हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

खानदानी हालात

हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! शमए अंजुमन वलिए कामिल हैं, रुकने रोज़गार हैं, साहिबे असरार हैं, ताजुल औलिया हैं, सिराजुल अतकिया हैं,
आप का सिलसिलए नसब सोला वास्तों से हज़रत मुसअब बिन ज़ुबैर रदियल्लाहु अन्हु तक इस तरह पहुँचता है:
हज़रत मखदूम समाउद्दीन बिन, मौलाना शैख़ फखरुद्दीन बिन, शैख़ जमालुद्दीन बिन, इस्माईल बिन, इब्राहीम बिन, शैख़ हसन बिन, शैख़ कमालुद्दीन बिन शैख़ हसन बिन, ईसा बिन, नूह बिन, मुहम्मद सुलेमान बिन, दवाऊद बिन, याकूब बिन, अय्यूब बिन, हादी बिन, ईसा बिन, मुसअब बिन ज़ुबैर रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

वालिद माजिद

हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक शैख़ फखरुद्दीन! है, जो हज़रत सय्यद सदरुद्दीन मुहम्मद उर्फ़ राजू क़त्ताल रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद थे, हज़रत मौलाना मखदूम शैख़ इसहाक देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के बड़े भाई हैं।

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश 808, हिजरी में पाकिस्तान के शहर मुल्तान में हुई,

नाम मुबारक

आप का इस्मे गिरामी “समाउद्दीन” है।

तालीमों तरबियत

आप ने हज़रत मीर सय्यद शरीफ जुरजानी रहमतुल्लाह अलैह के मशहूर शागिर्द हज़रत मौलाना सनाउद्दीन से उलूमे ज़ाहिरी की तहसील व तकमील की और इल्मे फ़िक़्ह, और इल्मे हदीस, और तफ़्सीर में महारत हासिल की, आप का शुमार साहिबे कमाल और उल्माए किराम व मशाइखे तरीकत में होने लगा, आप ने बातनि उलूम अपने वालिद माजिद से हासिल किया, बारह साल की उमर में आपके वालिद मोहतरम आधी रात के वक़्त अपनी खल्वते ख्वास में बुला बुला कर आप को पंदो नसाहे करते थे, और असरारे इलाही व रुमूज़ो नुकात की तालीम व तलकीन फरमाते, आप के लिए निहायत खुशु ख़ुज़ू से दुआ करते थे, या इलाही अपने करम अमीमो लुत्फे अज़ीम से समाउद्दीन को सआदते अब्दी व दौलते सरमदी अता फरमा।

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अगरचे आप अपने वालिद माजिद से मुरीद थे, लेकिन आप ने खिरकाए खिलाफत हज़रत शैख़ कबीरुद्दीन इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह से हासिल किया, जो शैख़े कबीर! के नाम से मशहूर थे, आप हज़रत शैख़ कबीरुद्दीन इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए और मुरीद बैअत से मुशर्रफ होने की दरख्वास्त की और आप से अर्ज़ किया के उन को कमालात में ऐसी सूरत में कुछ कमी नहीं आएगी,
हज़रत शैख़ कबीरुद्दीन इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के वो अपने भाई हज़रत शैख़ फ़ज़्लुल्लाह से उन को खिलाफत इजाज़त दिलाएंगे, आप ने कई बार अर्ज़ किया, लेकिन वही जवाब मिला आखिर आप ने एक दिन अर्ज़ किया के: बिना इरादत व मुआमला पीरी मुरीदी! रब्ते क्लब से मुतअल्लिक़ है, में इसी राब्ता तअल्लुक़ को हुज़ूर के साथ मुस्तहकम और मुस्तकीम पाता हूँ, फिर आप ने फ़ारसी में एक शेर पढ़ा जिस का मफ़हूम ये है:
अगर आप महरबानी करें या ना करें दर नहीं छोडूंगा, में ने तुम्हारा दर पकड़ लिया है दूसरी जगह नहीं है नहीं रखता, ये सुन कर हज़रत शैख़ कबीरुद्दीन इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह बहुत खुश हुए, आप को गले से लगा लिया अपने हुजराए खास में ले गए और मुरीदी का शरफ़ बख्शा और ज़िक्र तलकीन पंदो नसाहे फरमाते रहे, इस के बाद दोगाना अदा की और आप को खास खिरकाए खिलाफत से नवाज़ा, और हज़रत ख्वाजा समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मज़ीद रुश्दो हिदायत तबलीग़े दीन में मसरूफ हो गए।

शजरए तरीकत

आप रहमतुल्लाह अलैह का शजरए तरीकत हज़रत सय्यदना शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह तक जा कर मिलता है: समाउद्दीन मुरीद, अपने वालिद माजिद शैख़ फखरुद्दीन व हज़रत शैख़ कबीर मुरीद, हज़रत सय्यद सदरुद्दीन मुहमद उर्फ़ राजू क़त्ताल मुरीद, हज़रत सय्यद अहमद कबीर वो मुरीद, हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन अबुल फतह वो मुरीद, हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ वो मुरीद, गौसे ज़मा हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया वो मुरीद, हज़रत सय्यदना शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह।


सीरतो ख़ासाइल

हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जामे उलूमे शरीअत व तरीकत थे, आप की सखावत का ये हाल था के हज़ारों रूपये आते थे, लेकिन आप फुतूह नज़राना में से कुछ भी नहीं लेते थे, सब रकम फुकरा, गुरबा, मसाकीन मुफ़लिसों और यतीमो पर खर्च करते थे, अक्सर क़र्ज़ ले कर आप दूसरों की ज़रूरियात पूरी करते थे, आप की ज़ाते वाला सिफ़ात सूरी व मानवी खूबियों से मुत्तसिफ़ थी, मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं शैख़ समाउद्दीन! ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, और उलूमे रस्मी व हकीकी के जामे थे, जज़्ब ख्वातिर में आप को तसर्रुफ़ कामिल था, आप जिस बीमार को बा निगाहें लुत्फ़ देख लेते, अमराज़े रूहानी से सीना उस का पाक हो जाता और जिस तालिब की तरफ मुस्कुराकर नज़र करते उस का दामने उम्मीद गुलहाए मुराद से भर जाता।

इबादतों रियाज़त

हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप आधी रात को उठ कर वुज़ू कर के नमाज़ पढ़ते थे, एक पहर नवाफिल पढ़ते थे, फिर सुबह सादिक तक मुराकिबा में रहते थे, नमाज़े फजर, नमाज़े चाशत, और नमाज़े अशराक़ अदा करते थे, ज़ोहर की नमाज़ से फारिग होते, असर की नमाज़ के बाद से मुराकिबा में रहते, मगरिब की अज़ान सुन कर आँखें खोलते थे, मगरिब की नमाज़ और नवाफिल अव्वाबीन अदा करते फिर मुराकिबा करते और इशा की नमाज़ अदा करते दौलत खाने पर तशरीफ़ लाते।

बादशाहों की हाज़री

सुल्तान बहलूल लोधी आप की खिदमत में हाज़िर हुआ, आप ने उस को नसीहत फ़रमाई, ऐ बादशाह तूने बुढ़ापे में सल्तनत पाई है खुदा से डर और किज़्ब व मासीयत से बचता रहे, उस का शुक्र अदा कर, शुक्र नेमत को बढ़ाता है, सुल्तान बहलूल लोधी के इन्तिकाल के बाद उस का बेटा निज़ाम खा जो सुल्तान सिकंदर लोधी के लक़ब से मशहूर है, दिल्ली से रवानगी से क़ब्ल आप की खिदमत में हाज़िर हुआ और इस तदआ यानि गुज़ारिश की के: में मीज़ानुस सर्फ़! हज़रत से पढ़ना चाहता हूँ, उस ने सबक के बहाने से “असादकल्लाहु फ़िद्दारेंन! का माना आप से पूछा, आप ने फ़रमाया के इस के माना ये हैं के नेक बख्त करे तुझ को अल्लाह पाक दोनों जहाँ में! शहज़ादा निज़ाम खान ने अर्ज़ किया फिर बताओ, इस तरह तीन मर्तबा तकरार की फिर उस ने आप के हाथ चूमे और बासद आजिज़ी अर्ज़ किया, मेरी मुराद पूरी हो गई, में यही चाहता था के आप की ज़बाने मुबारक से ये कलमात निकलें, आप को इस का हुस्ने अदब बहुत पसंद आया, आप ने कुछ देर मुराकिबा किया और फिर ज़बाने फैज़े तर्जुमान से फ़रमाया: निज़ाम! में ने खुदा से चाहा के तू सिकंदर जैसा अज़ीम बने और बहुत मखलूके खुदा तुझ से फाइदा उठाए, चुनांचे निज़ाम खा सुल्तान सिकंदर लोधी के लक़ब से मश्हूरो मारूफ हुआ।

आप का अक़्द मस्नून

हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दो बेटे थे, एक हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह बयाबानी और दूसरे हज़रत नसीरुद्दीन जो आप के कायम मक़ाम और जानशीन बने।

आप के खुलफाए किराम

आप के मुमताज़ खुलफाए किराम हस्बे ज़ैल हैं: हज़रत नसीरुद्दीन, हज़रत मौलाना शैख़ जमाली, हज़रत शैख़ अधन रहमतुल्लाह अलैहिम।

आप की तसनीफ़

आप ने लमआत शैखुद्दीन इराकी पर हवाशी तहरीर फरमाएं हैं, एक रिसाला मफ़ातीहुल असरार, आप की इल्मी यादगार है।

आखरी अय्याम

हज़रत ख्वाजा शैख़ समाउद्दीन सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के ख़ास मुरीद और खलीफा! “हज़रत मौलाना शैख़ ख्वाजा जमाली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह” ने बैतुल्लाह शरीफ के सफर से वापस आ कर आप के बड़े साहबज़ादे हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह बयाबानी से मिलने का इश्तियाक ज़ाहिर किया और उनको आप की खिदमत में लाने की ख्वाइश का इज़हार किया, ये सुनकर आप बहुत खुश हुए, हज़रत मौलाना शैख़ ख्वाजा जमाली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को सीने से लगाया और आप को ख़ास लिबास अता फ़रमाया: एक खत लिख कर आप के हवाले किया,
दूसरी दिन हज़रत शैख़ जमाली! को बुलाकर फ़रमाया: वल्लाहु आलम! मेरे फ़रज़न्द शैख़ अब्दुल्लाह का दीदार तुम को मुयस्सर हो के न हो, में नहीं चाहता था, के तुम मेरे पास से जुदा हो जाओ, मेरे जनाज़े की नमाज़ के लिए हाज़िर रहो।

वफ़ात

इस के एक हफ्ता बाद 17, जमादियुल ऊला 901, हिजरी को आप का इन्तिकाल हुआ।

मज़ार मुबारक

वफ़ात के चंद साल क़ब्ल आप ने क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को ख्वाब में देखा के आप होज़े शम्शी के किनारे खड़े हैं, और फरमाते हैं के ये जगह तुम्हारी है, चुनांचे आप का मज़ारे पुर अनवार महरूली शरीफ में औलिया मस्जिद! से आगे ही मरजए खलाइक है दिल्ली में।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • ख़ज़ीनतुल असफिया
  • दिल्ली की दरगाहें
  • अख़बारूल अखियार
  • दिल्ली के बाईस ख्वाजा

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