हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह
आप हज़रत मौलाना बदरुद्दीन इसहाक रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्द हैं, आप की वालिदा माजिदा शैखुल इस्लाम हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की बेटी थीं, जो तमाम बुलंद सिफ़ात की मालिक थीं, आप तमाम उलूम के जानने वाले और हर फ़न में माहिर थे, और कमाले ज़ोको शोक से इबादत में मशगूल रहते थे, हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के इमाम थे, यानि अक्सर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के पीछे नमाज़ पढ़ा करते थे, इन की इमामत से सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को नमाज़ में रिक़्क़त और ज़ोक पैदा होता था और इमामत के बाद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को, इन को खास लिबास अता फरमाते थे, इस लिए आज तक इनको ख्वाजा मुहम्मद इमाम! कहा जाता है,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की महफ़िलों में आप इस क़द्र मुकर्रब थे, के कोई इन से ज़ियादा सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के करीब नहीं था, और वजदो हाल का आलम, आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की पैरवी करते थे, इन की आँखों में हर वक़्त आंसूं छलकते रहते थे, सिमआ के वक़्त इन का रोना और नारा दिल वालों के जिगर से पारा होता था।
एक मर्तबा सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत ख्वाजा अबू बक्र तूसी उर्फ़ मटके शाह रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह में तशरीफ़ ले गए, महफिले सिमअ! मुनअकिद हुई, जिस में नेमत वाले बुज़रुग मौजूद थे, हर चंद महफ़िल गरम थी लेकिन किसी पर कोई असर नहीं हुआ, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने ये हालत देख कर फ़रमाया के सिमअ बंद किया जाए, अहले महफ़िल बुज़ुर्गों की हिकायात वगेरा सुनाने में मशगूल हो गए, ऐन इसी हालत में ज़ौक़ पैदा हुआ, इतने में हज़रत शैख़ ज़नबीली! ने हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन पानीपती रहमतुल्लाह अलैह की तरफ देखा और इन से कहा के हम तुम से सुन्ना चाहते हैं, चुनांचे हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन पानीपती रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को इशारा फ़रमाया के तुम इनका साथ दो, इन दोनों बुज़ुर्गों ने निहायत खुश इल्हानी से ग़ज़ल पढ़ी जिससे तमाम महफ़िल पर कैफियत तारी हो गई।
बैअतो खिलाफत
हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने बचपन से बुढ़ापे तक सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़ेरे निगरानी में तरबियत पाई थी, आप हाफिज़े कुरआन भी थे, और कुरआन शरीफ बहुत अच्छा पढ़ते थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने आप को अपनी हयात ही में खिलाफ़तो इजाज़त अता फ़रमादि थी, और लोगों से बैअत लेने लगे थे, आप ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मलफ़ूज़ात शरीफ को जमा कर के एक किताब “अनवारुल मजालिस” के नाम से लिखी थी।
वफ़ात
हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने 734/ हिजरी में वफ़ात पाई।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ बस्ती, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह में चौसठ्ठ खम्भा के सामने एक कब्रिस्तान में मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली