हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

नाम व लक़ब

सुल्तानुल आरफीन हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही रोशन ज़मीर बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह अज़ीम मशाइखे तरीकत, मशाहीरे असफिया, और अकाबिर औलियाए किराम में हैं, आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “हसन” था, और “शैख़ शाही” लक़ब है, क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, ने आप को “सुल्तानुल आरफीन” का ख़िताब अता फ़रमाया था, और हज़रत ख्वाजा काज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह “रोशन ज़मीर” कहते थे, और अवाम में अबतक बड़े सरकार! के नाम से मश्हूरो मारूफ हैं,
आप को रसनताब! भी कहते हैं, रसनताब! आप को इस वजह से कहते हैं के: हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! अपनी मेहनत से रिज़्के हलाल तलाश किया करते थे, आप बालों की रस्सियां बट कर उनको फरोख्त करते, यानि आप बालों की रस्सियां बनाते थे, और आप के भाई हज़रत बदरुद्दीन शाहे विलायत साहब! छोटे सर्कार! भी, “मूयेताब” के लक़ब से मुलक्कब हुए,
सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मन्क़ूल है के: बदायूं में दो भाई रहते थे, एक ख्वाजा हसन शैख़ शाही रोशन ज़मीर! मूयेताब दूसरे शैख़ अबू बक्र मूयेताब, ख्वाजा हसन शैख़ शाही अबू बक्र मूयेताब रहमतुल्लाह अलैह को में ने देखा था, और ख्वाजा बदरुद्दीन शाहे विलायत मूएताब को में ने नहीं देखा ।

वालिद माजिद

हज़रत ख्वाजा सय्यद आज़ुद्दीन अहमद यमनी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह हैं, आप हुसैनी सादाते किराम से हैं, आप के वालिद माजिद मुल्के यमन से तशरीफ़ लाए थे, बदायूं में सुकूनत रिहाइश मुस्तकिल तौर पर इख़्तियार की, उस वक़्त सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! की हुकूमत थी, और गालिबन सातवीं सदी हिजरी की शुरूआत होगी, क्युंके 670/ हिजरी में सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! तख़्त नशीन हुए थे,
हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! आप तीन भाई मशहूर हैं, अगरचे चौथे भाई का भी नाम मालूम होता है, लेकिन चौथे भाई के मज़ार का कहीं पता नहीं है और ना उनका ज़िक्र किसी किताब से मालूम होता है, आप अपने भाइयों में सब से बड़े हैं, और शैख़ मुहम्मद उस्मान! व शैख़ बदरुद्दीन शाहे विलायत! दोनों आप से छोटे हैं, आप क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के हम अस्र हैं।

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत हाजी हुस्सामुद्दीन उर्फ़ हाजी जमाल मुल्तान के ख़ास शागिर्दों में से हैं, हाजी जमाल मुल्तान से आप ने इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे तफ़्सीर, व मंतिक की तालीम हासिल की, इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, की तालीम के बाद आप ने तसव्वुफ़ की तालीम सीखी, और अपनी पूरी ज़िन्दगी को हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इत्तिबा पैरवी का पूरा नमूना बना लिया था,
इल्मे बातनि के हुसूल के शोक में बदायूं से दिल्ली तशरीफ़ ले गए थे, और सिलसिलए आलिया सोहरवर्दिया में हज़रत ख्वाजा काज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद हुए, और आप को अपनी खिलाफत अता फ़रमाई, और रूहानी फैज़ से मालामाल हुए, आप के पीरो मुर्शिद का मज़ार मुबारक महरोली दिल्ली में है।

हज़रत ख्वाजा महमूद मूईयना दोज़ की राए

जब हज़रत ख्वाजा काज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह ने “हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! को खिलाफत अता फ़रमाई तो हज़रत ख्वाजा महमूद मूईयना दोज़ रहमतुल्लाह अलैह (के जो उस ज़माने में बड़े औलियाए किराम में शुमार होते थे) को बा खबर किया के में ने ख्वाजा हसन शैख़ शाही को खिलाफत अता की है तो आप ने फ़रमाया बहुत खूब किया, आप जो भी काम करते हैं उस को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त पसंद करता है।

दिल्ली से वापसी

हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! जब दिल्ली से बदायूं शरीफ पहुचें, तो बेशुमार आदमियों का हुजूम हो गया था, और कसीर मजमे के साथ आप शहर में दाखिल हुए थे, बदायूं शरीफ का नाज़िम भी आप से मिलने आया था, आप के ज़ुहदो तक्वा तदय्युन का शुहरा धूम धाम सुनकर मखलूके खुदा शैदा हो गई, लोग दूर दूर से आ कर मुरीद होने लगे, आप ने एक अज़ीमुश्शान खानकाह तामीर कर के रुश्दो हिदायत का सिलसिला जारी किया।

सीरतो अख़लाक़

आलिमो फ़ाज़िल, आबिदो ज़ाहिद, मुत्तक़ी व अबरार, साहिबे तरको तजरीद, शब् बेदार मुजाहिद थे, हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम की पैरवी करने वाले, आप ने तमाम उमर शादी नहीं की मुजर्रद रहे, आप की पूरी ज़िन्दगी हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी के इत्तिबाअ का पूरा नमूना थी, सुबह सादिक के वक़्त उठते और वुज़ू कर के जामा मस्जिद शम्शी तशरीफ़ ले जाते, नमाज़ बा जमात पढ़ते थे, फ़ुतूहात यानि नज़राने तोहफे अक्सर आप की बारगाह में आते थे, तसर्रुफ़ात गैबी से आप का दस्तर ख्वान वसी था, दिल्ली के शहज़ादगान तक मेहमान रहते थे, मगर इस के बावजूद तवक्कुल और सुन्नते मुस्तफा पर ही अमल करते रहे, बान की रस्सियां बटकर अपना खर्च चलाते थे, फ़ुतूहात यानि नज़राने तोहफे की आमद से मिस्कीनों और दुरवेशों पर सर्फ़ यानि खर्च करते, थे, क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से आप के खुसूसी तअल्लुक़ात मरासिम थे,

इनके यहाँ सिमा में शरीक होते, हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने 28/ साल बदायूं में रहकर खुदा परस्ती और मुहब्बतों इंसानियत भाईचारगी अख़लाक़ का पैगाम दिया, आप ने मुहब्बतों सदाकत का दर्स दिया और बाहिमी इत्तिहाद व इखलास और एतिमाद व ताज़ीम की बुनियाद पर एक पाकीज़ह मुआशिरा उस्तुवार (मज़बूत, मुस्तहकम) किया, जिस का शुहरा धूम धाम सुनकर दूरदराज़ इलाकों से आ कर लोग यहाँ आबाद हुए, और यही वजह है जो आज बेशुमार लोग मज़हबो मिल्लत उर्स के मोके पर इकठ्ठे हो कर खिराजे अकीदत पेश करते हैं, जिस तरह आप अपनी हयात में मुसतमंद और हाजत मंद की करम नवाज़ी करते थे, इसी तरह बादे ममात (इन्तिकाल, वफ़ात) भी करम करते हैं, ज़मानए कदीम से मशाइखे इज़ाम आप के आस्ताने मुबारक पर चिल्ला कशी कर के फैज़े रूहानी व इरफ़ानी हासिल करते हैं।

आप का अदलो इंसाफ

“किताब अख़बारूल अखियार” फवाईदुल फवाइद! में है के: एक मर्तबा हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! और आप के दोस्त अहबाब सैर के लिए किसी जगह साथ ले गये और उन्होंने वहाँ जा कर खीर पकाई। जब खाना सामने आया, हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! ने कहा इस खाने में खयानत की गयी है। बात यह थी कि दो आदमियों ने क़ब्ल इसके कि वो खीर सब दोस्तों के सामने लाई जाए, इस में से खा ली थी और दुरवेशों फकीरों के नज़दीक यह बड़ी ख़ता होती है। अल्गर्ज़! जब हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! ने पूछा कि ऐसा क्यों हुआ कि दोस्तों के सामने लाने से पहले ही से कोई इस में से खाए। उन्होंने बताया कि खीर की देग में जोश उबाल आया था और बाहर गिरने लगी, तो इसमें से खा लिया के बाहर गिरने से बेहतर है के इस को खा लिया जाए, आप हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! ने फरमाया, के इससे पहले हम इस खीर को खाएं तुम दोनों आदमियों को सूरज की धूपमे खड़ा होना चाहिए ताके तुम्हारे बदन से पसीना टपक जाए, और आप ने इन दोस्तों का कुछ उज़्र ना सुना, वो शर्मिंदाह हुए, और गरम मौसम की धूप में खड़े हुए और तमाम बदन से पसीना टपकने लगा,

हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया के अब में ने तुम्हारा कुसूर मुआफ किया, आइन्दाह ऐसा ना करना, इस के बाद आप ने हज्जाम को बुलवाया और कहा के जिस कद्र मेरे अहबाब के जिस्म से पसीना बहा है, उतना ही मेरा खून फस्द ले कर ज़मीन पर गिरा, चुनांचे आप ने अपना खून उतना ही फस्द के ज़रिए से ज़मीन पर गिराया, सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मुहब्बत ऐसी थी के उनके पसीने के ऐवज़ अपना खून ज़मीन पर गिरा दिया, और अदब ऐसा के उनका उज़्र कुबूल ना किया।

शैख़ निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद आप की बारगाह में

एक बार हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद रहमतुल्लाह अलैह बदायूं आ कर ऐसे अलील हुए के उठने बैठने की ताकत ना रही, इलाज के बावजूद तकलीफ में इज़ाफ़ा होता ही रहा, तब आप ने बिमारी से निजात पाने की दुआ के लिए हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! से दरख्वास्त की, पहले तो हज़रत बड़े सरकार! ने मना कर दिया और कहा आप बुज़रुग हैं में एक आम सा आदमी हूँ, मुझ से दुआ ना करवाएं, लेकिन हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद रहमतुल्लाह अलैह के इसरार (ज़िद) पर हज़रत बड़े सरकार! ने हज़रत शैख़ शरफुद्दीन ख़य्यात! और शैख़ अहमद ख़य्यात! को बुलवाया जो आप के मख़सूस दोस्तों में थे, जब ये दोनों हज़रात आ गए, तो आप ने कहा शैख़ निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद! ने हमे एक काम दिया है तुम दोनों मेरा हाथ बटाओ, सर से सीने तक मेरे ज़िम्मे है और आज़ाए असफल यानि सीने से पैर तक तुम दोनों मुतवज्जेह रहो, अल्गर्ज़! इन हज़रात ने मिलकर कोशिश की थी और हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद रहमतुल्लाह अलैह की बिमारी ख़त्म हो कर सेहत में तब्दील हो गई,
अल्लाह हूअकबर! क्या तसर्रुफ़ है शैख़ का के ऐसे जलीलुल क़द्र औलियाए वक़्त हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! से इस्तिआनत फरमाएं और हज़रत ख्वाजा शैख़ शाही रहमतुल्लाह अलैह की दुआ से सेहत पाएं।

कब्र को खोद देना

सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! अक्सर फरमाते थे कि “मेरी वफात (इन्तिकाल) के बाद अगर किसी को कोई मुश्किल या हाजत पेश आए तो उस से कहो वो तीन रोज़ मेरी कब्र की ज़ियारत को आए। अगर तीन रोज़ गुज़र जायें और उसका वो काम पूरा न हो तो चौथे रोज़ आए और अगर चौथे. रोज़ भी उसकी हाजत पूरी न हो तो पांचवें दिन मेरी कब्र की ईंट से ईंट बजा दे यानी खोद खोद कर बेनामो निशान कर दे।

आँखें रोशन हो गईं

किताब जामिउल कमालात! में लिखा है के: मुल्के यमन के सुल्तान सालेह जब आँखों से नाबीना हो गए तो उन्होंने इलाज कराया मगर कोई फायदा न हुआ तो वो अपनी सल्तनत को अपने वज़ीर को सौंप कर मदीना शरीफ में हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मज़ार मुबारक पर हाज़री दी, सुबह शाम अपनी आँखों की रौशनी के लिए दुआ मांगते रहे, एक रात का वाक़िआ है के नीँद की हालत में रात को ख्वाब में बशारत हुई के तुम रोशन ज़मीर के मज़ार! बदायूं जा कर हाज़री दो, तुम्हारी हाजत पूरी होगी, ये नेक सालेह सुल्तान! बदायूं आए और हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार मुक़द्दस पर हाज़री दी और यहाँ की ख़ाक अपनी आँखों में लगाते रहे, अल्लाह पाक के फ़ज़्लो करम से कुछ दिन बाद इन की आँखों की रौशनी वापस आ गई और हर चीज़ को अच्छी तरह से देखने के काबिल हो गए, तो इन्हों ने दौलत और दुनिया पर लात मार दी और सल्तनत के ख्याल को दिल से निकाल कर हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में अपनी बाकि उमर गुज़ारदी और यहीं इन्तिकाल हुआ बदायूं शरीफ में मज़ार है।

विसाल का सबब

हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! के यहाँ अक्सर इशा की नमाज़ के बाद मजलिस महफ़िल मुनअकिद होती थी, एक रात का वाक़िआ है के आप के यहाँ बाहर से कुछ मेहमान तशरीफ़ लाए थे, उन्होंने रात भर खूब शोर शराबा किया, उस ज़माने में जामा मस्जिद शम्शी में हज़रत ख्वाजा मसऊद नखासी रहमतुल्लाह अलैह नाम के एक मजज़ूब बुज़रुग रहते थे जो दिन भर अपनी झोंपड़ी में पड़े रहते थे, और रात को शहर का गश्त लगाते थे, जो लोगों में सिराजुल हिदायत! के नाम से भी मशहूर थे, उस रात को जब वो गश्त को निकले तो उन्हों ने शोर शराबे को पसंद नहीं किया, सुबह को जब हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! रोज़ाना की तरह अपने मुरीदों के साथ जामा मस्जिद शम्शी में फजर की नमाज़ पढ़ने गए, तो हज़रत ख्वाजा मसऊद नखासी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! को देखा और देखते ही ज़ोर से कहा के ऐ जवान सियाह फाम! तूने वो खूब काम हंगामा गरम किया है के कहीं तू खुद ही इस आग में ना जल जाए, हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! ने उन मजज़ूब को जवाब दिया तू भी जल जाएगा,

एक दिन आप कुरआन शरीफ की तिलावत कर रहे थे, के चिराग का गुल फर्श पर गिरा, आप मामूली तौर पर इस को मिल कर तिलावत में मशगूल हो गए, वो गुल सही तौर से मिला नहीं था, भड़क उठा और सारे बाला खाने में आग लग गई, इस का सदमा आप बर्दाश्त ना कर सके और दुनिया से रुखसत हो गए,
आप की नमाज़े जनाज़ा आप के उस्ताज़ क़ाज़ी हुस्सामुद्दीन हाजी मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने पढाई और अपने वालिदैन के पास सोत नदी के पार बन में दफ़न हुए, बा ज़ाहिर ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूएताब बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह! हमारी आँखों से पोशीदा हैं मगर हमसब पर आप का फैज़ान आज भी जारी है।

आप के मलफ़ूज़ात मुबारक

  1. आमाल में बेहतरीन वह है जो बुजुर्गाने सल्फ ने किया है और बेहतरीन इल्म वो है जो उन्होंने फरमाया है जो अमल बुजुर्गों ने नहीं किये वह मत करो, जो नहीं बयान फरमाया वह न बयान करो।
  2. कामिल अक्ल वो है जो मुवाफिक तौफीक के हो और बदतरीन ताअत वो है जिस से गुरूर पिन्दार हो। इस से बेहतर वह गुनाह है जिसके बाद तौबा की तौफीक मयस्सर हो ।
  3. मुहब्बत हकीकी हक तआला की इनायत व बख्शिश है।
  4. जिस चीज़ को हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है उस पर पूरा अमल करना अदब है।
  5. जो आदमी मखलूके खुदा के साथ खुश अख़लाक़ी से पेश आता है उसको बुलन्द मर्तबा हासिल होता है।
  6. जब कोई मुहब्बत का दावा करता है तो मुहब्बत से दूर हो जाता है।
  7. एक मर्तबा किसी शख़्स ने हाज़िर होकर अर्ज़ किया कि गोशा नशीन होना चाहता हूँ। आपने दरयाफ्त फरमाया कि गोशे में बैठ कर किस से मिलना चाहता है। फिर फ़रमाया ज़ाहिर में ख़ल्क के साथ रहो बातिन में अल्लाह तआला के साथ।
  8. जिसकी तौबा अमल से दुरुस्त है वही मकबूल है।
  9. फ़रमाया, असबाब ज़ाहिरी पर भरोसा करने से गुरूर पैदा

आप के खुलफाए किराम

आप के खुलफाए किराम के नाम तलाश के बावजूद हमे सिर्फ ये नाम ही मिले हैं:
(1) शाहे विलायत शैख़ अबू बक्र मूयेताब ख्वाजा बदरुद्दीन बदायूनी
(2) हज़रत ख्वाजा उस्मान
(3) हज़रत ख्वाजा शादी लखनूती
(4) हज़रत शैख़ अहमद तख्ता बदायूनी

इन्तिक़ाले पुरमलाल

24/ रमज़ानुल मुबारक ६३२/ हिजरी को आप का इन्तिकाल हुआ।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक सोत नदी के पार यूपी के ज़िला बदायूं शरीफ में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  1. मरदाने खुदा
  2. तज़किरतुल वासिलीन
  3. अख़बारूल अखियार
  4. दो सरकारें

Share Kare’n JazaKallh Khaira

Share this post