हज़रत मौलाना सय्यद ख्वाजा बाकी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत मौलाना सय्यद ख्वाजा बाकी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-1)

नक्शबंदी सिलसिले के बानी

क़ुत्बे दौरां, कुदवतुस सालिकीन, सिराजुल आरफीन, मुक़र्रीबीनुस सालिहीन, शहंशाहे नक्शबंदिया, ख्वाजाए ख्वाजगान, किब्लए आलम, मज़हरूल्लाह अनवारे मशाइख, हादिऐ ज़माना, पैकरे इश्के रिसालत, हिन्द के इमामे बक्शबंदिया, साहिबे तक्वा, आलिमे दीन, हज़रत ख्वाजा सय्यद रज़ीउद्दीन मुहम्मद बाकी फानी फिल्लाह बाकी बिल्लाह नक्शबंदी काबुली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जिस तरह दिल्ली शरीफ की ख़ाक से बड़े बड़े बादशाह हुए, और ये मकाम सैंकड़ों साल हिंदुस्तान का पायाए तख़्त उलूमो फुनून हिकमत का मरकज़ रहा, वहीं दिल्ली में बड़े बड़े उल्माए किराम, मुहद्दिसीने वक़्त, सुल्हा, सूफ़ियाए किराम भी हुए हैं, दिल्ली इल्मो रूहानियत का मरकज़ व मख़ज़न है, और दिल्ली शरीफ “मदीनतुल औलिया” यानि औलियाए किराम का शहर! है,
दिल्ली शरीफ! जिसमे जलीलुल क़द्र बड़े बड़े अल्लामा व मौलाना मुहद्दिसीन आराम कर रहे हैं: जैसे “मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह” “हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह” “मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाह जहाँ आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत इमाम शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी नक्शबंदी मुजद्दिदी रहमतुल्लाह अलैह” मुजद्दिदे वक़्त हज़रत अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू अलैहिर रह्मा के मुर्शिद! हज़रत अब्दुर रहमान शाह कादरी जिलानी रहमतुल्लाह अलैह, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, इन औलियाए किराम ने अपनी सारी ज़िन्दगी यादे इलाही और मखलूके खुदा की हिदायत में गुज़ार दी, हज़ारों आदमी औलियाए किराम के मज़ार मुबारक पर हाज़िर हो कर रूहानी फ़ैज़ो बरकात से मुशर्रफ होते हैं, और इनके मुक़द्दस हालाते ज़िन्दगी पढ़ कर निजाते अब्दी हासिल करते, इन्ही मुकद्द्स हस्तियों में हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़ात मुबारक है,

सेंटरल एशिया के अंदर मावरा उन्नहर! में उज़्बेकिस्तान रशिया के स्टेट सूबों के अंदर नक्शबंदी सिलसिले को जो उरूजो तरक़्क़ी व शोहरत मिली है वो “हज़रत ख़्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह” ने दी है, और हिंदुस्तान के अंदर जो बानी हैं यानि फाउंडर हैं, जब के नक्शबंदी सिलसिले का इतना शोहरा नहीं था, मुल्के हिन्दुस्तन में जिन्होंने इतना उरूज दिया नक्शबंदी सिलसिले को और चमकाया और मक़ामे बुलंदी तक पहुंचाया “नक्शबंदी सिलसिले” को वो “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह” की ज़ाते मुबारक है, इस का सेहरा आप ही के सर बंधता है, वैसे भी हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह का सिलसिला रूहानी तौर पर “हज़रत ख़्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह” से है, और आप से फैज़ पाया है।

विलादत बसआदत

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” की पैदाइश 971, या 972, हिजरी मुताबिक़ 15, जुलाई 1564, ईस्वी को अफगानिस्ता की राजधानी काबुल में हुई।

इस्मे गिरामी

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! का अस्ल नाम “रज़ीउद्दीन” था और “मुहम्मद ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह” या अब्दुल बाकी! के नाम से मशहूर हुए, ज़ुब्दतुल मक़ामात! में हज़रत ख्वाजा मुहम्मद हाशिम कश्मी अलैहिर रह्मा ने आप को सिराजुल आरफीन रज़ियुल मिल्लते वद दीन ख्वाजा मुहम्मद अल बाकी ओवैसी नक्शबंदी लिखा है,
किताब कुल्लियाते बाकी! में तहरीर है: के बाकी बिल्लाह हज़रत ख्वाजा का लक़ब ही कहना चाहिए, और ये इस लिए हुआ के आप इत्तिबाए शरीअत की बदौलत अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की याद के अलावा और कोई मतलब ही न था, हमेशा यादे खुदा में मुंनहमिक रहते इस लिए बाकी बिल्लाह! कहलाए, इस के अलावा आप को बैरंग! भी कहा जाता है, मुमकिन है इस की वजह आजिज़ी और इंकिसारी आप में पाई जाती थी।

वालिद मुकर्रम

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह के वालिदे मुहतरम जिनका इसमें गिरामी “क़ाज़ी अब्दुस्सलाम खिलजी समरक़ंदी कुरैशी” है, जो अपने वक़्त के आलिमे बा अमल और साहिबे वजदो हाल थे, और काबुल में आ कर शादी की थी, आप के वालिद मुहतरम क़ाज़ी अब्दुस्सलाम काबुल के क़ाज़ी यानि चीफ जस्टिस थे और सूफ़िया में से थे, और साहिबे अरबाबे फ़ज़्लो सखावत और साहिबाने कशफो करामात में से थे, आप का क़ल्ब (दिल) मुबारक इस क़द्र नर्म मुलाइम था के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के खौफ से गिरियाओ बुका (रोना पीटना) में रहते थे, चूंकि उस ज़माने में बड़े बड़े उलमा को शैख़, शीयूख, के लक़ब (टाइटल) से सरफ़राज़ किया जाता था, इसी वजह से काज़ी साहब को भी “शैख़” के लक़ब से पुकारा जाता था, आप खिलजी खानदान से तअल्लुक़ रखते थे,
हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह अपनी वालिदा माजिदा की तरफ से हज़रत शैख़ उमर या गिस्तानी! तक पहुंचते हैं, वो हज़रत ख्वाजा उबैदुल्लाह अहरार नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह के नाना थे, और हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की नानी साहिबा खानदाने सादात से थी, बचपन से ही आप तजरीदो तफ़रीद और शोके ख़ल्वत तन्हाई और गोशा नाशी के आसार ग़ालिब थे, चुनाचे अक्सर आप तन्हाई में लोगों से अलग हो कर मुराक़बे में रहते थे पूरा दिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तरफ मुतावज्जेह रहते थे, और पूरा पूरा दिन इसी आलम में मदहोश रहते थे और होश में नहीं आते थे यादे खुदा में डूबे रहते थे।

तालीमों तरबियत

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! की वालिदा जो निहायत आबिदह ज़ाहिदा मुत्तकिया थीं, आप की तरबियत के तअल्लुक़ से वालिदैन का बयान है के कभी हमे किसी किस्म की हिदायत करने की नौबत नहीं आई, जिस अच्छे काम की तरफ रगबत दिलाने के लिए अहम् इरादा करते हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! पहले ही खुद उस काम को करते, 5, साल की उमर में आप को मदरसा में पढ़ने के लिए बिठाया गया, जब आप मदरसे पढ़ने लगे, आप के उस्ताज़ जो सबक आप को देते वो तमाम साथियों से पहले याद कर के अपने उस्ताज़ को सुना देते तकरीबन आठ साल की उमर में कुरआन शरीफ हिफ़्ज़ कर लिया, कम मुद्दत में नमाज़ रोज़ा, और ज़रूरी दीनी मसाइल भी सीख लिए, आप की ज़हानतो ज़कावत देख कर लोग रश्क करते, कुरआन शरीफ की तालीम हासिल करने के बाद आप बाकायदा अरबी तालीम हासिल करने लगे, तमाम इब्तिदाई तालीम और कुछ औसत दर्जे की तालीम से आप ने दस साल में फरागत हासिल की,
इस के बाद आप के ज़माने के मश्हूरो मारूफ आलिमे दीन हज़रत मौलाना ख्वाजा सादिक हलवाई रहमतुल्लाह अलैह अलैह के हल्काए दर्स में शामिल हुए, आप से इल्मे तफ़्सीर, इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, और दीगर उलूम में सई बलीग़ फ़रमाई, हज़रत मौलाना ख्वाजा सादिक हलवाई रहमतुल्लाह अलैह अलैह को आप से काफी लगाओ था, आप को बेहद अज़ीज़ रखते थे, और वो समझते थे के अनक़रीब आने वाले ज़माना में इस हस्ती की बदौलत उलूमे इस्लामी के शीरीं चश्मे अफगानिस्तान, समरकंद, बल्ख, बुखारा, और हिंदुस्तान समेत पूरे आलमे इस्लाम में निहायत दिलरुबाई के साथ बहेंगें, हज़रत मौलाना ख्वाजा सादिक हलवाई रहमतुल्लाह अलैह अलैह आप हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! को सूबा मावरा उन्नहर! ले गए।

मावरा उन्नहर! में इल्म हासिल करना

मावरा उन्नहर! जो उस वक़्त आलिमो और दुरवेशों का मख़ज़न व मअदन बना हुआ था, (मावरा उन्नहर! जुगराफियाई तबदीली के साथ मावरा उन्नहर!, समरकंद, बुखारा और खुरासान के नज़दीक एक सूबे का नाम हुआ) मावरा उन्नहर! में जब आप तशरीफ़ ले गए, तो हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपनी फ़ितरी सलाहीयतों से अपने असातिज़ाए किराम से इस तरह इस्तिफ़ादा हासिल किया और इक्तिसाबे उलूमो फुनून में अपने मुआसिरिन में इम्तियाज़ी शान रखते थे, आप अभी फ़ारिगुत तहसील भी ना हुए थे, के आप के इल्मो फ़ज़्ल का चर्चा तमाम इलाका मावरा उन्नहर! में फ़ैल गया और हर इल्मी मजलिस में आप का नाम तौकीर से लिया जाने लगा, यहाँ तक बड़े बड़े उलमा भी आप से मश्वरा लेने लगे,
किताब हज़रातुल क़ुद्स, में तहरीर है के: हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! बातनी उलूम के साथ ज़ाहिरी उलूम में भी बुलंद मकाम रखते थे अपने ज़माने के तमाम मुरव्वजा उलूम को बुलंद इनसिरामो एहतिराम से सीखा, आप के असातिज़ा में उस वक़्त के नामवर उल्माए किराम मशाइखे उज़्ज़ाम हैं जिन से आप ने उलूमे दीनिया और अदब की तालीमात हासिल की, किसी इल्म में गुफ्तुगू होती या कोई इश्काल पेश आता, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! अपने नूरे बातिन से उस का शाफी जवाब देते, आप उस मसले पर ऐसी बलीग़ तकरीर फरमाते के तमाम हाज़रीने मजलिस हैरत में रह जाते और एक दूसरे से कहते के ये किताबी जवाबात नहीं ये इल्हामी रब्बानी के फियूज़ हैं, इस पर शहर के उलमा जो अहले तसव्वुफ़ के मुखालिफ थे हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! के हल्का बगोश हो कर अपने इल्मी गुरूर ज़ोअम पर नादिम हुए, और मुरीदों इरदतमन्दों में दाखिल हुए।

आप का इल्मी मक़ाम

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह के इल्म की ये हालत थी के आप के दोस्त अहबाब मुश्किल से मुश्किल किताब और फन के दक़ीक़ से दक़ीक़ मुश्किल से मुश्किल बारीक सबक़ को आप के पास लाते और आप उनके अश्काल पेचीदगी का हल मालूम करते आप फ़ौरन वज़ाहत के साथ उस को समझा देते उलूमे मुरव्वजा हासिल करने के बाद आप ने राहे सुलूक की इब्तिदा फ़रमाई,

आप का शजरए तरीकत

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! का सिलसिलए तरीकत यूं है: आप मुरीदो खलीफा हैं, हज़रत मौलाना ख्वाजा अमकंगी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह के, और हज़रत मौलाना ख्वाजा अमकंगी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह, अपने वालिद माजिद हज़रत मौलाना दुरवेश रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा हैं, और आप अपने खालू हज़रत मौलाना ख्वाजा मुहम्मद वख्शी रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा हैं, और आप के खलीफा हज़रत मौलाना ख्वाजा उबैदुल्लाह अहरार रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के खलीफा हैं, क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत मौलाना ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! हैं,
और आप के खलीफा हैं, हज़रत ख्वाजा अमीर कुलाल, और आप के खलीफा हैं, हज़रत ख्वाजा बाबा सम्मासी, और आप के खलीफा हैं, हज़रत ख्वाजा महमूद अल खेर फगनवी बुखारी, और आप के खलीफा हैं, हज़रत ख्वाजा आरिफ रियोगरी बुखारी, और आप के खलीफा हैं, हज़रत ख्वाजा अब्दुल खालिक गुजदवानी बुखारी, और आप के खलीफा हैं, हज़रत ख्वाजा युसूफ हमदानी, और आप के खलीफा हैं, हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू अली फारमदी तूसी ईरानी, और आप के खलीफा हैं, हज़रत शैख़ अबुल हसन अली ख़रक़ानी, बाज़ मुसन्निफीन ने कहा है के: हज़रत ख्वाजा युसूफ हमदानी का हज़रत शैख़ अबुल हसन अली ख़रक़ानी, से बिला किसी वास्ते के इन्तिसाब है, और इनको सुल्तानुल आरफीन हज़रत शैख़ बायज़ीद बस्तामी, की रूहानियत से और इन को हज़रते सय्यदना इमाम जाफर सादिक की रूहानियत से, और इन को हज़रत इमाम कासिम बिन मुहम्मद बिन अबू बक्र सिद्दीक से, और इन को हज़रते सलमान फ़ारसी से, और इन को अमीरुल मोमिनीन ख़लीफ़ए अव्वल हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन से रूहानी फ़ैज़ो बरकात व खिलाफत हासिल की।

हक़ की तलाश में निकलते हैं

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ज़मानाए तालिबे इल्मी में भी औलिया अल्लाह सूफ़िया की मजलिसों में हाज़िर होकर उनके कमालाते बातनि का फैज़ हासिल करते, राहे हक़ की तलब में सालिकों मजज़ूबों अल्लाह वालों की इस क़द्र तलाश करते थे, के उससे बढ़ कर तकाते बशरी का तसव्वुर नहीं किया जा सकता, लाहौर में बरसात के मौसम में दलदल सख्त कीचड़ जिस में चलना बहुत मुश्किल था, मगर आप बावजूद इतनी गुज़र गाहें, पहाड़ों, वीरानो, जंगलों, क़ब्रिस्तान, बयाबानो सहराओं, और बागों, को अरबाबे बातिन यानि औलिया अल्लाह सूफ़िया के शोक में रोंदते फिरते थे, आप ने बहुत से पाक दिल लोगों से मुलाकात की और उनसे फैज़ पाया और मुस्तफ़ीज़ हुए,
मावरा उन्नहर, बल्ख, बदख्शां, के सफर में सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया के बुज़ुर्गों और दूसरे सिलसिलों के औलिया अल्लाह से आप ने मुलाकात की और उनसे फैज़ पाया।

बैअतो खिल्फ़त

हज़रत ख्वाजा अमकंगी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात के लिए सफर के दौरान आप मावरा उन्नहर, बल्ख, बुखारा, और बदख्शां, तशरीफ़ ले गए ताके सिलसिलए आलिया के दूसरों सिलसिलों के बुज़ुर्गाने दीन और साहिबाने रुश्दो हिदायत से मुस्तफ़ीज़ हों, उस दौरान आप हज़रत मौलाना शेर अली रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंचे और आप से भी अहवाल अर्ज़ कर के उन से मुस्तफ़ीज़ हुए, कुल्लियाते बाकी में है: के अभी आप मावरा उन्नहर! के एक शहर में थे के हज़रत ख्वाजा अमकंगी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह एक वाकिए में ज़ाहिर हुए और फ़रमाया के ऐ फ़रज़न्द मेरी आँखें तुम्हारी राह तक रही हैं, हज़रत ख्वाजा अमकंगी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह उस वक़्त उस दयार में सिलसिलए नक्शबंदिया आलिया के बड़े मशाइख में से थे, और क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत मौलाना ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! राहे तरीकत पर गामज़न थे, आप का नसब दो वास्तव से हज़रत ख्वाजा उबैदुल्लाह अहरार नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह तक पहुँचता है,

आप अपने वालिद माजिद हज़रत मौलाना दुरवेश अमकंगी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद थे, और आप अपने मामू हज़रत मौलाना ज़ाहिद वख्शी नक्शबंदी से मुरीद थे, और आप हज़रत मौलाना ख्वाजा उबैदुल्लाह अहरार नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह, के मुरीदो खलीफा थे, जब आप हज़रत मौलाना ख्वाजा अमकंगी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में पहुंचे तो आप की वालिहाना पज़ीराई हुई, हज़रत मौलाना ख्वाजा अमकंगी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप के हालात मालूम कर के आप पर बड़ी इनायतें और शफ़्क़तें नवाज़िशात फ़रमाई, और इरशाद फ़रमाया बी फ़ज़्लिहि तआला सिलसिलए नक्शबंदिया के अकाबिर की दी हुई तरबियत से तुम्हारा रूहानी मुआमला मुकम्मल हुआ, अब तुम हिंदुस्तान जाओ ताके वहां ये सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया खूब फरोग हासिल करे और लोगों को रुश्दो हिदायत करो और वहां तुम्हारी तरबियत से लोग इस्तिफ़ादा हासिल करे सकें।

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की तलबे खुदा में सियाहत

आप फरमाते हैं के सब से पहले में हज़रत ख्वाजा उबैदुल्लाह अहरार रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ और उन से पहली बैअत तौबा की, लेकिन रुजू का ख़्याल और तरके अज़्म बातिन में बाक़ी था, और फातिहा की इल्तिमास ज़ाहिर में,
हज़रत ख्वाजा उबैदुल्लाह अहरार रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना लुत्फुल्लाह के खुलफ़ा में से थे,
और हज़रत मौलाना लुत्फुल्लाह ख़्वाजगी वाहिदी रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा थे, मगर जब इस्तिक़ामत सही तरीके से मज़बूती की तौफ़ीक़ हासिल नहीं हुई तो दूसरी बार हज़रत बन्दगाने इफ्तिखार शैख़ की खिदमत में तौबा की, जो समरक़ंद में तशरीफ़ रखते थे, और हज़रत ख्वाजा अहमद बस्वी रहमतुल्लाह अलैह के सिलसिले के अकाबिर में से थे, अगरचे शैख़ समरक़ंदी राज़ी नहीं थे और फरमाते थे के तुम अभी बच्चे हो, लेकिन फ़क़ीर का इरादा यक़ीनी था, आप ने फातिहा पढ़ी और फ़रमाया खुदा इस्तिक़ामत बख्शे, इन बुज़ुर्गों की फिरासत दानाई के मुताबिक अज़ीमत दरहम बरहम हो गई और अजीब खराबी पैदा हुई,

तीसरी बार हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेरे मक़सद व इख़्तियार के बगैर हज़रत अमीर अब्दुल्लाह खिलजी की खदमत में फिर से तौबा ज़हूर में आयी, अल क़िस्सा कुछ मुद्दत और निगेहदाश्त हुदूद के मक़ाम में रहा, फिर इसमें मुदिल की तासीर ने इस दिवार को तोड़ दिया, और आखिर कार अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की हिदायत से ख़्वाब में हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत का शरफ़ हासिल हुआ, और उनकी खिदमत में तौबा की सूरत पुख्ता और मुनअकिद हुई और अहलुल्लाह यानि अल्लाह वालों की तरफ मैलान लगाओ अकीदत मुहब्बत पैदा हुई,
सूफ़िया औलिया अल्लाह का फरमान है के ज़िक्र वही नतीजा ख़ेज़ है जो जनाबे रिसालते मआब रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम तक पहुंचे,

मेरी तिशनगी व बेकारी ने मुझे इस पर आमादा किया के उसी बुज़रुग से ज़िक्र व मुराकिबा का तरीका हासिल किया जाए, चुनाचे दो साल उसी मखदूम के बताए हुए ज़िक्र व मुराकिबा औरादो वज़ाइफ़ की पाबन्दी की गई, मेने सुना था के सालिक (राहे तरीकत पे चलने वाला, बुज़रुग दुर्वेश) जब तक चालीस साल तक “लाइलाहा इलल्लाह” के मैदान को तय नहीं करता, “इलल्लाह” की मंज़िल पर नहीं पहुँचता, इस लिए आम तौर पर मुझे ये ख्यालात आते रहे के उमर को ज़िक्र में गुज़ारने को गनीमत समझा और इसी तरह की इबादत पर क़नाअत कर,
की मगर इस बीच में दूसरे मशरब व तरीके के सुलूक के लिए गैबी इशारे ज़हूर में आते थे, मगर में अपने आप को मज़बूती के साथ क़दम को अपनी जगह से नहीं हटाता था, और इसी तरीक़ए नक्शबंदिया के बुज़ुर्गों की ज़मीने करम का (और तुम्हारे लिए है जो इस में तुम्हारा जी चाहे, सूरह हामीम अल सजदा) बीज बोता था,
इस उम्मीद में के इंशा अल्लाह तआला आखिर कार किसी बुज़रुग का दस्ते करम इस बीज को यानि मुझको मिलेगा और किसी नहर से सैराब करेगा,

आखिर कार हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में कश्मीर पहुंचा और हज़रत शैख़ बाबा वली रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ और उनकी नज़रे करम की बरकतों से फ़ैज़याब हुआ, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का शुकरो एहसान है के कामयाबी का दरवाज़ा मिला, चूँकि हज़रत शैख़ को सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया की भी इजाज़त थी और मेरी तलब भी इस बुज़रुगवार के आस्ताने की तरफ मुतावज्जेह थी,
इस लिए इस ख़ानक़ाह की खिड़की से फ़ैज़ाने इलाही पहुंचना शुरू हुआ, जब हज़रत शैख़ 15, सफर 1001, हिजरी को इन्तिकाल कर गए,

तो हज़रत ख्वाजगानें नक्शबंदिया की ग़ैबत महुदा जलवगर होने लगी और उनकी पाक रूहें ख़्वाबों में खुश खबरी और बशारत देने लगीं, उनकी तवज्जुह की बरकत से इस निस्बत में क़ुव्वत पैदा हो गई और गैर हाज़री का रास्ता रोशन हो गया और एक किस्म की जामिईयत हासिल हुई,
यहाँ तक के उनकी इनायत व फैज़ो बरकात से मख़्दूमी हक़ाइक़ पनाही इरशादे दस्तगाही यानि मुर्शिदे बरहक़ “हज़रत मौलाना ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी नक्शबंदी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह” की खिदमत में पंहुचा और ख़ुशी व रगबत से उन से “बैअत मुरीद व मुसाफा कर के ख्वाजगांन का तरीका हासिल किया, हज़रत की मुलाज़िमत हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह और उनके खुलफ़ा की पाक रूहों के तुफैल से इस रास्ते के चलने वालों और उस दरगाह के नियाज़ मंदों के सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया! में दाखिल हो गया।

क़यामत में तुम मेरी शफ़ाअत करना

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह अपने पिरो मुर्शिद “हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह” से रुखसत होकर पहली मंज़िल पर उतरे तो आप के पिरो मुर्शिद आप की तलाश में इस मंज़िल पर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया के मुझ से वादा करो के अगर क़यामत के दिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तुम्हे दर्जाए क़ुर्ब अता फरमाए तो मेरी शफ़ाअत करना, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ने तवाज़ो से फ़रमाया ये खवाइश तो इस फ़क़ीर की है, आप के पिरो मुर्शिद ने फ़रमाया अच्छा दोनों तरफ से ही मुआहिदा (अहदो पैमान, क़ौल व इकरार करना) हो जाना चाहिए चुनाचे दोनों तरफ से ये मुआहिदा हो गया, फिर आप के पिरो मुर्शिद “हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी बुखारी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह” ने आप को रुखसत किया और खुद अम्किना (अम्किना, शहर बुखारा के पास एक गाऊं है और बुखारा मुल्के उज़्बेकिस्तान में है) वापस तशरीफ़ ले गए।

लाहौर और दिल्ली में क़याम

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह जब हिंदुस्तान में तशरीफ़ लाए तो सब से पहले एक साल तक शहर लाहौर में मुक़ीम रहे, अक्सर उल्माए किराम और फुज़्ला आप के मोतक़िद और ख़्वाइश मंद हो गए और आप के फ़ैज़ो बरकात से मुस्तफ़ीज़ हुए, इस के बाद इस तरीक़ए सिलसिलाए आलिया नक्शबंदिया के बुज़ुर्गों की बशारत के मुताबिक़ दिल्ली में तशरीफ़ लाए, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इस शहर दिल्ली को आफतों से मेहफ़ूज़ रखे क्यों के ये मक़ामाते मुक़द्दस मज़ारात बरकात औलिया अल्लाह का मरकज़ है, आप यहाँ क़िला फिरोज़ी में मुक़ीम हुए जो दरियाए जमना के किनारे मौजूद है, पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ने के लिए आप मस्जिद फ़िरोज़ शाही में तशरीफ़ लाते थे, उस ज़माने में अक्सर वक़्त नमाज़े ईशा के बाद आप मुराक़िब होते और एक ही मुराक़बे में सुबह हो जाती थी, पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ने के बाद जब आप घर तशरीफ़ लाते थे, तो अपने मकान के दरवाज़े पर थोड़ी देर ठहर जाते थे और आप के तमाम असहाब व खुद्दाम दस्त बस्ता हाथ बांधे सर झुकाए निहायत अदब व तवाज़ो के साथ आप की खिदमत में खड़े रहते और किसी को ये जुरअत नहीं होती के आप की तरफ नज़र उठाकर देखे और आप भी किसी की तरफ नज़र नहीं करते थे,

और सर मुराकिबे में या नज़र क़दम पर कर के खड़े रहते थे, अगर इत्तिफ़ाक़न आप की नज़र किसी पर पढ़ जाती या किसी की नज़र आप पर पढ़ जाती तो वो फ़ौरन बेहोश और बेखबर हो जाते और बे इख़्तियार नारा मारते थे, और मुर्ग बिस्मिल की तरह ज़मीन पर तड़पने लगते थे, और शहर में एक शोर बरपा हो जाता था,
चुनाचे दिल्ली के बाज़ारी इस शोर को सुन कर तमाशा देखने के लिए आ जाते थे, और तमाशाई भी सूफियों की तरह बे इख़्तियार हो कर ज़मीन पर तड़पने लगते थे, आप की शुहरत तमाम शहरों में फ़ैल गई और जहाँ जहाँ हक़ के तलबगार थे वो इस आफ़ताबे आलम की तरफ मुतावज्जेह होने लगे, दिल्ली और अतराफ़ व अकनाफ आसपास के जो उस वक़्त में मशाइखे वक़्त थे बावजूद इस के खिलाफ़तो व मशिखियत, और सज्जादगी व जाहो हशमत को छोड़ के नियाज़मन्दी के साथ आप की खिदमत में हाज़िर होने लगे और इस आसमाने अरशे निशान यानि आप की ख़ानक़ाह को अपनी आँखों का सुरमा बनाते रहे।

आप का तरीक़ए तब्लीग

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह का तरीक़ए तब्लीग गुमनामी, गोशानशिनी हालात को छुपाना, और दीद क़ुसूर का था, आप ज़रूरत के सिवा गुफ्तुगू नहीं करते थे और बावजूद इस के आने जाने वालों के साथ निहायत अख़लाक़ के साथ मुलाकात फरमाते थे, मुसलमानो की हाजतें पूरी करने में पूरी कोशिश करते,
और “सादात व उल्माए किराम की बड़ी ताज़िमों तक़रीम करते थे” अगर कोई हक़ की तलब में आप की खिदमत में हाज़िर होता तो उज़्र फरमाते और इंकिसारी से अपने आप को इस काम के लाइक न होना ज़ाहिर करते थे, हक़ का तालिब आप के इस इंकार को कसरे नफ़्स जान कर आला मंज़िल व बुलन्दिये मर्तबे की दलील समझते थे, जब आप तालिबों की तलब की मज़बूती को देखते तो उनको अपनी आग़ोशे इनायत और सायाए तरबियत में लेते थे,
और जिस शख्स को आप कबूल फरमाते पहले उसे तौबा के लिए हुक्म देते,

अगर उसके इश्को मुहब्बत में तरक़्क़ी देखते तो उसको अपनी सूरत को दिल में बतौरे राब्ता और निगेहदाश्त रखने के लिए इरशाद फरमाते और इस रास्ते की बहुत सी फराखि इनायत अता फरमा देते, अक्सर आप तालिबों को ज़िक्रे क़ल्बी बताते थे, कुछ लोगों को “लाइलाहा इलल्लाह” और कुछ को “इसमें अल्लाह” का ज़िक्र जारी कराते थे, बहुत से तालिब सिर्फ आप के दीदार से आप की निस्बत हासिल कर लेते थे, जिस शख्स को आप ज़िक्र तालीम फरमाते थे और उस पर हिम्मत तवज्जुह फरमाते थे, तो उसी वक़्त उस का दिल ज़िक्रे इलाही के जोहर से आबाद हो जाता था,
बाज़ को उसी वक़्त आलमे मिसाल, या आलमे अरवाह, या आलमे मुआनी, उस पर खुल जाता था, और ये हाल मुद्दतों तक क़ाइम रहता था, बाज़ लोग आप की तवज्जुह के वक़्त मुर्गे बिस्मिल की तरह, तड़पने लगते थे, और बाज़ बेखुद हो जाते थे, और फिर आप की तवज्जुह से होश में आते थे, मशहूर मुहावरा है, के शैख़ ज़िंदा करता है और मारता है, गोया आप की शाने पाक में वाक़े हुआ है आप की या इनायतें आम थीं।

आप का मख़लूक़े खुदा पर रहम

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह आप की महरबानी आम मख्लूक़ पर इस तरह होती थी, के एक बार लाहौर में कहित पड़ गया आप उस ज़माने में दिल्ली में मुक़ीम थे, चंद रोज़ तक आप ने कुछ नहीं खाया जब आप के पास खाना लाते तो आप फरमाते ये इन्साफ से दूर है के लोग कूचों मोहल्ले में भूक से जान दें और हम खाना खाएं, आप के पास जो खाना होता था वो सब आप भूकों को भेज देते और खुद रूहानी ग़िज़ा से सैराब होते,
जब आप लाहौर से दिल्ली रवाना हुए तो रास्ते में एक आजिज़ थका मानदा शख्स पर आप की नज़र पड़ी, आप घोड़े से उतर पड़े और घोड़ा उस को सवार होने के लिए दे दिया और खुद पैदल चलने लगे, जब आप मंज़िल के क़रीब पहुंच गए तो फिर घोड़े पर सवार हो गए ताके ये सवाब का काम परदे में ही रहे,
बिल्ली आप के बिस्तर में सोती रही: इसी तरह आप जानवरों पर भी शफ़्क़तों महरबानी करते थे,

एक बार आप सरदी के मौसम में नमाज़े तहज्जुद पढ़ने के लिए उठे आप नमाज़ पढ़ने लगे, एक बिल्ली आकर आप के बिस्तर में सो गई, जब आप आए तो देखा बिस्तर में बिल्ली सो रही है जाड़े की सख्त तकलीफ बर्दाश्त करते रहे और आप ने उस बिल्ली को बेदार नहीं किया सरदी की वजह से, तरीक़ए तब्लीग:
अगर आप किसी को शरीअत के खिलाफ काम करते देखते तो अम्र बिल मारूफ और नहीं अनिल मुनकर की सराहत और सख्ती से नहीं फरमाते थे, बल्कि निस्बत या इशारा या मिसाल के साथ इरशाद फरमाते थे, आप अक्सर औक़ात फरमाते थे के जो शख्स इस सुहबत में आता है खुद बखुद नाजाइज़ कामो को छोड़ कर नेक कामो की तरफ आजाएगा आप की मजलिस बहिश्त का नमूना थी किसी को अमरो नहीं और ग़ीबत व एतिराज़ की ज़रूरत पेश नहीं आती थी, अगर कोई शख्स किसी मुस्लमान की ग़ीबत करना चाहता तो आप उसको रोकने के लिए फ़ौरन उस की तारीफ शुरू कर देते थे।

आप ने एक लाख रूपया वापस कर दिया

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह के तक़वे का ये हाल था एक बार आप ने मदीना शरीफ के सफर का पुख्ता पक्का इरादा फ़रमाया, अब्दुर रहीम खानखाना ने इस खबर को सुन कर एक लाख रूपया आप के लिए और आप के दुवेशों के खर्च के लिए भेजा और अर्ज़ किया के इस क़लील मिक़्दार को क़ुबूल कर के मुझ पर एहसान फरमाएं, आप ने क़ुबूल नहीं फ़रमाया और वापस कर दिया और फ़रमाया के हज करना हमारे लिए इतना ज़रूरी काम नहीं है के मुसलमानो की इतनी रक़म हम अपने ऊपर खर्च करके ज़ाए कर दें,

आपका लिबास व खाना

आप के लिबास व खाने में इतनी सादगी थी, अगर गैर मरगूब नापसंदीदा तबियत के न मवाफ़िक़ खाने कितने दिनों तक मुसलसल बराबर आप के पास लाए जाते आप हरगिज़ कभी ये नहीं कहते के इस के सिवा कुछ और लाओ, इसी तरह अगर बहुत दिनों तक कड़पे आप के बदन मुबारक पर रहते और मेले हो जाते, हरगिज़ दूसरे कपड़े नहीं मांगते, ऐसे ही क़याम गाह कितनी ही तंग व तारीक और शिकिस्ता हो जाती उसकी तामीर व सफाई का हुक्म नहीं देते, क्यों के आप दरियाए तस्लीमो रज़ा में मुस्तगरक़ डूबे रहते थे, इस क़द्र बदन की कमज़ोरी होने के बावजूद हमेशा आप बा वुज़ू और कसरते इबादत में पूरी तरह मशगूल (बिज़ी) रहते थे,

उमर के आखरी हिस्से में ईशा की नमाज़ के बाद आप अपने हुजरे में तशरीफ़ लेजा कर थोड़ी देर मुराक़िब रहते, जब बदन की कमज़ोरी आप को ज़्यादा ग़ालिब होती तो मुराकिबा से उठ कर नया वुज़ू कर के दो रकअत नमाज़ अदा फरमाते और फिर मुराक़बे में मशगूल हो जाते और पूरी रात इसी तरह ख़त्म कर के सुबह कर देते थे,
खाने में एहतियात: हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह खाने में बहुत ज़्यादा एहतियात फरमाते थे के पाक जगह से क़र्ज़े हसना लेते और उसमे से आप और आप के दुरवेशों के लिए खाना पकता था, नज़राना और हदिया को अक्सर रद्द नहीं करते थे उस में से क़र्ज़ को अदा करते थे, और ताकीद फरमाते थे के खाना बनाने वाला बा वुज़ू हो खाना बनाते वक़्त पूरी एहतियात करे उस वक़्त दुनिया के कलाम में मसरूफ न हो और फरमाते थे जो जो लुक्मा बे एहतियाती से पकाया जाए उस के खाने से धुँआ उठता है जो फैज़ के रास्तों को रोकता है, और अरवाहे तय्यबा फैज़ के वसीले से हैं ऐसे दिल वालों के सामने नहीं होतीं और मुरीदों को इस की एहतियात की बहुत तरग़ीब देते थे,

आप की वालिदा मुहतरमा खाना खुद पकातीं: आप की वालिदा माजिदा निहायत आरिफा और पाक दामन औरतों में से थीं, चूँकि हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की इस एहतियात से वाक़िफ़ थीं, इस लिए बहुत सी खादिमा औरतों की मौजूदगी में आप खुद तन्नूर में रोटियां लगाती थीं, और खुद ही निकालती और सालन भी खुद ही पकाती थीं,

आप का अज़ीमत पर अमल

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह का तमाम उमूर में अज़ीमत पर अमल था, समा व रक्सो वज्द को आप के यहाँ दख़्ल नहीं था, यहाँ तक के एक दुर्वेश ने आप की बारगाह में बा आवाज़े बुलंद पुकार कर कहा “अल्लाह” आप ने फ़रमाया के इससे कहदो के मजलिस के अदब को मलहूज़ रख कर हमारे पास आया करे, आप हनफ़ी मसलक पे अमल पैरा थे,
एक बार आप ने इमाम के पीछे सूरह फातिहा पढ़ना शुरू करदी, अभी चंद रोज़ ही गुज़रे थे के ख़्वाब में इमामुल अइम्मा सिराजुल उम्मा हज़रत सय्यदना इममे अज़ाम अबू हनीफा नोमान बिन साबित कूफ़ी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए जो एक तरफ खड़े हुए अपनी मदह में एक क़सीदा पड़ रहे थे जिससे आप ये समझा रहे थे के मेरे मज़हब में बकसरत के साथ औलियाए किराम हुए हैं, जो इमाम के पीछे सूरह फातिहा नहीं पढ़ते थे, इस वाक़िए के बाद आप ने इमाम के पीछे सूरह फातिहा पढ़ना छोड़ दी और कभी भी हनफ़ी मसलक से एक इंच भी पीछे नहीं हटे,

मज़ार मुबारक से बशारत मिली

कहते हैं के एक आदमी था खुरासानी जो मुद्दतों से हज़रत ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी ऊशी रहमतुल्लाह अलैह की मज़ार मुबारक का मुजावर था रोज़ाना आप के मज़ार पर हाज़िर होता और अर्ज़ करता हुज़ूर मुझे कोई मुर्शिद मिल जाए मुर्शिद मिल जाए जिस रोज़ हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली में तशरीफ़ लाए उसी दिन हज़रत ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी ऊशी रहमतुल्लाह अलैह उस के ख्वाब में तशरीफ़ लाए और आप ने फ़रमाया जाओ दिल्ली में सिलसिलाए आलिया नक्शबंदिया का एक पीर आ गया है वो तुम्हारी रहनुमाई करेगा, ये उनकी निशानी पहचान है अब ये खुरासानी मुजावर हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया हुज़ूर मुझे हज़रत ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी ऊशी रहमतुल्लाह अलैह की क़ब्रे मुबारक से ये बशारत हुई इशारा मिला है के में आप का मुरीद हो जाऊं उन्होंने मुझे आप के बारे में बताया है, आप ने फ़रमाया नहीं तुम्हे समझने में गलती हो गई देखो मेरे बारे में नहीं कहा जाओ तुम वो कोई और हैं अब ये खुरासानी मुजावर समझा के ये जो कह रहे हैं कोई और ही होगा और वापस चले गए, फिर जा कर अर्ज़ किया तो फिर ख़्वाब में इशारा हुआ आप फरमाने लगे जिन के पास तू गया था वो वही हैं अब ये खुरासानी मुजावर दूसरी बार आए तो “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” ने टालना चाहा तो ये यही रुक गए और कहने लगे बाबा अब तो तेरे दर से नहीं जाऊँगा चाहे धुत्कार दे जो मरज़ी कर जब आप ने उस की इस्तिक़ामत को देखा और आप को रहम आ गया तो आप ने उस को फैज़ अता फ़रमा दिया और थोड़ी ही मुद्दत में आप की खिदमत में मरतबाए कमाल को पंहुचा।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  1. तज़किराए नक्शबंदिया खैरिया,
  2. हज़रातुल क़ुद्स
  3. ज़ुुब्दतुल मक़ामात
  4. तज़किराए ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह
  5. दिल्ली के 32, ख़्वाजा
  6. रहनुमाए माज़राते दिल्ली
  7. इरफानियाते बाक़ी
  8. हयाते बाक़ी
  9. ख़ज़ीनातुल असफिया जिल्द 4,
  10. जवाहिरे नक्शबंदिया मज़ाहिरे चौराहिया
  11. सीरते ख्वाजा बाकी बिल्लाह
  12. रौज़तुल कय्यूमिया

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