आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 7)

कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौलाना हज़रते अहमद रज़ा के वास्ते

“शजराए आलिया कादिरिया बरकातिया रज़विया”

पीरे कामिल के लिए चार शर्ते ज़रूरी हैं

पीरे कामिल के लिए चार शर्ते का होना ज़रूरी हैं,

  1. सुन्नी सहीहुल अक़ीदा मुस्लमान हो,
  2. इतना इल्म रखता हो के अपनी ज़रूरियात के मसाइल किताबों से निकाल सके,
  3. फासिके मुआलिन न हो यानि ऐलानिया खुल्लम खुल्ला गुनाह करने वाला न हो,
  4. उस का सिलसिला हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक मुत्तसिल हो,

शजराए मुबारिका

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी शराइते अरबा के जामे पीरे कामिल व वलिये कामिल थे आप का सिलसिला हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक मुत्तसिल मिला हुआ था, आप को अगरचे कई (13) सलासिले अरबा यानि कादिरिया, चिश्तिया, नक्शबंदिया, सोहरवर्दिया, में खिलाफ़तो इजाज़त हासिल थी लेकिन यहाँ इख्तिसार के पेशे नज़र सिर्फ सिलसिलए आलिया कादिरिया के मशाईखे किराम के असमाए गिरामी पेश किए जाते हैं,

शजराए आलिया कादिरिया बरकातिया रज़विया

नाम मुबारक विसाल मज़ार शरीफ
(1) हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 12, रबीउल अव्वल 11, हिजरी मदीना शरीफ
हज़रत अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु 21, रमज़ानुल मुबारक 40, हिजरी नजफ़ अशरफ मुल्के ईराक
हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु 10, मुहर्रमुल हराम 61, हिजरी कर्बला मुल्के ईराक
हज़रत इमाम ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हु 18, मुहर्रमुल हराम 94, हिजरी मदीना शरीफ
हज़रत इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु 7, ज़िल हिज्जा 114, हिजरी मदीना शरीफ
हज़रत इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु 15, रजाबुल मुरज्जब 149, हिजरी मदीना शरीफ
हज़रत इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु 15, रमज़ानुल मुबारक 183, हिजरी मशहद मुल्के ईरान
हज़रत इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु 21, रमज़ानुल मुबारक 208, हिजरी मशहद मुल्के ईरान
हज़रत शैख़ मारूफ करखी रदियल्लाहु अन्हु 2, मुहर्रमुल हराम 200, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ सिरि सक्ती रदियल्लाहु अन्हु 13, रमज़ानुल मुबारक 253, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु 27, रजाबुल मुरज्जब 297, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ अबू बकर शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु 27, ज़िल हिज्जा 334, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ अब्दुल वाहिद तमीमी रदियल्लाहु अन्हु 26, जमादिउल आखिर 425, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ अबुल फराह तरतूसी रदियल्लाहु अन्हु 3, शाबानुल मुअज़्ज़म 447, हिजरी तरतूस, मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ अबुल हसन अली हक्कारी रदियल्लाहु अन्हु 1, मुहर्रमुल हराम 486, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ अबू सईद मुबारक मख़्ज़ूमी रदियल्लाहु अन्हु 27, शाबानुल मुअज़्ज़म 513, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल कादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु 11, रबीउल आखिर 561, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ अबू बक्र अब्दुर रज़्ज़ाक रदियल्लाहु अन्हु 6, शव्वालुल मुकर्रम 623, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ अबू सालेह अब्दुल्लाह नस्र रदियल्लाहु अन्हु 2, रजाबुल मुरज्जब 632, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ मुहीयुद्दीन अबू नस्र रदियल्लाहु अन्हु 27, रबीउल अव्वल 656, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ सय्यद अली रदियल्लाहु अन्हु 23, शव्वालुल मुकर्रम 739, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ सय्यद मूसा रदियल्लाहु अन्हु 13, रजाबुल मुरज्जब 763, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ सय्यद हसन कादरी रदियल्लाहु अन्हु 26, सफारुल मुज़फ्फर 781, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक

हज़रत शैख़ सय्यद अहमद जिलानी रदियल्लाहु अन्हु 19, मुहर्रमुल हराम 853, हिजरी बगदाद शरीफ मुल्के ईराक
हज़रत शैख़ बहाउद्दीन शत्तारी दौलत आबादी रदियल्लाहु अन्हु 11, ज़िल हिज्जा 921, हिजरी कस्बा दौलत आबाद माहराष्टर
हज़रत शैख़ सय्यद इब्राहीम ईयरजी रदियल्लाहु अन्हु 5, रबीउल आखिर 953, हिजरी दिल्ली शरीफ
हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन उर्फ़ भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु 9, ज़िल कादा 981, हिजरी काकोरी लखनऊ
हज़रत शैख़ क़ाज़ी ज़ियाउद्दीन रदियल्लाहु अन्हु 22, रजाबुल मुरज्जब 989, हिजरी नीयूत्नी उन्नाओ यूपी
हज़रत शैख़ जमालुल औलिया रदियल्लाहु अन्हु 1, शव्वालुल मुकर्रम 1047, हिजरी कोड़ा जहानाबाद ज़िला फ़तेहपुर यूपी
हज़रत शैख़ मीर सय्यद मुहम्मद रदियल्लाहु अन्हु 6, शाबानुल मुअज़्ज़म 1071, हिजरी कालपी शरीफ यूपी
हज़रत शैख़ मीर सय्यद अहमद रदियल्लाहु अन्हु 9, सफारुल मुज़फ्फर 1084, हिजरी कालपी शरीफ यूपी
हज़रत शैख़ मीर सय्यद फ़ज़्लुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु 14, ज़िल कादा 1111, हिजरी कालपी शरीफ यूपी
हज़रत शैख़ सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु 10, मुहर्रमुल हराम 1142, हिजरी मारहरा शरीफ यूपी
हज़रत सय्यदना शैख़ शाह आले मुहम्मद मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु 16, रमज़ानुल मुबारक 1164, हिजरी मारहरा शरीफ यूपी
हज़रत सय्यदना शैख़ शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु 14, रमज़ानुल मुबारक 1198, हिजरी मारहरा शरीफ यूपी
हज़रत सय्यदना शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु 17, रबीउल आखिर 1235, हिजरी मारहरा शरीफ यूपी
हज़रत सय्यदना शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु 18, ज़िल हिज्जा 1296, हिजरी मारहरा शरीफ यूपी
हज़रत सय्यदना शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु 11, रजाबुल मुरज्जब 1324, हिजरी मारहरा शरीफ यूपी
हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा रदियल्लाहु अन्हु 25, सफारुल मुज़फ्फर 1340, हिजरी बरैली शरीफ यूपी
हज़रत हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हामिद रज़ा खान बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु 17,जमादिउल ऊला 1362, हिजरी बरैली शरीफ यूपी
हज़रत मौलाना इब्राहीम रज़ा खान बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु 11, सफारुल मुज़फ्फर 1385, हिजरी बरैली शरीफ यूपी
सरकार मुफ्तियाए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु 13, मुहर्रमुल हराम 1402, हिजरी बरैली शरीफ यूपी
हज़रत शाह अख्तर रज़ा खान सरकार ताजुश्शरिया बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु 6, ज़िला कादा 1439, हिजरी बरैली शरीफ यूपी

आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की बैअतो खिलाफत

1294, हिजरी माहे जमादिउल उखरा का वाक़िआ है के एक रोज़ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी किसी ख्याल से रोते रोते सो गए, ख्वाब में देखा के आप के दादा जान हज़रत मौलाना शाह रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए, एक संदूक ची अता फ़रमाई और फ़रमाया अनक़रीब वो शख्श आने वाला है जो तुम्हारे दर्दे दिल की दवा करेगा, दूसरे ही दिन ताजुल फुहूल मुहिब्बे रसूल हज़रत मौलाना शाह अब्दुल कादिर उस्मानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए और अपने साथ (बैअत की गर्ज़) से मारहरा शरीफ ले गए, मारहरा मुक़द्दसा के स्टेशन पर ही आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया! शैख़े कामिल की खुशबु आ रही है (इस के बाद एक सराए में ठहरे और नहा धो कर नए कपड़े पहने इस के बाद खानकाहे बरकातिया में बैअत के लिए हाज़िर हुए)।

हम तो कई दिनों से इन्तिज़ार कर रहे हैं

जब इमामुल औलिया, सुल्तानुल आरफीन, ताजदारे मारहरा हज़रत मौलाना सय्यद शाह आले रसूल अहमदी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमते बा बरकत में पहुचें तो हज़रत ने देखते ही फ़रमाया: आइए! हम तो कई दिनों से इन्तिज़ार कर रहे हैं, “फिर बैअत फ़रमाया” और उसी वक़्त तमाम सिलसिलों की इजाज़त भी अता फरमा दी, और खिलाफत से भी नवाज़ा नीज़ जो तबर्रुकात सल्फ सालिहीन से चले आ रहे थे वो भी सब अता फरमा दिए और एक संदूकची जो वज़ीफ़े की संदूकची के नाम से मंसूब थी,

आप को जिन सलासिले तरीकत की इजज़तो खिलाफत हासिल थी उन की तफ्सील दर्ज ज़ैल है: (1) कादिरिया बरकातिया जदी दाह, (2) कादिरिया आबाइया क़दीमिया, (3) कादिरिया हिदाया, (4) कादिरिया रज़्ज़ाकिया, (5) कादिरिया मंसूरिया, (6) चिश्तिया निज़ामिया, (7) चिश्तिया महबूबिया जदी दाह, (8) सोहर वरदिया वाहिदिया, (9) सोहर वरदिया फ़ुज़ैलिया, (10) नक्शबंदिया अलाईया सिद्दीकिया, (11) नक्शबंदिया अलाईया अल्विया, (12) बदीइया, (13) अल्विया मुनामिया, ।

“आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु!के फ़ज़ाइल व कमालात”

आप के फ़ज़ाइल

शैखुल इस्लाम वल मुस्लिमीन, इमामुल अस्र, आयतुम मिन आयतिल्लाह, हस्सानुज़ ज़मा, बुरहानुल औलिया, हामीये सुन्नत, माहीये बिदअत, आला हज़रत अज़ीमुल बरकत अश्शाह हाफिज़ो मुफ़्ती मुजद्दिद अहमद रज़ा खान कादरी बरकाती कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! “आप सिलसिलए आलिया कादिरया रज़विया के उन्तालीसवे 39, वे इमाम व शैख़े तरीकत हैं” आप के फ़ज़ाइल बेशुमार हैं ज़ैल में सिर्फ चंद अकाबिर उल्माए इस्लाम मुफ्तियाने किराम के अक़्वाल पेश किये जाते हैं, तफ्सील के लिए किताब “हुस्सामुल हरमैन, व अद्दौलतुल मक्किया”, का मुलाता करें,

(1) हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद सदका बिन ज़ैनी दहलान जिलानी मस्जिदे हराम मक्का शरीफ,
फरमाते हैं: पाक है वो ज़ात जिसने “इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह” को फ़ज़ाइलो कमालात से
मुशर्रफ व मुख़तस फ़रमाया और उसे इस ज़माने के लिए छुपा रखा और बिला आखिर वक़्त आने पर ज़ाहिर
फरमा दिया,

(2) हज़रत शैख़ मूसा शामी अज़हरी अहमदी दरदीरी मदनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के: इमामुल अइम्मा,
मिल्लते इस्लामिया के मुजद्दिद, नूरे यकीन और नूरे क्लब को ताकत देने वाले यानि शैख़ अहमद रज़ा खान
रहमतुल्लाह अलैह दोनों जहां में उनको क़ुबूल व रिज़वान अता फरमाए,

(3) हज़रत शैख़ इस्माईल बिन सय्यद खलील व हाफ़िज़ क़ुतुब हरमैन शरीफ़ैन मक्का मुअज़्ज़मा फरमाते हैं के:
में अल्लाह पाक का शुक्र अदा करता हूँ के उस ने इस आलिमे बा अमल, आलिम फ़ाज़िल, साहिबे मनाक़िब
मफाखिर (आला किस्म की बाते, तारीफ व तौसीफ) जिस को देख कर ये कहा जाएगा के अगले पिछलों के
लिए बहुत कुछ छोड़ गए, यक्ताए रोज़गार, वहीदे अस्र हज़रत मौलाना शैख़ इमाम अहमद रज़ा खान
रहमतुल्लाह अलैह को मुकर्रर फ़रमाया और वो क्यों न ऐसा हो के उल्माए मक्का मुअज़्ज़मा इस के लिए ये
गवाही ना देते, हाँ हाँ में कहता हूँ के “वो इस सदी का मुजद्दिद हैं” तो हक व सही हैं,

(4) हज़रत शैख़ करीमुल्लाह मुहाजिर मदनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के: में कई साल से मदीना मुनव्वरा
ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में रहता हूँ मुल्के हिंदुस्तान से हज़ारों साहिबे इल्म आते हैं उन में उलमा,
सुल्हा, और अतकिया, सब ही होते हैं में ने देखा के वो शहर के गली कूचों में मारे मारे फिरते हैं कोई भी उन
को मुड़ कर नहीं देखता लेकिन “आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी” की अजीब शान है यहाँ के
उल्माए किराम और बुज़रुग सब ही उन की तरफ जोक दर जोक चले आ रहे हैं और उनकी ताज़िमों तकरीम
में पहल करने की कोशिश कर रहे हैं ये अल्लाह पाक का ख़ास फ़ज़्ल है जिसे चाहता है नवाज़ता है।

हुज़ूर बाईस साल के इस बच्चे पर ये करम क्यों हुआ?

इतनी अताएँ देख कर तमाम मुरीदीन को जो हाज़िर थे तअज्जुब हुआ, जिन में क़ुत्बे ज़माना ताजुल औलिया हज़रत अल्लामा सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह (जो सरकार सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह के पोते और जानशीन थे) अपने जद्दे अमजद से अर्ज़ किया हुज़ूर! बाईस साल के इस बच्चे पर ये करम क्यों हुआ? जब के आप के यहाँ खिलाफ़तो इजाज़त इतनी आम नहीं, बरसों महीने आप चिल्ले, रियाज़तें इबादते, जों, की रोटी खिलवा कर मंज़िलें तय कराते हैं, फिर अगर इस काबिल पाते हैं तब भी एक या दो सिलसिले की खिलाफ़तो इजाज़त अता फरमाते हैं ना के तमाम सलासिल की।

में “अहमद रज़ा” को पेश कर दूंगा

हज़रत अल्लामा सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह भी बहुत बड़े रोशन ज़मीर व आरिफ़े बिल्लाह थे, इसी लिए ये सब कुछ दरयाफ्त किया ताके ज़माने को इस बच्चे का मक़ामे विलायत व शाने मुजद्दिदीयत का पता चल जाए, हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया ऐ लोगों “अहमद रज़ा” को क्या जानो” ये फरमा कर रोने लगे और इरशाद फ़रमाया “मियां साहब! में फ़िक्र में था के अगर क़यामत के दिन अल्लाह पाक ने इरशाद फ़रमाया के आले रसूल! तू दुनिया से मेरे लिए क्या लाया तो में क्या जवाब दूंगा, अल हम्दुलिल्लाह आज वो फ़िक्र दूर हो गई, मुझ से अल्लाह पाक जब ये पूछेगा के आले रसूल! तू दुनिया से मेरे लिए क्या लाया तो में “अहमद रज़ा” को पेश कर दूंगा, और हज़रात अपने क्लब यानि दिलों को ज़ंग आलूद ले कर आते हैं, उन को तय्यार होना पड़ता है, और ये अपने दिल को मुजल्ला व मुसफ्फा ले कर बिलकुल तय्यार आए इन को सिर्फ निस्बत की ज़रूरत थी।

वल्लाह! ये चश्मों चिरागे खानदाने बरकात हैं

नीज़ फ़रमाया मियां साहब! मेरी और मेरे मशाइख की तमाम तसानीफ़ मतबूआ या गैर मतबूआ जब तक “मौलाना अहमद रज़ा को ना दिखा लि जाएँ” छापा ना जाए, जिस को ये बताएं वही छापी जाए जिस को मना करें वो हरगिज़ ना छापी जाए, जो इबारत ये बढ़ा दें वो मेरी और मेरे मशाइख की जानिब से बढ़ी हुई समझी जाए, और जिस इबारत को काट दें वो कटी हुई समझी जाए बारगाहे हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ये इख़्तियारात उन को अता हुए हैं, हज़रत नूरी मियां साहब! ने फिर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के चेहरे मुबारक पर नज़र डाली तो बरजस्ता फरमाने लगे वल्लाह! “ये चश्मों चिरागे खानदाने बरकात हैं” व 1294, हिजरी में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की उम्र सिर्फ बाईस 22, साल थी, लेकिन उनका कल्बे मुबारक ऐसा रोशन हो चुका था के उसकी बारगाहे आली में ऐसी कदर दानी व इज़्ज़त अफ़ज़ाई, एक तो फ़ौरन खिलाफत अता की गई, दूसरा अज़ीम इम्तियाज़ ये मिला के रोज़े कयामत, “अहकामुल हाकिमीन” की बारगाह में अपनी कमाई पेश करने का मौका आया तो फ़रमाया: “अहमद रज़ा” को पेश कर दूंगा, तीसरा ये के तवज्जुह तश्बीही यानि अपने मुशाबेह करने के लिए रोहानी नज़र से नवाज़े गए।

जब इब्तिदा का ये हाल है

इस पर तब्सिरा करते हुए मौलाना मुहम्मद अहमद मिस्बाही साहब! अपनी किताब “इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़” में तहरीर फरमाते हैं, जब इब्तिदा का ये हालो कमाल है तो इंतिहा का उरूज व इर्तिका क्या होगा? असल तो मुर्शिद की इनायत है जिस के बगैर राहे सुलूक तैय नहीं होती और मुर्शिद ने उसी दिन बल्के उसी वक़्त तवज्जुहे तश्बीही और दूसरी इनायात से ये ज़ाहिर कर दिया के हमने अहमद रज़ा को सब मुआरिफो हक़ाइक़ सुपुर्द कर दिए, उसे अपना नायब व खलीफा ही नहीं बल्के अपना मज़हरे अतम! और परतवे कामिल बना दिया, अब वो इस का अहिल है के मेरे बयान करदह और तहरीर किया हुआ हक़ाइक़ो मआरिफ़ पर नज़रे सानी कर सके और उसकी नज़र के बगैर कोई किताब शाए ना की जाए, यही वजह है के अहले शरीअत या अहले तरीकत, अस्हाबे मदारिस हूँ या अरबाबे खानकाह, सभी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बारगाह में इस्तिफ़ादा व इस्तिसवाब (मश्वरह लेना, राए लेना,) करते हुए नज़र आते हैं।

मरजए उलमा व सूफ़ियाए किराम

अगर एक तरफ वो सदरूश्शरीअ बदरूत रतरीका मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह, मौलाना सय्यद मुहम्मद किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह, के उस्ताज़े जलील हाफ़िज़ सही बुखारी मौलाना वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह, के बुलंद पाया दरस गाहि सवालात का हल लिख रहे हैं तो दूसरी तरफ मौलाना सय्यद शाह अहमद अशरफ रहमतुल्लाह अलैह, के अहम खानकाही सवालात के जवाबात भी दे रहे हैं,

अज़ीम मुफ़्तियो मुहक्किक मौलाना इरशाद हुसैन रामपुरी रहमतुल्लाह अलैह, के फतवे की तनक़ीद व तसही करते हुए देखे जा रहे हैं तो सय्यद नूरुद्दीन हुसैन रईसे आज़म! बड़ोदा, के दक़ीक़ सवालाते तसव्वुफ़ की बरजस्ता शरह फरमाते हुए भी नज़र आ रहे हैं हत्ता के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के मुरब्बीए तरीकत हज़रत अल्लामा सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह के अहम् इल्मी व खानकाही सवालात के जवाबात भी लिख रहे हैं, “फताफा रज़वीया शरीफ” की जिल्दों और मुख्तलिफ रसाइल के सफ़हात पर इससे ज़ियादा मिसालें देखि जा सकती हैं जो ये सबूत फ़राहम करने के लिए काफी से ज़ाइद है के ये अबकरिये ज़माना “शरीअतो तरीकत” दोनों का आलिम और “उलमा, व सूफ़ियाए किराम” दोनों का इमाम है,

नग्गे पाऊं खानकाहे बरकातिया तक जाते

साहब ज़ादा सय्यद मुहम्मद अमीन मियां बरकाती नबीराए ख़ातिमुल अकाबिर हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी अपने मुर्शिदाने इज़ाम का इस दर्जा अदब मलहूज़ रखते थे के मारहरा शरीफ के स्टेशन से खानकाहे बरकातिया तक बरहना यानि नग्गे पाऊं पैदल तशरीफ़ लाते थे और मारहरा शरीफ से जब कभी हज्जाम खत या प्याला ले कर बरैली शरीफ जाता तो “हज्जाम शरीफ” फरमाते और उस के लिए खाने का ख्वान अपने सरे अक़दस पर रख कर लाया करते थे।

साहिबे सज्जादा को लेने सटेशन पर गए

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी अपने पीरो मुर्शिद के घराने के दीगर अफ़राद का भी बहुत अदब किया करते थे, जब कभी सज्जादा नशीन मारहरा शरीफ से “बरैली शरीफ” तशरीफ़ लाते या उनकी गाड़ी इस्टेशन से गुज़रती तो आप खुद चल कर स्टेशन पर उन्हें मिलने के लिए जाते, सय्यद अय्यूब अली सहाबा! बयान करते हैं के एक मर्तबा में और मेरे भाई सय्यद कनाअत अली साहब! बाद मगरिब इस ख्याल से के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की ज़ियारत हो जाए आप के काशानए अक़दस के बाहर खड़े थे के हुज़ूर इस नक़ाहत और कमज़ोरी की हालत में इतनी दूर पैदल बगैर सवारी के कैसे तशरीफ़ ले जाते हैं, लेकिन पूछने की जुरअत न हुई, यूँही ख़ामोशी के साथ चलते हुए स्टेशन के करीब पहुंच गए इतने में देखा के वो गाड़ी जो रामपुर शहर को उस वक़्त जाती थी वो जा रही है और सवारियां यक्का, तांगा, वगेरा में शहर की तरफ आ रही हैं हज़रत अल्लामा अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह ने अर्ज़ की हुज़ूर! मालूम होता है के मियां साहब (हज़रत मेंहदी हसन मियां साहब!) तशरीफ़ नहीं लाए गाड़ी तो रामपुर वाली छूट गई, जो सवारियां आने वाली थीं वो भी आ चुकीं, अगर तशरीफ़ लाते तो अब तक मुलाकात हो जाती, गरज़ वहां से वापस तशरीफ़ लाए,

उस वक़्त हमे हज़रत अल्लामा अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह से पता चला के (हज़रत मेंहदी हसन मियां साहब मारहरवी, ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को इत्तिला दी थी के में मारहरा शरीफ से आ रहा हूँ और रामपुर जा रहा हूँ, किसी को बरैली स्टेशन पर भेज दिया जाए, चुनांचे आप ने साहबज़ाद गान में से किसी से फरमा दिया था के स्टेशन चले जाना, उन्हें ख़याल ना रहा, यहाँ तक के मगरिब की नमाज़ के बाद हुज़ूर अंदर तशरीफ़ ले गए और वैसे ही फाटक में आ कर मालूम किया, कोई स्टेशन गया या नहीं? मालूम हुआ के नहीं इसी लिए तनहा अँधेरे में पैदल चल दिए, में ये कैफियत देख कर फाटक से लालटेन ले कर दौड़ा और कुछ दूर चल कर आप के साथ हो लिया, हमने अर्ज़ की हज़रत! ये तो एक बहाना था असल में हमे दीदार करवाना था,

जैसे लिखने वाले के हाथ में कलम

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के कमाल अदब गौसे आज़म की एक झलक आप के चहीते खलीफाओं शागिर्द हज़रत मुहद्दिसे आज़म हिन्द सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह (जो के गौसे पाक की औलाद में से थे और आप से कारे इफ्ता की तरबीयत हासिल करने के लिए हाज़िर हुए थे) यूं दिखाते हैं, दूसरे दिन कारे इफ्ता पर लगाने से पहले खुद ग्यारह रूपए की शिरीनी मंगाई, अपने पलंग चार पाई पर मुझ को बिठा कर और शिरीनी रख कर फातिहा गौसिया पढ़ कर दस्ते करम से शिरीनी मुझ को भी अता फ़रमाई और हाज़रीन में तकसीम का हुक्म दिया, तभी अचानक में ने देखा के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी चार पाई से खड़े हो गए सब हाज़रीन भी उन के साथ खड़े हो गए शायद किसी हाजत से अंदर तशरीफ़ ले जाते, लेकिन हैरत बालाए हैरत ये हुई के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ज़मीन पर उकडूं बैठ गए, समझ में नहीं आया के क्या हो रहा है, देखा तो ये देखा के तकसीम करने वाले की भूल से शिरीनी का थोड़ासा हिस्सा ज़मीन पर गिर गया था और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी उस थोड़े से हिस्से को ज़बान की नोक से उठा रहे हैं, और फिर इस के बाद अपनी जगह पर बैठ गए, इस वाकिए को देख कर सारे हाज़रीन सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु! की अज़मतो मुहब्बत में डूब गए और फातिहा गौसिया की शिरीनी के एक एक ज़र्रे के तबर्रुक हो जाने में किसी दूसरी दलील की हाजत ना रह गई,

और अब में समझ गया के बार बार मुझ से जो फ़रमाया जाता के में कुछ नहीं ये आप के जद्दे अमजद “सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु” का सदक़ा है वो मुझे खामोश कर देने के लिए ही न था, और ना सिर्फ मुझ को शर्म दिलाना ही था बल्के दर हकीकत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी “सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु” के हाथ में (जैसे लिखने वाले के हाथ में कलम थे) जिस तरह गौसे पाक सरकारे दो आलम हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ में “जैसे लिखने वाले के हाथ में कलम थे।

नाइबे ग़ौसुल आज़म फिल हिन्द

कलबी वाबस्तगी और रब्त व तअल्लुक़ खातिर ही का फैज़ था के बार गाहे गौसे आज़म! की रूहानी बरकतें आप के सर पर हमेशा साया फ़िगन रहीं, और दिल की आँखों से उनके अनवारों तजल्लियत का मुशाहिदाह करते रहते और इनामो इकरामे कादिरियत का सिलसिला इतना दराज़ हुआ के आप को बारगाहे ग़ौसुल वरा से “नाइबे ग़ौसुल आज़म फिल हिन्द” का अज़ीम ऐजाज़ बख्श दिया गया।

गियारा दर्जे तक तो हमने पंहुचा दिया

चुनांचे खुद फरमाते हैं: एक बार में ने ख्वाब में देखा के हज़रते वालिद माजिद के साथ एक बहुत नफीस उम्दह और ऊंची सवारी से हज़रते वालिद माजिद ने कमर पकड़ कर सवार किया और फ़रमाया ग्यारा 11, दर्जे तक तो हमने पंहुचा दिया आगे अल्लाह मालिक है, मेरे ख्याल में इस से “सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु” की गुलामी मुराद है।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • सवानेह आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा
  • हयाते आला हज़रत अज़
  • फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
  • इमाम अहमद रज़ा अरबाबे इल्मो दानिश की नज़र में
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • हयाते मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी
  • इमाम अहमद रज़ा रद्दे बिदअतो व मुन्किरात
  • इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़

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