आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 10)

कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौलाना हज़रते अहमद रज़ा के वास्ते

“आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की करामात”

में दोबार ज़िंदह हो चुका था

मुफ़्ती गुलाम सरवर कादरी रज़वी साहब! अपनी किताब “अश्शाह इमाम अहमद रज़ा” में एक वाकिअ बयान फरमाते हैं के: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की एक ज़िंदा करामत “शैख़ हबीबुर रहमान” के नाम से आज भी लाहौर में मौजूद है, शैख़ हबीबुर रहमान साहब! ऐक्सीक्यू टिंग डिप्टी सुपर टंडनडंट पुलिस (हाल मुतअय्यन मुहकमा ऐंटी किरिपशन लाहौर 1971, ईस्वी) ने 11, अप्रेल 1971, को आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के 51, वे उर्से मुबारक के मोके पर लाहौर में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की ये करामत तक़रीर में सुनाई जो उनकी अपनी आप बीती है,

मुहतरम शैख़ साहब ने फ़रमाया ये 1920, का वाक़िआ है, मेरे दांत निकलने का ज़माना था, उस वक़्त उमर तकरीबन एक साल की होगी मेरे वालिदैन के बयान के मुताबिक में उस वक़्त बहुत कंमज़ोर था, और बुखार काफी था, रफ्ता रफ्ता बिमारी शिद्द्त पकड़ गयी और निमोनिया हो गई, और सांस बंद हो गया हत्ता के मेरे वालिदैन ने मुझे मुर्दा करार दे दिया और रज़ाई में लपेट कर अलैहदा रख दिया, सब घर वाले मेरी मोत के सदमे से रोरो कर निढाल हो गए, में उनका इकलौता बच्चा था, मेरे माँ बाप आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के ज़ेरे साए एक करीबी मकान में ही रिहाइश पज़ीर थे, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को भी इस अलम नाक वाकिए की खबर मिली तो आप ग़मगीन हुए, अलालत की तफ्सील दरयाफ्त फ़रमाई, चंद तावीज़ अता फरमाए और हिदायत फ़रमाई के इन की धूनी बच्चे की नाक में दी जाए, मेरे माँ बाप चूंके को बेहद अकीदत थी इस लिए उन्होंने हस्बे इरशाद तामील की और साथ साथ कफ़न दफन की तैयारियां भी हो रही थीं के अचानक रज़ाई के अंदर से मेरे रोने की आवाज़ आई, वालिदा साहिबा ने दौड़ कर मुँह से रज़ाई हटाई तो हैरान रह गईं “में दोबार ज़िंदह हो चुका था” हर तरफ ख़ुशी की लहार दौड़ गई, ये आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की दुआ का नतीजा था के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपनी क़ुदरते कामिला से मुझ को एक बार फिर ज़िन्दगी अता फ़रमाई मेरी उमर अब पचास साल से ज़ियादा है मगर में अब तक आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बरकतों का असर अपने अंदर महसूस करता हूँ।

भय्या बड़े मौलाना कने जा

हाजी किफ़ायतुल्लाह साहब! का बयान है के: हाजी खुदा बख्श फरमाते हैं के: मेरा एक लड़का था जिस का नाम मकबूल अहमद था, 19, साल उसकी उमर थी, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का बड़ा मोतक़िद चाहने वाला था) उसको बुखार आया, तीसरे रोज़ उसकी हालत बहुत गैर हुई, यहाँ तक के इन्तिकाल हो गया, घर की औरतें रोने लगीं, फिर उन औरतों को ख़याल आया के एक कपड़ा फाड़ कर इस के पाऊं के दोनों अंगूठे बाँध दें, जब वो बाँध ने लगीं तो उसने अपना पैर खींच लियाँ और उस में जान आ गई और बातें करने लगा और अपने बड़े भाई से कहा “भय्या बड़े मौलाना कने जा” हम लोगों ने इस बात का कुछ ख़याल न किया, फिर इस की वही हालत हो गई और इस का दम निकल गया, औरतें रोने लगीं, इस के बाद इन को फिर ख़याल आया तब अंगूठे बांध ने लगे इस ने फिर पाऊं खींच लियाँ और ऑंखें खोल दीं और कहा “भय्या बड़े मौलाना कने जा”, हमने फिर ख्याल नहीं किया तीसरी मर्तबा फिर वही वाकिया हुआ,

गर्ज़ सुबह से तीसरे पहर तक यही हालत रही जब तीन बार ये हालत गुज़री तो मेने अपने बड़े लड़के से कहा तू जा और हाजी तालिब साहब से परचा लिखवा कर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पास जा, वो गया और हाजी साहब मौसूफ़ से परचा कैफियत का लिखवा कर ले गया, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! फाटक ही में तशरीफ़ रखते थे उसने वो परचा दे दिया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने वो परचा पढ़ा और फ़रमाया में अभी चलता हूँ कोई सवारी है? में ने कहा हुज़ूर “यक्का” है (“यक्का” पुराने ज़माने की तांगे ही की तरह एक सवारी का नाम है) फ़रमाया खेर में “यक्का” ही पर चलूँगा, बिला आखिर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! हमारे घर तशरीफ़ लाए, लड़के को बिठाया और दम कर के उसे अपने हाथ से पानी पिलाया, फिर आप ने उसे लिटा दिया, मगरिब का वक़्त करीब था, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी मस्जिद में तशरीफ़ ले गए, वहीँ में ने भी नमाज़ पढ़ी, नमाज़ के बाद आप वापस मकान पर तशरीफ़ लाए और मुझ से फ़रमाया अब में तावीज़ लिख कर दूंगा आप मुहल्लाह सौदागरान तशरीफ़ ला कर ले जाइये, जिस वक़्त हज़रत मकान से चले इस लड़के ने अपनी गर्दन घुमा कर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! को देखा जब तक हज़रत दरवाज़े तक पहुंचे उस वक़्त तक देखता ही रहा, इत्तिफाके वक़्त देखिए के में आप के पास तावीज़ लेने के लिए भूल गया, रात में दोबारा इस का इन्तिकाल हो गया फिर ज़िंदा ना हुआ, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का बहुत ही मोतक़िद था इस की रूह आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! को देखने के लिए बे चैन थी तो इस को सुकून मिल गया।

एक वली ने एक वाली से मुलाकात की

“तजल्लियते इमाम अहमद रज़ा” में है के: गालिबन 1320, हिजरी में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी “ज़िला पीलीभीत के क़स्बा बीसलपुर” हज़रत मौलाना इरफ़ान अली साहब बीसलपुरी के घर पर तशरीफ़ ले गए और मौलाना इरफ़ान अली साहब से फ़रमाया के क्या इस बस्ती में किसी “वाली” का मज़ार शरीफ है? उन्होंने अर्ज़ किया हुज़ूर! यहाँ तो किसी मशहूर वली का मज़ार मेरी नज़र में नहीं, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इरशाद फ़रमाया मुझे तो “वलियुल्लाह” यानि अल्लाह के वली की खुशबू आ रही है, में उनके मज़ार पर फातिहा पढ़ने जाँऊगा, तब मौलाना इरफ़ान अली साहब ने अर्ज़ किया हुज़ूर! यहाँ बिलकुल इस बस्ती के किनारे पर एक कबर है, जंगली इलाका है, एक कोठरी बनी हुई है,

उसी के अंदर वो कबर है, फ़रमाया चलो: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी इस गुमनाम मज़ार पर तशरीफ़ ले गए और आप ने इस चार दीवारी के अंदर जा कर दरवाज़ा बंद कर लिया और तकरीबन पों घंटे तक अंदर ही रहे, सैंकड़ों का मजमा था, ऐनी शहिदोँ का ख़ुसूसन मौलाना इरफ़ान अली साहब का बयान है के ऐसा मालूम होता था गोया वो लोग आपस में गुफ्तुगू फरमा रहे हैं, इन औकात में एक वली ने एक वली से मुलाकात की और क्या क्या राज़ो नियाज़ की गुफ्तुगू फ़रमाई किसी को मालूम नहीं, हाँ जब आप बाहर तशरीफ़ लाए तो चेहरे पर जलाल रोशन था, बा रोब आवाज़ में फ़रमाया: बीसलपुर वालों! तुम अब तक तारीकी में थे ये अल्लाह पाक के ज़बरदस्त “वलियुल्लाह” हैं, गाज़ियाने इस्लाम से हैं, सोहरवर्दी सिलसिले के हैं, क़बीलाए अंसार से हैं, गाज़ी कमाल शाह! इन का नाम है, इन्होने शादी नहीं की थी, तुम लोगों का फ़र्ज़ है के इन से कसबे फैज़ करते रहो और इन के मज़ार शरीफ को उम्दा तौर पर तामीर करो, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! का ये फरमाना था के उसी वक़्त से लोगों का हुजूम भीड़ शुरू हो गई और आप की बारगाह से लोग मुस्तफ़ीज़ होने लगे अब वो उजड़ा जंगल थोड़े हो दिनों में सेहने गुलज़ार बन गया।

साहिबे मज़ार से बिल मुशफा (आमने सामने) मुलाकात

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी एक मर्तबा पीलीभीत तशरीफ़ ले गए और हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह के दौलत खाने पर क़याम फरमा हुए, जब वहां पहुचें तो देखने में ये आया के मज़ारे अक़दस के किवाड़ खुले हुए हैं और चौखट के बीच में एक अज़्दहा सांप लेटा हुआ है, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! मज़ार के करीब पहुंचे तो वो अज़्दहा अंदर चला गया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी भी अंदर तशरीफ़ ले गए,

हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह वगेरा अंदर जाना चाहते थे के मज़ार शरीफ के किवाड़ खुदबखुद बंद हो गए और हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह वगेरा बाहर रह गए, अब आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी और अज़्दहा और साहिबे मज़ार अंदर हैं, बाहर मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह और दीगर तलबा इस वाकिए को देख कर मुतफक्किर हुए, तकरीबन दो घंटे के बाद यकायक मज़ार शरीफ का दरवाज़ा खुला और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी मज़ार शरीफ से हश्शाश बश्शाश बाहर तशीरफ़ लाए और फ़रमाया अब वो अज़्दहा नज़र नहीं आएगा और ये साहिबे मज़ार नक्शबंदी! सिलसिले से मुनसलिक हैं और इस शहर पीलीभीत के “सुल्तानुल औलिया” हैं, उस वक़्त अजीब मंज़र था, नीज़ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया साहिबे मज़ार ने इस फ़कीर से बिल मुशफा (आमने सामने) मुलाकात! की, इस करामत को देख कर सुल्तानुल वाइज़ीन मौलाना शाह अब्दुल अहद साहब नबीरए हज़रत शाह जी मियां, मौलाना शाह हबीबुर रहमान साहब, और हज़रत मौलाना मौलवी अबू सिराज अब्दुल हक शम्शी, हज़रत शाह कलीमुल्लाह वली, के मज़ार ही पर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के दस्ते हक परस्त पर बैअत हुए, जब ये वाक़िआ हुआ वहां अज़दहाम नज़र नहीं आया आम तौर पर लोग मज़ार शरीफ पर हाज़री देने लगे, उससे पहले की वजह से लोग दूर ही से फातिहा पढ़लिया करते थे।

कश्ती को डूबने से बचा लिया

हज़रत सद रुश्शारिया मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह बयान फरमाते हैं के: एक मर्तबा हम आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से दरसे हदीस ले रहे थे के ख़िलाफ़े आदत आप वहां से उठे और पंदिराह मिनट के बाद कुछ मुताफक्किर, परेशांन वापस तशरीफ़ लाए, इस हाल में के दोने हाथ माआ आस्तीन के तर यानि गीले थे, मुझे हुक्म दिया के खुश्क कुरता ले आओ! में ने हाज़िर किया, हुज़ूर ने पहना और फिर हम लोगों को दरसे हदीस देने लगे, मेरे दिल में ये अजीब बात खटकती तो में ने वो दिन, तारिख और वक़्त लिख लिया, चुनांचे ग्यारा दिन के बाद एक जमात तोहफे तहाइफ़ ले कर हाज़िर हुई, जब वो लोग वापस जाने लगे तो में ने उन से उनका हाल पूछा के कहाँ मकान है, इस वक़्त कहाँ से तशरीफ़ लाए और कैसे आना हुआ?

उन लोगों ने अपना वाक़िआ बयान किया के: हम फुला तारिख को कश्ती में सवार हुए, हवा तेज़ चलने लगी और मोजे ज़ियादा होने लगीं, यहाँ तक के कश्ती के उलट जाने और हम लोगों के डूब जाने का ख़तरह पैदा हुआ हमने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से तवस्सुल किया और नज़र मानी, क्या देखते हैं के एक शख्स कश्ती के पास आया और उसका किनारा पकड़ कर किनारे पर पंहुचा दिया तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बरकत से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हम लोगों को बचा लिया अब वही नज़र पूरी करने और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की ज़ियारत को आए हैं।

मौसम तब्दील हो गया

मौलाना मुहम्मद हुसैन मेरठी साहब का बयान है के: एक मर्तबा बरैली शरीफ गया, दो दिन रहकर सुना के आज हज़रत एक मोज़ा (गाऊं, दिहात) को तशरीफ़ ले जाएंगें, आप के एक मुरीद खान साहब ने दावत की है, कुछ लोग हमराह (साथ) जाएंगें, में ने ये ख़याल कर के आप की कसीर सोहबत मयस्सर होगी साथ जाने की इजाज़त ले ली, गालिबन असर के वक़्त ट्रेन वहां पहुंची, स्टेशन उतर कर नमाज़ पढ़ी गई इस के बाद बेल गाड़ियों में हम सवार हुए और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी पालकी में सवार हुए, गाऊं स्टेशन से 4, 5, किलो मीटर दूर था, वहां पहुंचे तो क़ुर्बो जवार गाऊं दिहात के लोग बराबर ज़ियारत के लिए आते जाते रहे दो दिन वहां क़याम फ़रमाया, हर वक़्त आदमियों की कसरत भीड़ थी,, मेज़बान साहब ने ये इंतिज़ाम कर रखा था के हर वक़्त खाने में सिर्फ मुर्गे का गोश्त हुआ करता था,

अब वापसी का वक़्त आया तो रवानगी का वक़्त दो बजे मुकर्रर हुआ, सबने ज़ोहर की नमाज़ पढ़ी ताँगों में सवार हुए, शदीद गर्मी और सख्त धुप थी, में मुतअज्जिब था के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का मिजाज़ निहायत गरम है, इस कदर सख्त गर्मी है और वक़्त भी दोपहर का है मगर कुदरते खुदावन्दी के पंदिरा बीस कदम चले होंगें के अब्र बदल आया और स्टेशन तक बराबर साथ ही साथ चलता रहा जिसे देख कर बहुत तअज्जुब होता था इस लिए के अब्र का ज़माना नहीं था।

विसाल के बाद हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़री

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपना एक ख्वाब बयान किया के दिन के दस बजे का वक़्त था, में सो रहा था, ख्वाब में देखा के सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मवाजेह अक़दस में यानि आप के रोज़े पर हाज़िर हैं और सलातो सलाम अर्ज़ कर रहे हैं, बस इसी कदर देखने पाया था के मेरी आँख खुल गई, अब बार बार ख़याल कर रहा था मगर दिल की ये हालत मुतावातिर हरम शरीफ चलने पर आमादा कर रहा था, बिला आखिर बिस्तर से उठा, वुज़ू किया और “बाबुस सलाम” से हरम शरीफ में दाखिल हुआ,

अभी कुछ हिस्सा मस्जिदे नबवी का तय किया था के अपनी आँखोने से में ने देखा के वाकई आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी इसी सफ़ेद लिबास में मज़ार शरीफ पर हाज़िर हैं और जैसा के ख्वाब में देखा था के सलातो सलाम पढ़ रहे थे, आँखों ने ये देखा के लब हाए मुबारक जुम्बिश में थे आवाज़ सुनने में ना आई, गरज़ में ये वाकिअ देख कर बेताबाना कदम बोसी के लिए आगे बढ़ा के नज़रों से गाइब हो गए उस के बाद मेने हाज़री दी और सलातो सलाम अर्ज़ कर के वापस हुआ, जब उसी जगह आया जहाँ से उन्हें देखा था तो एक मर्तबा आप को फिर वहीँ मौजूद पाया, मुख़्तसर ये के तीन बार ऐसा हुआ।

में आते जाते तुम्हारे साथ हूँ

मौलाना ऐजाज़ अली खान साहब का बयान है के: 1430, हिजरी में मेरे वालिदैन करीमैन हज के इरादे से आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पास आये और इजाज़त चाहि आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया “में आते जाते तुम्हारे साथ हूँ” फिर फ़रमाया: में सच कहता हूँ के में आते जाते तुम्हारे साथ हूँ, वालिदा साहिबा इस के बाद हज पर रवाना हो गईं, हतीम शरीफ में एक रात वालिदा साहिबा नफ्ल पढ़ रही थीं के लोगों का हुजूम हो गया और साथ वाले सब जुदा हो गए, वालिदा साहिबा बहुत घबरा गईं और ख़याल किया के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया था के में आते जाते तुम्हारे साथ हूँ, अब और कौन सा वक़्त आएगा जिस में मदद फ़रमाएंगें लोगों की भीड़ इस कदर थी के रास्ता मिलना दुश्वार था के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को देखा, आप ने कुछ अरबी में फ़रमाया जिस का मतलब कुछ मालूम ना हो सका लेकिन इस कदर हुजूम के बावजूद रास्ता मिल गया के वालिदा साहिबा बा आसानी वहां से चली आईं, और दूसरे दरवाज़े से जब हरम शरीफ के बहार आईं तो वालिद साहब भी मिल गए और हज़रत! गायब हो गए बरैली शरीफ आ कर अर्ज़ किया तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने सुकूत फ़रमाया।

वो दोनों कूँजें (परिंदा) ये बातें कर रहे हैं

बहुत से औलियाए किराम ने हैवानात व जमादात से कलाम किया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से भी इस किस्म की एक करामत मन्क़ूल है, मौलाना नूरुद्दीन साहब! फरमाते हैं के: में गोरमेंट अंग्रेज़ का मुलाज़िम था, इत्तिफाकन मेरी डियूटी बरैली शरीफ में लग गई चूंके में “हज़रत मियां शेर मुहम्मद शरकपुरी रहमतुल्लाह अलैह” का मुरीद था, और मुझे ये नसीहत थी के जहाँ भी जाओ उस इलाके के बुज़रुग की हाज़री ज़रूर दो चुनांचे में बरैली शरीफ में बहुक्म पिरो मुर्शिद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में अक्सर हाज़िर होता था, हस्बे मामूल में एक दिन आप की खिदमत में हाज़िर था के दो अँगरेज़ आप की खिदमत में हाज़िर हुए और वो आप से गुफ़्तो शुनीद में मशगूल हो गए और आप से पूछने लगे के आप फरमाते हैं के पैग़म्बरे इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है के:

“मेरी उम्मत के उलमा बनी इस्राईल के अम्बिया की तरह हैं” क्या आप इस का सुबूत दे सकते हैं के बनी इस्राईल के पैगम्बर तो जानवरों की बोलियां तक समझते थे, आप पैग़म्बरे इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत के आलिम हैं, आप में कोई ऐसी सलाहीयत है? इत्तिफाक से उस वक़्त दो कूंजें यानि मुर्गाबी उड़ रही थीं अंग्रेज़ों ने अर्ज़ किया के वो कूंजें उड़ी चली आ रहीं है वो एक दूसरे से क्या बातें कर रही हैं? आप ने फ़रमाया: में तो ख़ाक पाए अक़दस हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अदना गुलाम हूँ और इंकिसारी ज़ाहिर की मगर उन्होंने इसरार किया, फिर आप ने फ़रमाया अच्छा अगर आप इसरार करते हैं तो सुन लीजिए वो दोनों कूंजें (मुर्गाबी) ये गुफ्तुगू कर रही हैं, अगली पिछली से कह रही है जल्दी करो, अँधेरा हो रहा है, पिछली ने अगली को जवाब दिया के जब हम पिछली वादी में जल्दी से उत्तरी थीं, तो मेरे पाऊं में एक काँटा चुभ गया था इस लिए मुझ से तेज़ नहीं उड़ा जा रहा है, तुम आहिस्ता आहिस्ता चलो में पूरे ज़ोर से चलती हूँ ताके तुम्हारे साथ रह सकूं, उन अंग्रेज़ों के पास उस वक़्त बंदूक थी और दोनों बड़े निशानची थे एक अंरेज़ ने फ़ौरन निशाना बांधा और पिछली मुर्गाबी गिर कर तड़पने लगी और उन्होंने देखा के वाकई मुर्गाबी के पाऊं में कांटा चुभा हुआ है, आप की ये करामत देख कर वो अँगरेज़ मुस्लमान हो गए और कहने लगे हुज़ूर! वाकई दीने इस्लाम सच्चा है।

सर पर रुमाल डालते ही होश आ गया

एक मर्तबा जनाब सय्यद महमूद अली खान साहब! ने किसी मरीज़ के ज़ख्म और ऑपरेशन की मुफ़स्सल कैफियत बयान फ़रमाई, उस को सुनते ही सय्यद कनाअत अली साहब अपनी कलबी कमज़ोरी की वजह से बे होश हो गए, उस वक़्त उन के होश लाने की तरकीबें की गईं मगर उनका कुछ असर न हुआ, इतने में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी तशरीफ़ ले आए आप ने उनका सर अपने ज़ानूए मुबारक पर रख कर अपना रुमाल डाला फ़ौरन उन्हें होश आ गया और ऑंखें खोल दीं, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के ज़ानूए मुबारक पर अपना सर देख कर उन्होंने जल्द उठना चाहा लेकिन कमज़ोरी की वजह से ना उठ सके, हुज़ूर ने अज़ राहे शफकत फ़रमाया लेटे रहो लेटे रहो ये शफकत छोटों पर शफकत की बेहतरीन मिसाल है।

मरीज़ को शिफा मिल गई

मौलाना ऐजाज़ अली खान साहब! का बयान है के: एक मर्तबा मौलवी असगर अली खान साहब वकील की लड़की बहुत सख्त बीमार हो गई, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को लेने के लिए वहां से लोग आए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी वहां तशरीफ़ ले गए, में और एक खादिम साथ में थे,, जैसे ही गाड़ी वकील साहब के मकान पर पहुंची वकील साहब ने देखा के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी गाड़ी से उतर रहे हैं, फ़ौरन ही हाज़िरे खिदमत हुए और दस्त बोसी कर के कहा के हज़रत ने जिस वक़्त मेरे मकान पर तशरीफ़ लाने का इरादा फ़रमाया अल हम्दुलिल्लाह मरीज़ा को उसी वक़्त शिफा व सेहत शुरू हो गई, हज़रत अंदर मकान पर तशरीफ़ ले गए और मरीज़ा पर पढ़ कर दम किया अल्लाह पाक ने मरीज़ा को बिलकुल सेहत मंद कर दिया।

फरमाते ही गिल्टी सही हो गई

जनाब मुहम्मद हुसैन साहब रज़वी का बयान है के: 1331, हिजरी में मेरी बीवी के गले में एक गिल्टी निकली और गफलत तारी हो गई में डर गया और फ़ौरन आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में हाज़िर हुआ, मुझे देखते ही फ़रमाया “तुम क्यों घबरा गए हो जो तुम्हारा ख्याल है वो बात नहीं है नंन्हे मियां (मौलाना मुहम्मद रज़ा) उस वक़्त मौजूद थे, उन्होंने फ़रमाया हज़रत! ने फ़रमाया सेहत हो गई, और कोई मर्ज़ नहीं है चुनांचे जिस वक़्त में मकान वापस हुआ तो तबियत अच्छी थी, गफलत दूर हो गई दो दिन के बाद वो बिलकुल ठीक हो गईं।

दो तीन मिंट के बाद दर्द बिलकुल काफूर हो गया

जनाब मौलाना इरफ़ान अली साहब बीसलपुरी का बयान है के: 1912, ईस्वी में हक़ीर! दर्द कौलन्ज में मुब्तला हुआ, तीन रोज़ तड़पते गुज़रे, कोई इलाज कार गर न हुआ, उस ज़माने में हक़ीर हाई इस्कूल बरैली में पढता था और बोडिंग हाऊस में मुकीम था, तीसरे रोज़ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने अपने कुदूमे मेमनत लुज़ूम से मेरे कमरे को शरफ़ बख्शा और दर्द के मकाम पर अपना दस्ते मुबारक रख कर कुछ पढ़ कर दम किया और अपने दस्ते अक़दस की ऊँगली से अंगूठी निकाल कर मेरी ऊँगली में पहनादि, दो तीन मिंट के बाद दर्द खत्म हो गया।

वुज़ू के बच्चे हुए पानी से शिफा मिल गई

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: फ़कीर के वालिद माजिद के पैर मुबारक में ज़ख्म हो गया था, खून और पीप जारी था, जर्राह रोज़ाना आया करता था और तरह तरह का मरहम लगाता और ज़ख्म की सफाई भी करता मगर सही न होता था,

सर्दी का ज़माना था, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी उन दिनों “नो मुहल्लाह” की पिली कोठी के पीछे में एक मकान में मुकीम थे, हुज़ूर के खादिम खास हाजी किफ़ायतुल्लाह साहब ने नमाज़े इशा के वुज़ू को पानी रखा और चौकी के करीब तशत रख दिया और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने उस में वुज़ू फ़रमाया उस वक़्त दिल में ख़याल आया के वालिद माजिद का ज़ख्म इस पानी से धोना चाहिए, लिहाज़ा हाजी साहब मौसूफ़ से अर्ज़ किया उस वक़्त मेरे पास कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिस में ये पानी ले जाऊं आप बराहे करम कल से पानी ज़ाए ना करें, दूसरे रोज़ में ने लोटों में आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के वुज़ू के बचा हुआ पानी को हाजी साहब से भरवा लिया और इस्तिमाल शुरू करा दिया अल हम्दुलिल्लाह महीनो का ज़ख्म हफ़्तों के अंदर अच्छा हो गया।

फूलों का हार शिफा देता है

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! बयान फरमाते है के: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी बसा औकात बाद नमाज़े इशा फूलों का हार गले से उतार कर हाज़रीन मस्जिद में तकसीम कर दिया करते थे, इस अतियाए मुबारक से अक्सर फ़कीर भी मुस्तफ़ीद हुआ करता था, में उन फूलों को खुश्क होने पर महफूज़ कर लिया करता था, चुनांचे जब तक वो तबर्रुक मेरे पास रहा मुझे किसी दवा की ज़रूरत नहीं होती थी, अगर दर्दे सर हुआ तो इन्हें खुश्क फूलों को पीस कर पेशानी पर लगा लिया, बुखार, ज़ुकाम, खाँसीं, वगेरा अमराज़ में पीस कर पीलिया करता था और खुदा के करम से वो मर्ज़ काफूर हो जाता था, अफ़सोस के वो तबर्रुक अब रफ्ता रफ्ता खत्म हो गया।

ऑपरेशन से बचा लिया

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: सय्यद सरदार अहमद साहब कहते हैं के एक मर्तबा मेरे घर में सात माह का हमल था, दो (जुड़वां) बच्चे पेट में थे, इसी हाल में वो दोनों बच्चे पेट ही में मर गए, इन का पैदा होना सख्त दुश्वार हुआ, हस्पताल की बड़ी मेम (लेडी डॉक्टर) ने कहा के इन बच्चों का बगैर ऑपरेशन पैदा होना मुमकिन नहीं लिहाज़ा इन को हॉस्पिटल ले चलो, इस के कहने के मुताबिक में पालकी लेने को बहुत परेशान जा रहा था के देखा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी मस्जिद में वुज़ू फरमा रहे हैं, मुझ से दरयाफ्त फ़रमाया क्यों परेशान हो? में ने पूरा वाकिया बयान कर दिया, इस पर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने वुज़ू फरमाना रोक दिया और फ़रमाया पर्दा कराओ में आ रहा हूँ, लिहाज़ा में फ़ौरन दौड़ता हुआ घर आया और पर्दा करा दिया,

इतने में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी तशरीफ़ ले आए, मकान में ले गया, आप ने फ़रमाया: एक डोरा बड़ा सा लाओ, मेने डोरा हाज़िर कर दिया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इस का एक सिरा मेरे हाथ में दे दिया और फ़रमाया ये उनकी नाफ पर रखो, में ने इस डोरे को ले कर अपने घर में नाफ पर रखा हुज़ूर! ने पढ़ना शुरू किया, पंदिरा मिनट के बाद हुज़ूर ने फ़रमाया बाहर चले आओ और दाया को पास कर दीजिए, जैसे ही में और आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! बहार तशरीफ़ लाए घर में खबर हुई के दो बच्चे मुर्दाह पैदा हो गए हैं वरना बड़ी मेम ने कह दिया था के ये बच्चे बगैर ऑपरेशन के नहीं पैदा हो सकते वरना बच्चों की माँ का ज़िंदह रहना दुश्वार है।

तबर्रुक पीने से शिफा मिल गई

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! ही बयान फरमाते है के: एक मर्तबा सर्दी के मौसम में फ़कीर के सीने पर नज़ले का शदीद ग़लबा था, जुमा के रोज़ काशानए अक़दस में “बर्फ का शर्बत” जिस में दूध केवड़ा पिस्ता वगेरा लिवाज़मात शामिल थे तय्यार हुआ, ज़ाहिर है के ये शरबत नज़ला में किस कदर मुज़िर है मगर में ने अपने दिल में ये तहय्या कर लिया के पियूँगा और ज़रूर पियूँगा और खूब सेर हो कर पियूँगा ये हुज़ूर के यहाँ का तबर्रुक है, इंशा अल्लाह मुझे फ़ायदा ही होगा, चुनांचे ज़रूरत से कहीं ज़ियादा पिया और और अल हम्दुलिल्लाह शाम तक सारा नज़ला खांसी वगेरा सब ख़त्म हो गया।

मुहद्दिसे सूरति की बेटी को शिफा मिल गई

हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह ने एक मर्तबा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से अर्ज़ किया के: बड़ी बेटी “हनीफुन निसा” की आँखें तीन माह से दुःख रही हैं, मुख्तलिफ इलाज किए गए कोई फ़ायदा नहीं हुआ, वरम की वजह से आँखें नहीं खुलतीं, रात भर सख्त बेचैनी और तकलीफ रहती है, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने अपने कलम से कागज़ के दो टुकड़ों पर: “अशहदु अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह” कुछ गोलाई के साथ तहरीर फ़रमाया और मुहद्दिसे सूरति को फ़रमाया के एक एक कागज़ आँखों पर रख कर एक बारीक कपड़ा बाँध दीजिए, चुनांचे ऐसा ही किया गया हस्बे हिदायत ज़ोहर के बाद जब कपड़ा खोला गया तो आँखों में ना वरम था ना सुर्खी, ऐसा मालूम होता था के आँखों में कभी कोई शिकायत ही नहीं हुई, अफ़सोस के “मदरसतुल हदीस” की इमारत मुन्हदिम होने के वक़्त ये कागज़ के टुकड़े ज़ाए हो गए।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • सवानेह आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा
  • हयाते आला हज़रत अज़
  • फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
  • इमाम अहमद रज़ा अरबाबे इल्मो दानिश की नज़र में
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • हयाते मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी
  • इमाम अहमद रज़ा रद्दे बिदअतो व मुन्किरात
  • इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़

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