हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

उस्ताज़े मुकर्रम

क़ुत्बे ज़माना, शैख़े यगाना, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जामे कमालाते मानवी व सूरी हैं, आप क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के उस्ताद हैं, आप एक अज़ीम आलिमे दीन, और साथ ही साथ एक खुदा रसीदा बुज़रुग थे।

खानदानी हालात

आप रहमतुल्लाह अलैह मुल्के उज़्बेकिस्तान के शहर बुखारा! से तअल्लुक़ रखते थे, आप के वालिद माजिद का नाम “अताउल्लाह महमूद” था, शहर बुखारा! के बादशाह थे, इसी लिए आप को सुल्तान अताउल्लाह महमूद! कहते थे,

नसब नामा पिदरी

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का नसब नामा पिदरी हस्बे ज़ैल है: शैख़ मुहम्मद बिन, सुल्तान अताउल्लाह महमूद बिन, सुल्तान अहमद बिन, सुल्तान मुहम्मद बिन, शैख़ युसूफ बिन, शैख़ तय्यब बिन, शैख़ इस्माईल बिन, ताहिर बिन, याकूब बिन, इसहाक बिन, इस्माईल बिन, कासिम बिन, मुहम्मद बिन, अमीरुल मोमिनीन हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

विलादत बसआदत

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश 463, हिजरी शहर बुखारा उज़्बेकिस्तान में हुई, इब्तिदाई ज़िन्दगी आप ने अपने वालिद माजिद के सायाए आतिफ़त में नशो नुमा पाई, आप के वालिद माजिद ने आप की तालीमों तरबियत पर खास तवज्जुह दी।

नाम मुबारक

आप इस्मे गिरामी “मुहम्मद” है, आप मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में तशरीफ़ फरमा थे, आप को “क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी” का ख़िताब बारगाहे रिसालत हुज़ूर ﷺ से अता हुआ, और आप इसी ख़िताब से मशहूर हुए।

तख़्त नशीनी

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद ने कुछ तो ज़ईफ़ी की वजह से और कुछ मुहब्बत की वजह से आप को तख़्त पर बिठा कर खुद हुकूमत से किनारा कश हो गए, उस वक़्त हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की उमर 52, साल थी, आप ने अपनी ज़िम्मेदारियों को बहुस्ने खूबी अंजाम दिया,
पहला सदमा: आप की शरीके हयात ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) माहिरू! का इन्तिकाल हो गया, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के लिए ये सदमा ऐसा था के जिससे आप की ज़िन्दगी और आप के खयालात में काफी तबदीली आई।

तख्तो ताज ठुकरा दिया

ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) माहिरू! के इन्तिकाल के बाद हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अक्सर तन्हाई में बैठ कर मोत और ज़िन्दगी के फलसफे के मुतअल्लिक़ सोचा करते थे, अब आप को महसूस हुआ के दुनिया नापाएदार है, इस की हर चीज़ फानी है, फिर अल्लाह पाक से क्यों ना दिल लगाया जाए जिस को फना नहीं, आप इन्ही खयालात में रहते थे, एक दिन शिकार के लिए निकले, आप ने एक हिरन का पीछा किया और उस के एक तीर मारा, वो ज़ख़्मी हुआ, जब आप उस हिरन के करीब पहुंचे तो उस हिरन ने आप से मुख़ातब हो कर कहा:
ऐ अज़ीज़! तू अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का बंदा है, मुझ बे गुनाह को क्यों मारा? अपने परवरदिगार को क्या जवाब देगा, आप महल वापस आए तख्तो ताज को ठुकरा दिया और हक की तलाश के लिए राहे खुदा में निकल पड़े,
शहर बुखारा से रवानगी के वक़्त आप के वालिद माजिद भी आप के साथ में थे, आप किरमान! पहुंचे, किरमान में आप ने हज़रत ख्वाजा अबू बक्र किरमानी! के यहाँ क़याम फ़रमाया, किरमान में आप की दूसरी शादी हज़रत ख्वाजा अबू बक्र किरमानी की साहबज़ादी बीबी हुमैरा! से हुई,

खिज़र अलैहिस्सलाम से मुलाकात

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने अहलो अयाल को किरमान में छोड़ा और खुद वालिद माजिद के साथ हक़ की तलाश में निकले, हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम को हुक्म हुआ के मुहम्मद बिन अता यानि हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को इल्मे लदुन्नी सिखाओ! हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम ने 12, बराह साल! तक आप को अपनी खिदमत में रखा और तालीम दी, जब तालीम पूरी हो गई, हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम ने आप को बाग्दाद् शरीफ जाने का हुक्म दिया।


बैअतो खिलाफत


जिस वक़्त हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बाग्दाद् शरीफ पहुंचे, आप के पास अपनी चार तसानीफ़ थीं, बाग्दाद् शरीफ में आप शैख़े तरीकत हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीदो बैअत हुए, आप के पीरो मुर्शिद ने हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जुब्बा मुबारक आप को अता फ़रमाया और आप को खिलाफत से सरफ़राज़ किया,
बाग्दाद् शरीफ से आप मक्का शरीफ तशरीफ़ ले गए, आप ने हज अदा किया, वहां से मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा गए, और मदीना शरीफ में आप ने दो साल क़याम फ़रमाया, एक रोज़ आप को बारगाहे रिसालते मआब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से काज़ी हमीदुद्दीन नागोरी! का ख़िताब मिला, आप नागौर से वाकिफ ना थे, जब आप को ये मालूम हुआ के नागौर! हिंदुस्तान में है तो आप ने हिंदुस्तान आने का इरादा किया।

हिंदुस्तान में आप की आमद

मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से रवाना हो कर बाग्दाद् आए और अपने पीरो मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर हुए, बाग्दाद् से मआ जुब्बाए मुबारक हिंदुस्तान के लिए रवाना हुए, रास्ते में किरमान में चंद रोज़ क़याम फ़रमाया, किरमान से अपने अहलो अयाल और वालिद माजिद को साथ ले कर शहर पिशावर! पहुंचे, शहर पिशावर! में कुछ मुद्दत तक क़याम किया, अपने अहलो अयाल और वालिद माजिद को वहीँ छोड़ा और हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए,
आखिर कार जब आप हिंदुस्तान में तशरीफ़ लाए तो सूबा राजिस्थान के शहर नागौर! में जलवा अफ़रोज़ हुए और एक बूढ़ी औरत के यहाँ कायम किया, शहर नागौर को आपने अपनी रूहानी कुव्वतों से फ़तेह किया, और लोगों ने आप के पैगामे हक को कबूल किया,

क़ुत्बुल अक्ताब को तालीम देना

शहर नागौर में आप ने कुछ दिनों क़याम फ़रमाया, एक दिन हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को हातिफे गैब “ऊश पहुंच कर हमारे क़ुतुब को तालीम दो” आप ऊश पहुंच कर क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को इल्मे दीन हासिल कराया, क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह 15, पारे याद कर चुके थे, आप ने बाकी पंदिराह पारे ख्वाजा क़ुतुब! को आप ने पढ़ाए, क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की तालीम के बाद आप दिल्ली तशरीफ़ लाए,
बाग्दाद् शरीफ से आप दिल्ली आए, रास्ते में शहर पिशावर में ठहरे अपने अहलो अयाल और वालिद माजिद को वहीँ छोड़ा और हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए, दिल्ली में आप ने एक मकान ख़रीदा और उस में रहने लगे, दिल्ली में ही आप के वालिद माजिद का इन्तिकाल हुआ,
हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! और हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह सिमअ सुनते थे, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का इक्तिदार बाज़ लोगों को नागवार था, इन्होने सिमअ की आड़ में आप की मुखालिफत शुरू की, क़ाज़ी सअद और क़ाज़ी इमाद को हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ऐसी बद्दुआ लगी के इन दोनों को अपनी जान से हाथ धोने पड़े।

आप को काज़ी बनाया गया

सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमश ने आप के शहर नागौर का क़ाज़ी! मुकर्रर किया, आप ने इस उहदे को कबूल किया, तीस साल तक आप ने क़ज़ा! यानि काज़ी (चीफ जस्टिस) के उहदे को ज़ीनत बख्शी, आप ने क़स्बा रहिल आबाद किया, बा फरमान हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप हरमैन शरीफ़ैन चले गए, और क़ज़ा का उहदा अपने बेटे मौलाना ज़हीरुद्दीन साहब! को सुपुर्द कर दिया, मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से दिल्ली वापस तशरीफ़ लाए।

सीरतो ख़ासाइल

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे दिल होने के अलावा साहिबे इल्म एक अच्छे आलिमे दीन भी थे, आप इल्मे ज़ाहिर व बातिन में कमाल रखते थे, आप को सिमअ का बहुत शोक था, दिल्ली में सिमा का सिक्का आप ही ने जमाया था, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तबियत में खुश तबई का ज़ोक भी था, जिस की वजह से कभी कभी अपने साथियों से खुश तबई भी कर लिया करते थे,
एक दिन क़ाज़ी साहब! शैख़ बुरहानुद्दीन और अपने ज़माने के मशहूर क़ाज़ी कबीर के साथ कहीं जा रहे थे, आप का घोडा दूसरे दो साथियों की निस्बत छोटा था, चुनांचे काज़ी कबीर ने हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से कहा के आप का घोड़ा बहुत छोटा है, तो क़ाज़ी साहब! ने बतौरे मज़ाह फ़रमाया के कबीर से तो बड़ा है।

अक़्द मस्नून

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने दो शादियां कीं, आप की पहली शादी बीबी माहिरु से हुई थी, आप की दूसरी शादी बीबी हुमैरा से हुई, इन से सात बेटे और दो लड़कियां हुईं, लड़कों के नाम हस्बे ज़ैल हैं:
(1) मौलाना नासेहुद्दीन, (2) मौलाना अहमद ज़हीरुद्दीन, (3) शैख़ अलीमुद्दीन, (4) शैख़ हुस्सामुद्दीन, (5) शैख़ वजीहुद्दीन, (6) शैख़ अब्दुल्लाह, लड़कियां, (1) बीबी अल हदिया, (2) बीबी साहब दौलत।

आप के खुलफाए किराम

(1) आप के सब से ज़ियादा मशहूर खलीफा! हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही उर्फ़ बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह हैं,
(2) हज़रत ख्वाजा शैख़ ऐनुद्दीन कस्साब
(3) ख्वाजा शैख़ महमूद मोइयाना दोज़
(4) हज़रत ख्वाजा शैख़ अहमद नहरवानी

आप की तसानीफ़

आप की मशहूर तसानीफ़ हस्बे ज़ेल हैं: तवालेउश शुमूस शरहे असमाए हसना, लवामे, लवाहे, मताले, शहरहे चेहल हदीस, किताब हफ्त अहबाब, रिसाला।

करामात जोगी मुरीद बन गया

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बगदाद शरीफ से दिल्ली तशरीफ़ ला रहे थे, रास्ते में एक जोगी से मुलाकात हो गई जिस का नाम गियान नाथ! था, उसने आप को किसी घास की जड़ पेश की जिससे सोना बनता था, आप ने वो जड़ दरिया में फेंक दी, जोगी को अफ़सोस हुआ, आप ने दरिया में हाथ डाल कर उस जड़ को निकाल लिया, फिर आप ने उससे फ़रमाया के आँखें बंद करो, जब उस ने आँखें बंद कर के खोलीं तो वो अर्श से तहतुस सरा तक देख सकता था, उस को चरों तरफ सोना नज़र आता था, वो जोगी बहुत मुतअस्सिर हुआ और आप का मुरीद हो गया।

बारिश होने लगी

एक बार दिल्ली में बारिश नहीं हो रही थी, बादशाहे वक़्त ने मशाइखे किराम से दुआ की दरख्वास्त की, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने सिमअ की फरमाइश की, बादशाह ने खाने और सिमअ का इंतिज़ाम किया, खाने के बाद सिमअ शुरू हुआ, ऐसी बारिश हुई के लोग कहने लगे के अब रुक जाए तो बहुत अच्छा है।

विसाले पुरमलाल

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने तरावीह की नमाज़ में कुरआन शरीफ सुनाया और वितर की नमाज़ के बाद हालते सजदा में 9, रमज़ानुल मुबारक 643, हिजरी में इन्तिकाल फ़रमाया, विसाल के वक़्त आप की उमर शरीफ 180, साल की थी, वफ़ात के करीब आप ने वसीयत की के मुझे क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की पायंती यानि पैरों की जानिब दफ़न किया जाए, क़ाज़ी साहब! के साहबज़ादे इस वसीयत पर अमल करना नहीं चाहते थे, लेकिन चूंकि क़ाज़ी साहब की वसीयत थी, इस लिए मजबूरन उन्होंने वहां दफन किया लेकिन इनका चबूतरा हज़रत ख्वाजा क़ुतुब साहब रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार शरीफ से ऊंचा कराया, बाद में हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने ख्वाब में अपने बेटों से फ़रमाया के तुमने चबूतरा बुलंद कर के मुझे क़ुतुब साहब! के सामने सख्त शर्मिंदाह किया है, आप ने अलाउद्दीन खिलजी के दौरे हुकूमत में फवात पाई,
सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते थे के में ने कई मर्तबा इन बुज़ुरगों के मज़ारात के दरमियान नमाज़ अदा की है और निहायत ज़ोक व सुकून पाया है, ये जगह का असर नहीं, जगह में क्या रखा है, बल्कि ये इन दोनों बुज़ुरगों! का असर है, एक तरफ एक बादशाह सो रहा है और दूसरी तरफ दूसरा बादशाह आराम फरमा रहा है।

मज़ार मुक़द्दस

आप का मज़ार शरीफ हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की कदमो की जानिब एक बुलंद चबूतरे पर है, दिल्ली महरोली शरीफ में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • ख़ज़ीनतुल असफिया
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  • दिल्ली के बाईस ख्वाजा
  • मर्दाने खुदा

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