हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत शैख़ ख्वाजा बदरुद्दीन ग़ज़नवी

हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मक़बूले बारगाहे ईज़दी हैं, क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदो खलीफा हैं, आप अफगानिस्तान के शहर गज़नी! के रहने वाले थे।

आप का ख्वाब

हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक रात हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा के आप और तमाम सहाबाए किराम और मशाइखे इज़ाम तशरीफ़ फरमा हैं, हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप का हाथ पकड़ कर एक दुर्वेश के सुपुर्द किया, और फ़रमाया:
ऐ बदरुद्दीन! तू इस दुर्वेश का मुरीद हो, वो दुर्वेश जवान थे, अभी दाढ़ी निकल रही थी, उन दुर्वेश का नाम वो दुर्वेश कोई और नहीं हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह थे।

पीर की तलाश

हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ख्वाब से बेदार हो कर आप ने ये इरादा किया के जो दुर्वेश ख्वाब में दिखाए गए हैं, उन्हें तलाश करेंगें, पीर की तलाश आप को शहर बा शहर लिए घूमती रही, आप घुमते रहे, अपना घर छोड़ा, अपना वतन छोड़ा, अपने अज़ीज़ो अक़ारिब को छोड़ा, आप अफगानिस्तान के शहर गज़नी से रवाना हुए, इस सफर का हाल आप ने खुद एक मर्तबा सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को बताया:
के शहर गज़नी! से लाहौर आया तो उन दिनों शहर लाहौर आबाद था, कुछ मुद्दत में वहां रहा, फिर वहां से मेरा इरादा सफर का हुआ, कभी मेरा दिल चाहता था के दिल्ली जाऊं, और कभी चाहता था के वापस शहर गज़नी! जाऊं, में शशो पंज में था, लेकिन दिल की कशिश शहर गज़नी! की ज़ियादा थी, क्यों के वहां माँ, बाप, भाई, खेशो अक़रबा रहते थे, और दिल्ली में एक दामाद के सिवा और कोई नहीं था,
आप कुछ तय ना कर सके के किधर जाएं, आखिर कार आपने ये तय किया कुरआन शरीफ की फाल देखना चाहिए जो कुछ भी इसमें निकलेगा, उस पर अमल होगा, आप खुद फरमाते हैं:
मुख़्तसर ये के में ने कुरआन शरीफ से फाल देखने का इरादा किया, एक बुज़रुग की खिदमत में हाज़िर हुआ, पहले गज़नी शहर की नियत से देखा तो अज़ाब की आयत निकली, फिर दिल्ली की नियत से देखा तो बहशती नदियों और बहिश्त के औसाफ की आयत निकली, अगरचे दिल तो गज़नी की तरफ जाने को चाहता था, लेकिन फाल के मुताबिक दिल्ली आया।

आप की दिल्ली में आमद

हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं जब शहर पंहुचा तो सुना के मेरा दामाद कैद में है, में बादशाह के दरवाज़े पर आया ताके उन के हाल की इत्तिला दूँ, में ने देखा, तो घर से निकला ही था, हाथ में कुछ रूपये लिए हुए था, मुझ से बगलगीर हुआ और निहायत खुश हुआ, मुझे अपने घर ले गया और रुपये मेरे सामने ला रखे, मेरा दिल मुत्मइन हुआ,
आप ने हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मुतअल्लिक़ दरयाफ्त किया, आप की मसर्रत की कोई इंतिहा ना थी, जब आप को मालूम हुआ के, वो दुर्वेश जिन का नाम ख्वाजा कुतबुद्दीन! है और जिन को आप ने ख्वाब में देखा था, दिल्ली में तशरीफ़ रखते हैं, एक मशहूर दुर्वेश हैं और हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह एक ही जगह साथ रहते हैं, फिर आप ने उमर के मुतअल्लिक़ दरयाफ्त किया, आप को बताया गया के हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह ज़ईफ़ हैं, उन की उमर तकरीबन सौ साल के करीब है, लेकिन हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की जवानी का आगाज़ है, करीब सत्तरह साल के होंगें, दाढ़ी निकल रही है,
ये सुनकर आप को पूरा यकीन हो गया के वो दुर्वेश जिन को उन्होंने ख्वाब में देखा था यही बुज़रुग हैं, आप हज़रत क़ुतुब साहब! की खिदमत में हाज़िर होने के लिए बेचैन थे, कुछ लोगों से आप को हज़रत क़ुतुब साहब की खानकाह का पता मालूम हुआ, आखिर कार आप खानकाह पहुचें, खानकाह में उस वक़्त सिमा हो रहा था, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ फरमा थे।

खिलाफ़तो इजाज़त

हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने लोगों से हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह का पता मालूम किया, आखिर कार आप मालूम करते हुए खानकाह शरीफ पहुंच गए, खानकाह शरीफ में उस वक़्त महफिले सिमअ हो रही थी, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ रखते थे, आप अदब से बैठ गए, जब महफ़िल खत्म हुई तो आप ने हज़रत क़ुतुब साहब रहमतुल्लाह अलैह! के कदमो को चूमा और निहायत अदब से अर्ज़ किया के गुलाम बदरुद्दीन! आप का मुरीद होना चाहता है,
हज़रत क़ुतुब साहब रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: ऐ बदरुद्दीन! तू मेरा मुरीद उसी रात हो गया था, जिस रात तूने हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा था और हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा था और हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तुझे मेरे सुपुर्द फ़रमाया था और हुक्म दिया था के इसे मुरीद बना ले, मेने उसी रात अल्लाह पाक के सामने तुझे मुरीद कर लिया था और अल्लाह पाक की बारगाह में अर्ज़ किया था के बदरुद्दीन को कबूल फ़रमाले, गैबी आवाज़ आई थी के ऐ कुतबुद्दीन! हमने तेरी दुआ कबूल की, हमने बदरुद्दीन को कबूल फरमा लिया और अपना दोस्त बना लिया, आप अपने पीरो मुर्शिद की खिदमत में रह कर दर्जाए कमाल को पहुंचे, और क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने आप को खिलाफत अता फ़रमाई, और खिरका भी हासिल किया।

मुर्शिद का फैज़ान

मुरीद करने के बाद क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इरशाद फ़रमाया के ऐ बदरुद्दीन! आसमान की तरफ देख, आप ने आसमान की तरफ देखा, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ऐ बदरुद्दीन! तूने कुछ देखा, आप ने अर्ज़ किया “में अर्शो कुर्सी को देख रहा हूँ” फिर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया ऐ बदरुद्दीन! तू लोहे महफूज़ को देख के इस में क्या लिखा हुआ है के तू किस का मुरीद है? आपने लोहे महफूज़ को देख कर अर्ज़ किया के इस में लिखा है के में आप का मुरीद हूँ, फिर आप ने इरशाद फ़रमाया के ज़मीन की तरफ देख, आप ने ज़मीन की तरफ देख कर अर्ज़ किया के में तह्तुस सरा! तक देख सकता हूँ।

आदातो अख़लाक़

हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन ग़ज़नवी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हाफिज़े कुरआन थे, और एक कुरआन शरीफ दिन को और एक रात को खत्म करते थे, आप के बुलंद पाया दुर्वेश थे, एक अच्छे आलिमे दीन थे, रात को जागते थे, दुरवेशों की खिदमत करते, आप दो सौ मशाइखे इज़ाम से मिले और उन से रूहानी फैज़ान हासिल किया, उनकी निगाहें फ़ैज़ो बरकात से आप खूब फ़ैज़याब हुए, आप की बुज़ुर्गी के सबब मोतरिफ मोतक़िद आशिक़ीन काफी थे, आप वाइज़ बहुत कहा करते थे,
आप को सिमअ का बहुत शोक था, बावजूद कमज़ोरी के आप सिमा में रक्स करते, आप से दरयाफ्त किया गया रक्स क्यों करते हो? आप ने जवाब दिया के वो खुद नहीं नाचता बल्के इश्क नचाता है, आप को शायरी का भी बहुत शोक था।

पीरो मुर्शिद की नसीहतें

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन ग़ज़नवी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को बतौरे नसीहत फ़रमाया: हमारे पीरो की पैरवी करो, फ़क्ऱो फाका इख़्तियार करो, गुरबा मसाकीन मुफ़लिसों कल्लास को अज़ीज़ जानो, दुनियादारों से मेलजोल ना रखो, दुनिया से दूर रहो, गुदड़ी पहनो, हर वक़्त अल्लाह पाक के ज़िक्र में मशग़ूलो मसरूफ रहो, अल्लाह पाक के दोस्तों से लगाओ मुहब्बत करो, मालदारों से ज़ियादा फकीरों की इज़्ज़त करो, फकीरों के हाथ खुद अपने हाथ से धोओ।

खानकाह की इमामत

क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने खानकाह शरीफ! की इमामत आप के सुपुर्द फ़रमाई, आप ने इस खिदमत को बा हुस्ने खूबी अंजाम दिया,
जिस वक़्त आप दिल्ली में रहने लगे कुछ दिनों के बाद आप को ये मालूम हुआ के मुगलों ने गज़नी शहर को बर्बाद कर दिया और आप के वालिदैन, भाई बहन, खेश अक़रबा को शहीद कर दिया आप को सख्त सदमा पंहुचा।

पीरो मुर्शिद की खिदमत

आप ने अपने पीरो मुर्शिद की खिदमत में हर वक़्त हाज़िर रहते थे, अपने पीरो मुर्शिद की खिदमत को अपने लिए बाइसे सआदत समझते थे, जब आप अपने पीरो मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर होते तो बा अदब बैठते और सर झुका लेते थे,
आप को अपने पीरो मुर्शिद क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह का खलीफा जानशीन और काइम मक़ाम बनने की आरज़ू थी, आप की ये आरज़ू पूरी हुई।

मजलिसे वाइज़

हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन ग़ज़नवी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की मजलिसे वाइज़ में हर तबके के लोग होते थे, आप की मजलिस में हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत सय्यद मुबारक ग़ज़नवी, हज़रत शैख़ ज़ियाउद्दीन मर्दे गैब, हज़रत मौलना मुहम्मद, और हज़रत ख्वाजा काज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह! ने शिरकत फ़रमाई है।

करामात

आप की हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम से मुलाकात भी हुई थी, एक मर्तबा आप के वालिद माजिद ने आप से कहा के: “अगर मुझे हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम को दिखाओ तो बहुत अच्छा होगा” एक दिन आप वाइज़ फरमा रहे थे और आप के वालिद माजिद भी वहां तशरीफ़ रखते थे, एक ऊंची जगह पर जहाँ कोई नहीं बैठ सकता था, एक शख्स बैठा हुआ था, हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन ग़ज़नवी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने वालिद से कहा के देखो वो हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम हैं, आप के वालिद माजिद ने वाइज़ के बाद मिलना मुनासिब समझा, जब वाइज़ ख़त्म हुआ तो उस जगह कोई भी ना था।

बारिश होने लगी

एक मर्तबा दिल्ली में बारिश बहुत कम हुई, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश ने आप से दुआ के लिए कहा, आप ने फ़रमाया जब तक बदरुद्दीन ज़िंदा है, कभी भी दिल्ली में कहित सूखा नहीं पड़ेगा, और ना नही बारिश की कमी होगी, आप के ये फरमाते ही बारिश होने लगी,
आप हर जुमेरात को मक्का मुअज़्ज़मा व मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की ज़ियारत से मुशर्रफ होते थे।

विसाल

हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन ग़ज़नवी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने विसाल फरमाने से पहले आप ने हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह मर्दे गैब के भतीजे हज़रत ख्वाजा इमामुद्दीन अब्दाल रहमतुल्लाह अलैह को अपना जानशीन बना दिया, और उन् को गुदड़ी दे कर दुआए खेर फ़रमाई, आप हर साल माहे रजब शरीफ के आखिर में दराज़िये उमर की नमाज़ पढ़ा करते थे, जिस साल आप की वफ़ात हुई आप ने ये नमाज़ नहीं पढ़ी, जब नमाज़ ना अदा करने की वजह मालूम की तो फ़रमाया के उमर बाकी नहीं, आप ने सौ साल से ज़ाइद उमर में सुल्तान नासिरुद्दीन! के दौरे हुकूमत 657, हिजरी में वफ़ात पाई।

मज़ार मुक़द्दस

आप का मज़ार शरीफ क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की पाइंति यानि पैरों के सामने तीन मज़ार शरीफ हैं, उन में पहला मज़ार शरीफ आप ही का ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है दिल्ली महरोली शरीफ में।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  1. ख़ज़ीनतुल असफिया
  2. दिल्ली की दरगाहें
  3. अख़बारूल अखियार
  4. दिल्ली के बाईस ख्वाजा
  5. सीयरुल आरफीन

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