कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौलाना हज़रते अहमद रज़ा के वास्ते
“आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! का इल्मी कमालात”
कसरते उलूमो फुनून
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की इल्मी ख़ुसुसियात से पहले ये जान लीजिए के आप उलूमो फुनून! के कोहे हिमाला थे, एक हस्ती में इस कदर उलूम (उलूम, इल्म की जमा है, उलूम माने बहुत सारे इल्म) का एक जगह इकठ्ठा होना अजूबाए रोज़गार है, अहदे अकबरी में हिंदुस्तान में हज़रत शाह वजीहुद्दीन गुजरती रहमतुल्लाह अलैह एक जलीलुल कदर आलिम वा आरिफ गुज़रे हैं, तारीख में उनके बारे में लिखा है के 64, उलूम व फुनून में महारत रखते थे,
कोट अड्डू, पुरहार शरीफ, पाकिस्तान! में एक जय्यद आलिमे दीन हज़रत ख्वाजा अब्दुल अज़ीज़ पुरहारवी रहमतुल्लाह अलैह (साहिबे नबरास, व खलीफा हाफ़िज़ जमालुल्लाह मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह) गुज़रे हैं, वो अपने मुतअल्लिक़ फ़रमाया करते थे के मुझे अल्लाह पाक ने “दो सौ सत्तर, 270 उलूम में महारते कामिला” अता फ़रमाई है, जब के कस्बी (तहसीले इल्म के तौर पर) इस का दसवा हिस्सा भी हासिल नहीं हुआ ये सब कुछ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की अता है,
तारीख में गिने चुने ऐसे हज़रात गुज़रे हैं जो बहुत ज़ियादा उलूमो फुनून पर दस्तरस रखते थे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी भी उन्हीं में से एक हैं, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को जिन उलूम व फुनून पर हमा ग़ीर दस्तरस (महारत) और पूरी महारत हासिल थी उस का इंकिशाफ़ आप ने अपने रिसाले “अल इजाज़ुतर रज़वीय” में हाफिज़े क़ुत्बुल हरम हज़रत सय्यद शैख़ इस्माईल खलील मक्की को सनादे इजाज़त देते हुए फ़रमाया।
पचपन उलूम की फहरिस्त
आप ने इस सनद में मुन्दर्जा ज़ैल उलूमो फुनून का ज़िक्र किया है,
- इल्मे कुरआन
- इल्मे तफ़्सीर
- इल्मे हदीस
- उसूले हदीस
- क़ुत्बे फ़िक़्ह हनफ़ी
- उसूले फ़िक़्ह
- फ़िक़्ह शाफ़ई व मालिकी व हम्बली
- जदले मुहज़्ज़ब
- क़ुत्बे इल्मुल अक़ाइद वल कलाम
- इल्मे नोह्
- इल्मे सर्फ़
- इल्मे मुआनी
- इल्मे बयान
- इल्मे बदई
- इल्मे मंतिक
- इल्मे मुनाज़िरह
- इल्मे फलसफा
- इब्तिदाई इल्मे तकसीर
- इल्मे हय्यत
- इल्मे हिसाब
- इब्तिदाई इल्म हिन्दीसा
“ये इक्कीस वो उलूमो फुनून हैं जिन्हें में ने अपने वालिद माजिद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से हासिल किया”
(22) किरात, (23) तजवीद, (24) तसव्वुफ़, (25) सुलूक, (26) अख़लाक़, (27) असमाउर रिजाल, (28) सेर, (29) तारीख, (30) लुगत, (31) अदब मआ जुमला फुनून
एक सौ पांच उलूम
सय्यद रियासत अली कादरी साहब! ने तो अपने मकाला “इमाम अहमद रज़ा की जदीद उलूमो फुनून पर दस्तरस” में जदीद तहक़ीक़ व मुतालआ की रौशनी में साबित किया है के: “आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को 105, उलूमो फुनून पर दस्तरस व महारते ताम्मा व कामिला हासिल थी” वो लिखते हैं: इमाम अहमद रज़ा ने एक हज़ार के लगभग क़ुतुब व रसाइल तस्नीफ़ किए, जिन में 105, से ज़ाइद उलूम का इहाता किया गया है, इस के अलावा फ़िक़्ह की सैंकड़ों किताबों पर हवाशी लिखे जो हज़ारों सफ़हात पर फैले हुए हैं।
बारगाहे मुस्तफा से फ़कीर को एक मशीन अता हुई
एक बार हज़रत अल्लामा मौलाना शाह मुहम्मद हिदायत रसूल रहमतुल्लाह अलैह आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बारगाह में हाज़िर थे, दीगर उल्माए किराम भी मौजूद थे के दुनिया की मशीनों की ईजाद का तज़किराह चल रहा था, इस पर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इरशाद फ़रमाया: बी फ़ज़्लिहि तआला बारगाहे मुस्तफा हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इस फ़कीर को ऐसी मशीन अता हुई जिस किसी भी इल्म का सवाल किसी भी ज़बान में डाल दीजिए चंद मिनट के बाद उस का सही जवाब हासिल कर लीजिए, अल्लामा मौलाना शाह मुहम्मद हिदायत रसूल रहमतुल्लाह अलैह ने अर्ज़ की हुज़ूर! वो मशीन मुझे भी दिखा दीजिए इरशाद फ़रमाया, किसी और मोके पर देख लीजिए, लेकिन उन्होंने कदमो को पकड़ लिया और मचल गए के हुज़ूर! हम तो इस मशीन को देखेंगे उनके इस इसरार पर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने अनगरखे के बंद खोले, फिर सदरी कुर्ते के बटन खोल कर अपने सीनए अनवर की ज़ियारत कराई और फ़रमाया के “वो मशीन ये है जिस के लिए फ़कीर ने कहा” हज़रत अल्लामा शाह मुहम्मद हिदायत रसूल रहमतुल्लाह अलैह ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के सीनए मुबारक को चूमते थे और फरमाते थे, आप ने सच फ़रमाया वाकई वारिसे उलूम और रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नाइब हैं।
आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! और “कंज़ुल ईमान
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की तफ़्सीरी महारत का एक शाहकार आप का तर्जुम कुरआन “कंज़ुल ईमान”
भी है जिस के बारे में हज़रत मुहद्दिसे आज़म हिन्द सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: इल्मे कुरआन का अंदाज़ा सिर्फ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के इस उर्दू तर्जुमे से कीजिए जो अक्सर घरों में मौजूद है और जिस की मिसाल साबिक न अरबी में है, न फ़ारसी में है, न उर्दू ज़बान में है, जिस का एक एक लफ्ज़ अपने मकाम पर ऐसा है के दूसरा अलफ़ाज़ उस जगा नहीं लाया जा सकता जो बा ज़ाहिर महिज़ तर्जुमा है मगर दर हकीकत वो कुरआन की सही तफ़्सीर और उर्दू ज़बान में “कुरआन की रूह” है, फिर ये तर्जुमा किस तरह मारिज़े वुजूद में आया, ऐसे नहीं जिस तरह दीगर मुतर्जिमीन आम तौर से गोशाये तन्हाई में किताबों का अम्बार लगा कर और तर्जुमा तफ़्सीर की किताबें देख देख कर माने का तअय्युन करते हैं,
“सवानेह इमाम अहमद रज़ा” में हज़रत अल्लामा बदरुद्दीन अहमद कादरी रज़वी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं: “हज़रत सद रुश्शारिया” अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह ने कुरआन मजीद के सही तर्जुमे की ज़रूरत पेश करते हुए “इमाम अहमद रज़ा” से तर्जुमा कर देने की गुज़ारिश की, आप ने वादा फरमा लिया, लेकिन दूसरे मशाग़िले दीनिया कसीराह के हुजूम की वजह से ताख़ीर होती रही जब “हज़रत सद रुश्शारिया” की जानिब से इसरार बढ़ा तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया: चूंके तर्जुमे के लिए मुस्तकिल वक़्त नहीं है इस लिए आप रात में सोते वक़्त या दिन में कैलूला के वक़्त आ जाया करो, चुनांचे “हज़रत सद रुश्शारिया” एक दिन कागज़ कलम और दवात ले कर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में हाज़िर हो गए और ये दीनी काम भी शुरू हो गया,
आप ज़बानी तौर पर आयात का तर्जुमा बोलते और सद रुश्शारिया लिखते रहते
तर्जुमे का तरीका ये था के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ज़बानी तौर पर आयाते करीमा का तर्जुमा बोलते जाते और “हज़रत सद रुश्शारिया” उस को लिखते रहते, लेकिन ये तर्जुमा इस तरह पर नहीं था के आप पहले क़ुत्बे तफ़्सीर व लुगत देखते हों, फिर उस के बाद आयात के माना को सोचते फिर तर्जुमा बयान करते, बल्के आप कुरआन मजीद का फिल बदीह बरजस्ता तर्जुमा ज़बानी तौर पर इस तरह बोलते जाते जैसे कोई पुख्ता याददाश्त का हाफ़िज़ अपनी क़ुव्वते हाफ़िज़ा पर बगैर ज़ोर डाले कुरआन शरीफ रवानगी से पढता जाता है फिर जब “हज़रत सद रुश्शारिया” और दीगर उल्माए हाज़रीन आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के तर्जुमे का क़ुत्बे तफ़ासीर से तकाबुल (कम्पियर) करते तो ये देख कर हैरान रह जाते के आप का ये बरजस्ता फिल बदीह तर्जुमा मोतबर तफ़ासीर के बिलकुल मुताबिल है, अल गरज़ इसी क़लील मुद्दत में तर्जुमे का काम होता रहा फिर वो मुबारक साअत भी आ गई के हज़रते “हज़रत सद रुश्शारिया” ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से कुरआन शरीफ मुकम्मल तर्जुमा करवा लिया और आप की कोशिशे बलीग़ की बदौलत दुनियाए सुन्नियत को “कंज़ुल ईमान” की दौलते उज़्मा नसीब हुई।
इल्मे हदीस और आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी जिस तरह इल्मे तफ़्सीर में महारत रखते थे इसी तरह इल्मे हदीस! में भी दर्जाए इमामत पर फ़ाइज़ थे, मौलाना मुहम्मद अहमद मिस्बाही साहब! तहरीर फरमाते हैं: इमाम अहमद रज़ा पाए के मुहद्दिस थे, इल्मे हदीस पर उनको बड़ा तबाहुर हासिल था और उनका मुतालआ बहुत वसी था चुनांचे जब आप से पूछा गया के हदीस की किताबों में कौन कौन सी किताबें पढ़ीं या पढ़ाई हैं तो आप आप ने जवाब दिया।
पचास से ज़ियादा क़ुत्बे हदीस! मेरे दरसो तदरीस व मुताले में थीं
मुसनदे इमामे आज़म, मुअत्ता इमाम मुहम्मद, किताबुल आसार, इमाम तहावी, मुअत्ता इमाम मालिक, मुसनदे इमाम शाफ़ई, मुसनदे इमाम मुहम्मद व सुनन दारमी, बुखारी व मुस्लिम, अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व निसाई व इब्ने माजा व खसाइसे निसाई, मुलतक़ी इब्नुल जारूद, व मिश्कात जामे कबीर व जामे सगीर, अत्तर गीब व ख़ासाइसे कुबरा, वगेरा पचास क़ुत्बे हदीस मेरे दरसो तदरीस व मुताले में रहीं, “इमाम अहमद रज़ा” के वुसअते मुताला की शान ये है के “शहरह अक़ाइद नसफ़ी” के मुताले के वक़्त सत्तर शहरहेँ सामने रहीं, एक सवाल के जवाब में तहरीर फरमाते हैं “शरह अक़ाइद मेरी देखि हुई है और शरह अक़ाइद नसफ़ी के साथ 70, षुरूहात व हवाशी में ने देखे”
मौलाना मुहम्मद हनीफ खान रज़वी साहब! अपनी किताब “जामीउल अहादीस” में तहरीर फरमाते हैं: इल्मे हदीस अपने तनव्वो के ऐतिबार से निहायत वसी इल्म है हज़रत इमाम जलालुद्दीन सीयुति रहमतुल्लाह अलैह ने “तदरीबुर रावी” में तकरीबन सौ उलूम शुमार कराएँ हैं जिन से इल्मे हदीस में वास्ता ज़रूरी है, लिहाज़ा इन तमाम उलूम में महारत के बाद ही इल्मे हदीस का जामे और उस इल्म में दर्जाए कमाल को पहुंचा जा सकता है,
अगर उन्हें इमाम बुखारी व मुस्लिम देखते तो उनकी ऑंखें ठंडी होतीं
जब हम आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की हमा जेहत शख्सीयत और उनकी तासानीफे आलिया को देखते हैं तो फन्ने हदीस, तुरके हदीस, इलल हदीस, और असमाउर रिजाल वगेरा में भी वो इंतिहाई मंज़िले कमाल पर दिखाई देते हैं और यही वो वस्फ़ है जिस में कमालो इंफिरादियत एक “मुजद्दिद” के तज्दीदी कार नामो का रुकने आज़म है, फन्ने हदीस में उन की जो खिदमात हैं इन से उन की इल्मे हदीस में बसीरत व वुसअत का अंदाज़ा होता है हदीस की मारफत और इस की सेहत व अदमे सेहत, ज़ोफ़ व सिकम, हसन वगेरा जुमला उलूमे हदीस में जो महारते ताम्मा उन को हासिल थी वो बहुत दूर दूर तक नज़र नहीं आती है और ये चीज़ें उन की क़ुतुब व रसाइल में मुख़तलिफ़ अंदाज़ पर हैं, कहीं तफ्सील के साथ ज़िक्र है और कहीं इख्तिसार के साथ ज़िमनन और कहीं कहीं हदीसो मारफत हदीस और मुबादियाते हदीस पर ऐसी नफीस और शानदार बहसें हैं के “अगर उन्हें इमाम बुखारी व मुस्लिम देखते तो उनकी ऑंखें ठंडी होतीं”
अमीरुल मोमिनीन फ़िल हदीस हैं
उम्दतुल मुहद्दिसीन, हाफिज़े बुखारी हज़रते अल्लामा शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह से हुज़ूर मुहद्दिसे आज़म हिन्द सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह ने मालूम किया के “इमाम अहमद रज़ा” का क्या मर्तबा है? फ़रमाया: वो इस वक़्त “अमीरुल मोमिनीन फ़िल हदीस हैं” फिर फ़रमाया: साहबज़ादे! इस का मतलब समझा? यानि अगर इस फन में उम्र भहर उन का तलम्मुज़ यानि शागिर्दी करूँ तो तो भी उन के पासिंग को ना पहुँचूँ, आप ने कहा: सच है, “वली को वली पहचानता है आलिम को आलिम पहचानता है।
दस हज़ार अहादीस मुबारिका तहरीर फरमाई
मौलाना मुहम्मद हनीफ खान रज़वी साहब! तहरीर फरमाते हैं: राकिमुल हुरूफ़ ने आठ साल क़ब्ल “इमाम अहमद रज़ा” के इल्मे हदीस के तअल्लुक़ से मालूमात फ़राहम करना शुरू की थी, ज़माने की दस्त बुर्द से “इमाम अहमद रज़ा” की जो किताबें महफूज़ थीं और जो मुझे मिल सकीं उन को जमा किया जिन की तादाद तीन सौ से ज़ाइद ना हो सकी, इन तमाम क़ुतुब का मुताला करने के दौरान जो अहादीस सामने आईं उनको जमा किया और फ़िक़्ही अबवाब पर मुरत्तब किया, उन किताबों में पाई जाने वली तमाम अहादीस की तादाद एक मुहतात अंदाज़े के मुताबिक़ (दस हज़ार 10000,) होगी, लेकिन में ने मुक़र्ररात (एक से ज़ियादा बार आने वली अहादीस) को हज़्फ़ किया और जिन अहादीस की मुतअद्दिद सनादें थीं उनको भी तर्क किया, उस के बावजूद ये तादाद 3663, अहादीस व आसार तक पहुंची, “बुखारी व मुस्लिम” और तिर्मिज़ी वगेरा “सेहा सित्ता” की गैर मुकर्रर अहादीस से किसी तरह कम नहीं, जब के ये सिर्फ तीन सौ तसानीफ़ का सरमाया है और ये तादाद “इमाम अहमद रज़ा” की जुमला तसनीफ़ का तिहाई हिस्सा है, अगर तमाम तसनीफ़ दस्तियाब हो जातीं और उन की तमाम अहादीस को जमा कर दिया जाता तो सिलसिला कहाँ तक पहुँचता? मज़ीद इस मोज़ू पर तलाश जारी है, अब चार हज़ार व आसार पर मुशतमिल मजमूआ बनाम “जामिउल अहादीस” सात ज़खीम जिल्दों में आप के हाथों में है यानी शाए हो चुका है,
सज्दए ताज़िमि की हुरमत पर चालीस अहादीस
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी एक सवाल के जवाब में सज्दए ताज़िमि! की हुरमत साबित करने के लिए “अज़ ज़ुब्दतुज़ ज़कीया फि तहरिम सुजूद अल तहिय्या” के नाम एक वकी किताब आप ने लिखी, जिस में आप के तबाहुर इल्मी का जोहर इतना नुमाया है के अबुल हसन अली नदवी को भी ऐतिराफ़ करना पड़ा, इसी तरह एक और रिसाला है जो उन के वुफुरे इल्म और क़ुव्वते इस्तदलाल की दलील है, मज़ीद लिखते हैं, मुतअद्दिद आयाते करीमा डेड़ सौ नुसूस फ़िक्हीया के अलावा आप ने इस तहरीम के सुबूत में चालीस अहादीस भी पेश की हैं खुद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी लिखते हैं के “हदीस में चहल हदीस की बहुत फ़ज़ीलत आई है, अइम्मा व उल्माए किराम ने रंग रंग की चालीस अहादीस लिखीं हैं हम यहाँ ग़ैरे खुदा को सज्दए ताज़िमी हराम होने की चालीस अहादीस लिखते हैं।
हुज़ूर के “दाफए बला” और साहिबे अता होने पर तीन सौ अहादीस
मौलाना करामतुल्लाह साहब ने दिल्ली से 1311, हिजरी में एक इस्तफ्ता इस मज़मून का भेजा के: ज़ैद दुरूदे ताज वगेरा पढ़ने को शिरको बिदअत कहता है क्यों के इस में सय्यदे आलम हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को “दाफिउल बला वल बवा” वगेरा कहाँ गया है जो खुला शिर्क है, ये पढ़ कर इमाम अहमद रज़ा का कलम हरकत में आया और हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के “दाफए बला और साहिबे अता” होने को तीन सौ अहादीस! करीमा के ज़रिए साबित फ़रमा कर वहबिया के खुद साख्ता शिर्क को हमेशा के लिए खाक में मिला दिया, ये किताब “अल अमन वल उला” के नाम से मशहूर है।
हुज़ूर अफज़लुर रुसुल होने पर सौ अहादीस मुबारिका
इमाम अहमद रज़ा के उस्तादे गिरामी हज़रत मौलाना गुलान कादर बेग की मारफत 1305, हिजरी में एक इस्तफ्ता आया के वहाबिया ने सय्यदे आलम हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के “अफ़ज़लुल मुर्सलीन” होने का इंकार किया है और कहते हैं क़ुरआनो हदीस से दलील लाऊ, इस के जवाब में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी फरमाते हैं: सय्यदे आलम हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का “अफ़ज़लुल मुर्सलीन” व आखिरीन होना कतई, ईमानी यकीनी, इज़ आनी, इजमाई, ईकानि, मसला है, जिस में खिलाफ ना करेगा मगर गुमराह बद्द दीन बन्दए शैतान, फिर एक मबसूत किताब “तजल्लियुल यकीन” के नसाम से तहरीर फरमाई और एक सौ अहादीस! से इस मसले को वाज़ेह फ़रमा कर तहकीके अनीक के दरिया बहाये।
फुकरा वगेरा को खाना खिलाने की फ़ज़ीलत पर साठ अहादीस
मौलवी अहमदुल्लाह साहब ने 1312, हिजरी में एक सवाल भेजा के हमारे दयार में चेचक और कहत साली आई, तो लोग बला के दफा के लिए चावल गेहूं वगेरा जमा कर के पकाते हैं और फिर उलमा को बुला कर और खुद मोहल्ला वाले जमा हो कर खाते हैं, ये खाना इन के लिए जाइज़ है? इमाम अहमद रज़ा ने जवाब अता फ़रमाया: ये तरीका और अहले दावत के लिए खाना जाइज़ है इस दावे के सुबूत में साठ हदीसें बतौर दलील पेश फरमाई जो इमाम अहमद रज़ा के अज़ीम मुहद्दिस होने का वाज़ेह सुबूत हैं।
समाए मोता पर सतत्तर अहादीस मुबारिका
जमादिउल उखरा 1305, हिजरी में समाए मोता (मुर्दों के सुनने से) मुतअल्लिक़ एक सवाल आया, साइल ने सवाल के साठ बाज़ मुन्किरिन का जवाब भी मुनसलिक किया, इमाम अहमद रज़ा ने चार सौ वुजूह से दारोगीर (तनक़ीद) फ़रमाई ये रिसाला दलाइल व बराहीन से मुज़य्यन 77, अहादीस पर मुश्तमिल है।
कादियानी के रद्द में एक सौ इक्कीस अहादीस
मिरज़ा कादियानी की जेली नुबूवत को दफनाते हुए इमाम अहमद रज़ा! मुहद्दिसे बरेलवी ने “जज़ाउल्लाह” नामी किताब तहरीर फरमाई और 121, अहादीस नकल फ़रमा कर मिर्ज़ा के दावे को खाक में मिला दिया जो बिला शुबह आप के तबाहुर फिलहदीस का बय्यन सुबूत है।
जुमा के दिन अज़ाने सानी के मोज़ू पर पेंतालिस अहादीस मुबारक
जुमा के दिन अज़ाने सानी के मोज़ू पर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने एक किताब “शमाईमुल अम्बर” नामी अरबी ज़बान में तहरीर फ़रमाई जिस में पेंतालिस अहादीस मुबारक से किताब को मुज़य्यन फ़रमाया।
सादात के लिए ज़कात के हराम होने पर पच्चीस अहादीस
ज़कात का माल सादाते किराम और तमाम बानी हाशिम के लिए हराम कतई है, जिस की हुरमत पर अइम्मए मज़हब का इज्मा है, इस मसले से मुतअल्लिक़ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से सवाल हुआ तो आप ने इस की हुरमत पर तहक़ीक़ के दरया बहाते हुए 25, अहादीस मुबारिका नकल फ़रमाई।
अलग अलग मौज़ूआत पर अहादीस मुबारिका
इसी तरह आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने तख़्लीक़े मलाइका के उन्वान पर 24, अहादीस, ख़िज़ाब के नाजाइज़ होने में 16, अहादीस! मुआनका के सुबूत में 16, अहादीस! दाढ़ी की ज़रूरत व अहमियत पर 56, अहादीस! वालिदैन के हुकूक पर 91, अहादीस! सज्दाए ताहीयत की हुरमत पर 70, अहादीस! शफ़ाअत के उन्वान पर 40, अहादीस! तस्वीर के नाजाइज़ होने पर 27, अहादीस! मुबारिका से इस्तदलाल फ़रमाया, और इसी तरफ बेशुमार अनावीन व मौज़ूआत पर अनगनित अहादीसे करीमा से इस्तदलाल फ़रमाया और उम्मते मुस्लिमा को अहादीस का बेशबहा खज़ाना अता फ़रमाया।
कसरते हवालाजात
यहाँ तक तो चंद नमूने अहादीस की कसरत से मुतअल्लिक़ थे अब मुलाहिज़ा फरमाएं के “इमाम अहमद रज़ा” जब कोई हदीस नकल फरमाते हैं तो उन की नज़र इतनी वसी व अमीक गहरी होती है के बसा औकात वो किसी एक किताब पर इक्तिफा नहीं फरमाते बल्के, पांच, दस, और बीस बीस किताबों के हवाले देते जाते हैं, ऐसा मालूम होता है के तमाम किताबें इस मोज़ू पर उन के सामने खुली रखी हैं और सब के नाम लिखते जा रहे हैं साथ ही ये भी बताते जाते हैं के किस मुहद्दिस ने किस सहाबी से रिवायत की मसलन,
“यानि भलाई और अपनी हाजतें खुश रूयों (खूबसूरत चेहरे वाले) से मांगों” ये नो सहाबाए किराम की रिवायत 34, किताबों से नकल फ़रमाई, इसी किताब में एक हदीस यूं है के: इलाही इस्लाम को इज़्ज़त दे इन दो मर्दों में जो तुझे ज़ियादा प्यारा हो सके ज़रिए से, या उमर इब्ने खत्ताब या अबू जहल बिन हिशाम, ये रिवायत दस सहाबए किराम की रिवायत 23, क़ुत्बे अहादीस से नकल फ़रमाई, इसी किताब “अल अमन वल उला” में एक हदीस नकल फ़रमाई,
“में मुहम्मद हूँ और अहमद और सब नबियों के बाद आने वाला और खलाइक को हश्र देने वाला और तौबा का नबी और रहमत हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये चार सहाबए किराम की रिवायत 14, किताबों से नकल फ़रमाई, ऐ अली! क्या तुम इस पर राज़ी नहीं मेरी नियाबत में ऐसे रहो जैसे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जब अपने रब से कलाम के लिए हाज़िर हुए हारुन अलैहिस्सलाम को अपनी नियाबत में छोड़ गए थे, हाँ फर्क ये है के हारुन नबी थे में जब से मबऊस हुआ दूसरे के लिए नुबुव्वत नहीं ये 14, सहाबए किराम की रिवायत 18, किताबों से नकल फ़रमाई “रद्दुल कहत वल बवा” में एक हदीसे मुबारिका नकल फ़रमाई: अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के यहाँ दर्जा बुंलद करने वाले हैं, इस्लाम का फैलाना, हर तरह के लोगों को खाना खिलाना, और रात को लोगों के सोते में नमाज़ें पढ़ना ये दस सहाबाए किराम और ताबयी की रिवायत 23, किताबों से नकल फ़रमाई, “अतायल कदीर” हिस्सा दोम में एक हदीस नकल फ़रमाई: “रहमत के फ़रिश्ते उस घर में दाखिल नहीं होते जिस में कुत्ता या तस्वीर हो” ये दस साहाबए किराम की रिवायत 43, किताबों से नकल फ़रमाई, फतवा रज़विया गैर मुखर्र्जा तीसरी जिल्द में एक हदीस नकल फरमाते हैं: “कुल हुवल्लाहु अहद” पूरी सूरते मुबारिका की तिलावत का सवाब तिहाई कुरआन के बराबर है, ये कुल पंदिरह सहाबए किराम की रिवायत 34, किताबों से नकल फ़रमाई,
नोट:- मज़कूरा बाला मज़मून भी मौलाना हनीफ खान साहब रज़वी की किताब “जामिउल अहादीस” से मआख़िज़ है ।
इमाम अहमद रज़ा की फ़िक़्ही तहकीकात
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की फ़िक़्ही तहकीकात मुख्तलिफ अन्वा व अक्साम पर मुंक़सिम हैं, कहीं तो मुताक़द्दिमीन में फुकहा की नज़रों से जो गोशे मख़फ़ी रह गए थे उन्हें उजागर फ़रमाया और कहीं तो कवाइद व ज़वाबित वज़ाह फरमाए, और कहीं इसलाहो इज़ाफ़ा से काम लिया, अब सिर्फ एक झलक पेश की जाती है की कैसे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इस्लाह व इज़ाफ़े के ज़रिए फ़िक्हा की खिदमत फ़रमाई।
तीन सौ गियारह (311) उमूर जिन से तयम्मुम जाइज़
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने तयम्मुम के बारे में लिखते हुए तीन सौ गियारह (311) उमूर बयान फरमाए के जिन में से (181) उमूर ऐसे हैं जिन से तयम्मुम करना जाइज़ है और इन (181) उमूर उमूर में से (74) उमूर वो हैं जिन्हें फुकहाए मुक़द्दीमीन ने बयान फ़रमाया था और एक सौ सात (107) वो उमूर हैं जिन का आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने अपनी तरफ से इज़ाफ़ा फ़रमाया और ये इज़ाफ़ा इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह के मज़हब के उसूल को मद्दे नज़र रखते हुए किया है, इसी तरह (181) वो चीज़ें बयान की जिससे तयम्मुम ना जाइज़ है, जिन में से (58) अशिया फुकहाए मुक़द्दीमीन ने बयान फ़रमाई हैं और (72) अशिया अदमे जवाज़ आप ने अपने इज्तिहाद से इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह के मज़हब पर बयान फ़रमाई ऐसे ही वो सूरतें जो पानी से ईजिज़ की वजह से तयम्मुम के सही होने के लिए इन्द्श शरआ मकबूल हुई हैं फुकहाए किराम की क़ुतुब में इन की मिक़्दार चालीस से पचास तक बयान की गई है लेकिन आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने पानी से ईजिज़ की सूरतें गिनायीं तो तरतीब वार पौने दो सौ तक (175) बताईं, तयम्मुम के बारे में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने जो तहक़ीक़ फ़रमाई है वो कई सफ़हात पर फैली हुई है, हमने बतौर इख्तिसार इस का खुलासा बयान करने की कोशिश की है।
एक सौ साठ (160) पानी की किस्मे बयान कीं
वो पानी जिससे वुज़ू जाइज़ है उस की किस्मे बयान करते हुए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने एक सौ साठ (160) पानी की किस्मे बयान कीं हैं, जिन से वुज़ू जाइज़ है और (146) वो अक्साम बयान की हैं जिन से वुज़ू नाजाइज़ है, इसी तरह पानी के इस्तेमाल से ईजिज़ की एक (175) सूरतें बयान की हैं, इसी तरह के इजाफ़ात आप के तबहहिर इल्मी की एक अज़ीम शहादतें हैं, हकीकत बात ये है के फ़िक़्ह में आप अपनी नज़ीर ना रखते थे, आप के फ़तावा पर नज़र डालने वाला इस नतीजे पर पहुँचता है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उन्हें ऐसे उलूम अता फरमाए थे के जिन से आज दुनिया के हाथ खाली हैं, यही वजह थी के अरबो अजम के उल्माए किराम ने अपनी गरदने झुका कर तस्लीम किया के “इमाम अहमद रज़ा” अपने वक़्त के बे मिसाल फकीह, मुहद्दिस, आलिमे दिन, और मुजद्दिदे आज़म हैं।
कमो बेश एक हज़ार इक्सठ उल्माए किराम ने आप से रुजू किया
उस्ताज़ “”जामिया निज़ामिया रज़विया” हज़रत मौलाना खादिम हुसैन रज़वी साहब ने तहक़ीक़ फ़रमाई है के “फतावा रज़विया शरीफ” मतबूआ (12 जिल्द) में कुल इस्तिफता की तादाद चार हज़ार चार सौ चौरानवे (4494) है इस में से एक हज़ार इक्सठ! इस्तिफता करने वाले अपने वक़्त के उलमा वा दानिश वर हज़रात हैं, इससे भी अंदाज़ा होता है के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी अपने दौर में मरजए उलमा थे, उन उल्माए किराम के नाम और उन की तफ्सील “फतावा रज़विया” जिल्द अव्वल मतबूआ रज़ा फॉउंडेशन के इब्तिदाईया में मौजूद है।
उल्माए मुतअख़्ख़िरीन और आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की फुकाहत का सूरज आबो ताब से चमका जिस की रौशनी में आज तक कोई कमी ना आई बल्के उसकी आबोताब में हर आने वाले दिन में इज़ाफ़ा ही होता चला जा रहा है, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के बाद आने वाले मुफ्तियाने किराम कभी भी “फतावा रज़विया” से बे नियाज़ ना हो सके, आज तक उल्माए अहले सुन्नत के लिए ये एक बुनियादी मआख़िज़ का काम दे रहा है, एक मुख़्तसर झलक पेश की जाती है के आप के बाद आने वाले कौन कौन से मुफ्तियाने किराम ने आप के “फतावा रज़विया” की रौशनी में फतावा जारी किए और अक्सरो बेश्तर अपने फतवों को “फतावा रज़विया” के हवाला जात से मुज़य्यन फ़रमाया।
सद रुश्शारिया, बदरुत तरीक़ा मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह ने, “बहारे शरीअत” और फतावा अमजदिया में। मलिकुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती ज़फरुद्दीन बिहारी कादरी रज़वी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा मलिकुल उलमा” में। सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा सदरुल अफ़ाज़िल” में।
हज़रत अल्लामा हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मुहम्मद हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने, फतावा हामिदिया” में।
सरकार मुफ्तिये आज़म हिन्द अल्लामा व मौलाना मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा मुस्तफ़वीय” में।
सरकार ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा ताजुश्शरिया” में।
शेर बेशयए अहले सुन्नत मुफ़्ती हशमत अली खान रज़वी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा हशमतिया” में।
हज़रत अल्लामा मुफ्ती अब्दुल मन्नान आज़मी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा बाहरुल उलूम” में।
हज़रत अल्लामा मुफ्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा फैज़ुर रसूल” में।
हज़रत अल्लामा मुफ़्ती बदरुद्दीन अहमद क़ादरी सिद्दीकी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा बदरुल उलमा” में।
मुफ़्ती मुहम्मद वकारुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने, “वकारुल फतावा” में।
मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान अल्लामा मुफ़्ती सरदार अहमद रज़वी हमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा मुहद्दिसे आज़म” में।
फकीहे आज़म हिन्द मुफ़्ती मुहम्मद नुरुल्लाह नईमी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा नूरिया” में।
मुफ़स्सिरे शहीर मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा नईमिया” में।
मुफ़्ती इक्तिदार अहमद नईमी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा अल अतायल अहमदिया में।
मुफ़्ती मुहम्मद खलील खान बरकाती रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा ख़लीलिया” में।
मुफ़्ती मुहम्मद शरीफुल हक अमजदी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा शारेह बुखारी” में।
मुफ़्ती मुहम्मद हबीबुल्लाह नईमी अशरफी रहमतुल्लाह अलैह ने, “हबीबुल फतावा” में।
मुफ़्ती फैज़ अहमद ओवैसी रहमतुल्लाह अलैह ने, “फतावा ओवैसी” में।
मुफ़्ती सय्यद रियाज़ुल हसन जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने, “रियाज़ुल फतावा” में।
ताजुल फुकहा मुफ़्ती अख्तर हुसैन कादरी अलीमी दामा ज़िल्लाहू ने, “फतावा अलीमीया” में।
हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फुकार खान नईमी ककरालवी दामा ज़िल्लाहू ने, “फतावा हनफ़िया मारूफ बिहि, फतावा उत्तरा खंड” में।
मुफ़्ती अब्दुल वाजिद कादरी दामा ज़िल्लाहू ने, “फतावा यूरोप” में।
प्रो फ़ैसर मुफ़्ती मुनीबूर रहमान दामा ज़िल्लाहू ने, “तफ़हीमुल मसाइल” में।
मौलाना हनीफ खान रज़वी दामा ज़िल्लाहू ने, “अजमलुल फतावा” में।
मुफ़्ती शैख़ फरीद दामा ज़िल्लाहू ने, “फतावा फ़रीदिया” में।
और ये तो सिर्फ कुछ मतबूआ फतावा जात और उन के मुसन्निफीन की ना मुकम्मल फहरिस्त है, इस के अलावा भी बे शुमार मुफ्तियाने किराम ऐसे हैं और थे जो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के फतावा! से इस्तिफ़ादा करते रहे, हद तो ये है के आप के मुख़ालिफ़ीन उलमा भी “फतावा रज़विया” से देख देख कर फतवे तहरीर करते रहे जिस के कई शवाहिद मौजूद है
रेफरेन्स हवाला
- तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
- सवानेह आला हज़रत
- सीरते आला हज़रत
- तज़किराए खानदाने आला हज़रत
- तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा
- हयाते आला हज़रत
- फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
- इमाम अहमद रज़ा अरबाबे इल्मो दानिश की नज़र में
- फ़ैज़ाने आला हज़रत
- हयाते मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी
- इमाम अहमद रज़ा रद्दे बिदअतो व मुन्किरात
- इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़