विलादत शरीफ
मुहिब्बे औलिया कुदवतुल आरफीन, हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश मुबारक 1054/ हिजरी मुताबिक 1644/ ईसवी को हुई।
वालिद माजिद
आप के वालिद माजिद का इस्मे गिरामी “हज़रत वजीहुद्दीन शहीद रहमतुल्लाह अलैह” है, हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरे वालिद माजिद शहीद होने के बाद कभी कभी जिस्मानी सूरत में मेरे पास तशरीफ़ लाते थे, और मोजूदह और आने वाले ज़माने की खबरे सुनाया करते थे।
तालीमों तरबियत
आप हज़रत वजीहुद्दीन शहीद अलैहिर रह्मा के साहबज़ादे हैं, और हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत मौलाना मीर मुहम्मद ज़ाहिद हरवी अलैहिर रह्मा के शागिरदे रशीद हैं, आप से तालीमों तरबियत उलूमो फुनून मुतादाविला हासिल किए।
बैअतो खिलाफत
आप मुरीदो खलीफा है, हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह! से, और आप मुरीदो खलीफा हैं, हज़रत शैख़ आदम बिनौरी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह से, और आप को फैज़ व सुहबत खिलाफत हासिल थी, इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी हज़रत शैख़ अहमद सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से, और आप ने हज़रत शैख़ ख्वाजा बाकी बिल्लाह नक्शबंदी मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से फ़ैज़ो बरकात व खिलाफत पाई,
और आप ने दूसरे मशाईखिने उज़्ज़ाम से भी फैज़ पाया, और आप ने हज़रत ख्वाजा ख़िर्द नक्शबंदी मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से शरफ़े बैअत हासिल किया।
फतावा आलमगीरी में हिस्सा
फतावा आलमगीरी! जो एक अज़ीम ज़खीम किताब है इस की तदवीन में कुछ आप ने भी हिस्सा लिया है, फतावा आलमगीरी! की तकमील के बाद नज़रे सानी का मरहला दरपेश था, इस सिलसिले में कुछ हिस्सा हज़रत मौलाना शैख़ हामिद जौनपुरी रहमतुल्लाह अलैह के सुपुर्द था, इन की वसातत से नज़रे सानी के लिए कुछ हिस्सा हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को भी सुपुर्द किया गया इस में आप ने कुछ दिन काम किया, फिर कुछ ऐसे हालात बन गए के ये सिलसिला काइम ना रह सका।
आप के कीमती जवाहर पारे
हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते थे मजलिस में किसी भी कोम की तंक़ीस मत बयान करो, ये ना कहो पूरब वाले ऐसे हैं और पंजाबी ऐसे हैं और मुग़ल ऐसे हैं, हो सकता है के इस मजलिस में उस कोम का कोई मर्द बैठा हो या उस इलाके का कोई बा हमीयत आदमी हो और वो उसे बुरा समझे और अहले मजलिस का मज़ाह खराब हो, अगर किसी आदमी से कोई काम हो तो हाजत बताने से पहले खूबसूरत तम्हीद बांधो फिर थोड़ी थोड़ी अपनी ज़रुरत पेश करो, ऐसा ना हो के अपनी ज़रूरी बात को उस शख्स के सामने गुस्से में कहो, अगर तुम से कम दर्जे के लोग सलाम करें, तो इस बात को अल्लाह पाक की नेमत समझो और शुक्र बजा लाओ, ऐसे लोगों से खनदाह पेशानी से मिलो और उनकी खेरो आफ़ियत पूछो, इस बात का कवि इमकान है, के तम्हारी मामूली तवज्जुह उन्हें बहुत बड़ी खूबी नज़र आए और इस पर वो ऐसे मरमिटें के दोबारा अगर ऐसी तवज्जुह ना पाएं तो उन के दिल टूट जाएं, बाज़ लोगों की ये हिमाकत है के लिबास य किसी ख़ास आदत को अपने लिए एक निशानी बना लेते हैं, या कोई तकया कलाम मुकर्रर कर लेते हैं, या किसी खाने से बनावटी नफरत इख्तियार करते हैं, और फिर लोग इन आदात की बिना पर अपनी मज़ाक का निशाना बनाते हैं, बाज़ दोस्त तुझ से ज़ाती मुहब्बत रखते हैं, यानि अगर तेरी मुहब्बत आहिस्ता आहिस्ता उन के दिल बस जाए तो फिर किसी हालत में भी उनके दिल से नहीं निकल सकती ना ख़ुशी व मसर्रत और ना रंजो गम के हालात में, उस दोस्त की हैसियत पहचानो और सब को एक मकाम नहीं देना चाहिए और किसी दोस्त पर उस की हैसियत से ज़ियादा भरोसा नहीं करना चाहिए।
आप की इबादतों रियाज़त
हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! कसरत से तहज्जुद की नमाज़ पढ़ा करते थे, अशराक़ की नमाज़ और चाशत की नमाज़ के अलावा नमाज़े मगरिब के बाद वालिदैन! और बड़े भाई की अरवाह! (रूह की जमा है) को इसाले सवाब की नियत से भी दो रकअत नमाज़ पढ़ते थे, अगर कोई मअज़ूरी नहीं होती तो आप कसरत से कुरआन शरीफ की तिलावत में मशगूल रहते थे, एक हज़ार मर्तबा दुरुद शरीफ और बाराह हज़ार मर्तबा ज़िक्रे नफ़ी इसबात कलमा शरीफ का वज़ीफ़ा कभी नमाज़े फजर से पहले बुलंद आवाज़ से और कभी आहिस्ता बिला नागा हमेशा पढ़ते थे, आप फरमाते थे के हमने जो कुछ पाया है दुरुद शरीफ की बदौलत पाया है।
“कशफो करामात”
गौसे पाक का जुब्बा मिला
हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के एक दफा मेरे दिल ये बात डाली गई के आज तुझे एक नेमत मिलेगी, में चेहल कदमी के लिए शहर से बाहर गया, वहां एक दुर्वेश फ़कीर रहते थे, में उनकी ज़ियारत को गया, तो वो कहने लगे के इमामुल औलिया हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म बगदादी रदियल्लाहु अन्हु! का जुब्बा शरीफ तबर्रुकन मुझ तक पंहुचा है और आज रात मुझ को हुक्म दिया गया है के आज जो भी सब से पहले मेरे सामने आए ये जुब्बा मुबारक उस को दे देना, हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने उस दुर्वेश से वो जुब्बा मुबारक ले लिया और अल्लाह पाक का शुक्र अदा किया।
आप को ख्वाब में ज़ाफ़रान का ज़रदाह दिया गया
हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के एक मर्तबा रमज़ान शरीफ में रोज़ह की हालत में मेरी इतनी सख्त नकसीर फूटी के में बहुत कमज़ोर हो गया, करीब था के में कमज़ोरी की वजह से रोज़ा इफ्तार कर लेता, इस का मुझे बहुत गम हुआ, इसी गम में नींद आई, हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीदार अता हुआ, आप ने मुझे एक तावीज़ और खुशबूदार ज़रदाह! अता फ़रमाया और उस के साथ ठंडा पानी भी दिया जो में ने खूब सेर हो कर पिया, इसी नींद के आलम से बेदार हुआ तो भूक व पियास बिलकुल ख़त्म हो चुकी थी और मेरे हाथ में अभी तक ज़रदाह व ज़ाफ़रान की खुशबू मौजूद थी, चाहिने वाले अकीदतमंदों ने एहतियातन मेरे हाथ धो कर पानी महफूज़ कर लिया और तबर्रुकन इससे रोज़ह अफ्तार किया,
नोट: हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इस वाकिए से अपना अक़ीदह साफ़ ज़ाहिर कर दिया के: हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बा हयात हैं, और इन्तिकाल के बाद अपनी कब्र में ज़िंदह हैं और वक़्त ज़रूरत दुनिया वालों की मदद भी करते हैं।
क़ब्र से आवाज़ आई कुरआन पढ़ो
हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! एक सफर में क़याम के दौरान साथियों के सामान की हिफाज़त के लिए जाग रहे थे, आप ने बेदार रहने के लिए कुरआन पाक की तिलावत शुरू करदी, और चंद सूरतें पढ़ कर खामोश हो गए, अचानक एक करीबी क़ब्र से आवाज़ आई के कुरआन पाक सुनने के लिए एक मुद्दत से तरस रहा था, अगर कुछ वक़्त और तिलावत कर दो तो एहसान मंद रहूंगा,
आप ने और तिलावत की और खामोश हो गए, क़ब्र में से फिर आवाज़ आई और पढ़ो, आप ने फिर तिलावत की, और चुप होने पर फिर क़ब्र से पढ़ने के लिए कहा गया, आप ने फिर पढ़ा, इस के बाद ये साहिबे क़ब्र! हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के भाई के ख्वाब में आए जो हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के पास ही में सो रहे थे, और कहा के में ने आप के भाई से बार बार तिलावत के लिए कहा है अब मुझे हया आती है, आप उन्हें फरमाएं के कुरआन का कुछ हिस्सा ज़ियादा तिलावत कर के मेरे लिए रूह की ग़िज़ा अता करें, उन्होंने नींद से उठ कर हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को सूरते हाल से आगाह किया, हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने और ज़ियादा तिलावत की और उस क़ब्र से जज़ाकल्लाह खेर की आवाज़ आई,
नोट: हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! इस वाकिए से अपना अक़ीदह साफ़ ज़ाहिर कर दिया के अल्लाह के महबूब बंदे इन्तिकाल के बाद अपनी कब्रों में ज़िंदह रहते हैं और वक़्त ज़रूरत दुनिया वालों से बात चीत भी करते हैं।
मीलाद शरीफ का एहतिमाम
हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मीलाद शरीफ के मोके पर खाना पकवाया करते थे, और नज़रो नियाज़! किया करते थे, एक मर्तबा इत्तिफाक से इन के घर में चनो! के अलावा और कोई दूसरी चीज़ नहीं थी आप ने इसी पर हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नियाज़ दिलवाई, उसी रात आप ने ख्वाब देखा के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाहे आलिया में मुख्तलिफ किस्म के खाने पेश किए जा रहे हैं, उसी दौरान वो चने! भी पेश किए गए, हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इंतिहाई ख़ुशी और मसर्रत से वो क़ुबूल फरमाए और अपनी तरफ लाने का इशारा फ़रमाया और थोड़ा सा उस में से तनावुल फरमाकर बाकी एहबाब में तकसीम फ़रमा दिए।
औलाद अमजाद
हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दो नामवर बेटे हुए, हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, और हज़रत मौलाना शाह एह्लुल्लाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह हुए।
वफ़ात
आप ने बादशाह फर्ख सेर के आखरी दौरे हुकूमत 12/ सफारुल मुज़फ्फर 1131/ हिजरी मुताबिक 1718/ ईसवी बरोज़ बुद्ध 77/ साल की उमर में इन्तिकाल हुआ।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ दिल्ली 6, अरवन हॉस्पिटल! के पीछे मेहन्दियाँन में मस्जिद से दाख्खिन की मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
अनफासुल आरफीन