आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 8)

कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौलाना हज़रते अहमद रज़ा के वास्ते

“आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु!के फ़ज़ाइल व कमालात”

मेरे नाइब मौलाना अहमद रज़ा खान हैं

पाकिस्तान “अली पुर सय्यदा” ज़िला सियालकोट के मशहूर व मारूफ बुज़रुग अमीरे मिल्लत हज़रत मौलाना अल हाज पीर सय्यद जमाअत अली शाह नक्शबंदी मुजद्दिदी मुहद्दिसे अली पूरी रहमतुल्लाह अलैह की ज़ाते गिरामी मुहताजे तआरुफ़ नहीं,
इन्ही का वाक़िआ है के अपने नाना जान क़ुत्बे अक्ताबे जहां “शहंशाहे बग़दाद” सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत का शरफ़ हासिल हुआ तो आप से सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: “हिंदुस्तान में मेरे नाइब मौलाना अहमद रज़ा खान हैं” चुनांचे अमीरे मिल्लत हज़रत पीर सय्यद जमाअत अली शाह रहमतुल्लाह अलैह! आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की ज़ियारत के लिए पाकिस्तान से बरैली! तशरीफ़ लाए और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से ये ख्वाब भी बयान किया।

बरैली में मौलाना अहमद रज़ा खान

शेरे रब्बानी, हज़रत पीर रोशन ज़मीर, मियां शेर मुहम्मद शरकपुरी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह को एक मर्तबा शहंशाहे बग़दाद सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की ख्वाब में ज़ियारत हुई, मियां साहब ने पूछा के हुज़ूर! इस वक़्त दुनिया में आप का नाइब कौन है? सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया: “बरैली में मौलाना अहमद रज़ा खान” बेदारी के बाद सुबह ही को सफर की तैयारी शुरू करदी, मुरीदों ने पूछा हुज़ूर कहाँ का इरादा है? फ़रमाया: बरैली शरीफ का क़स्द है, रात फ़क़ीर ने ख्वाब में सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत की और पूछा हुज़ूर इस वक़्त दुनिया में आप का नाइब कौन है? तो फ़रमाया के “बरैली में मौलाना अहमद रज़ा खान” लिहाज़ा उनकी ज़ियारत के लिए जा रहा हूँ,

मुरीदों ने अर्ज़ किया हुज़ूर! हम को भी इजाज़त हो तो हम भी चलें और उनकी ज़ियारत करें आप ने इजाज़त अता फ़रमाई, शेरे रब्बानी मियां शेर मुहम्मद शरकपुरी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह अपने मुरीदों के हमराह (साथ) “शरकपुर पाकिस्तान” से बरैली शरीफ के लिए चल दिए, यहाँ बरैली शरीफ में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया के आज “शैख़े पंजाब” तशरीफ़ ला रहे हैं, ऊपर वाले कमरे में उनके क़याम (ठरहने) का इन्तिज़ामो इनसिराम किया जाए, उस कमरे को साफ़ कर के फर्श लगाया जाए, जिस वक़्त शेरे पंजाब, यानि हज़रत मियां शेर मुहम्मद शरकपुरी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के दौलत खाने पर पहुंचे तो आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! फाटक पर तशरीफ़ फरमा थे और फरमा रहे थे के फ़क़ीर इस्तकबाल के लिए हाज़िर है, मुसाफा व मुआनिका के बाद फाटक वाले मकान के ऊपर हज़रत का क़याम हुआ, तीन दिनों तक यहीं क़याम फ़रमाया, फिर इजाज़त चाहि।

अहमद रज़ा से मुलाकात कीजिए

आरिफ़े बिल्लाह हज़रत मौलाना शाह ख़्वाजा अहमद हुसैन नक्शबंदी मुजद्दिदी अमरोहावी रहमतुल्लाह अलैह को सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से इशारा हुआ के मौलाना शाह अहमद रज़ा से मुलाकात कीजिए, लिहाज़ा हज़रत शाह ख़्वाजा अहमद हुसैन नक्शबंदी मुजद्दिदी अमरोहावी रहमतुल्लाह अलैह 24, रमज़ानुल मुबारक 1331, हिजरी में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की मुलाकात के लिए बरैली शरीफ पहुंचे, मगरिब का वक़्त था जमाअत काइम हो चुकी थी मगरिब की पहली रकअत थी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी इमामत फरमा रहे थे, शाह साहब भी जमाअत में शामिल हो गए, नमाज़ मगरिब के कादाए आखीरा में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने इलका फ़रमाया के ख़्वाजा अहमद हुसैन हाज़िर हैं उन को इज़ाज़ते ताम्मा अता कर दीजिए।

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने सलाम फेरते ही अपने सर का इमामा शरीफ उतार कर हज़रत शाह ख़्वाजा अहमद हुसैन नक्शबंदी मुजद्दिदी अमरोहावी रहमतुल्लाह अलैह के सर पर रख दिया और अहादीस व आमाल व अशग़ाल और सलासिल की इजाज़त ताम्मा अता फ़रमाई नीज़ फिलबदीह “ताजुल फियूज़” तारीखी लक़ब भी अता फ़रमाया जिससे सन 1331, हिजरी निकलता है, हज़रत शाह ख़्वाजा अहमद हुसैन नक्शबंदी मुजद्दिदी अमरोहावी रहमतुल्लाह अलैह ने अर्ज़ किया हुज़ूर! अभी तो आप से गुफ्तुगू का शराफ भी हासिल नहीं हुआ और इस फ़क़ीर पर आप की ये इनायतें? आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया: अभी अभी सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की तरफ से मेरे क्लब पर इलका हुआ के हज़रत शाह ख़्वाजा अहमद हुसैन नक्शबंदी मुजद्दिदी अमरोहावी रहमतुल्लाह अलैह हाज़िर हैं इन को इजाज़त दीजिए।

क़ुत्बुल इरशाद

ख्वास ही नहीं अवाम को भी बारहा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के मकाम के बारे में सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की तरफ से इशारे मिलते रहे, चुनांचे नामवर साहिबे कलम अल्लामा अर्शदुल कादरी रहमतुल्लाह अलैह एक वाकिए की मंज़र निगारी यूं करते हैं: बरैली के स्टेशन पर एक सरहदी पठान कहीं से उतरा, मुत्तसिल नूरी मस्जिद में उस ने सुबह की नमाज़ अदा करने के बाद जाते हुए नमाज़ियों को रोक कर उसने पूछा “यहाँ मौलाना अहमद राजा खान नामी कोई बुज़रुग रहते हैं? उन का पता हो तो बता दीजिए, एक शख्स ने जवाब दिया, यहाँ से दो तीन किलो मीटर के फासले पर “सौदा गिरान” नाम का एक मोहल्ला है वहीं उसके इल्मों फ़ज़ल की राजधानी है, सरहदी पठान उठाना ही चाहता था के उस (नमाज़ी) ने सवाल किया क्या में ये मालूम कर सकता हूँ के आप कहाँ से तशरीफ़ ला रहे हो? जवाब दिया के सरहद के कबाइली इलाके से मेरा तअल्लुक़ है वहीं पहाड़ के दामन में एक छोटा सा गाऊं है जहां मेरा आबाई मकान है, आप मौलाना अहमद रज़ा खान की तलाश में क्यों आये हैं? इस सवाल पर उस के जज़्बात के हिजान का आलम काबिले दीद था, फ़ौरन ही आबदीदा हो गया, “ये सवाल ना छेड़ो तो बेहतर है” कह कर खामोश हो गया, इस पर इसरार जवाब से पूछने वालों का इश्तियाक और बढ़ गया, जब लोग ज़ियादा ज़िद करने लगे तो उसने बताया, में गुज़िश्ता जुमे की रात को नींद की हालत में ने एक ख्वाब देखा है जिस की लज़्ज़त में कभी नहीं भूलूंगा ऐ खुशनसीब! औलियाए मुक़र्रबीन और अइम्माए सादात की नूरी महफ़िल है जहाँ बरेली के “अहमद रज़ा” नामी एक बुज़रुग के सर पर इमामत की दस्तार लपेटी गई है, और उन्हें “क़ुत्बुल इरशाद” के मनसब पर सरफ़राज़ किया गया है, मेरी निगाहों में अब तक वो मंज़र महफूज़ है, उस दिन से में उस मर्दे मोमिन की ज़ियारत के लिए बेताब हो गया हूँ,

सरहदी पठान ने अपनी बात ख़त्म करते हुए कहा, आप हज़रात काबिले रश्क हैं के अपने वक़्त के “क़ुत्बुल इरशाद” के चश्माए फैज़ान के किनारे शब् व रोज़ की ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं, इतना कह कर वो बे ताबी शोक में उठा और तेज़ तेज़ कदम बढ़ाते हुए मुहल्लाह सौदा गिरान की तरफ चल पड़ा, इस एक वाकिए में दूसरे बहुत गैर मामूली पहलुँओं के सिवा एक ताबनाक पहलू ये भी है के इश्के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बरकतों ने आप को मनाज़िले विलायत में एक अहम मंज़िल, अज़ीम मनसब, “क़ुत्बुल इरशाद” पर फ़ाइज़ कर दिया था, इस शाने विलायत की तौसीक मुतअद्दिद वाक़िआत से होती है।

फरिश्तों के कांधों पर “क़ुत्बुल इरशाद” का जनाज़ा

मख़दूमुल मिल्लत, मुहद्दिसे आज़म हिन्द हज़रत सय्यद मुहम्मद किछौछवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपना मुशाहिदा बयान करते हैं, में अपने मकान पर (किछौछा शरीफ ज़िला फैज़ाबाद यूपी) था और बरैली के हालात से बेखबर था, मेरे हुज़ूर शैखुल मशाइख सय्यद अली हुसैन अशरफी मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी वुज़ू बना रहे थे के अचानक रोने लगे, ये बात किसी के समझ में ना आई के आप क्यों रो रहे हैं, में आगे बढ़ा तो फ़रमाया के: बेटा में ने फरिश्तों के कांधों पर “क़ुत्बुल इरशाद”का जनाज़ा देख कर रो पड़ा हूँ, चंद घंटे के बाद तार मिला (खबर आई) के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का विसाल हो गया तो तो हमारे घर में कोहराम मच गया।

में ने अपना हाथ गौसे पाक के हाथ में दिया

“हयाते आला हज़रत” का मुन्दर्जा ज़ैल वाक़िआ भी इस बात की गवाही दे रहा है के आप को “नियाबते गौसे आज़म” हासिल थी, जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! फरमाते हैं के: एक मरता एक साहब! मुरीद होने के लिए हाज़िर हुए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने बा तरीकाए बैअत अपने रूबरू दो ज़ानों बिठाया और उनके दोनों हाथ अपने दस्ते हक परस्त में ले कर कल्माते बैअत शुरू कर दिए, जिस वक़्त ये अलफ़ाज़ कहिलवाना चाहे के “में ने अपना हाथ हुज़ूर पुरनूर सय्यदना गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु! के दस्ते पाक में दिया” “तो उन्होंने कहा” में ने अपना हाथ अपने पीरो मुर्शिद हज़रत मौलाना अहमद रज़ा खान! के दस्ते हक परस्त में दिया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फिर हज़रत बड़े पीर साहब! सय्यदना गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का इस्मे गिरामी लिया, लेकिन उन्होंने फिर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का नाम लिया, आप ने तीसरी बार समझाते हुए फ़रमाया के “हमारे अकाबिर का यही तरीका चला आ रहा है, यूं नहीं कहो” उन्होंने कहा ये तो ख़िलाफ़े वाक़िआ होगा और फिर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ही का नाम लिया उस वक़्त आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के चेहरे पर जलाल ज़ाहिर हुआ, आप ने आंख बंद कर के कुछ लबों को जुम्बिश दी और सीधे हाथ को अपनी रान पर मारा और उसी हाथ की पुश्त उन साहब! के सीने पर मारी सीने पर हाथ पड़ते ही वो चित गिर पड़े और बे होश हो गए और हुज़ूर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी खड़े हो कर टहलने लगे और आहिस्ता आहिस्ता कुछ पढ़ने लगे बहुत देर तक यही मंज़र रहा, इस के बाद आप मस्जिद की फ़सील से लोटा उठा कर पानी का छींटा दिया, अब जो इन्हें होश आया तो ये कहते हुए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की तरफ फ़ौरन आते हैं के में ने अपना हाथ हज़रत सय्यदना गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते हक परस्त में दिया।

औलिया किराम व साहिबे मजाज़ीब की कदर अफ़ज़ाई

आप की इसी शाने विलायत का असर था के मुल्के हिंदुस्तान भर के जय्यद बुज़ुर्गाने दीन, सूफ़ियाए किराम, उल्माए इज़ाम, व मजज़ूब आप की क़द्रो मन्ज़िलत का इज़हार बर मला किया करते थे आईये उन में से चंद की झलकियां मुलाहिज़ा करते हैं।

हज़रत अल्लामा शाह फज़ले रहमान गंज मुरादाबादी

चौदवी सदी हिजरी के मश्हूरो मारूफ बुज़रुग हज़रत अल्लामा शाह फज़ले रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह 1208, हिजरी में पैदा हुए किताब “तज़किराए उल्माए हिन्द” में हैं अल्लामा शाह फज़ले रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के औसाफ़े हमीदह ऐसे नहीं के ज़बान बुरीदह, कलम बे बुनियाद, कागज़ पर इन में से थोड़े भी लिख सके और इंसान ज़ईफ़ुल बयान की क्या मजाल है के इन का अशरे अशीर भी बयान कर सके, आप मुरीद व खलीफा हैं हज़रत ख्वाजा शाह अफाक मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह (आप का मज़ार दिल्ली में रोशन आरा रोड पर है) और आप ने शाह गुलाम अली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से भी फैज़ हासिल किया, मखलूक उन की तरफ रुजू करती है, छोटे बड़े मालदार व मुफ़लिस, मशहूर व गैर मशहुर, दूर नज़दीक से आते हैं और बैअत से सरफ़राज़ होते हैं,

1292, हिजरी का वाक़िआ है 27, रमज़ानुल मुबारक को आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी गंज मुरादाबाद तशरीफ़ ले गए (गंज मुरादाबाद, उन्नाओ ज़िले में है) इस सफर में आप के हमराह (साथ) हज़रत अल्लामा शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह, (जो के हज़रत अल्लामा शाह फज़ले रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा! थे) हज़रत अल्लामा शाह फज़ले रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने आप की आमद की खबर से मुत्तला हो कर अपने मुरीदों से फ़रमाया के “आज एक शेरे हक आ रहा है” फिर कस्बा से बाहर निकल कर आप का इस्तकबाल किया, खानकाहे रहमानिया शाह साहब! के मख़सूस हुजरे में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी क़याम पज़ीर हुए (ठहरना) असर के बाद की मजलिस में हज़रत अल्लामा शाह फज़ले रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने हाज़रीन से फ़रमाया के, “मुझे आप में नूर ही नूर नज़र आता है” नीज़ फ़रमाया: “मेरा जी चाहता है के में अपनी टोपी आप को उड़ा दूँ और आप की टोपी खुद ओढ़ लूँ” ये फरमा कर अपनी टोपी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को उड़ाई और हज़रत की टोपी खुद ओड़ली, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने वापसी की इजाज़त चाहि और फ़रमाया के वालिद माजिद से इतनी ही इजाज़त ले कर आया था, शाह साहब! ने फ़रमाया उन से मेरा सलाम कहना और कहना के दो रोज़ फ़ज़्ले रहमान! ने रोक लिया था और और यूं 29, रमज़ानुल मुबारक को रुखसत फ़रमाया, यहाँ पर काबिले ज़िक्र ये बात है के उस वक़्त आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की उमर सिर्फ 20, साल थी, हज़रत अल्लामा शाह फज़ले रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की उमर तकरीबन 84, साल की थी, लेकिन एक अल्लाह के वली ने अपनी निगाहें विलायत से पहचान लिया के इस नौजवान का आफ़ताबे विलायत तुलू हो कर चमकेगा और अपनी नूरानीयत से मुनव्वर फरमाइएगा,

“हयाते आला हज़रत” में इतना और ज़ियादा है मुलाकात के बाद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने मजलिसे मिलाद शरीफ के (जवाज़ के) मुतअल्लिक़ शाह शब् से सवाल किया फ़रमाया तुम आलिम हो पहले तुम बताओ, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया: में तो मुस्तहब जानता हूँ, शाह साहब! ने फ़रमाया: लोग इसे बिदअते हसना कहते हैं और में सुन्नत जानता हूँ, सहाबाए किराम जो जिहाद को जाते थे तो क्या कहते थे यही ना के मक्के में एक नबी पैदा हुए हैं अल्लाह पाक ने उन पर कुरआन शरीफ उतारा, उन्होंने ये ये मोजिज़ें दिखाए, अल्लाह पाक ने उन को ये फ़ज़ाइल कमालात अता फरमाए, बताईये और मजलिसे मिलाद में क्या होता है? यही तो बयान होता है जो सहाबाए किराम उस मजमे में बयान किया करते थे, फर्क इतना है के तुम अपनी मजलिस में लड्डू मिठाई बांटते हो और सहाबाए किराम रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन अपना सर बांटते थे।

हाजी वारिस अली शाह देवा शरीफ

हज़रत हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह बड़े पाए के अल्लाह के वली गुज़रे हैं (यूपी देवा शरीफ में मज़ार मुबारक है) बड़ी सादा ज़िन्दगी गुज़ारी हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के शहर मदीना शरीफ में पहुंचे तो जूते उतार दिए फिर सारी ज़िन्दगी जूते के बगैर ही गुज़ार दी, एक मर्तबा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने हज़रत हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर होने का इरादा फ़रमाया, आप की उमर 25, साल थी, आप सय्यद की ज़ियारत के लिए “देवा शरीफ ज़िला बाराबंकी” पहुंचे, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! और हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह का उस वक़्त तक कोई तआरुफ़ नहीं था, मुलाकात का ये पहला मौका था, पीर साहब रोकन अफ़रोज़ थे, मुरीदीन आप की खिदमत में हाज़िर थे, जब आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवीपहुंचे तो हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह फ़ौरन संभल कर बैठ गए और फ़रमाया: “मौलाना आला हज़रत” आ गए, हज़रत हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह के पास बड़े बड़े उल्माए किराम आते थे आप किसी को मौलाना! नहीं कहते थे और ना ही आला हज़रत! कहते थे, पहली मर्तबा आप ने जिस को मौलाना और आला हज़रत! कहा तो वो सय्यदी इमाम अहमद रज़ा खान! ही हैं।

हज़रत सय्यदना पीर महर अली शाह गोल्ड़ा शरीफ पाकिस्तान

माहिरे शरीअत, माहिरे तरीकत, हज़रत पीर सय्यद महर अली शाह रहमतुल्लाह अलैह गोलड़वि पाकिस्तान! किसी तआरुफ़ के मुहताज नहीं, आप 1, रमज़ानुल मुबारक 1275, हिजरी बरोज़ सोमवार गोल्ड़ा शरीफ पाकिस्तान में पैदा हुए आप ने उमर भर शरीअतो तरीकत की बे मिसाल खिदमात अंजाम दीं, सिलसिला आलिया चिश्तिया में हज़रत ख़्वाजा शमशुद्दीन सीयालवी रहमतुल्लाह अलैह! के दस्ते अक़दस पर बैअत हुए और खिलाफ़तो इजाज़त से मुशर्रफ हुए, फ़ित्नाए क़ादियानियत के खिलाफ आप की खिदमात बे मिसाल हैं, 29, सफारुल मुज़फ्फर 1356, हिजरी बरोज़ मंगल गोल्ड़ा शरीफ पाकिस्तान में आप का विसाल हुआ और गोल्ड़ा शरीफ पाकिस्तान में तद्फीन हुई,

आप आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के हम अस्र थे! आप ने आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से जिस तरह मुहब्बत का इज़हार किया मुफ़्ती मुहम्मद गुलाम सरवर कादरी! अपनी किताब “अश्शाह इमाम अहमद रज़ा” में उस का बयान यूं करते हैं: जामा मस्जिद हारुन आबाद के इमाम और गल्ला मंडी हारुन आबाद की मस्जिद के खतीब मौलाना अहमदुद दीन साहब! “फाज़ले अनवारुल उलूम” ने राकिमुल हुरूफ़ को बताया के में हज़रत मौलाना मौलवी नूर अहमद साहब! फरीदी को कई बार ये फरमाते सुना के: आफ़रीफ़े बिल्लाह इमामे वक़्त हज़रत पीर सय्यद महर अली शाह रहमतुल्लाह अलैह गोलड़वि इरशाद फरमाते हैं के: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की ज़ियारत के लिए बरैली शरीफ हाज़िर हुए तो आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! हदीस शरीफ! पढ़ा रहे थे फरमाते हैं मुझे यूं महसूस होता के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! हुज़ूर पुनूर हज़रते मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख देख कर आप की ज़ियारत शरीफ के अनवार की रौशनी में हदीस! पढ़ा रहे हैं”

मौलाना नवाबुद्दीन गोलड़वि फरमाते हैं के: उस्ताज़ुल उलमा हज़रत अल्लामा फैज़ अहमद रहमतुल्लाह अलैह किताब “महरे मुनीर” में क़िबला गुलाम मुहीयुद्दीन उर्फ़ “बाबू जी” रहमतुल्लाह अलैह के साथ हरमैन शरीफ़ैन हाज़िर हुए तो मदीना शरीफ में क़ुत्बे मदीना हज़रत मौलाना शैख़ ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में भी हाज़िर हुए और आप से पूछा के क्या आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी और हज़रत पीर सय्यद महर अली शाह रहमतुल्लाह अलैह की मुलाकात का सबूत तो नहीं मिलता यानी मुझ तक तो ये बात नहीं पहुंची अल बत्ता हज़रत पीर सय्यद महर अली शाह रहमतुल्लाह अलैह का ज़िक्रे खेर और मिर्ज़ा कादयानी के झूठे दावे के खिलाफ आप के मुजाहिदाना कारनामो का तज़किराह आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की मजलिसों में बारहा सुना जाता रहा,

सिराजुस सालीकीन सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पीरो मुर्शिद हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी रहमतुल्लाह अलैह पोते और सज्जादह नशीन थे, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से ख़ुसूसीयत के साथ मुहब्बत फ़रमाया करते थे, अक्सर दुआ फ़रमाया करते थे, “इलाही मेरी उमर में से आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को आता फरमा” एक मकतूब में तहरीर फरमाते हैं “चश्मों चिरागे खानदाने बरकात” अज़ अबुल हुसैन! बादे दुआ वाज़ेह हो ये खिताब “चश्मों चिरागे खानदाने बरकत” हज़रत साहब ने मुझ को दिया था, बा वजूद ये के में इस के लाइक ना था, तहरीर फ़रमाया करते थे अब सिवाए आप के हामिए कार इस खानदाने आली शान का खुलफ़ा में कोई ना रहा, लिहाज़ा ये में खिताब आप को बा ईमाए गैबी पंहुचा दिया आप को क़ुबूल करना होगा ये खिताब आप को हिबा किया और बख्श दिया यही खत इस की संद में बाज़ाब्त है, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी खुद भी सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैहका बहुत अदब किया करते और उन की शान में आप ने एक कसीदह भी लिखा की जो “हैदाइके बख्सिश में मौजूद है जिस का पहला मिसरा ये है बरतर कयास से है मक़ामे अबुल हुसैन, सिदरा से पूछो रिफ़अते बामे अबुल हुसैन “क़सीदाह नूर” के आखरी शेर में भी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने अबुल हुसैन अहमदे नूरी की अज़मत बयान फ़रमाई,

ऐ रज़ा ये “अहमदे नूरी का फैज़े नूर है
हो गयी मेरी ग़ज़ल बढ़ कर कसीदह नूर है

हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां पीलीभीती

हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह ज़िला पीलीभीत शरीफ के मश्हूरो मारूफ बुज़रुग हैं, अपने वक़्त के मशहूर वलियुल्लाह और पीरे तरीकत थे, आप भी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से बहुत मुहब्बत फ़रमाया करते थे, हज़रत अल्लामा व मौलाना हशमत अली खान रज़वी रहमतुल्लाह अलैह लखनवी सुम्मा पीलीभीती फरमाते हैं “पीलीभीत” के मश्हूरो मारूफ बुज़रुग हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह साहब बरैली शरीफ आते तो अक्सर क़याम “नवाब ज़मीर अहमद साहब” के यहाँ होता था और आप आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में ज़रूर तशरीफ़ ले जाते थे और आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! जब कभी पीलीभीत तशरीफ़ लाते थे हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात फरमाते थे, आपस में एक दूसरे के बहुत गहरे तअल्लुक़ात थे, जनाब मुहतरम हाफ़िज़ मुहम्मद इमरान रज़वी नूरी खतीब मस्जिद मुहद्दिसे सूरति का बयान है के: हज़रत शाह मीर खान साहब! पीलीभीती ने मुझ से ये वाक़िआ बयान किया के में तो शाह जी मुहम्मद शेर मियां! से मुरीद होने के लिए उन की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया के “हज़रत! मुझ को मुरीद कर लीजिए” हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह ने चंद मिनट अपनी आँखों को बंद किया फिर फ़रमाया: तुम्हारा हिस्सा मेरे यहाँ नहीं बरैली जाओ, बड़े मौलवी साहब! आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के यहाँ तुम्हारा हिस्सा है, उन से मुरीद हो जाओ, जो उन का मुरीद वो मेरा मुरीद, जो मेरा मुरीद वो उन का मुरीद, जो उनका नहीं वो मेरा नहीं, फिर में बरैली शरीफ हाज़िर हो कर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के दस्ते हक परस्त पर बैअत हुआ।

हज़रत सय्यद शाह अली हुसैन अशरफी मियां किछौछवी

ज़िला फैज़ाबाद “किछौछा शरीफ” के मसनद नशीन हज़रत सय्यद शाह अली हुसैन अशरफी मियां रहमतुल्लाह अलैह भी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से बहुत मुहब्बत फ़रमाया करते थे, हज़रत मुफ़्ती तक़द्दुस अली खान साहब! रावी के: हज़रत मौलाना सय्यद शाह अली हुसैन अशरफी मियां किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह (जो गौसे पाक की औलाद से हैं) अक्सर व बेश्तर बरैली शरीफ आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के लिए तशरीफ़ लाते, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! उनका और वो आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! का बहुत ही अदबो एहतिराम फरमाते, दोनों एक दूसरे की दस्त बोसी (हाथों को चूमना) फरमाते,

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी जिस मसनद पर तशरीफ़ फरमा होते थे उस पर किसी को नहीं बिठाते थे लेकिन एक बार मेरी मौजूदगी में “हुज़ूर अशरफी मियां” आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से मिलने तशरीफ़ लाए तो आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने इन को अपनी मसनद पर बिठाया, हज़रत सय्यद शाह अली हुसैन अशरफी मियां रहमतुल्लाह अलैह का वाक़िआ है के जब कभी ट्रेन से सफर फरमाते और ट्रेन अगर बरैली शरीफ से गुज़रती जाती तो हज़रत सय्यद शाह अली हुसैन अशरफी मियां रहमतुल्लाह अलैह ट्रेन में खड़े! हो जाते आप के साथ वाले हज़रात पूछते हुज़ूर क्यों खड़े हुए? तो फरमाते “क़ुत्बुल इरशाद मौलाना शाह अहमद रज़ा खान साहब! अपनी मसनद पर इस आले रसूल की तअज़ीम के लिए खड़े हो गए हैं और में उस “नाइबे रसूल” की तअज़ीम के लिए खड़ा हो गया हूँ, “हुज़ूर अशरफी मियां” एक रिश्ते से आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पीर भाई भी थे के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के पीरो मुर्शिद इमामुल औलिया हज़रत मौलाना सय्यद शाह आले रसूल मारहरवी के भी और अशरफी मियां के भी खलीफा! थे, और ऐसे खलीफा थे के उन के बाद कोई खलीफा नहीं हुआ ये “ख़ातिमुल खुलफ़ा हुए।

एक बार हज़रत सय्यद शाह अली हुसैन अशरफी मियां रहमतुल्लाह अलैह जब बरैली तशरीफ़ ले गए तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने आप की सूरते दिल बराना देखते ही फ़रमाया: “जिस ने गौसे पाक को ना देखा हो वो हम शकल गैसुल आज़म को देख ले” इस तरह कई बार हज़रत मौलाना सय्यद अहमद अशरफ जिलानी को भी ख़ास तौर पर बरैली शरीफ बुलवाकर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! अपनी रूहानी नूरानी महफ़िल की रौनक में इज़ाफ़ा फरमाते और जब मौलाना मौसूफ़ तकरीर फरमाते और जितनी देर तकरीर फरमाते तो आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! इतनी देर हाथ बाँध कर खड़े हो कर तकरीर सुनते थे, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी फरमाते हैं के उन की तकरीर के दौरान मुझे सरकारे मदीना हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में खुल कर हाज़री नसीब होती है, मज़ीद फरमाते हैं के सय्यद अहमद अशरफ अशरफी सहीहुन नसब आले रसूल और फना फिर रसूल हैं! लिहाज़ा आप ने नाना की तारीफ़ जिस कदर उन के उन के मुँह से अच्छी लगती है और सही तारीफ होती है वो किसी और से नहीं हो सकती।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • सवानेह आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा
  • हयाते आला हज़रत अज़
  • फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
  • इमाम अहमद रज़ा अरबाबे इल्मो दानिश की नज़र में
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • हयाते मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी
  • इमाम अहमद रज़ा रद्दे बिदअतो व मुन्किरात
  • इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़

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