हज़रत शैख़ सैफुद्दीन कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत शैख़ सैफुद्दीन कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

नाम शरीफ

आप का इस्मे गिरामी शैख़ सैफुद्दीन कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, और आप के वालिद माजिद का नाम हज़रत शैख़ सअदुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह है।

विलादत

आप की पैदाइश मुबारक 920/ हिजरी में हुई, जब आप की उमर शरीफ 8/ साल की थी, तो आप के वालिद माजिद का इन्तिकाल हो गया था, इन्तिकाल से पहले आप के वालिद मुहतरम आप को नमाज़े तहज्जुद के वक़्त मकान की छत पर ले गए और नमाज़ पढ़ कर आप को अपने सामने खड़ा किया और कहा ऐ अल्लाह! तू जानता है के में ने अपने दूसरे लड़कों की तरबियत की और उन के हुकूक अदा किए लेकिन इस को यतीम और बेकस छोड़े जा रहा हूँ, अभी इस के हुकूक अदा करना मेरे ज़िम्मे थे, इस लिए इस को तेरे हवाले कर रहा हूँ तू इस का मुहाफ़िज़ है, ये दुआ कर के आप के वालिद फ़ौरन छत से नीचे उतर आए।

बैअतो खिलाफत

आप मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के वालिद हैं, हज़रत शैख़ सैफुद्दीन कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! कसम खा कर कहा करते थे, के हमें दुनिया की तलब, मालो दौलत की ज़ियादती, मालदारी और सरमाया दारी का शोक नहीं है क्यों के हमारे दिल का रुजहान सिर्फ अल्लाह पाक की मुहब्बत और फक्र की तरफ है, फरमाते थे, मुझे सात साल की उमर से दर्दे मुहब्बत तलाबे इलाही और मारफत का शोक था, और इसी फ़िक्रों ज़िक्र में उमर बसर हुई है और फरमाते थे, के मुजाहिदा और रियाज़त के ज़माने में, में ने वो हालात देखे हैं जिन का इज़हार ना करना ही राज़दारी है और यही फकीरों के लिए ज़रूरी है,
हज़रत शैख़ सैफुद्दीन कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के में बहुत से दुरवेशों के पास पंहुचा लेकिन मेरा मकसद हज़रत शैख़ ख्वाजा अमानुल्लाह पानीपती रहमतुल्लाह अलैह! के यहाँ पूरा हुआ और आप के ज़रिए से जो कलबी लगाओ हुआ वो किसी और जगह नहीं मिला, इस वजह से आप के पीरो मुर्शिद हज़रत शैख़ ख्वाजा अमानुल्लाह पानीपती रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को अपनी इनायतों के साथ मख़सूस किया और अपने हाथ से खिलाफत नामा लिखा और खिरकाए खिलाफत पहनाया।

बरकत की दुआ

हज़रत शैख़ सैफुद्दीन कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! में वालिद माजिद की दुआ की बरकत और ज़ाती इस्तेदाद की वजह से तरक्की के आसार नमूदार होने लगे, आप ने अपने भाइयों की मोजूदगी में वालिदा मुकर्रमा की खिदमत खूब की और खर्च की तंगी के बावजूद तालीम हासिल करने लगे, यहाँ तक के शायरी, फ़ज़ीलत, कबूलियत, ज़ोको शोक, मुहब्बत व उल्फत, बे तअल्लुकी, खुश कलामी, ज़िक्रे इलाही, बारीक बीनी, और दूर रसी में यकताए ज़माना और मुल्क की यादगार साबित हुए।

फ़ैज़ाने पीरो मुर्शिद

हज़रत शैख़ सैफुद्दीन कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जब मुरीद होने के लिए हज़रत शैख़ ख्वाजा अमानुल्लाह पानीपती रहमतुल्लाह अलैह! की बारगाह में हाज़िर हुए और मुर्शिद ने फ़रमाया अपने हालात व तसव्वुरात से कुछ बयान करो, आप ने जवाब में अर्ज़ की मेरा कोई हाल नहीं है, इस लिए मेरे तस्सवुरात व हालात क्या होंगे? हज़रत शैख़ ख्वाजा अमानुल्लाह पानीपती रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया ये में ने इस लिए पूछा के ये मालूम हो सके के आप की तबियत का मैलान किस तरफ है? आप ने अर्ज़ किया के मुझ को ऐसा मालूम होता है के ज़मीन से अर्श तक तमाम आलम मेरे अहाते में है और में सब को घेरे हुए हूँ, हज़रत शैख़ ख्वाजा अमानुल्लाह पानीपती रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया के तुम्हारे अंदर मारफत तौहीद का तुख्म मौजूद है, इस के बाद मुर्शिद ने आप को तरबियत दी और तलकीन हिदायत फ़रमाई:
एक रात आप के पीरो मुर्शिद हज़रत शैख़ ख्वाजा अमानुल्लाह पानीपती रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को अपनी ख़ास खल्वत गाह में बुलाया और फ़रमाया के एक रास्ता तो वो है जिससे दो कदम अल्लाह पाक की रसाई हो जाती है और एक रास्ता वो है जिससे एक ही कदम में अल्लाह पाक तक पहुंच जाते हैं।

दिल की बात जान लेते

मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह का बयान है के वालिद मुहतरम फरमाते थे के मुझे दुरवेशों की सुहबत से ये हाल नसीब हुआ है के में हर आदमी की हालत बता सकता हूँ, में ने आप की इस सिफ़त का कई मर्तबा मुशाहिदा किया के जिस आदमी के मुतअल्लिक़ कोई बात कह दी तो अगरचे उस वक़्त मौजूद ना थी लेकिन बाद में ज़रूर उस में नमूदार होती थी, फरमाते थे अगर अँधेरी रात में भी किसी को हाथ लगा कर देखूं तो उस की हक़ीकते हाल बयान कर दूंगा।

वफ़ात

वफ़ात के बिलुकल करीब आप के फ़रज़न्द मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने सुन्नत के मुताबिक आप ने बुलंद आवाज़ से कई मर्तबा कलमा शरीफ! और खामोश हो कर अल्लाह पाक को याद करने लगे जिस का असर ये होता है के दिल से कलमा शरीफ! की आवाज़ आती है और इस के चंद लम्हे बाद 27/ शबानुल मुअज़्ज़म 990/ हिजरी को वफ़ात पाई, यानि बादशाह अकबर के दौरे हुकूमत में।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक महरोली शरीफ दिल्ली 30/ में होज़ शम्शी के जानिब पच्छिम शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह के छोटे दरवाज़े के बाहर पच्छिम की तरफ नीम के दरख्त के नीचे जो तीन कब्रें थीं इन में बीच में आप का मज़ार शरीफ था मगर अब सब साफ़ कर के मकान बना लिए।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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