हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

खानदानी हालात

आप सुल्तानुश शुआरा, बुरहानुल फुज़्ला, मैदाने सुखन के शहसवार थे, तूतिए हिन्द, अगरचे बादशाहाने वक़त के दरबार में बुलंद मनासिब पर रहे, मगर आप के दिल में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की मुहब्बत की हुक्मरानी रही, और बुज़ुर्गाने दीन सूफ़ियाए किराम के मोतक़िद रहे, आप को सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से बेहद अक़ीदतों मुहब्बत थी और हज़रत भी आप पर निहायत शफकत फरमाते थे, शैख़ की बारगाह में किसी को इतनी राज़दारी और कुर्बत हासिल नहीं थी जितनी हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को थी,
हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप का तअल्लुक़ हज़ारा जो के तुर्किस्तान में बल्ख के पास है तुर्क खानदान से था, आप का खानदान मालो दौलत के ऐतिबार से मुमताज़ था, इल्मो दौलत इस खानदान की ख़ुसूसियात थीं, आप के दो भाई थे,
एक भाई का नाम “आज़ुद्दीन अली शाह” है, और दुसरे भाई का नाम “हुस्सामुद्दीन” था।

वालिद माजिद

हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद का इस्मे गिरामी “अमीर सैफुद्दीन महमूद” है आप बड़े खुदा परस्त और बेनज़ीर बुज़रुग थे, आप बल्ख तुर्क खानदान के अमीर ज़ादों में से थे, चंगेज़ खान के फ़ितने के दौर में हज़ारा बल्ख से हिजरत कर के हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए, और शाही दरबार में मुमताज़ उहदे पर फ़ाइज़ हुए, आप की वालिदा मुहतरमा एक नोंमुस्लिम रईस की बेटी थीं,

विलादत

हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! 1235, ईसवी में पटियाली! ज़िला एटा यूपी में आप की पैदाइश हुई, आप का नाम मुबारक “यमीनुद्दीन” और लक़ब अबुल हसन! और तखल्लुस खुसरू! था,।

तालीमों तरबियत

हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने वालिद मुहतरम के सायाए आतिफ़त में तालीमों तरबियत पाई, जब आप की उमर नो साल की हुई, वालिदा का साया आप के सर से उठ गया, वालिद के इन्तिकाल के बाद आप की वालिदा के एक दूर के रिश्तेदार ने आप की तालीमों तरबियत पर काफी इल्तिफ़ात और तवज्जुह दी, इमादुल मलिक जो आप के हम अस्र में एक नुमाया हैसियत रखते थे, और जिनकी उमर 130, की थी आप के जद्दे मादरी थे, आप की तालीमों तरबियत दिल्ली में हुई।

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की उमर जब 8, साल की हुई तो आप के वालिद मुकर्रम आप को लेकर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की बारगाह में ले गए, हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने वालिद मुकर्रम से अर्ज़ किया के आप कहाँ ले जा रहे हैं? फ़रमाया में तुम को सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद कराना है, आप ने अर्ज़ किया मुरीद होने के लिए पीर का पसंद करना मेरा काम है ना के आप का, वालिद साहब का ये जवाब सुनकर अंदर चले गए और हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत! के दरवाज़े पर बैठ कर एक रोबाई! लिखने लगे और दिल में कहा के अगर शैख़े कामिल हैं तो मेरी रोबाई का जवाब खुद ही देंगें और मुझ को अंदर तलब फरमाएंगे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को कश्फ़ के ज़रिए हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का सारा हाल मालूम हो गया था,
उसी वक़्त खादिम से फ़रमाया देखो दरवाज़े पर एक लड़का बैठा है, तुम उस के पास जा कर ये पढ़ दो, “बया यद अन्दरूने मर्दे हकीकत, के बा मा यक नफ़्स हमराज़ गरदो”
हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ये रोबाई! सुनते ही अंदर हाज़िर हो कर मुरीद बैअत से मुशर्रफ हुए, और ऐसा पाक ऐतिकाद और इखलास से पेश आए के इस की नज़ीर नहीं मिलती और कुछ ही दिनों में आप को अपने पीरो मुर्शिद की इनायत, मुहब्बत इस दर्जा हासिल हुई के जिस की मिसाल मिलना मुश्किल है, और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को खिरकाए खिलाफत भी अता फ़रमाया।

सीरतो ख़ासाइल

तूतिए हिन्द, आलिमे दीन, फ़ना फिश शैख़, अदीब व खतीब, हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप ना सिर्फ एक खुश गो शायर थे, बल्के एक अच्छे मुसन्निफ़, एक बड़े आलिम एक कामयाब मुकर्रब सलातीन थे साहिबे दिल साहिबे निस्बत सूफी सिफ़त, और एक दुर्वेश कामिल थे, आप आखिर शब् में बेदार होते थे, तहज्जुद की नमाज़ में सात पारे पढ़ते थे, और ज़ोको शोक में बेहद रोते थे नौकरी करने के बावजूद आप ने चलीस साल तक 12, महीने रोज़े रखे।

बादशाहों से तअल्लुक़ात

आप और ख्वाजा हसन सुल्तान गियासुद्दीन बलबन के लड़के शहज़ादा मुहम्मद सुल्तान खां के पास मुलाज़िम थे, शहज़ादा सुल्तान मुल्तान में रहते थे, आप ने कई बार नौकरी से अस्तीफा दिया लेकिन शहज़ादा सुल्तान ने आप को इजाज़त नहीं दी, जब शहज़ादा सुल्तान मुल्तान में शहीद हुआ, आप ने दिल्ली आ कर अमीर अली की मुलाज़िमत इख़्तियार की सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी के तख़्त पर बैठने के बाद आप इस के मुकर्रब हुए, गर्ज़ सुल्तान कुतबुद्दीन मुबारक शाह तक आप पर हर बादशाह ने मुहब्बतों उल्फत और करम की नज़र रखी, शाही दरबार में आप की काफी इज़्ज़त होती थी सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक जिस के नाम पर आप ने तुगलक नामा लिखा है, सब बादशाहों से ज़ियादा आप की इज़्ज़तों एहतिराम करता था।

हज़रत बू अली शाह कलंदर से मुलाकात

एक दफा सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने कुछ तोहफे हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को दे खर हज़रत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर पानीपती रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में भेजा, हज़रत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर रहमतुल्लाह अलैह आप का कलाम सुनकर बहुत खुश हुए और फिर अपना कलाम आप को सुनाया, हज़रत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर रहमतुल्लाह अलैह का कलाम सुनकर रोने लगे, हज़रत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर रहमतुल्लाह अलैह ने आप से पूछा अमीर खुसरू! रोते हो, या कुछ समझा भी, आप ने जवाब दिया, इसी वजह से रोता हूँ के कुछ समझ में नहीं आता, हज़रत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर रहमतुल्लाह अलैह ये जवाब सुन कर बहुत खुश हुए, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के भेजे हुए तोहफे को कबूल कर लिया।

आप की वसीयत

आप के पीरो मुर्शिद की ज़बाने फैज़े तर्जुमान से जो मुहब्बत और शफकत के कलमात आप के मुतअल्लिक़ निकले थे, उन सब कलमात को आप ने एक कागज़ पर लिख कर बतौरे तावीज़ गले में डाल लिया था, आप ने वसीयत फ़रमाई के इस कागज़ को जिस पर वो कलमात लिखे हुए थे, आप के साथ कबर में दफ़न किया जाए, ताके वो कागज़ आप की बख्शिश का ज़रिया बने ।

पीरो मुर्शिद की आप से मुहब्बत

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को भी आप से इंतिहाई मुहब्बत थी, एक मर्तबा आप ने फ़रमाया: अमीर खुसरू! में सब से तंग हो जाता हूँ, मगर तुझ से तंग नहीं होता,
एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: में सब से तंग होता हूँ, यहाँ तक के अपने आप से भी तंग होता हूँ मगर तुझ से तंग नहीं होता, आप के पीरो मुर्शिद ने आप को “तरकुल्लाह” का ख़िताब दिया था, एक मोके पर आप ने फ़रमाया आप के पीरो मुर्शिद ने “में बगैर उस के यानि अमीर खुसरू के जन्नत में नहीं दाखिल होऊंगा” अगर दो लोगों को एक कब्र में दफ़न करना जाइज़ होता तो में वसीयत करता के इनको मेरी कब्र दफ़न किया जाए,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक मोके पर फ़रमाया: रोज़े क़यामत हर एक से पूछा जाएगा के क्या लाए? मुझ से पूछेंगें तो में कहूंगा, के इस तरकुला के सीने का सोज़ आप फरमाते थे, आप फरमाते थे, अल्लाह पाक मुझ को तुर्क के सीने के सोज़ में बख्शा जाऊंगा।

मुर्शिद की जूतियों के बदले सारी दौलत दे दी

हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह को अपने पीरो मुर्शिद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के साथ ऐसी वालिहाना अक़ीदतो मुहब्बत थी के आप फना फिश शैख़ के दर्जे पर पहुंच गए, इस का सुबूत इस वाकिए से मिलता है, “सफ़ीनतुल औलिया” में लिखा है:
के एक दफा एक गरीब शख्स सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की शुहरत सुनकर दूर दराज़ इलाके से सफर कर के आप की खिदमत में हाज़िर हुआ के हज़रत से माली मदद तलब करें, क्यों के आप की चौखट से कोई खाली नहीं जाता था, लेकिन इत्तिफाक से उस रोज़ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह में सिर्फ आप की पुरानी नालैंन मुबारक (जूते) के कोई चीज़ मौजूद ना थी,
जो आप रहमतुल्लाह अलैह उस गरीब आदमी को देते आप रहमतुल्लाह अलैह वही नालैंन मुबारक (जूते) उस गरीब को दे कर रुखसत कर दिया, उस गरीब ने सोचा भी न था के इतने अज़ीम बुज़रुग की बारगाह से उस को सिर्फ जूतियां ही मिलेंगीं, लेकिन उस को आप रहमतुल्लाह अलैह से कुछ अर्ज़ करने की हिम्मत न हुई, और वो गरीब वही पुरानी जूतियां लेकर वापस हो गया, और बहुत मायूस हुआ, वापस जाते हुए ये गरीब रास्ते में एक रात के लिए सराए में ठहर गया, इत्तिफ़ाक़ से उसी रात हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह भी बंगाल से दिल्ली अपने तिजारती सफर से लौटते हुए उस सराए में एक रात के लिए ठहर गए,

आप के पास बेपनाह मालो दौलत थी, रात भर आराम करने के बाद जब हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह सुबह उठे तो आप को अपने पीरो मुर्शिद की खुशबु महसूस हुई और आप ने फ़रमाया: “बूए शैख़ मी आयद” यानि मुझे अपने पीर की खुशबु आ रही है, तलाश के बाद हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने उस गरीब आदमी को सराए के एक कोने में बैठा हुआ देखा, आप ने उससे दरयाफ्त किया क्या तुम दिल्ली गए थे और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के पास से आ रहे हो?
उस आदमी ने मायूसी की हालत में जवाब दिया का हाँ, उसने तमाम वाक़िआ हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह के सामने बयान किया और कहा के में बड़ी उम्मीद ले कर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के पास गया था, लेकिन हज़रत ने मुझे ये अपनी बोसीदा जूतियां दे कर रुखसत कर दिया, हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने अपने मुर्शिद की नालैंन मुबारक (जूते) देखते ही उस आदमी से कहा के तुम ये जूतियां मुझे दे दो, और इस के बदले में ये मेरी तमाम दौलत ले लो, कहते हैं के उस वक़्त आप के पास बे पनाह मालो दौलत और पांच लाख रकम मौजूद थी, पहले उस गरीब आदमी ने सोचा के हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह मुझ गरीब से मज़ाक कर रहे हैं, भला टूटी जूतियों के बदले इतनी दौलत कौन दे सकता है के इंसान लम्हे भर में फ़कीर से शहंशाह बन जाए, लेकिन हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी बात दुहराई और वो नालैंन मुबारक (जूते) उस आदमी से ले लीं और तमाम दौलत दे कर पीर पर कुर्बान कर दी, और वो गरीब हूत खुश हुआ, उस को जितनी तलब थी उससे कई गुना ज़ियादा मिल गया,
जब हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह अपने पीरो मुर्शिद की जूतियां अपने सर पर रखे हुए दिल्ली सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए तो आप ने हज़रत अमीर खुसरू! से फ़रमाया के ऐ अमीर खुसरू! अपने सफर से मेरे लिए क्या लाए हो? अमीर खुसरू! ने फ़रमाया के हिंदुस्तान के रूहानी शहंशाह का तोहफा लाया हूँ, आप ने फ़रमाया क्या कीमत अदा करनी पड़ेगी, हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: अपनी तमाम हक़ीर दौलत देदी, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया बहुत ही सस्ती ख़रीदली! हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के हुज़ूर वो शख्स मेरी ये दौलत ले कर ही मुत्मइन हो गया, अगर वो मेरे पीर की जूतियों के बदले मेरी जान भी मांगता तो में बख्श देता।

आप की तसानीफ़

हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने कम से कम चार लाख अशआर कहे हैं, नो साल की उमर में आप ने अपने वालिद माजिद की वफ़ात पर एक मर्सिया लिखा, और आप ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तारीफों तौसीफ में बहुत अशआर लिखे हैं, आप की तस्नीफ़ करदा यानि लिखी हुई किताबें 99, हैं यानि आप ने 99, किताबें लिखीं थीं, (1) रहतुल मुहिब्बीन, आइनाये सिकन्दरी, खज़ाइनुल फुतुह, मनाकिबे हिन्द, वगेरा वगेरा।

मेरा राज़ फाश कर दिया

सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने अपने दौरे हुकूमत में बहुत कोशिश की के वो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ज़ियारत के लिए हाज़िर हो लेकिन आप ने कभी इस को आने की इजाज़त नहीं दी, आखिर उसने एक मर्तबा ये पुख्ता इरादा कर लिया के वो बगैर इजाज़त हज़रत की बारगाह में हाज़िर होगा और हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! जो इस के करीबी थे इस इरादे का आप से ज़िक्र किया, हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को इस की बहुत फ़िक्र हुई के अगर हज़रत से ज़िक्र नहीं करता हूँ तो नाराज़ होंगें और अगर ये राज़ हज़रत को बताता हूँ तो बादशाह नाराज़ होगा, आखिर कार आप ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को बादशाह के इरादे से खबर दार कर ही दिया, हज़रत ये बात सुनते ही पाकपटन अपने पीरो मुर्शिद हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार शरीफ पर हाज़री के लिए रवाना हो गए, बादशाह को जब इस की खबर हुई तो हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! से कहा के तुम ने मेरा राज़ फाश कर दिया, हज़रत अमीर खुसरू! ने फ़रमाया के बादशाह की नाराज़गी से जान का खौफ है और पीरो मुर्शिद की नाराज़गी से ईमान का खौफ है, सुल्तान जलालुद्दीन चूंके अक्लमंद बादशाह था उसे हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का जवाब बहुत पसंद आया।

वफ़ात

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की वफ़ात के वक़्त आप दिल्ली में नहीं थे, उस वक़्त आप सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक के साथ बंगाल में थे, वफ़ात की खबर सुनकर दिल्ली आए, अपने पीरो मुर्शिद के मज़ार मुबारक पर हाज़िर हुए जो कुछ पास में था फुकरा और मसाकीन को तकसीम किया, छेह महीने निहायत रंजो गम में गुज़रे आखिर कार 18, शव्वालुल मुकर्रम 725, हिजरी को आप का इन्तिकाल हो गया।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ दिल्ली में बस्ती निजामुद्दीन में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के पास में ही कदमो की जानिब मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  1. रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
  2. औलियाए दिल्ली की दरगाहें
  3. मिरातुल असरार
  4. मर्दाने खुदा
  5. दिल्ली के 22, ख्वाजा

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