ़रमाई, आप तमाम उलूम के जामे थे, बिलखुसूस इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे तसव्वुफ़ में आला मकाम रखते थे।

सीरतो ख़ासाइल

कुदवतुल कामिलीन, जुब्दतुल कामिलीन, रईसुल मुता कल्लिमीन, व मुतासव्वुफीन, क़ुत्बुल वक़्त, इमामुल उलमा, सनादुल अतकिया, साहिबे कमालाते बाहिरा व करामाते ताहिरा, इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! ख़ुसूसन निस्बते कलाम, सबक़ते कलाम, ज़ुहदो कनाअत, इल्मो तवाज़ो, तजरीदो तफ़रीद आप की ख़ुसुसियात से थे, आप के औसाफ़ व कमालात शुमार से बाहर हैं, आप जय्यद आलिमे दीन और वलीए कामिल के साथ साथ पुर तासीर खतीब भी थे, आप के बयान से मुतअस्सिर हो कर बहुत से फुस्साक व फुज्जार ताइब हो कर लौटते थे।

मुमताज़ अहले इल्म

वाज़ेह हो के मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के अफगानी आबाओ अजदाद मुन्दर्जा ज़ैल ह्ज़रात रंग शुजाअत के हामिल और अपनी बहादुरी के व जवाँमरदी में मशहूर थे, (1) सईदुल्लाह खान, (2) सआदत यार खान, (3) मुहम्मद मुअज़्ज़म खान, (4) काज़िम अली खान, (5) इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! (आप सरकार आला ह्ज़रत फ़ाज़ली बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु के हकीकी दादा थे) आप पहले शख्स हैं जो इस खानदान में दौलते इल्मे दीन लाए, इल्मे दीन की तकमील के बाद इन्होने सब से पहले मसनदे इफ्ता को रौनक बख्शी, तो इस खानदान से तलवार छूटी और तलवार की जगह कलम ने लेली, अब इस खानदान का रुख मुल्क की हिफाज़त से दीन की हिमायत की तरफ हो गया,

मुमताज़ अहले इल्म हज़रात: (1) ह्ज़रत मौलाना काज़िम अली खान, (2) इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान, (3) रईसुल मुता कल्लिमीन मुफ़्ती नकी अली खान, इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! को इल्मे फ़िक़्ह में ख़ास दस्तरस हासिल थी, रोहिला दौर! के शाही खानदान के आखरी चश्मों चिराग मुफ़्ती मुहम्मद उयूज़ साहब! के 1816/ ईसवी में अंगेर्जों से शिकस्त खाने के बाद मसनदे इफ्ता खाली थी, 1816/ ईसवी में ह्ज़रत मुफ़्ती मुहम्मद उयूज़ साहब! बरैली से टोनक! तशरीफ़ ले गए, और वहीँ 1818/ ईसवी में फवाफात पाई, ऐसे नाज़ुक दौर में इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! ने मसनदे इफ्ता को रौनक बख्शी, आप मरजए फतावा थे, आप की तकरीर इंतिहाई मुआस्सिर होती थी, महफ़िल ख़ौफ़े खुदा और खशीयते इलाही ले आहो बुका कर उठती थी, चूंके आप बड़े तक्वा शिआर थे, इसी लिए आप की नसीहत का बड़ा असर होता था, इंतिहाई मुन्कसिरुल मिजाज़ थे, सलाम करने में सबक़त फरमाते थे, दुनिया से इस्तगना आप का शेवाह था, फ़साहते कलाम, सबरो कनाअत, और हिल्मो तवाज़ो जैसे औसाफ़े हमीदह में आप मुमताज़ थे अल्लाह पाक ने आप को इश्के नबी की दौलत से नवाज़ा था, इस लिए आप नामूसे रिसालत के दुश्मनो से मुतनफ्फिर रहते थे, कभी अपने नफ़्स के लिए ग़ज़बनाक ना हुए, हद तो ये है के एक बे दीन ने आप पर तलवार से हमला किया तो उस को माफ़ फ़रमा दिया, इसी तरह एक कनीज़ के हाथों आप का आठ साला का लड़का “मुहम्मद अब्दुल्लाह खान” मारा गया तो आप ने उस को आज़ाद फरमा दिया सुन्नते रसूल पे सख्ती से अमल करते थे।

फतवा नवेसी

वैसे तो आप तमाम उलूम में गायत (बेहद) दर्जा महारत रखते थे, मगर इल्मे फ़िक़्ह से कुछ ख़ास ही लगाओ था, यही वजह है के फरागत के बाद ही 1246/ हिजरी में बकाइदा दारुल इफ्ता की बुनियाद रखी, और सारी उमर फतवा नवेसी! में गुज़ारदी, फिर इस के बाद ये मुक़द्दस फन और कारे अज़ीम आप के खानदान का अलामती निशान बन गया, आप के बाद आप के साहबज़ादे दिलबंद रईसुल अतकिया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नकी अली खान रदियल्लाहु अन्हु मुतावफ़्फ़ा 1297/ हिजरी मुताबिक़ 1880/ ईसवी में मसनदे इफ्ता को ज़ीनत बख्शी, इन के बाद आप के फ़रज़न्द मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने मुतावफ़्फ़ा 1340/ हिजरी मुताबिक़ 1921/ ईसवी ने इस फन को उरूजो इर्तिका की वो मंज़िल अता फ़रमाई के जिस की धूम आज सारे आलम में मच रही है, अपने और गैर सभी फैज़ पा रहे हैं, 1246/ हिजरी से ले कर आज तक तकरीबन दो सो साल से आप का खानदान मुसलसल खिदमते फ़िक़्ह व इफ्ता अंजाम दे रहा है, खुद हुज़ूर आला हज़रत फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु इस दारुल इफ्ता! का तज़किरा यूं फरमाते हैं:
“अल्लाह पाक के फ़ज़्लो करम से इस घर से फतवा! निकलते हुए नव्वे 90/ साल से ज़ाइद हो गए, मेरे दादा साहब हज़रत मुफ़्ती रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! ने एक लम्बे अरसे तक फतवा नवेसी करते रहे, जब वो तशरीफ ले गए तो अपनी जगह मेरे वालिद माजिद कुद्दीसा सिररुहु को छोड़ा, मेने चौदह साल की उमर में इन से ये काम ले लिया, चंद रोज़ बादे इमामत भी अपने ज़िम्मे करली, गर्ज़ के मेने अपनी कम उमर से ही कोई बार उनपर रहने ना दिया।

सियासी क़ियादत

इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! जय्यद आलिमे बा अमल और मारूफ मुफ़्ती होने के साथ साथ जलीलुल क़द्र, बेनज़ीर मुजाहिदे आज़ादी भी थे, मगर इस मुख़ालिफ़ाना रवैय्या के बावजूद एक लम्हा भी दिल यादे इलाही से गाफिल नहीं रहता, इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! ने खुद पहली जंगे आज़ादी 1857/ ईसवी में भर पूर हिस्सा लिया, और अंगरेज़ों को नाकों चने चबाए, और अपनी तहरीरों तक़रीर से अवाम और बिलख़ुसूस मुसलमानो के जज़्बए हुर्रियत को बेदार किया, अंग्रेज़ों की बीख कुनि के लिए जिहाद कमेटी बनाई, इस में इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! सिरे फहरिस्त थे, उल्माए किराम के फ़तवाए जिहाद का पूरे हिंदुस्तान में ज़बरदस्त असर हुआ, और मुसलमानो की मज़हबी क़ियादत के साथ साथ सियासी क़ियादत भी फ़रमाई, अंग्रेजी अफसर लार्ड हेस्टिंग आप से बहुत परेशान रहता था, और जज़ल हेडसन ने आप के क़त्ल पर पांच सो रूपए इनआम भी रख दिए थे, मगर उसे अपने मकसद में कामयाबी न मिली, एक अँगरेज़ मुअर्रिख़ “डॉक्टर मिली सन” आप के बारे में लिखता है:”बरैली के अंदर जब लोगों में बरतानवी हुक्काम के खिलाफ यूरिष फैली तो इस यूरिश के तमाम ज़िम्मेदार जज़ल बख्त खान और उन के साथी बरेलवी मुल्ला शाह रज़ा अली वलद हाफ़िज़ काज़िम अली, वलद आज़म खान वलद सआदत यार खान पठान ही थे, जो बरैली की अवाम को बरतानवी फौज के खिलाफ मुकाबला करने पर तय्यार किया अगर मौलाना रज़ा अली बिन मौलाना काज़िम अली अपने अकीदत मंदों समीत हमारा मुकाबला ना करता तो बरैली शहर पर हमारा कब्ज़ा होना आसान था”

हकीकत यही है के अँगरेज़ बा आसानी बरैली पर कब्ज़ा कर लेते, मगर आप की मदाखिलत की वजह से उन्हें काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा, मुअर्रिख़ीन की ना इंसाफ़ी और अपनों की बे तवज्जुह ही है के मुजाहिदीने आज़ादी की फहरिस्त में आप का नाम जली (बड़ा) हरफों में नहीं आता।

इजाज़तो खिलाफत

इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! को शैख़ वक़्त वैसे ज़माना हज़रत शाह फज़लुर रहमान गंज मुरादाबादी रदियल्लाहु अन्हु (शागिर्द सिराजुल हिन्द हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी व खलीफा शाह मुहम्मद अफाक मुजद्दिदी नक्शबंदी देहलवी) से बैअत व खिलाफत हासिल थी और सिलसिलाए नक्शबंदिया में मुरीद करते।

खुत्बा इल्मी

इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! ने खुत्बा जुमा व ईदैन लिखे जो आज कल खुत्बा इल्मी के नाम से मुल्क भर में राइज हैं, ये ना काबिले इंकार हकीकत है के इस खानदान के मोरिसे आला हज़रत मौलाना रज़ा अली खान साहब, के खुत्बा इल्मी! कहलाता है, इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! की ही तस्नीफ़ हैं और कमो बेश एक सदी से सारे हिंदुस्तान में जुमा व ईदैन को पढ़ें जाते हैं, और हर मुखालिफ व मवाफ़िक़ उन्हें पढ़ता है, इन को शुहरत से इंतिहाई नफरत थी, इस लिए इन्होने खुत्बा इल्मी! अपने शागिर्द मौलाना इल्मी! को दे दिए थे, मौलाना इल्मी! ने खुद भी इस तरफ इशारा किया है, अलबत्ता खुत्बा इल्मी! में अशआर मौलाना इल्मी के हैं, खुत्बा इल्मी! को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने वो शान अता फ़रमाई के आज तक कोई खुत्बा इस की जगह ना ले सका, उस दौर में बहुत से ख़ुत्बे लिखे गए, उम्दह कर के छापे गए, कोशिश से राइज किए गए, मगर वो कुबूले आम किसी को आज तक नसीब ना हुआ और ना आइंदा किसी को उम्मीद है के वो खुत्बा इल्मी की जगह ले सकेगा।

"करामात"
उसने मुझे रंगा अल्लाह उसे रंगे

एक मर्तबा हिंदुओं के तियोहार “होली” के मोके पर बाज़ार से आप गुज़र रहे थे के एक हिन्दू औरत ने आप पर रंग डाल दिया,, एक जोशीले नौजवान ने उसे मारना चाहा तो आप ने फ़रमाया क्यों तशद्दुद सख्ती करते हो “उसने मुझे रंगा अल्लाह उसे रंगे” इतना ज़बान मुबारक से निकलना था के वो औरत फ़ौरन आप के कदमो में आ गिरी, उसने माफ़ी मांगी और मुशर्रफ बा इस्लाम हुई, आप ने वहीँ उस नौजवान से उस का अक़्द यानि निकाह कर दिया।

हज़रत का असा और छतरी रखी हुई है

एक मर्तबा एक साहब हाज़िरे खिदमत हुए और आप से कुछ रकम मांगी, आप ने फ़रमाया देखो बेजा खर्च मत करना, वो साहब आज़ाद निजाज़ थे रकम ले कर तवाइफ़ के यहाँ चले गए, देखा के हज़रत का असा और छतरी रखी हुइ है उलटे पाऊं वापस हुए, दूसरी के यहाँ गए वहां भी यही हाल देखा तीसरी के यहाँ भी यही हाल देखा, आखिरकार आजिज़ हो कर खिदमत में हाज़िर हुए सिद्क़ सच्चे दिल से तौबा की।

दुश्मन देख ना सके

1857/ ईसवी के बाद जब अंग्रेज़ों का तसल्लुत हिन्दुस्तान पर हुआ और उन्होंने शदीद मज़ालिम ढाए तो लोग डर के मारे परेशान फिरते थे, बड़े लोग अपने अपने मकान छोड़ कर गाऊं चले गए लेकिन इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! “मुहल्लाह ज़खीरा” में अपने मकान में बराबर तशरीफ़ रखते रहे और पांचों नमाज़ें जमात के साथ मस्जिद में अदा किया करते थे, एक दिन उधर से अंग्रेजी फौजियों का गुज़र हुआ, उन्होंने चाहा के मस्जिद में अगर कोई शख्स हो तो उसे पकड़ कर मारे, मस्जिद में घुसे, इधर उधर घूम आए लेकिन आप उन्हें नज़र ना आए, बोले के मस्जिद में कोई नहीं है हालाँके आप मस्जिद ही में तशरीफ़ फरमा थे।

अब मुकदमा फ़तेह हो गया

इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! की करामात बादे विसाल भी ज़ाहिर हुईं, “जिन का तज़किरा मलफ़ूज़ाते आला हज़रत” में खुद मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! यूं बयान करते हैं: हज़रत जद्दे अमजद यानि हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! को बिहम्दिहि तआला मेरे साथ इस वक़्त तक वही मुहब्बत है जो पहले थी, एक मर्तबा जाएदाद का झगड़ा था और वो भी ऐसा के ज़ाहिरी रिज़्क़ के बंद होने के असबाब थे, उसी दौरान में ने ख्वाब देखा के हज़रत जद्दे अमजद दादा जान! अरबी घोड़े पर सवार, तमाम आज़ा निहायत रोशन, अरबी लिबास में तशरीफ़ लाए, में उसी फाटक में खड़ा था, हज़रत करीब आ कर घोड़े से उतरे और फ़रमाया: बशीरुद्दीन वकील के यहाँ जाना है, आँख खुली में ने कहा: अब मुकदमा फ़तेह हो गया, चुनांचे सुबह ही मुकदमा में फ़तेह याबी हो गई।

अक़्द मस्नून

आप रहमतुल्लाह अलैह! ने दो अक़्द (निकाह) फरमाए, पहली ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) से एक साहबज़ादे, और एक साहबज़ादी, पैदा हुईं,

  1. हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नक़ी अली खान (आला हज़रत के वालिद माजिद)
  2. दूसरी ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) से दो साहबज़ादियाँ पैदा हुईं,
  3. 3) बीबी जान (ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) (विलायत हुसैन खान)
  4. मुस्तजाब बेगम ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) (वहाब अली खान साहब
विसाल

2, जमादीयुल ऊला 1282, हिजरी मुताबिक 1865, ईसवी को 62, साल की उमर में आप का विसाल हुआ।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुकद्द्स सिटी स्टेशन कब्रिस्तान सिविल लाइन ज़िला बरैली शरीफ यूपी इंडिया में ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला
  • तजल्लियाते ताजुश्शरिया
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तज़किराए जमील

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