मुफ़्ती मुहम्मद रज़ा खान कादरी बरकाती

बिरादिरे असगर व शागिरदे आला हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद रज़ा खान कादरी बरकाती उर्फ़ नन्हें मियां बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

विलादत

अफसोस की आप की तारीखे पैदाइश न मिल सकी।

नाम मुबारक

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “मुहम्मद रज़ा खान” “उर्फ़ नन्हें मियां” बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! है, रईसुल अतकिया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह! के सब से छोटे साहबज़ादे और मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के बिरादरे असगर थे, वालिद गिरामी रईसुल अतकिया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह! के सब से छोटे साहब ज़ादे होने की वजह से बहुत मुहब्बत फ़रमाया करते थे, वालिदा माजिदा हज़रत हुसैनी खानम! ने बड़े नाज़ो नेअम लाड प्यार से परवरिश की, अहले खानदान प्यार से “उर्फ़ नन्हें मियां” कहा करते थे।

तालीमों तरबियत

आप की इब्तिदाई तालीमों तरबियत घर ही पर हुई, शुरू से आखिर तक तमाम क़ुतुब बिरादिरे अकबर यानि आप के बड़े भाई मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! से पढ़ीं, फन्ने शायरी से भी शग़फ़ (लगाओ) था, इस फन में भी आप के उस्ताज़ बिरादिरे अकबर ही थे।

इजाज़तो खिलाफत

आप को बैअत का शरफ़ कुदवतुल वासिलीन, नूरुल आरिफीन सिराजुस सालिकींन हज़रत अल्लामा शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी कादरी बरकाती मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! से है, और बिरादिरे अकबर यानि आप के बड़े भाई मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने भी इजाज़तो खिलाफत अता की।

अक़्द मस्नून (निकाह)

हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद रज़ा खान कादरी बरकाती उर्फ़ नन्हें मियां बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप की शादी गुलाम अली साकिन मुहल्लाह ख्वाजा क़ुतुब! बरेलवी की साहबज़ादी “सकीना बेगम” के साथ हुई, बड़ी खुशगवार ज़िन्दगी फैज़े अज़ल से अता हुई थी, ऐन शबाब के आलम में वफ़ात हो जाने की वजह से सिर्फ एक साहबज़ादी “फातिमा बेगम” आप ने अपने पीछे यादगार छोड़ीं, इस इकलौती साहबज़ादी का निकाह बिरादरे अकबर खलफ़े असगर सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु! से हुआ था, हज़रत फातिमा बेगम बहुत दीनदार और इबादत गुज़ार थीं, अहले अकीदतमंद आप को पीरानी अम्मा! के नाम से याद करते थे, इसी तरह आप सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु! के चचा मुहतरम! और खुस्र यानि ससुर भी थे।

सफर हज्जो ज़ियारत

1332/ हिजरी मुताबिक़ 1905/ ईसवी में बिरादरे अकबर हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! के साथ सफरे हज की सआदत हासिल की, दौराने हज “किताब अद्दौलतुल मक्किया” की तरतीब में बिरादिरे बुज़रुग के मुआविन बने, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! की बारगाह में जितने फतावे आते थे, उन में से फराइज़ो मीरास से मुतअल्लिक़ मसाइल के फतावे! हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद रज़ा खान कादरी उर्फ़ नन्हें मियां बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ही लिखा करते थे, उस्ताज़े ज़मन हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! के विसाल के बाद मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! की जागीर का सारा इंतिज़ाम आप के सुपुर्द हो गया, था, खानदान की सारी जागीर का इंतिज़ाम व इनसिराम आप ही करते थे,

चुगल खोर खामोश हो गया

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! को आप से बड़ी मुहब्बत थी, एक मर्तबा आप ने अपनी बीवी के लिए सोने के कड़े बनवा दिए, किसी चुगल खोर ने मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु!से शिकायत करते हुए इस का ज़िक्र किया, आप ने फ़रमाया: “अगर नन्नेह मियां” ने ये कड़े अपने माल से बनवाए हैं, तो मुझे ख़ुशी है के अल्लाह पाक ने उन को इतना माल दिया है, और अगर मेरे माल से बनवाएं हैं तो मुझे ख़ुशी है के मुफ़्ती मुहम्मद रज़ा खान कादरी उर्फ़ नन्हें मियां बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने मेरे माल को अपना माल समझा,ये सुनकर चुगल खोर खामोश हो गया।

विसाल

अफ़सोस के ज़िन्दगी ने वफ़ा ना की, और हयाते मुस्ताआर ने आप को बहुत ज़ियादा मुहलत ना दी, वरना आप अपने इल्मो कमाल के अहदे शबाब में यकीनन किसी रूमी व राज़ी ज़माना से कम ना होते, ऐन आलमे शबाब में आप का पैमाना उमर लबरेज़ हो गया, और जुमेरात 21/ शाबानुल मुअज़्ज़म 1358/ हिजरी मुताबिक 5/ अक्टूबर 1339/ ईसवी आप की रूह कफसे उन्सरी से परवाज़ कर गई, नमाज़े जनाज़ाह हज़रत मौलाना अब्दुल अज़ीज़ खान साहब मुहद्दिस ने पढाई, वालिद माजिद के ही करीब में तद्फीन हुई, जिस पर सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु ने मकबरा तामीर करवाय।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुकद्द्स सिटी स्टेशन कब्रिस्तान सिविल लाइन ज़िला बरैली शरीफ यूपी इंडिया में ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • तजल्लियाते ताजुश्शरिया
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