आप की विलादत से पहले का दौर
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बिला शक्को शुबह तारीखे इस्लाम की उन हस्तियों में से हैं जिन पर ना सिर्फ दीनी उलूम व मुआरिफ़, शरीअतो तरीकत के असरारो रुमूज़, फलसफा व हिकमत और तसव्वुफ़ के हक़ाइक़ व गवामिज़ (बारीकियां, छुपी हुईं बातें) मुन्कशिफ़ हुए, अल्लाह पाक की बारगाह से मारफते दीन में आप रहमतुल्लाह अलैह को इस कदर महारत अता हुई जिस का कोई जवाब नहीं, हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बर्रे सगीर के उन बुज़ुर्गाने दीन में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी इल्मी खिदमात की वजह से आलमी शुहरत पाई, और दीनी उलूम के शोबो में आला काम किए, हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! इल्मे कुरआन शरीफ, इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, से ले कर मेडिकल साइंस तक के मैदान में महारत पाई,
आप की शख्सियत बिला शक्को शुबह तारीख़ साज़ है, आप का शुमार ना सिर्फ मिल्लते इस्लामिया के अज़ीम मुफक्किरे इस्लाम में होता है, हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश से पहले का दौर ऐसा था जब हर तरफ जिहालत का दौर दौरा था, फिस्को फ़ुजूर बदकारी आम थी, अख़लाक़ी किरदार इनहितात पज़ीर हो चुका था, सियासी कुव्वत ख़त्म हो रही थी, और अदलो इन्साफ का नामो निशाँ तक दिखाई ना देता था, उमरा व सलातीन अय्याशी व फहाशि में मस्त थे, गरीबों और यतीमो का कोई हमनवा नज़र नहीं आता था, हालात का तकाज़ा था के कोई दुर्वेश सिफ़त आदमी जो लोगों की इसलाहो तब्लीग हिदायत का बेड़ा उठाए और उन को हर किस्म की आलाइश गन्दगी से पाक करे और उन के हालात के अंदर अल्लाह पाक ने मुसलमानो के अंदर हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को पैदा फरमा कर उनकी हिदायत की ज़िम्मेदारी आप को सौंप दी।
आप के वालिद माजिद
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद का इस्मे गिरामी “हज़रत शाह अब्दुर रहीम” था, हज़रत शाह अब्दुर रहीम की तबियत सिपहगिरी की तरफ माइल ना हुई, आप को तस्नीफो तालीफ़ का मशगला ज़ियादा पसंद आया इस लिए तलवार की बजाए कलम उठाया और इससे खल्के खुदा की खिदमत की, और आप का रुजहान मज़हब की तरफ ज़ियादा था, और वो अपना बेश्तर वक़्त मज़हबी किताबों के पढ़ने ही में सर्फ़ करते थे, हज़रत शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह एक मुत्तक़ी आलिम और सूफी सिफ़त के मालिक थे, जब हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के दरबार के उल्माए किराम फतावा आलमगीरी! की तदवीन यानि किताब को जमा करने का काम कर रहे थे,
जो बड़ी ज़खीम किताब है तो आप ने फतावा आलमगीरी! की तदवीन और जमा करने के काम में कुछ हिस्सा लिया, हज़रत शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह ने हिंदुस्तान में दीनी इल्म की रौशनी तालीमात फैलाने के लिए “मदरसा रहीमिया” के नाम से दर्स गाह कायम की, जिस में आप तलबा को दर्स देते थे, जो तलबा आप से कसबे इल्म करते थे उन पर आप ख़ास तवज्जुह फरमाते थे,
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने दो शादियां की, पहली बीवी से एक साहबज़ादा सलाउद्दीन! तवल्लुद हुए, जब के दूसरी शादी आप ने बड़ी उमर में शैख़ मुहम्मद फुलिति साहब मुज़फ्फर नगर की साहबज़ादी से की, इन के बतन से दो साहबज़ादे “शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी” और “शाह अहलुल्लाह” तवल्लुद हुए, (पैदा होना),
हज़रत शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह की तबियत का रुजहान तसव्वुफ़ की तरफ था, और आप सिलसिलए नक्शबंदिया मुजद्दिदीय में मुरीद हुए, आप ने बड़ी सादा ज़िन्दगी गुज़ारी, सतूदाह अख़लाक़ और पाकीज़ह किरदार के मालिक थे, 12, सफर 1131, हिजरी में वफ़ात पाई।
सिलसिलए नसब
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का सिलसिलए नसब ख़लीफ़ए दोम हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु तक पहुँचता है।
विलादत बसआदत
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की विलादत हिंदुस्तान के अज़ीम बादशाह हज़रत औरंगेज़ आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की वफ़ात से चार साल क़ब्ल 14, शव्वालुल मुकर्रम 1114/ हिजरी बरोज़ बुद्ध तुलू आफताब के वक़्त क़स्बा फुलत! ज़िला मुज़फ्फर नगर यूपी हिन्द में हुई।
नाम व लक़ब
आप रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश से पहले आप के वालिद मुहतरम को इशारा हुआ के मौलूद पैदाने वाले बच्चे का नाम कुतबुद्दीन रखना जिस की तफ्सील ये है:
आप की पैदाइश से क़ब्ल आप के वालिद माजिद हज़रत शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह को क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने ख्वाब में एक नेक बेटे के पैदा होने की बशारत दी थी, और ये वसीयत की थी के जब बच्चा पैदा होगा उस का नाम मेरे नाम पर “कुतबुद्दीन” रखना, मगर जब आप पैदा हुए तो आप के वालिद माजिद वसीयत भूल गए, और आप का नाम वलीउल्लाह! रख दिया,
फिर एक अरसे के बाद जब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की वसीयत याद आई तो दोबारा आप का नाम कुतबुद्दीन! रखा, और आप का तारीखी नाम “अज़ीमुद्दीन” और कुन्नीयत “अब्दुल अज़ीज़” लेकिन आप “शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के नाम से सब से ज़ियादा मशहूर हैं।
तालीमों तरबियत
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने ऐसे खानदान में परवरिश पाई जिस में सदियों से इल्मी व रूहानी दीनी खिदमात चली आ रही थी, जब आप रहमतुल्लाह अलैह पांच 5, साल के हुए मकतब में बिठाए गए, सात साल की उमर में कुरआन मजीद हिफ़्ज़ कर लिया, फिर फ़ारसी और अरबी की तालीम शुरू हुई पंदिराह 15, साल की उमर में उलूमे मुतादाविला और मुरव्वजा उलूमो फुनून की तहसील से फारिग हुए, अपने वालिद माजिद हज़रत शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह से मिश्कात शरीफ! का दर्स लिया और वालिद साहब ही से सही बुखारी शरीफ पढ़ी, और शमाइले तिर्मिज़ी शरीफ, मुकम्मल पढ़ी, तफ़्सीरे मदारिक तफ़्सीरे बैज़ावी शरीफ पढ़ी, ज़्यादातर तालीम अपने वालिद माजिद और हज़रत “मौलाना मुहम्मद अफ़ज़ल सियालकोटी” रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की,
फरागत के बाद यानि जब आप हाफ़िज़, कारी, आलिम, फ़ाज़िल मुहद्दिस बन गए, तो वालिद माजिद हज़रत शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह की शफकत व मुहब्बत मेरे हाल पर ऐसी थी जिस का कोई जवाब नहीं, मेरे वालिद मुझे हिकमते अमली मजलिस के आदाब और तहज़ीब व दानिशमंदी की बातें बहुत सिखाते थे, अपनी किसी चाहत की तकमील में सिर्फ लज़्ज़त जोई मक़सूद ना हो उस में किसी ज़रुरत की तकमील, किसी फ़ुज़ूल का हुसूल या अदाए सुन्नत मक़सूद होना चाहिए उठना बैठना चलना फिरना खाना पीना में कसल सुस्ती नहीं होना चाहिए।
तदरीसी खिदमात
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फरागत के बाद इल्मे हदीस का दर्स देना शुरू किया और बारह 12/ साल तक इस मुक़द्दस काम में मसरूफ रहे, और अपनी लियाकत काबिलियत की धाक फ़ैल गई, दूर दराज़ शहरों और मुल्कों से तलबा जोक दर जोक आ कर आप के हल्काए दर्स में शामिल होते और इल्मे ज़ाहिर व बातिन से अपने दामन को मालामाल करते।
सफरे हज और मक्का शरीफ के उलमा से मुलाकात
1143/ हिजरी में हज्जो ज़ियारत के इरादे से हरमैन शरीफ़ैन तशरीफ़ ले गए, और हज करने के बाद हिजाज़े मुकद्द्स के मशाहीर फुकहाए किराम व मुहद्दिसीन की बारगाहों से इल्मी फीयूज़ो कमालात हासिल किए,
हज़रत शैख़ वफदुल्लाह बिन शैख़ मुहम्मद बिन सुलेमान मगरिबी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हो कर मुअत्ता इमाम मालिक, बा रिवायत याह्या बिन याह्या मसमूवी अव्वल से आखिर तक क़लील मुद्दत में सुना दी और इस के बाद शैख़ मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन सुलेमान मगरिबी रहमतुल्लाह अलैह! से सनादे हदीस की इजाज़त हासिल की,
फिर हरमैन शरीफ़ैन! के सब से बड़े आलिम व मुहद्दिस हज़रत शैख़ अबू ताहिर मुहम्मद बिन इब्राहिम कुर्दी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में पहुंचे, हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! खुद फरमाते हैं के: में ने उल्माए हरमैन शरीफ़ैन! के अक्सर बुज़ुर्गों से मुलाकात की और अक्सर फुज़्ला उलमा! की खिदमत में हाज़िर हुआ हूँ लेकिन में ने किसी को नहीं देखा के वो मकारिमे अख़लाक़ के साथ जाअमे उलूम हो, बजुज़ हज़रत शैख़ अबू ताहिर बिन इब्राहिम कुर्दी रहमतुल्लाह अलैह की फिरासत दिरायत हकीकत में खुसूसियत के साथ काबिले ज़िक्र है जिसे में ने अपनी तालिफ़ात के बाज़ मक़ामात में ज़िक्र किया है,
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! काफी मुद्दत तक उन के यहाँ ठहरे अहादीस सुनते रहे, और हज़रत शैख़ अबू ताहिर मदनी रहमतुल्लाह अलैह का खिरका! अता किया जो तमाम खिरकों में हावी था,
आप रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: उसी दौरान 1144/ हिजरी में मुजाविरत मक्का मुअज़्ज़मा और ज़ियारते मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा नीज़ हज़रत शैख़ अबू ताहिर रहमतुल्लाह अलैह वगेरा व मशाइख़ीने हरमैन शरीफ़ैन से सनादे हदीस हासिल की, उसी दौरान हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रौज़ाए मुबारक पर हाज़री दी और फ़ैज़ो बरकात हासिल किए,
हरमैन शरीफ़ैन के बाशिंदों से जिन में उल्माए किराम भी थे खूब खूब सुह्बते हासिल कीं, जिन में मशहूर उल्माए किराम, ज़ुह्हाद, फुज़्ला, मसलन हज़रत शैख़ अहमद सनावी, हज़रत सय्यद अब्दुर रहमान, हज़रत शैख़ ईसा जाफरी, हज़रत शैख़ हसन अजमी, हज़रत शैख़ अहमद कशाशी, हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह सालिम बसरी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, से भी बिला वास्ता या बिल्वास्ता रिवायते हदीस की इजाज़त हासिल की,
बैतुल्लाह शरीफ की मुजावरी की और हज़रत शैख़ अबू ताहिर मदनी रहमतुल्लाह अलैह से खिरका पहना जो गालिबन सूफ़िया के तमाम खिरकों का जामे है।
बैअतो खिलाफत
पंदिराह 15, साल की उमर में आप अपने वालिद माजिद हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह से बैअत हुए, आप के वालिद माजिद को कई सिलसिलों में खिलाफ़तो इजाज़त हासिल थी, लेकिन आप का रुजहान लगाओ ज़्यादातर सिलसिलए नक्शबंदिया से था, आप के वालिद गिरामी बहुत सारे मशाइखे किराम से फ़ैज़ो बरकात हासिल किया, इन में ही,
एक बुज़रुग हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह! हैं, और आप ने, ने हज़रत शैख़ आदम बिनौरी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की फैज़ व सुहबत खिलाफत हासिल की, और इन्होने इमामे रब्बानी हज़रत शैख़ अहमद मुजद्दिदे अल्फिसानी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से, और आप ने हज़रत शैख़ ख्वाजा बाकी बिल्लाह नक्शबंदी मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से फ़ैज़ो बरकात व खिलाफत पाई।
मसनदे तदरीस
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मक्का शरीफ से लोट कर दिल्ली आए और अपने वालिद माजिद के मदरसा रहीमिया! में दरसे हदीस! का आगाज़ किया और तलबा को किताबों सुन्नत का दर्स देने में मसरूफ हो गए, सैंकड़ों तालिबे इल्म आप की दर्स गाह में शामिल होने लगे, जिससे मदरसा रहीमिया! मुहल्लाह मेंहदियाँन की इमारत तंग हो गई तो बादशाह मुहम्मद शाह ने शहर दिल्ली में एक वसी ईमारत आप के मदरसे के लिए दी जहाँ आप पूरी उमर दर्स व तदरीस देते रहे, आप के बाद आप के बेटे हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह इस मदरसे के शैखुल हदीस बने,
आप का तरीकए दर्स ये था के तलबा से फरमाते के वो अपना सबक खुद पढ़ कर आएं,
जब वो हाज़िर होते तो उन से मुतअल्लिक़ा सबक पर सेर हासिल गुफ्तुगू करते और मसले के हर पहलू पर तहक़ीक़ी नज़र डालते दरसे फ़िक़्ह में इख्तिलाफे अइम्मा पर ज़ियादा ज़ोर ना देते बल्के इत्तिफाकि पहलू पर तवज्जुह मर्कूज़ रखते दरसे तफ़्सीर हो या दरसे कुरआन शरीफ, फ़िक़्ह या उसूल, हर इल्मो फन के दर्स में तहक़ीक़ के साथ मसले के तमाम पहलुँओं पर रौशनी डालते जिससे तलबा में तहसील व तहक़ीक़ का सालेह रुजहान पैदा होता और वो इल्मो फन मे दर्क समझ हासिल हो,
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने मदरसे के लिए हर इल्मो फन के माहिर असातिज़ाए किराम तय्यार कर लिए थे, जो तलबा को उन की मंशा के मुताबिक इल्मो फुनून का दर्स खुद फजर के बाद से ले कर ज़ुहर तक मसनदे दर्स पर फ़ाइज़ रहकर किताबुल्लाह! और हदीसे रसूलुल्लाह के हक़ाइक़ व गवामिज़ का दर्स देते थे।
आप के चंद तलामिज़ाह
- आप के तलामिज़ाह शागिर्दों की तादाद बेशुमार है उन में से चंद ये हैं:
- चारों साहबज़ाद गान हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी
- हज़रत शाह रफीउद्दीन
- हज़रत शाह अब्दुल कादिर
- हज़रत शाह अब्दुल गनी
- हज़रत शाह मुहम्मद आशिक देहलवी
- शैख़ मुहम्मद अमीन कश्मीरी
- साहिबे ताजुल उरुस हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद मुर्तज़ा ज़ुबैदि बिलगिरामि
- हज़रत शैख़ जारुल्लाह बिन अब्दुर रहीम
- हज़रत शैख़ रफीउद्दीन मुरादाबादी
- हज़रत शैख़ मुहम्मद बिन अबिल फतह
- हज़रत शैख़ मुहम्मद मोईनुद्दीन सिंधी
- हज़रत अल्लामा क़ाज़ी सनाउल्लाह पानीपती रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।
सीरतो ख़ासाइल
हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद माजिद के बाज़ ख़ासाइस इस तरह बयान करते हैं के: में ने अपने वालिद माजिद के जैसा कवि हाफ़िज़ा नहीं देखा, सुनने से तो इंकार नहीं कर सकता लेकिन मुशाहिदे में नहीं आया, उलूमो फुनून कमालात के सिवा ज़ब्ते औकात में भी अपनी मिसाल नहीं रखते थे, नमाज़े अशराक़ के बाद जो नशिश्त होती तो दोपहर तक दो ज़ानों ही बैठा करते थे, ना खुजाते ना थूकते हर फन में एक एक आदमी को तय्यार कर दिया था उस फन के तालिब को उसी के सुपुर्द फरमा देते और खुद बयान हक़ाइक़ो मुआरिफ़ और उनकी तदवीन व तहरीर में मसरूफ रहते,
और आज भी उम्मते मुस्लिम आप को “हकीमुल उम्मत” के नाम से याद करती है, आप के खारिके आदत इल्मी कारनामो और गैर मामूली ज़हानत व दीनी खिदमाते ज़लीला को देख कर आप के हम अस्र उल्माए किराम व मुफ्तियाए इज़्ज़ाम ने भी बड़ी क़द्रो मन्ज़िलत से आप का ज़िक्र किया है, आप का शुमार हिंदुस्तान के जय्यद अकाबिर उल्माए किराम व मुहद्दिसीन! में होता है, आप की बुज़ुर्गी और अज़मत से किसी को इंकार की जुरअत नहीं, आप अफ़ज़ल तिरिन उल्माए अस्र थे, माकूलात व मन्क़ूल व मुआरिफ़ में यकताए रोज़गार थे, आप तमाम उमर रुश्दो हिदायत, इसलाहो तब्लीग का दर्स देने में मसरूफ व मशगूल रहे, आप की ज़िन्दगी में सादगी इंतिहा दर्जे की थी, हदीस का मुताला और दर्स देते थे, जिस चीज़ का कश्फ़ होता था उस को लिख लेते थे।
आप की औलादे अमजाद
आप की शादी 15/ साल की उमर में हुई थी, और आप के पांच बेटे और एक बेटी पैदा हुईं थीं, इन में से पहले साहबज़ादे बचपन ही में इन्तिकाल कर गए, (1) हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ (2) शाह रफीउद्दीन (3) शाह अब्दुल गनी (4) अलैहिमुर रहा थे, ये चारो फ़रज़न्द अपने वक़्त के मशहरो आलिमे दीन थे, और हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह बहुत ही जय्यद आलिम फालिज़ और अपने वालिद माजिद की तहरीक के मुहर्रिक रहे।
आप की तसानीफ़
आप ने बहुत सी किताबें लिखी हैं, आप की मशहूर तसानीफ़ हस्बे ज़ैल हैं
- फत हुर रहमान फि तर्जमतुल कुरआन
- हुज्जतुल बालिगा
- तावीलुल अहादीस
- फौज़ुल कबीर
- इकदुल जीद
- फत्हुल खबीर
- अनफासुल आरफीन
- रसाइले शाह वलीउल्लाह
- कोलुल जमील
- दुर्रुस समीन
ख़त्मे खाजगाने चिश्त की फातिहा
ख़त्मे खाजगाने चिश्त रहमतुल्लाह अलैहिम का जो तरीका हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन नारनूली रहमतुल्लाह अलैह के खुलफ़ा के ज़रिए हम तक पहुंचा वो ये है के जब कोई मुश्किल आए वुज़ू कर के क़िबला रू हो कर बैठ जाए पहले दस मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़े फिर तीन सौ साठ दफा ये दुआ पढ़े, “ला मलजा वला मल जाअन वला युंजी मिनल्लाही इल्लल्लाह” इस के बाद तीन सौ साठ मर्तबा सूरह आलम नशराह और फिर तीन सौ साठ मर्तबा ज़िक्र करदाह दुआ पढ़े आखिर में दस मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़े, इस के बाद कुछ मिठाई पर सिलसिलए ख्वाजगाने चिश्त रहमतुल्लाह अलैहिम के लिए, फातिहा! पढ़ी, अब अल्लाह पाक से दुबारा सवाल करने की ज़रूरत नहीं इसी तरह जो हर रोज़ ये अमल करता रहे चंद दिनों में मुश्किल हल हो जाएगी, और मक़सूद हासिल होगा।
बिमारी दूर हो गई
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरे वालिद माजिद ने बताया के एक दफा में बिमारी की हालत में था, मुझे हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख्वाब में ज़ियारत का शरफ़ हासिल हुआ, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा, बेटा तुम्हारा क्या हाल है? ये कह कर आप ने बिमारी से शिफयाबी यानी ठीक होने की खुशखबरी दी, और दाढ़ी मुबारक के दो बाल इनायत फरमाए, मेरे वालिद उस वक़्त तंदुरुस्त सेहतमंद हो गए और नींद से बेदार हुए तो मुए मुबारक (बाल) उन के पाए मौजूद थे, चुनांचे उन में से वालिद मुहतरम ने एक बाल मुबारक मुझे दिया, जो अबतक मेरे पास मौजूद है।
बेदारी के आलम में हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसलम की ज़ियारत
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरे वालिद माजिद हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह ने बताया के मेरे पीरो मुर्शिद हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह कादरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते थे के:
में ने कुरआन शरीफ एक ऐसे परहेज़गार कारी से हिफ़्ज़ किया, जो बियाबान सहरा में रहते थे, एक दफा हम कुरआन शरीफ पढ़ रहे थे, के अचानक अहले अरब की जमात आई, आगे आगे उन का सरदार था, उन्होंने हमारे उस्ताज़ की किरात सुनी तो सरदार ने कहा माशा अल्लाह तुमने कुरआन मजीद की किरात का हक अदा किया है, ये कह कर वो लोग इतने में चल पड़े, इतने में उसी शक्लो शबाहत का एक और शख्स आ गया, उसने बताया के हुज़ूर रहमते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गुज़िश्ता रात फ़रमाया था के हम फुलां जंगल में कारी साहब से क़ुरआने हकीम की किरात सुनने जाएंगें, चुनांचे हमने समझ लिया के जो सब से आगे आगे थे, वो हुज़ूर रहमते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! थे, हमारे उस्ताज़ कहने लगे बिला शुबह में ने अपनी इन ज़ाहिरी आँखों से हुज़ूर रहमते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की है।
ख्वाब में मुरीद होना
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरे वालिद माजिद हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह ने बताया के मुझे ख्वाब में हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत का शरफ़ हासिल हुआ, में ने आप से बैअत की, मुरीद हुआ, और आप ने मुझे “नफ़ी व इसबात कलमा शरीफ का वज़ीफ़ा” इस तरह अता फ़रमाया जैसे सूफ़ियाए किराम का मामूल है, चुनांचे वालिद गिरामी ने मुझ से इसी तरह बैअत ली और “नफ़ी व इसबात कलमा शरीफ का वज़ीफ़ा” की तलकीन की, (हिदायत, नसीहत, सीखना) जिसे हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन से मुरीद बैअत ले चुके थे और उन्हें तलकीन कर चुके थे।
अल्लाह के वली ज़िंदह होते हैं
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरे वालिद माजिद हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह ने बताया के हज़रत सय्यद शाह अमीर अबुल उला नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! के अहले खाना आप के फ़रज़न्द हज़रत मीर नूर उला साहब! के बिमारी की वजह से एक रूपया और एक चादर बतौर नियाज़ गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार
मुबारक पर भिजवाई थी, जिस की इत्तिला हज़रत सय्यद शाह अमीर अबुल उला नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! नहीं थी एक दिन आप हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की तरफ मुतवज्जेह हुए, के मज़ार शरीफ से अवाज़ा आई के तुम्हारे फ़रज़न्द की सेहत के लिए तुम्हारे घर से ये जो कुछ नियाज़ आई है और घर वालों ने दूसरे बेटे के लिए भी दुआ के लिए कहा, आप ने कहा हमने ने नियाज़ कुबूल करली है,
इस वाकिए से साफ़ ज़ाहिर है के आप का अक़ीदह है के अल्लाह वाले अपनी अपनी कब्रों में ज़िंदह है और तसर्रुफ़ भी रखते हैं और अपने चाहने वालों को शिफा भी देते है।
वफ़ात
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने 62/ साल की उमर, पाई 29/ मुहर्रमुल हराम 1176, हिजरी मुताबिक 20, अगस्त को ज़ोहर के वक़्त आप का विसाल हुआ।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार मुबारक दिल्ली अरबन हॉस्पिटल! के पीछे मेंहदियाँ कब्रिस्तान में मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
- ख़ज़ीनतुल असफिया
- मुहद्दिसीने उज़्ज़ाम हायतो खिदमात
- अनफासुल आरफीन
- दिल्ली के बत्तीस 32, ख्वाजा
- दिल्ली के बाइस 22, ख्वाजा
- रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली