हज़रत मौलाना ख्वाजा ज़ैनुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत मौलाना ख्वाजा ज़ैनुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

सीरतो ख़ासाइल

आलिमे बा अमल आरिफ़े कामिल, हज़रत मौलाना ख्वाजा ज़ैनुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! दानिश मंदाना शान रखते थे, बदायूं के अज़ीम व जलीलुल क़द्र बुज़ुर्गाने दीन में आप का शुमार होता था, लेकिन कभी किसी के रूबरू ज़ानूए तलम्मुज़ शागिर्दी तय नहीं किया था, इल्मे बातनी आप ने हज़रत ख्वाजा महमूद नखासी रहमतुल्लाह अलैह से हासिल किया था, और आप ने हज़रत ओवैस करनी रदियल्लाहु अन्हु से भी बातनी तौर पर रूहानी फैज़ हासिल किया था, मदरसा मुइज़्ज़िया! के मुदर्रिसे आला रहे, जामे उलूमे सूरी व मानवी और साहिबे तसर्रुफ़ थे,
मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने लिखा है, के हज़रत ख्वाजा महमूद नखासी रहमतुल्लाह अलैह ने पांच नसाहे आप की वो ये हैं: (1) अपने घर का दरवाज़ा किसी फ़कीर या साइल पर बंद मत करो, (2) जो भी मयस्सर हो देते रहो, (3) खानदा पेशानी से हर एक से मिला करो, (4) जो कुछ क़लील व कसीर पास में हो दे ने में दरेग न करो, (5) अपना बोझ किसी पर मत डालो।

सरकार महबूबे इलाही

सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मन्क़ूल: है के मदरसा कलां में एक दानिश मंद मौलाना ज़ैनुद्दीन! नाम से एक बुजरुग रहते थे, अच्छे आलिमे दीन थे, जो मसला उन से पूछा जाता, निहायत खूबी के साथ उस को बयान करते, आलिमाना बयान व तक़रीर करते थे, तालीम के बारे में जब उन से पूछा गया, तो फ़रमाया में ने किसी से नहीं पढ़ा न किसी की शागिर्दी में रहा, जवानी के ज़माने से ही नमाज़ पढता के ऐ अल्लाह पाक मुझे इल्म हासिल हो जाए में बूढा हो गया हूँ तू मुहे इल्म अता कर दे, हज़रते ओवैस करनी रदियल्लाहु अन्हु के वसीले से, चुनांचे अल्लाह पाक ने इस नमाज़ की बरकत से मुझ पर इल्म का दरवाज़ा खोल दिया जिस की बदौलत अब कैसा ही मसला पूछा जाता है में उस को मुशर्राह यानि वाज़ेह कर के बयान करता हूँ,
आप का ज़माना सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह से पेश्तर का है।

वफ़ात

9/ सफरुल मुज़फ्फर 641/ हिजरी में आप का विसाल हुआ, बाज़ हज़रात इस का इंकार करते हैं के आप की तारीखे विसाल ये नहीं है कुछ और है बहरहाल जोभी हो अल्लाहो रसूल ज़ियादा बेहतर जानते हैं।

मज़ार शरीफ

मदरसा मुइज़्ज़िया! मशरिक की जानिब आप की तद्फीन हुई, कब्र शरीफ जामा मस्जिद के पीछे खतीबों वाले मकान के अंदर है, अब इसी जगह पर मस्जिद जदीद खतीब ख्वाजा अहमद व मकबूल हुसैन ने बनवाई है, अब वहां पर चंद कब्रें हैं, यहीं आप की कब्र मरजए खलाइक होगी ज़िला बदायूं शरीफ यूपी इंडिया।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन

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