हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

विलादत

शहंशाहे दक्कन मख़्दूमे दीनो दुनिया हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश मुबारक 4, रजाबुल मुरज्जब 721, हिजरी बा मुताबिक 9, अगस्त 1320, ईसवी बरोज़ जुमा को हिन्द की राजधानी दिल्ली! में हुई, जिस वक़्त सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का विसाल हुआ, आप चार साल के थे।

इस्म शरीफ

आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “सय्यद मुहम्मद” है, कुन्नियत “अबुल फतह” लक़ब सदरुद्दीन, वलियुल अकबर, सादिक, हैं, आम तौर पार आप रहमतुल्लाह अल्लाह “ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़” के नाम से मश्हूरो मारूफ हैं, नसबी लिहाज़ से आप का तअल्लुक़ हुसैनी सादाते किराम से है, बाईसवीं पुश्त में जा कर आप का सिलसिलए नसब हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिल जाता है,
सैरे मुहम्मदी! (जो हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की हयातो खिदमात और अहवाल व आसार पर लिखी गई सब से मुस्तनद और कदीम किताब समझी जाती है) में आप का शजरए नसब यूं बयान किया गया है:
सय्यदुस सादात, ममबाउस सआदात, सदरुल मिल्लते वद्दिन, वलियुल अकबर, सय्यद मुहम्मद बिन, युसूफ बिन, अली बिन, मुहम्मद बिन, युसूफ बिन, हसन बिन, मुहम्मद बिन, अली बिन, हम्ज़ा बिन, दाऊद बिन, ज़ैद बिन, अबुल हसन जुन्दी बिन, हुसैन बिन, अबी अब्दुल्लाह बिन, मुहम्मद बिन, उमर बिन याहया बिन, हुसैन बिन, ज़ैद बिन, अली बिन, ज़ैनुल आबिदीन बिन, सय्यदुश शुहदा इमामे हुसैन बिन हज़रते फातिमा बिन्ते, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम।

वालिद माजिद

हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद हज़रत सय्यद “युसूफ हुसैन” उर्फ़ सय्यद राजा थे, चूंके आप अपने नफ़्स के साथ जिहाद किया करते थे, और आप अपने नफ़्स को मारते नफ़्स कुशी करते थे, इस लिए आप का नाम “राजू क़त्ताल” दक्कन में मशहूर है, और आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद बैअत थे, और हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से भी आप ने फ़ैज़ो बरकात हासिल की,
आप का मज़ार मुबारक खुल्दाबाद शरीफ ज़िला औरंगाबाद सूबा महराष्ट्र में ही मरजए खलाइक है।

तालीमों तरबियत

हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की जब चार साल की उमर हुई तो अपने वालिद शैख़ युसूफ हुसैनी उर्फ़ राजू क़त्ताल रहमतुल्लाह अलैह! के हमराह दिल्ली से दौलत आबाद! चले गए और वहीँ अपने वालिद, और दादा से नशु नुमा इब्तिदाई तालीमों तरबियत हासिल, 16, साल की उमर में अपनी वालिदा माजिदा और भाई हुसैन बिन युसूफ के हमराह दिल्ली तशरीफ़ ले गए, उस वक़्त दिल्ली में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के ख़लीफ़ए! आज़म हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की विलायत की धूम मच हुई थी, एक रोज़ हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हो कर बैअत मुरीद होने की ख्वाइश ज़ाहिर की,
हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इन की ज़हानत व फतानत, और हुस्ने गुफ़्तारो किरदार की तारीफ के साथ बातनी उलूम से क़ब्ल ज़ाहिरी उलूम की तकमील का मश्वरा दिया, जिसे आप ने क़ुबूल करते हुए दीनी तालीम व उलूमो फुनून हासिल करने में लग गए,
हज़रत अल्लामा सय्यद शरफुद्दीन केथली, हज़रत अल्लामा ताजुद्दीन अल मुकद्दम, और फकीहे दौरां हज़रत अल्लामा क़ाज़ी अब्दुल मुक्तदिर अल कुंदी अलैहिमुर रह्मा! से हज़रत ख्वाजा सय्यद बंदानवाज़ गेसूरदाज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने मुरव्वजा उलूमे दरसिया व फुनूने अदीबा की तहसील व तकमील फ़रमाई, आप ने सब से ज़ियादा इल्मी इस्तिफ़ादा हज़रत अल्लामा क़ाज़ी अब्दुल मुक्तदिर अल कुंदी! से किया, और इन से अल शमसिया! अल सहाइफ़! मिफ्ताहुल उलूम, हिदाया, उसूले बज़दवी, और तफ़्सीरे कश्शाफ़, जैसी अहम किताबें पढ़कर इल्मो फ़ज़्ल में यगानए रोज़गार और जय्यद आलिमे दीन बन गए।

इजाज़तो खिलाफत

हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ज़ाहिरी उलूमो फुनून की तकमील करने के बाद हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए और इन से बातनी उलूम हासिल कर के “शैखुल मशाइख” और “क़ुत्बुल अक्ताब” के मक़ामे रफ़ी पर फ़ाइज़ हुए, नीज़ अपने फ़ज़्लो कमाल, इल्मी तबाहुर, ज़हानतो फतानत, ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, के सबब आप बहुत जल्द हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुकर्रब और मंज़ूरे नज़र मुरीदो खलीफा बन गए,
आप के पीरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की वफ़ात 757, हिजरी में हुई, उस के बाद आप एक ज़माने तक दिल्ली में रहे और अपने इल्म व रूहानियत से बन्दगाने खुदा को फाइदा पहुंचाते रहे, और 801, हिजरी में जब अमीर तैमूर ने दिल्ली पर हमला किया, आप दिल्ली से हिजरत कर के दक्कन की तरफ रवाना हो गए, गोवलियार, चंदेरी, बड़ोदा और खम्बात होते हुए गुजरात गए और फिर दौलत आबाद के रास्ते सूबा करनाटक शहर गुलबर्गा शरीफ पहुंचे और उस मकाम को अपने कुदूमे मेमनत लुज़ूम से रश्के जन्नत बना दिया और अपनी बेमिसाल दीनी इल्मी, रूहानी, दअवती, और तस्नीफी खिदमात से पूरे अहिद को मुतअस्सिर कर दिया।

फ़ज़ाइलो कमालात

क़ुत्बुल अक्ताब, शैखुल मशाइख, अबुल फतह, सदरुद्दीन, वलियुल अकबरूस सादिक, सय्यद मुहम्मद हुसैनी उर्फ़ हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! (मुतावफ़्फ़ा 825, हिजरी) की तहदार फ़िकरो शख्सीयत बहुत सारे फ़ज़ाइल व कमालात और नोए औसाफ़ व ख़ुसुसियात की जामे थी, आप शरीअतो तरीकत के मजमउल बहरैन थे, इल्मो हिकमत फ़ज़्लो कमाल, सुलूको इरफ़ान, तरीक़तो मारफत, विलायत व रूहानियत, ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, सारी खूबियां एक मर्कज़ पर सिमट आई थीं, जिन के सबब आप की ज़ात अपने अंदर बड़ी कशिश और वुसअत व जामिईयत रखती है, आप जामे उल उलूम वल फुनून और जामे उल हैसियात वल कमालात थे, यही वजह है के अपने वक़्त के अकबर उल्माए किराम, व मुसन्निफीन, और अज़ीमुल मरतबात मशाइखे तरीकत ने आप के इल्म व विलायत और बुलंद इल्मी व रूहानी मकाम का खुले दिल से इज़हार व ऐ तिराफ़ किया है,
ग़ौसुल आलम हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह! जैसी अज़ीम हस्ती जो इल्मो हिकमत के जबले शामिख और बहरे विलायत व रूहानियत के गव्वास थे,
आप की इल्मी व रूहानी अज़मतों को यूं उजागर फरमाते हैं:
के दक्कन की पहली सेर के दौरान हम मीर सय्यद मुहम्मद गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए, उन्हें हमने अज़ीमुल मरतबत और अज़ीमुश्शान बुज़रुग पाया, हज़रत के कलम से बहुत सारी किताबें वुजूद में आईं, हैं, जब में हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुआ तो उन से ऐसे ऐसे हक़ाइक़ व मआरिफ़ हासिल हुए के दूसरे मशाइखे इज़ाम से ना हुए, सुब्हानल्लाह! वाह क्या कवि जज़्बा रखते थे।

गेसूदराज़ की वजह तस्मिया

क़ुत्बुल अक्ताब, हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का असल नाम “सय्यद मुहम्मद” है, लेकिन ” बंदानवाज़ गेसूदराज़” के नाम से ज़ियादा मशहूर हैं, साहिबे तज़किराए उल्माए हिन्द! के बयान के मुताबिक आप को गेसूदराज़! इस लिए कहा जाता है के एक दिन आप ने कुछ लोगों के साथ अपने पीरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की पालकी उठाई हुई थी, पालकी उठाते वक़्त आप के गेसू (बाल) जो क़द्रे लम्बे थे, पालकी में फंस गए आपने शैख़ की ताज़िमों अदब और गलबाए इश्को मुहब्बत की वजह से बाल को पालकी से छोड़ने की कोशिश नहीं की और सारा सफर इसी हालत में गुज़रा, जब आप के पीरो मुर्शिद को ये बात मालूम हुई तो इस हुस्ने अदब, से बहुत खुश हुए, और ये शेर पढ़ा:

हर के मुरीदे सय्यदे गेसूदराज़ शुद
वल्लाह ख़िलाफ़े नेस्त आं इश्क बाज़ शुद

इस के बाद से आप का लक़ब “गेसूदराज़” पड़ गया, और अवामो खवास आप को इसी नाम से याद करने लगे।

गुलबर्गा शरीफ में दीनी खिदमात

गुलबर्गा शरीफ आने और यहाँ मुस्तकिल क़याम करने के बाद आप के वाइज़ो इरशाद, तालीमों तब्लीग, तस्नीफी खिदमात, और इल्मी माशगिल के हवाले से बाबाहाए उर्दू मौलवी अब्दुल हक लिखते हैं:
हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीदो खलीफा! सय्यद मुहम्मद बिन युसूफ हसनी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मुतावफ़्फ़ा 825, हिजरी, थे, जो “गेसूदराज़” के नाम से मशहूर हैं, ये अपने पीरो मुर्शिद की वफ़ात के बाद जब 801, हिजरी मुताबिक 1398, ईसवी में गुजरात के मुख्तलिफ मक़ामात से होते हुए दक्कन रवाना हुए तो हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के बहुत से मुरीद इन के हमराह हो लिए और इस काफिले के साथ सन 815, हिजरी में हवाली हसन आबाद, गुलबर्गा, में तशरीफ़ लाए थे, वो ज़माना फ़िरोज़ शाह बहमनी का था, बादशा को जब फ़िरोज़ आबाद में आप के आने की खबर हुई तो तमाम अरकान व उमराए दौलत और अपनी औलाद को इन के इस्तकबाल के लिए भेजा, बादशा का भाई अहमद खां खानखाना जो बाद में इस का जानशीन हुआ,
हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का बहुत बड़ा मोतक़िद हो गया, आप ने अपनी बाकि ज़िन्दगी यहीं बसर की, और सरज़मीने दक्कन को अपनी तालीमों तब्लीग व तलकीन से फैज़ पहुंचाते रहे,
हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे इल्मो फ़ज़्ल और साहिबे तसानीफ़ भी हैं, आप का मामूल था, के नमाज़े ज़ोहर के बाद तलबा और मुरीदों को हदीस शरीफ और तसव्वुफ़ व सुलूक का दर्स दिया करते थे, और गाहे गाहे दर्स में कलाम व इल्मे फ़िक़्ह की तालीम भी होती थी, जो लोग अरबी व फ़ारसी से वाकिफ नहीं थे, उन को समझाने के लिए हिंदी उर्दू ज़बान में तकरीर फरमाते थे।

आप का इल्मी मकामो मरतबा

हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को औलियाए चिश्त अहले बहिश्त में ये इम्तियाज़ी व इंफिराद भी हासिल है, के आप कसीरुत तसानीफ़ आलिम व सूफी गुज़रे हैं, आप ने मुख्तलिफ मौज़ूआत पर एक सौ से ज़ियादा किताबें तहरीर फ़रमाई हैं, सुल्तानुल मुहक़्क़िक़ीन, मख़्दूमे जहाँ हज़रत शैख़ शरफुद्दीन याहया मनीरी रहमतुल्लाह अलैह, गासुल आलम, हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह और क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का जमना करीब करीब एक है और ये तीनो बुज़रुग कसीरुत तसानीफ़! हुए यहीं,
हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की पूरी ज़िन्दगी दरसो तदरीस, तालीमों तलकीन, दावतो तब्लीग, तस्नीफ़ व तालीफ़ और बंदिगाने खुदा की रुश्दो हिदायत व इस्लाह में गुज़री, आप ने बेक वक़्त तकरीरों तहरीर दोनों मोर्चों को संभाला और इस्लाम की तरवीजो इशाअत के हवाले से गिरां क़द्र खिदमात अंजाम दीं, आप ने तस्नीफी मैदान में जो गिरां क़द्र नुकूश छोड़े हैं, उनकी तजल्लियों से ऐवाने शरीअतो तरीकत में आज भी उजाला फैला हुआ है, तारीख अदबियात मुसलमानाने पाकिस्तान व हिन्द, के मकाला निगार डॉक्टर एहसान इलाही रना मुस्तनद क़ुतुब तज़किराह व सवानेह के हवाले से रकम तराज़ हैं:
बर्रेसगीर हिन्दो पाक में इशाअते इस्लाम और रूहानी हिदायत के साथ साथ अरबी ज़बान और इस्लामी इल्म की शानदार खिदमात अंजाम देने वाले मुताशशररे (शरीअत का पाबंद) सूफियों में सय्यद मुहम्मद बिन युसूफ बिन अली! देहलवी सुम्मा गुलबर्गवी उर्फ़ हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का नाम हमेशा ज़िंदह रहेगा,
तसव्वुफ़ और तब्लीग के साथ एक सौ पच्चीस 125, किताबें आप ने लिखी हैं, यक़ीनन एक गैर मामूली कारनामा है और ख़ुसूसन उस दौर में जब के सूफ़ियाए किराम के लिए इबादतों रियाज़त, औरादो और गैर मुस्लिमो में तबलीग़े इस्लाम के अलावा किसी दूसरे काम के लिए वक़्त निकालना, एक मुश्किल काम था।

आप की शायराना हैसीयत

हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की फ़िक्र व शख्सियत बड़ी तहदार थी, आप आलिम, फ़ाज़िल, मुहद्दिस, मुफ़स्सिर, फकीह व मुफ़्ती, सूफी वलिये कामिल, सूफ़िये मरताज़, मुहक्किक, अदीब मुसन्निफ़, नस्र निगार, और शायर सब कुछ थे, आप की इल्मी व अदबी आसार का एक नुमाया पहलू और काबिले ज़िक्र हिस्सा आप के फ़ारसी व दक्कनी कलाम भी हैं, इस लिए इस जिहत शायराना हैसियत से गुफ्तुगू भी ज़रूरी मालूम होती है एक सौ से ज़ाइद नसरी क़ुतुब के मुसन्निफ़ होने के अलावा आप फ़ारसी के एक बुलंद पाया शायर, भी थे,
आप को उर्दू के पहले मुसन्निफ़ और पहले नस्र निगार होने के अलावा दक्कन के पहले शायर होने का भी शरफ़ व ऐजाज़ हासिल है, मशहूर मुहक्किक और माहिरे दक्कानियात नसीरुद्दीन हाश्मी ने अपनी तहक़ीक़ी किताब “दक्कन में उर्दू” में हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूरदाज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को दक्कन का पहला शायर! तस्लीम किया है और लिखा है के मोजूदह तहकीकात के लिहाज़ से हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूरदाज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! मुतवफ़्फ़ा 825, हिजरी दक्कन के पहले शायर! करार पाते हैं,
पिरोफ़ैसर खलीक अंजुम साहब आप की शायराना हैसियत पर रौशनी डालते हुए लिखते हैं:
हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! फ़ारसी के बड़े अच्छे शायर थे, आप का फ़ारसी दीवान गुलबर्गा शरीफ से शाए हो चुका है, दक्कनी में भी शेर कहा करते थे, एक “नज़म” “चक्की नामा” इदारा अदबियात उर्दू में मौजूद हैं, जिस की नकल मेरे करम फरमा जनाब मुहियुद्दीन साहब कादरी! ने मेरी दरख्वास्त पर इरसाल फ़रमाई है, इस नज़म के अलावा भी कुछ कलाम मिलता है, में ने तमाम दक्कनी कलाम को यकजा कर दिया है, हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का फ़ारसी में कोई खास तखल्लुस नहीं था, अलक़ाब और कुन्नियत के साथ इन का पूरा नाम “सदरुद्दीन अबुल फतह सय्यद मुहम्मद हुसैनी गेसूदराज़” था, इन में जो मुनासिब समझा, मक्तआ में इस्तिमाल कर लिया और एक ग़ज़ल के मकता में ये सब अल्फ़ाज़ अस्मा जमा कर दिए हैं:

ऐ अबुल फतह मुहम्मद सदरे दीं गेसूदराज
मुख़्तसर कुन चंद नाले क़िस्साए खुद गर्द आर

लेकिन इस के बर अक्स दक्कनी शायरी में इन का तखल्लुस “शाहबाज़” था, आप का दक्कनी कलाम या तो बिमारियों के इलाज के मुख्तलिफ तरीकों पर मुश्तमिल होता या फिर सूफियाना है,
हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! “हरफन मौला” वाके हुए थे, इस लिए आप के अंदर शेरो सुखं का मलका भी मौजूद था, लेकिन इस फन से आप को ज़ियादा दिल चस्पी नहीं थी, हाँ! जब कभी शायरी की तरफ तबीयत का मिलान होता जज़्बए इश्के सादिक से मग़्लूबुल हाल हो जाते तो ग़ज़लिया अशआर ज़बान पर मचलने लगते और निहायत कादिरूल कलामी के साथ अशआर मोज़ों फरमाते, आपके फ़ारसी मजमूआ ग़ज़लियात “अनीसुल उश्शाक़” के नाम से मौसूम है,
जिस में कुल तीन सौ सत्ताईस 327, ग़ज़लें, 26, अशआर की एक मसनवी, और नो “रुबाईयात” हैं, आप की फ़ारसी दक्कनी शायरी ज़बानो अदब का एक बेश कीमत सरमाया है।

आप की तसानीफ़

  • साहिबे सेरे मुहम्मदी! और “बज़्मे सूफ़िया” के बयान के मुताबिक आप की तहरीर करदा क़ुतुब व रसाइल के नाम ये हैं:
  • मुलतकत:
  • ये कुरआन शरीफ की सूफियाना तफ़्सीर है, इस में सूफियाना व आरिफाना रंग में क़ुरआनी आयात की तौज़ीह व तशरीह बयान की गई है,
  • तफ़्सीरे कलामे पाक:
  • ये तफ़्सीरे कश्शाफ़! की तर्ज़ पर सिर्फ पांच पारों की तफ़्सीर है,
  • हवाशी तफ़्सीरे कश्शाफ़!
  • ये जारुल्लाह ज़मख़्शरी की बुलंद पाया तस्नीफ़ तफ़्सीरे कश्शाफ़! पर गिरा कद्र हवाशी है, जो बेश क़द्र इल्मी व तफ़्सीरी मुबाहिस पर मुश्तमिल है,
  • शरहे मशारिकुल अनवार!
  • हदीस की मशहूर किताब मशारिकुल अनवार! की आलिमाना व मुहक्किकाना तौज़ीह व तशरीह,
  • तर्जुमाए मशारिकुल अनवार!
  • ये मशारिकुल अनवार! का फ़ारसी तर्जुमा है,
  • मआरिफ़!
  • हज़रते शैख़ शहाबुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की मशहूर अफाक किताब “अवारिफुल मआरिफ़” की अरबी शरह है,
  • तर्जुमाए अवारिफ!
  • ये “अवारिफुल मआरिफ़” की फ़ारसी शरह है, लेकिन तर्जुमाए अवारिफ से मशहूर है
  • शरहे तअर्रुफ़!
  • हज़रत शैख़ अबू बक्र मुहम्मद बिन इब्राहिम बुखारी ने तअर्रुफ़! के नाम से तसव्वुफ़ की एक मारकतुल आरा किताब लिखी है, ये उसी की शरह है,
  • शरहे आदाबुल मुरीदीन अरबी!
  • हज़रत शैख़ ज़ियाउद्दीन अबू नजीब अब्दुल कादिर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की मशहूर और बुलंद तस्नीफ़ “आदाबुल मुरीदीन” की फाज़िलाना अरबी शरह है,
  • शरहे आदाबुल मुरीदीन! फ़ारसी,
  • ये हज़रत सय्यद ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूरदाज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की तहरीर करदह आदाबुल मुरीदीन की फ़ारसी शरह है, जिस को मौलाना सय्यद हाफ़िज़ अता हुसैन साहब! ने हैदराबाद से शाए किया है,
  • शरह फुसूसुल हिकम!
  • ये किताब हज़रत शैख़े अकबर मुहियुद्दीन इब्ने अरबी रहमतुल्लाह अलैह! की मशहूर ज़माना तस्नीफ़ है फुसूसुल हिकम! की शरह है और अपने मोज़ू पर एक शाहकार तस्नीफ़ मानी जाती है,
  • तर्जुमा रिसालए कुशैरिया!
  • इमामुत तसव्वुफ़ हज़रत शैख़ अबुल कासिम अब्दुल करीम बिन हवाज़िन कुशैरी रहमतुल्लाह अलैह के “रिसालए कुशैरिया” का फ़ारसी तर्जुमा है,
  • रिसाला हज़रत शैख़े अकबर मुहियुद्दीन इब्ने अरबी रहमतुल्लाह अलैह!
  • हदाइकुल इन्स!
  • इस किताब में हकीकतों मारफत के कुछ रुमूज़ व असरार बयान किये गए हैं,
  • शरहे फ़िक़्हे अकबर!
  • ये इल्मे तौहीदो कलाम के मोज़ू पर इमामुल आइम्मा सिराजुल उम्माह हज़रते सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु की किताब “फ़िक़्हे अकबर! की शरह है,
  • ज़रबुल इमसाल, (17) शरहे क़सीदए मानी, (18) शरहे अक़ीदए हाफिज़िया, (19) रिसाला दर बयाने सुलूक, (20) रिसाला दर बयाने ज़िक्र।

उल्माए किराम व मशाइख़ीन के तअस्सुरात

साहिबे मिरातुल असरार! शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं: आँ मआदने इश्को हमदमे विसाल, आँ क़लीदे मख़्ज़ने ज़ुल्जलाल, आँ मस्ते अलस्त, नग़्माते बेसाज़, महबूबे हक सय्यद मुहम्मद गेसूदराज़ बिन सय्यद युसूफ हुसैनी देहलवी, आप हज़रत शैख़ ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के बुज़रुग तिरिन खुलफाए इज़ाम में से थे, सय्यद होने के अलावा आप इल्म और विलायत में भी, मुमताज़ थे, आप शाने रफ़ि मशरबे वसी, अहवाले कवि, हिम्मते बुलंद और कल्माते आली के मालिक हैं, मशाइखे चिश्त के दरमियान आप एक खास मशरब रखते हैं, असरारे हकीकत में तरीक मख़सूस है।

(2) रात के वक़्त बिस्तर पर इंसान को सोचना चाहिए के उसने दिन में कौन कौन सा काम किया और दिन में सोचना चाहिए के रात को क्या क्या और दिन में सोचना चाहिए के रात को क्या क्या, अपने कामो का मुहासिबा करो, अगर दीनी काम और अच्छे काम ज़ियादा किए हैं तो खुदा का शुक्र अदा करो और उस पर इस्तक़लाल बरतो और अगर दीन के कामो में कुछ गफलत बरती है तो तौबा करो और जहाँ तक मुमकिन इन की तलाफ़ी करो।

(3) अगर पीर मुरीद को ना मशरू कामो की दावत देता हो तो मुरीद ऐसे पीर को छोड़ दे, लेकिन इस तरह के पीर को मालूम ना हो के उस ने बद एतिक़ादि की वजह से अलैहदगी इख़्तियार की है।

(4) जब तक एक शख्स तमाम दुनियावी चीज़ों से फारिग ना हो जाए, राहे सुलूक में कदम ना रखे।

(5) रोज़ह अरकाने तसव्वुफ़ में से है, इसलिए सूफी के लिए रोज़ा रखना ज़रूरी है, रोज़े से नफ़्स मगलूब रहता है और उस में अजब और गुरूर पैदा नहीं होता।

(6) अगर एक सालिक कमालात के आला दरजे पर भी फ़ाइज़ हो जाए तो भी वो अपने औरादो वज़ाइफ़ के मामूलात को तर्क ना करे।

(7) ज़वाल के वक़्त कैलूला करें, ताके शब्बेदारी में आसानी हो।

(8) सालिकों को हमेशा बा वुज़ू रहना चाहिए, हर फ़र्ज़ नमाज़ के लिए ताज़ा वुज़ू करना बेहतर है, वुज़ू के लिए “तहीयतुल वुज़ू” अदा करें।

(9) दिल से हवस को दूर करें और अगर दूर ना हो तो उस के लिए मुजाहिदा व रियाज़त करते रहें।

(10) किसी भी हाल में अपने नाम को शुहरत ना दें, बाजार सिर्फ शदीद ज़रूरत के वक़्त जाएं।

(11) गुरसंगी व तिश्नगी (भूक प्यास) और शब बेदारी को दोस्त रखें।

(12) अपने पास ज़ियादा लोगों की आम्दो रफ़्त ना होने दें।

(13) अमीरों की सुहबत से दूर व नुफ़ूर रहें।

(14) मुसीबत के वक़्त मुज़्तर और मुज़्तरिब ना हों, किसी भी हाल में ना रूएं और रूएं भी तो इस लिए के कहीं मंज़िले मक़सूद तक पहुंचने से पहले इस को मोत ना आ जाए।

(15) नफ़्स की शिकस्तगी के लिए फाका ज़रूरी है।

(16) हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरा ये अक़ीदा है के साहाबए किराम! में सब से अफ़ज़ल हज़रते अबू बक्र सिद्दीक हैं, इन के बाद उमर फ़ारूके आज़म, इन के बाद हज़रते उस्माने गनी, इन के बाद हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

विसाले पुरमलाल

हज़रत शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का विसाल 16, ज़ीकाइदा 825, हिजरी बा मुताबिक 1422/ ईसवी को हुआ।

मज़ार शरीफ

आप रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार मुक़द्दस ज़िला गुलबर्गा शरीफ सूबा करनाटक दक्कन हिंदुस्तान में मरजए खलाइक है, आप की उमर एक सौ पांच साल थी।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

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