सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 4)

सायाए जुमला मशाइख या खुदा हम पर रहे
रहम फ़रमा आले रहमा मुस्तफा के वास्ते

तुम्हारे घर लड़का पैदा होगा

ख़लीफ़ए हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द! शायरे इस्लाम हज़रत मौलाना राज़! इलाहबादी अपनी किताब “हुज़ूर मुफ्तिए आज़म आज़म हिन्द की करामात” में बयांन करते हैं, के मेरे मामू जिनका नाम गुलज़ार अली है वो बख्शी बाज़ार में ऐसी जगह रहते हैं जहाँ से सौ कदम पर वहाबियत का मर्कज़ है, वो एक औलाद के लिए तरसते थे वैसे अल्लाह पाक ने उनको बहुत दौलत से नवाज़ा है वो एक औलाद के लिए तरस थे, कमी थी तो बस एक चिराग जाने वाले की, एक बार हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह इलाहबाद तशरीफ़ लाए और जब शाम को तशरीफ़ ले जाने लगे तो में ने हज़रत! की खिदमत में अर्ज़ किया हुज़ूर मेरी खाला के यहाँ तशरीफ़ ले चलें तो बड़ी बरकत होगी, हज़रत ने कबूल फ़रमाया और सामान ले कर कुछ लोग स्टेशन पहुंच गए हज़रत को में अपनी खाला के मकान पर ले कर गया उन्होंने शिरीनी मगा रखी थी और वुज़ू के लिए पानी गर्म कर दिया था हज़रत ने सिर्फ वहां नमाज़े असर अदा की और शिरीनी पर फातिहा पढ़ी और चाय पीकर तशरीफ़ ले जाने लगे, में ने अपनी खाला से कहा के हज़रत तशरीफ़ ले जा रहे हैं बस वो दीवार की आड़ में खड़ी हो गईं, और कहने लगीं हज़रत! मेरे लिए दुआ फरमाइए हज़रत ने फ़रमाया के में ने नमाज़े असर पढ़कर तुम्हारे लिए दुआ तो करदी, मगर फिर उन्होंने कहा हज़रत! मेरे लिए दुआ फरमाइए बस किया था, हज़रत! ने फिर दुआ के लिए अपने हाथ अपने रब की बारगाह में उठाए, हज़रत! के हाथ में हमेशा एक लम्बा रुमाल रहता है वो रुमाल हज़रत हस्बे मामूल हाथों में लिए ही थे के उस का गोशा हवा में उड़ा और मेरी खाला के हाथों तक किसी सूरत से पहुंच गया, बस फिर किया था इधर इसी रुमाल का गोशा इन्होने थाम लिया और अपनी आँखों से लगा कर बे इख़्तियार रोना शुरू कर दिया हज़रत फरमाते जा रहे हैं के बही मेरा रुमाल छोड़ दो में ने अल्लाह पाक की बारगाह में तुम्हारे लिए दुआ की है, अल्लाह पाक तुम्हारी मुराद पूरी फरमाएगा मगर वो रुमाल नहीं छोड़ती थीं, हज़रत ने कई बार झुंझला कर फ़रमाया अरे मेरा रुमाल छोड़ दो मगर वो बराबर रोती जा रही हैं, हज़रत ने और सख्त लहजे में डांटकर फ़रमाया छोडो मेरा रुमाल तुम्हारे यहाँ “इंशा अल्लाह लड़का पैदा होगा” बस इस खातून ने भी रुमाल छोड़ दिया जब हज़रत! स्टेशन की तरफ तशरीफ़ ले जाने लगे, तो रास्ते में फ़रमाया राज़ साहब! तुम्हारी खाला के यहाँ लड़का पैदा होगा,

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के हवाले कर देना, उस खातून ने मांगने का तरीका बता दिया के एक वली से किस तरह दुआ कराइ जाती है बहर हाल उन के यहाँ ग्यारह 11, महीने के बाद लड़का पैदा हुआ, अब ये वाकिअ मोहल्ले में मशहूर हुआ उन के घर में हम सब के घर में बड़ी ख़ुशी मनाई गई क्यों के बड़ी बड़ी कोशिशों और दुआओं के बाद एक मर्दे हक आगाह एक वलिये कामिल ने उनके लिए दुआ कर के उनके घर का एक चिराग से रोशन कर दिया, मुझे मालूम हुआ तो में ने फ़ौरन उस बच्चे को बाग्दाद् वाले शहंशाह इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द कर दिया और बच्चे का नाम हज़रत! के नाम पर रखा यानि “गुलाम मुस्तफा रज़ा रखा” हज़रत की दुआओं से उनकी गोद भर गई, डेढ़ माह के बाद हज़रत इलाहबाद तशरीफ़ लाए तो इस बच्चे को दाखिले सिलसिला फ़रमाया, सैंकड़ों आदमी स्टेशन पर हज़रत को लेने पहुंच गए थे इधर वहाबियों के इज़्तिराब का आलम उन्हें के सर के करीब इतनी खुली हुई करामत हज़रत से ज़ाहिर हुई वो भी चुपके चुपके लोगों से पूछते वो बुज़रुग हस्ती कब आएंगें और दाएं बाएं देख कर ज़ियारत के लिए आए तो इस वाकिए की सदाकत का अंदाज़ा लगा कर चले गए अब वो बच्चा इस वक़्त तीन साल का है, अब के साल फिर उनके यहाँ दूसरा लड़का पैदा हुआ है, मेरी खाला के यहाँ सब ही लोग हज़रत के दमन से वाबस्ता हैं।

आप के मशाहीर खुल्फ़ए किराम

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के खुलफ़ा ही की तादाद इतनी है जितने बड़े बड़े पीरों के मुरीदों की तादाद नहीं होगी हज़रत के खुलफ़ा हज़ारों की गिनती में हैं जो न सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि बैरूने ममालिक यानि हिंदुस्तान से बाहर तक फैले हुए हैं जो आज भी मक्का मुकर्रमा, मदीना मुनव्वरा, तुर्की, अमरीका, अफ्रीका, हालेंड, सीरी लंका बांगला देश, पाकिस्तान और हिंदुस्तान में इशाअते इस्लाम व सुन्नियत की पुरखुलूस खिदमात अंजाम दे रहे हैं उन में फुकहा, मुफ़स्सिरीन, मुहद्दिसीन, मुतकल्लिमीन, व मुनाज़िरीन, मुहक़्क़िक़ीन, मुसन्निफीन, व मुअल्लिफ़ीन, मुकर्रिरीन, व मुदर्रिसीन, व फ़लासिफ़ा, शोआरा काज़ियाने अदालत, और मुफ्तियाने शरीअत, व क़ाइदीन स्कॉलर्स प्रोफ़ेसर भी हैं जो हज़रत की गुलामी पर फख्र करते हैं हज़रत के मुरीद की तादाद लग भग 10000000, एक करोड़ से लेकर सवा करोड़ तक हैं, जो क़रीब क़रीब पूरी

दुनिया में फैले हुए हैं: आप के मशहूर खुलफ़ा के नाम ये हैं:

(1) मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द हज़रत अल्लामा मौलाना इब्राहीम रज़ा खान उर्फ़ जिलानी मियां कुद्दीसा सिररुहुन
नूरानी बरैली शरीफ,
(2) मुबल्लिगे इस्लाम अल्लामा इब्राहीम खुश्तर सिद्दीकी, बानी सुन्नी रज़वी सोसाइटी, मॉरीशस कुद्दीसा
सिररुहुन नूरानी,
(3) ग़ज़ालिए दौरां अल्लामा सय्यद सईद अहमद काज़मी शेखुल हदीस दारुल उलूम अनवारुल उलूम
मुल्तान पाकिस्तान, कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी,
(4) अताए ख्वाजा मौलाना सय्यद अहमद अली रज़वी, गद्दी नशीन आस्तानए ख्वाजा गरीब नवाज़, अजमेर
शरीफ,
(5) वारिसे उलूमे आला हज़रत, ताजुश्शरिया अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान कादरी, सदर मुफ़्ती
रज़वी दारुल इफ्ता बरैली शरीफ कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी,
(6) रईसुत तहरीर हज़रत अल्लामा अर्शदुल कादरी, बानी जामिया फैज़ुल उलूम, जमशेद पुर बिहार,
(7) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती एजाज़ वली खान, बहावलपुर पाकिस्तान,
(8) बहरूल उलूम हज़रत मुफ़्ती सय्यद अफ़ज़ल हुसैन मूंगिरि, मुफ़्ती दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! बरैली शरीफ
यूपी,
(9) अमीने मिल्लत डॉक्टर सय्यद शाह मुहम्मद अमीन मियां बरकाती सज्जादा नशीन, खानकाहे बरकातिया
मारहरा मुक़द्दसा,
(10) आलिमे बा अमल मौलाना मुहम्मद अनवर अली रज़वी बहराइची खतीबों इमाम कादरी मस्जिद गली
मनिहारान बरैली शरीफ यूपी,
(11) मौलाना कारी अनवारुल हक मुस्तफ़वी, दारुल उलूम अताए रसूल! मकराना राजिस्थान,
(12) मौलाना मुहम्मद अय्यूब आलम रज़वी बंगगाली, मुदर्रिस दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! बरैली शरीफ यूपी,
(13) फ़ज़ीलतुष शैख़ हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शैख़ मुहम्मद अमीन कुतबी, हिजाज़ मुकद्द्स!
(14) हज़रत मौलाना हाफ़िज़ एहसानुल हक रज़वी फैसलाबाद पाकिस्तान,
(15) हज़रत अल्लामा मौलाना अहसन अली फैज़पुरी मुहद्दिसे दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! बरैली शरीफ यूपी,
(16) मौलाना अल हाज अहमद मुकद्दम रज़वी डरबन साउथ अफ्रीका,
(17) उम्दतुल मुहक़्क़िक़ीन हज़रत मुफ़्ती बदरुद्दीन अहमद गोरखपुरी कुद्दीसा सिररुहु, शैखुल हदीस मदरसा
गौसिया! ज़िला बस्ती यूपी,
(18) अदीबे अस्र हज़रत अल्लामा मौलाना बदरुल कादरी चेयर में इस्लामिक एकेडमिक दा हैग हाइलैंड,
(19) हज़रत अल्लामा मौलाना बहाउल मुस्तफा अमजदी, इमामो खतीब मस्जिद बिहारीपुर, बरैली शरीफ यूपी,
(20) सय्यदुल अतकिया मुहद्दिसे बरेलवी मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान कुद्दीसा सिररुहु बानी ज़ियाउल उलूम कांकर
टोला बरैली शरीफ यूपी,
(21) उस्ताज़ुल उलमा हज़रत मुफ़्ती तक़द्दुस अली खान शैखुल हदीस जामिया रशीदिया, पीर जोगोठ, सिंद्ध
पाकिस्तान,
(22) ख़तीबुल हिन्द हज़रत मौलाना मुहम्मद तौसीफ रज़ा खान, सदर ऑल इण्डिया सुन्नी जमीयतुल अवाम
बरैली शरीफ यूपी,
(23) शायरे इस्लाम मौलाना जाबिर अली रज़वी उर्फ़ राज़ इलाहबादी! बहादुर गंज इलाहबाद,
(24) मुहक्किके दौरां हज़रत अल्लामा मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन कादरी गुजरात पकिस्तान,
(25) उस्ताज़ुल असातिज़ह मुफ़्ती मुहम्मद जहाँ गीर खान शैखुल हदीस दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! बरैली
शरीफ यूपी,
(26) रईसे आज़म उड़ीसा हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत हज़रत मौलाना हबीबुर रहमान कादरी अब्बासी बानी जामिया
हबीबिया उड़ीसा,
(27) यादगारे सल्फ़ हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हबीब रज़ा खान मरकज़ी दारुल इफ्ता बरैली शरीफ यूपी,
(28) कातए नजदीयत हज़रत अल्लामा व मौलाना मुहम्मद हसन अली रज़वी, बानी अनवारे रज़ा अहले सुन्नत
मेलसी पाकिस्तान,
(29) शेर बेशए अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हशमत अली खान पीलीभीत शरीफ यूपी,
(30) मुनाज़िरे अहले सुन्नत मुफ़्ती मुहम्मद हुसैन कादरी सम्भली यूपी,
(31) हज़रत अल्लामा व मौलाना सूफी खालिद अली खान रज़वी मोहतमिम मज़हरे इस्लाम, मस्जिद बीबी जी
बरैली शरीफ,
(32) हज़रत अल्लामा खादिम रसूल रज़वी शैखुल हदीस, मसऊदुल उलूम, बहराइच शरीफ यूपी,

(33) उस्ताज़ुल उलमा मुफ़्ती मुहम्मद खलील खान बरकाती, शैखुल हदीस, मसऊदुल अहसाने बरकात
हैदराबाद,
(34) मौलाना मुहम्मद रफीउद्दीन रज़वी फरीदपुरी सुम्मा बानी मदरसा रज़विया बरकतुल उलूम, मोंगा नगर
मुस्तफाबाद दिल्ली,
(35) रेहाने मिल्लत हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान, मोहतमिम दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! बरैली शरीफ
यूपी,
(36) मौलाना सय्यद रियासत अली कादरी, बानी इदारा तहकीकात इमाम अहमद रज़ा कराची पाकिस्तान,
(37) अमीने शरीअत मुफ़्ती रिफाकत हुसैन कानपूर,
(38) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती रिज़्वानुर रहमान फारूकी मुफ़्तीए मालवाह इन्दोर,
(39) बुलबुले हिन्द मुफ़्ती रजब अली नानपारा, बानी मदरसा अज़ीज़ुल उलूम बहराइच शरीफ यूपी,
(40) शारेह बुखारी शरीफ, हज़रत मुफ़्ती शरीफुल हक अमजादी रज़वी सदर मुफ़्ती जामिया अशरफिया
मुबारकपुर यूपी,
(41) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद शाहिद अली रज़वी शैखुल हदीस अल जामियातुल इस्लामिया रामपुर,
(42) शमशुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती काज़ी शमशुद्दीन अहमद रज़वी जाफरी जौनपुर यूपी
(43) मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सरदार अहमद कादरी फैसलाबाद पाकिस्तान
(45) फ़ज़ीलतुष शैख़ हज़रत अल्लामा सय्यद नूर मुहम्मद मक्का शरीफ,
(46) फ़ज़ीलतुष शैख़ हज़रत अल्लामा सय्यद अब्बास मालकी मक्का शरीफ,
(47) मौलाना सय्यद सिराज अज़हर रज़वी इमाम व खतीब मस्जिद अबुल हाशिम मुंबई,
(48) हज़रत मौलाना साजिद अली खान रज़वी मोहतमिम दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम! बरैली शरीफ यूपी,
(49) मेमारे मिल्लत मौलाना शबीहुल कादरी पिरन्सिपल ग़ौसुल वरा अरबी कॉलिज सीवान बिहार,
(50) मुहद्दिसे कबीर मुम्ताज़ुल फुकहा अल्लामा ज़ियाउल मुस्तफा कादरी रज़वी बानी जामिया अमजदिया
रज़विया घोसी यूपी,
(51) अल्लामा व मौलाना शमशुद्दीन अहमद रज़वी, सदरुल मुदर्रिसीन मसऊदुल उलूम बहराइच शरीफ,
(52) मौलाना शमशुल्लाह हशमती मुहल्लाह भूरे खान पीलीभीत शरीफ
(53) मख्दूमे अहले सुन्नत मौलाना सय्यद ज़ाहिद अली रज़वी खतीब जामा मस्जिद बगदादी, फैसलाबाद
पाकिस्तान,
(54) अमीने शरीअत मौलाना सिब्तैन रज़ा कादरी बरेलवी, अंजुमन इस्लामिया कांकीर ज़िला बस्तर माध्ये
प्रदेश,
(55) सुफिए ज़मा मौलाना मुहम्मद सिराजुल बारी रज़वी बिहार,
(56) फखरुल मुहद्दिसीन मुफ़्ती सय्यद मुहम्मद आरिफ रज़वी नानपारा, शैखुल हदीस दारुल उलूम मन्ज़रे
इस्लाम! बरैली शरीफ यूपी,
(57) शैखुल उलमा हज़रत अल्लामा अब्दुल मुस्तफा अज़हरी रज़वी, शैखुल हदीस जामिया अमजदिया कराची
पाकिस्तान,
(58) सदरुल मुफ्तीईन मुफ़्ती काज़ी अब्दुर रहीम बस्तवी सदर मरकज़ी दारुल इफ्ता बरैली शरीफ यूपी,
(59) उम्दतुल मुकर्रिरीन मौलाना अब्दुल खालिक रज़वी मुदर्रिस दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! बरैली शरीफ
(60) फ़ाज़िले यग़ाना मौलाना अब्दुल मुस्तफा रौनक रज़वी गोंडवी खतीब व इमाम जामा मस्जिद कांटोली
अमरनाथ ज़िला थाना,
(61) उमदतुल मुदर्रिसीन मौलाना अब्दुर रशीद रज़वी मदरसा शमशुल उलूम घोसी ज़िला मऊ,
(62) फाज़ले गिरामी मौलाना अब्दुल गनि कादरी रज़वी नियोटन शरीफ एमपी,
(63) मौलाना अल हाज सूफी मुहम्मद अब्दुल अज़ीज़ आफरीदी रज़वी चितर्दुर्गा करनाटक,
(64) काज़ियुल कुज़्ज़ात अल्लामा शैख़ सय्यद मुहम्मद अल्वी मालकी रज़वी उस्ताज़ुल हदीस मस्जिदे हराम
शरीफ मक्का मुअज़्ज़मा,
(65) शैखुल मुहद्दिसीन अल्लामा गुलाम रसूल रज़वी शैखुल हदीस दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम! फैसलाबाद
पाकिस्तान,
(66) ज़ीनतुल कुर्रा कारी गुलाम मुहीयुद्दीन रज़वी शेरी बानी मदरसा इशाअतुल हक हल्दुवानी ज़िला नैनीताल,
(67) शैखुत तफ़्सीर वल हदीस अबू सालेह मुहम्मद फैज़ अहमद ओवैसी रज़वी जामिया रज़विया ओवैसिया
बहावलपुर पाकिस्तान,
(68) आलिमे रब्बानी अल्लामा मुहम्मद कासिम शहीदुल कादरी रज़वी अस्ताना रज़विया मुस्तफ़वीय जबलपुर
(69) फाज़ले जलील मौलाना मुहम्मद कुर्बान अली रज़वी चिश्ती बिहार,
(71) बक़ीयतुस सलफ मुफ़्ती मुहम्मद मुबीनुद्दीन रज़वी शैखुत तफ़्सीर जामिया नईमिया दीवान बाज़ार
मुरादाबाद,
(72) नाज़िशें तक्वा मौलाना सय्यद मुबश्शिर रज़वी बशीरी बहेड़वी ज़िला बरैली शरीफ यूपी,
(73) खतीबे मशरिक अल्लामा मुश्ताक अहमद निज़ामी रज़वी मोहतमिम दारुल उलूम गरीब नवाज़ इलाहबाद
(74) फ़क़ीहै वक़्त मुफ़्ती मुहम्मद मुशर्रफ अहमद रज़वी मज़हरी नक्शबंदी साबिक खतीब मस्जिद शैखान बाड़ा
हिंदूराव दिल्ली,
(75) पीरे तरीकत रहबरे शरीअत कारी मुसलीहुद्दीन रज़वी साबिक खतीब मेमन मस्जिद मुसलीहुद्दीन गार्डन
कराची पाकिस्तान,
(76) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद मुतीउर रहमान मुज़तर रज़वी मुदीरे आम, किशन गंज बिहार,
(77) इमामे इल्मो फन मौलाना ख्वाजा मुज़फ्फर हुसैन रज़वी पूरनपुरी शैखुल माकूलात जामिया कदीरिया
बदायूं शरीफ,
(78) फाज़ले अजल मौलाना मुज़फ्फर अली रज़वी सहस्वानी सहिसवांन ज़िला बदायूं शरीफ,
(79) मुकर्रिरे शहीर मौलाना हकीम मुज़फ्फर अहमद बरकाती रज़वी दाता गंज बदायूं शरीफ,

(80) हज़रत मौलाना मन्नान रज़ा खान मन्नानी मियां मोहतमिम जामिया नूरिया बाकर गंज बरैली शरीफ
(81) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अब्दुल कय्यूम हज़ारवी बानी रज़ा फॉउंडेशन लाहौर पाकिस्तान,
(82) शैखुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद आज़म रज़वी तांडवी शैखुल हदीस “जामिया रज़विया
मज़हरे इस्लाम” खतीबों इमाम नूरी मस्जिद जक्शन वाली बरैली शरीफ,
(83) मौलाना मरातिब अली रज़वी गूंजरा वाला पाकिस्तान,
(84) अल्लामा मंसूर अली खान इमाम व खतीब सुन्नी बड़ी मस्जिद मदनपुर मुंबई,
(85) मुफ़्ती मंज़ूर अहमद फ़ैज़ी बानी मदरसा मदीनतुल उलूम बहावलपुर पाकिस्तान,
(86) अल्लामा मुफ़्ती लुत्फुल्लाह कुरैशी नईमी खतीब शाही जामा मस्जिद मुफ्तिए मथरा,
(87) मुफ़्ती कुदरतुल्लाह रज़वी शैखुल हदीस दारुल उलूम फैजुर रसूल बराऊँ शरीफ यूपी,
(88) मुफ़्ती गुलाम सरवर कादरी लाहौर पाकिस्तान,
(89) मुफ़्ती मुजीब अशरफ रज़वी मोहतमिम दारुल उलूम अमजदिया नागपुर,
(90) मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद फारूक रज़वी मुफ्तिए दारुल इफ्ता बरैली शरीफ,

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द “मुस्तफा रज़ा नूरी” अकाबिर उलमा व मशाइख की नज़र में

ताजुल फुकहा मुफ़्ती अख्तर हुसैन अलीमी उस्ताज़ दारुलउलूम अलीमिया जमदा शाही ज़िला बस्ती यूपी: हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह महिद से लहद तक अपनी मिसाल आप थे, फ़ज़्लो कमाल, हिकमतो मारफत, दानाई व बीनाई, तदब्बुर व तफ़क्कुर, इल्मे फ़िक़्ह व कलाम, हदीसो तफ़्सीर और तसव्वुफ़ व कलाम वगेरा जुमला उलूमे अकलिया व नकलीयमे यकताए रोज़गार थे, इश्के मुस्तफा, एहतिरामे सादात, तकरीमे उल्माए दीन, और असागिर नवाज़ी में आसमान की बुलंदी पर थे, इत्तिबाए सुन्नतों शरीअत, तसल्लुब फिद्दीन, उन की सरिश्त में था, आलाए कलमतुल हक उन का ख़ास वतीरा था, अम्र बिल मारूफ नहीं अनिलमुनकर में उन्हें कभी किसी लोमता लाइम का कोई खौफ था और ना हुकूमत व इक्तिदार और दौलतो सरवरत का कोई खतरा ज़ोहदो तक्वा और तहारतो पाकीज़गी में जुनैदे वक़्त थे, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह अकाबिर के नूरे नज़र, मायाए इफ्तिखार और लाइके सद तहसीन व तबरीक थे।

सिराजुस सालिकीन सुल्तानुल आरफीन हज़रत अबुल हुसैन अहमदे नूरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी मारहरा मुक़द्दसा

ये बच्चा दीनो मिल्लत की बड़ी खिदमत करेगा और मखलूके खुदा को इस की ज़ात से बहुत फैज़ पहुंचेगा ये बच्चा “वली” है इस की निगाहों से लाखों गुमराह इंसान दीन पर काइम होंगें ये फैज़ का दरिया बहाएगा, मुबारक हो क़ुरआनी आयात की तफ़्सीर मकबूल होकर आप की गोद में आ गई “आले रहमान मुहम्मद अबुल बरकात मुहीयुद्दीन जिलानी”।

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु!

18, साल की उमर में पहला “फतवा” देख कर सय्यदी आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने फ़रमाया: तुम्हारी मुहर बनवा देता हूँ अब फतवा लिखा करो, अपना एक रजिस्टर बना लो, उसमे नकल भी किया करो, अल इस्तिमदाद में फ़रमाया: आले रहमान बुरहानुल हक, शर्क़ पे बर्क गिराते ये हैं।

सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी!

ताजुश्शरिया अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान अज़हरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का बयान है के में ने सुना हज़रत सदरूल्ला अफ़ाज़िल! से जब कोई मसला पूछता, हज़रत उस मसले में आप का क्या ख्याल है वो अपनी राए बताते, फिर कोई कहता हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह तो ये फरमाते हैं तो कहते बस बस जो मुफ्तिए आज़म हिन्द फरमाते हैं, वही हक व सही है।

हज़रत मुहद्दिसे आज़म हिन्द सय्यद मुहम्मद अशरफी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! किछोछा मुक़द्दसा

आज की दुनिया में जिन का फतवे से बढ़कर तक्वा है, एक शख्सीयत मुजद्दिदे मीयते हाज़रा के फ़रज़न्दे दिलबंद का प्यारा नाम मुस्तफा राजा! बे साख्ता ज़बान पर आता है और ज़बान बेशुमार बरकतें लेती है, और हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के एक फतवे पर आप ने ये तहरीर फ़रमाया: “यानि ये आलिमे मुतआ का इरशाद है और हमपर उसकी पैरवी लाज़िम व ज़रूरी है।

पीरे तरीकत हज़रत मौलाना सय्यद अहमद अजमली शाह अजमल इलाहबाद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी!

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह जिन ख़ुसुसियात का मुजस्समा थे, उन ख़ुसूसीयत का इज़हार उन से मुलाकात पर हुआ, मरहूम एक साहिबे नज़र आलिम, एक मुहतात मुफ़्ती और एक मुर्शिद की हैसियत से अहमियत के हामिल हैं, इस खानदान ने जो खिदमात की हैं और ख़ास तौर से हिफ्ज़े नामूसे रसूल और इश्के रसूल की नेमत तकसीम करने में इस खानदान ने जो किरदार अदा किया है वो लाइके सताइश है मरहूम अपने खानदान की तमाम रिवायात के अमीन थे।

क़ुत्बे बिलगिराम शरीफ! हज़रत सय्यद शाह मीर ज़ैनुल अबिदीन कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

हज़रत डॉक्टर सय्यद शाह फिदाउल मुस्तफा उर्फ़ बादशाह मियां बयान फरमाते हैं के हज़रत बड़े अब्बू क़ुत्बे बिलगिराम शरीफ! हज़रत सय्यद शाह मीर ज़ैनुल अबिदीन कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी दिनों रात हुजरा नशीन हो कर इबादतों रियाज़त में मशगूल रहते थे कभी कभार बा ज़रूरते ख़ास सेहन या बाहर तशरीफ़ लाते, एक बार अचानक आप निस्फ़ शब के करीब हुजरे से बाहर तशरीफ़ लाए और निगाह आसमान की तरफ उठा कर फ़रमाया के आज सितारा टूट गया, और साथ में आप की करहाने की आवाज़ आ रही थी जैसे के सख्त तकलीफ हो रही हो जब हम लोगों ने पूछा क्या हुआ बड़े अब्बू! तो यही फरमाते रहे के आज सितारा टूट गया, और निगाह आसमान की जानिब उठाते रहे और मुसलसल यही फरमाते रहे हम लोगों ने समझा के शायद कोई आसमानी सितारा टूट गया होगा, फिर हज़रत ने दूसरे दिन फ़रमाया के कुरआन ख्वानी का इंतिज़ाम करो दरगाह शरीफ में कुरआन ख्वानी का एहतिमाम हुआ, हज़रत भी मजलिस में शरीक हुए और इसाले सवाब किया फिर फ़रमाया आज शहज़ादाए आला हज़रत, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह का इन्तिकाल हो गया ।

फकीहे इस्लाम ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान अज़हरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बरिली शरीफ

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह! अल्लाह के “वली” थे, वलीये बरहक़, मुफ्तिए आज़म के मुत्तक़ी होने में किसे शक है, वो मुत्तक़ी ही नहीं मुत्तकिए आज़म थे, मुफ्तिए आज़म इल्म के दरियाए ज़ख़्ख़ार थे, जुज़ियात हाफिज़े से से बतता देते थे, फतवा! कलम बरदाश्ता लिख दिया करते थे, उनका अमल उनके अमल का आईना दार था जिन इल्मी इश्काल में लोग उलझ कर रह जाते थे, वो हज़रत चुटकियों में हल फरमा दिया करते थे।

सय्यद आले रसूल हसनैन मियां बरकाती नज़्मी मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी मारहरा शरीफ

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की सब से बड़ी करामत थी उनकी इस्तिक़ामत, नूरी मियां साहब रहमतुल्लाह अलैह से इक्तिसाबे फैज़ कर के मुफ्तिए आज़म! अपने पीर का अक्स बन गए, पहले फना फिल्लाह हुए, फिर फना फिर रसूल, फिर फना फ़िल ग़ौस और आखिर में फना फिश शैख़ हो गए।

डॉक्टर सय्यद अमीन मियां बरकाती दामा ज़िल्लाहुल आली मारहरा शरीफ

खुदा गवाह है के ऐसा शैख़े तरीकत में ने नहीं देखा, कादरी सर के ताज, बरकतियों के बरात के दूलाह, मेरे आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की आंख के तारे, मेरे मुर्शिदे तरीकत हम सब को बज़ाहिर तन्हा छोड़ कर चले गए, रूए ज़मीन पर उनके दौर में इतने कसीर मुरीद किसी शख्स को नसीब नहीं हुए सौ करामतों की एक करामत इस्तिक़ामत दीनी है और इस लिहाज़ से हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह “वलिये कामिल” थे।

हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद काइम क़तील दानापुर पटना बिहार कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह मेरे हम उमर थे मुमकिन है के पैदा में ही पहले हुआ हूँ मगर बड़े वही थे, वो सिर्फ मौलवी व मुफ़्ती ही ना थे बल्के एक खिदमत और भी आप के सुपुर्द थी यानि दिलों को धोकर पाको साफ़ करना जिस का ज़हूर हज़रत की आखरी उमर में कसरत से हुआ आप को अल्लाह पाक ने शरीअत के साथ तरीकत में भी बड़ा हिस्सा दिया था और इसी का गलबा रहा बल्के आप इसी के लिए तख़लीक़ हुए थे।

हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद मुख़्तार अशरफ अशरफी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी किछोछा मुक़द्दसा

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह बिला शुबाह उन्ही अकाबीरीन ही में से थे जो दीनो सुन्नियत को फरोग देने के लिए पैदा होते हैं, हज़रत की पूरी ज़िन्दगी पर एक ताईराना निगाह डालो तो ये हकीकत निखार कर सामने आ जाती है, के खुलूसो लिल्लाहियत उन की शख्सीयत का ट्रेड मार्क था, (अलामती निशान) उन का कोई कौल या अमल मेरी निगाह में ऐसा नहीं है जो खुलूसो लिल्लाहियत से आरी हो, वो एक तरफ मुताबहहिर, आलिम मुस्तनद, और मोतबर फकीह, मुख्तलिफ उलुमु फुनुन के माहिर और शेरो अदब के मिज़ाज आशना थे, तो दूसरी जानिब रिज़तो इबादत, मुकाशिफ़ा मुजाहिदा, और असरारे बातनि के भी महरम थे।

मुफ़्ती अब्दुर रशीद फतेहपुरी नागपुर कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

हज़रत मुफ़्ती गुलाम मुहम्मद खान साहब रहमतुल्लाह अलैह ने मुरीद होने के लिए मुफ़्ती अब्दुर रशीद फतेहपुरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से किसी पीर की निशान दही चाहि तो आप ने फ़रमाया: मौलाना अब कहाँ ऐसे लोग रह गए हैं जो शरीअतो तरीकत में कामिल हों सिवाए हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के।

मुहद्दिसे अमरोहा मुफ़्ती मुहम्मद मुबीनुद्दीन कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अमरोहा

आह सब से पहले हम अपने उस शहर को समझें जिस शहर में हमारा महबूब “(मुफ्तिए आज़म हिन्द) हमारे दिलों की धड़कन हमारी आँखों का नूर, हमारी तमन्नाओ का मरकज़, हमारी जानों का चैन, हमारी आरज़ूओं का क़िबला, अरमानो का काबा जलवा फ़रमा है वो कोनसा शहर है? हाँ हाँ! वो शहर बरैली शरीफ है।

अल्लामा अब्दुल मुस्तफा आज़मी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बराऊँ शरीफ

इस में ज़रा भी शक नहीं के हज़रते क़िबला मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह! आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के उलूमे नाफिआ व आमाले सालिहा के और अख़लाके हसना के वारिस व अमीन खल्फ़ुस सिद्क़ व जानशीन थे, आप की वफ़ात से बिला शुबा मसनदे इफ्ता खली व सनादे इफ्ता मफ्कूद (खोया हुआ, गैर मौजूद बेनिशान) एक फकीहे आज़म! व दानिश्वर मुअज़्ज़म दुनिया से रुख्सत हो गया, एक माहिरे मसाइल और जुज़ियात व, कुल्लियात, फ़िक़्ह का हाफ़िज़ हम से जुदा हो गया।

हज़रत गुलाम आसी पीया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बलिया

आप ने एक मोके पर इरशाद फ़रमाया, इस वक़्त तीन अकाबिर हैं, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह! हाफिज़े मिल्लत अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे मुरादाबादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, रईसे आज़म उड़ीसा हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, इन के दम से तक्वा का भरम बाकि है, खुदा इन का साया दराज़ करे, इन के बाद फिर कोई ऐसा नज़र नहीं आता।

हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद मदनी मियां दामा ज़िल्लाहुल आली किछोछा मुक़द्दसा

बुखारी व मुस्लिम का सुनने वाला जिस यकीन व इज़आन के साथ कह सकता है के हमने रसूले करीम के अक़वाल सुने, इसी यकीन व इज़आन के साथ हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह को देखने वाले को ये हक है के कहे हमने रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चलती फिरती सच्ची तस्वीर देखि, इल्मो दानिश की वो कोनसी महफ़िल है जिस का वो ताजदार नहीं था, तकवाओ तहारत, ज़ुहदो कनाअत, शराफतो करामत, मुजाहिदाओ रियाज़त, इसबातो इस्तेक़ामत, ज़कावतो फरासत, की वो कौन सी शाहरह है जहां उस के नुकुशे कदम नहीं मिलते हमारा ममदूह खुलकन खलकन, मंतीकन, अपने बाप की सच्ची तस्वीर था, वो इस्लाम का बतले जलील और इस्तिाकमत का ऐसा जबले अज़ीम था, के नाज़ुक से नाज़ुक वक़्त में भी उस के पैरों में लग़्ज़िश नहीं आई।

मौलाना सय्यद मुहम्मद इज़हार अशरफ अशरफी दामा ज़िल्लाहुल आली किछोछा मुक़द्दसा

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह खुलकन खलकन, मंति कन, यानि शक्लो सूरत किरदारो सीरत, और तरज़े गुफ्तुगू में बिलकुल अपने वालिद माजिद की तस्वीर थे, जिसने मुफ्तिए आज़म हिन्द! को देख लिया उसने गोया चश्म से मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! की तस्वीर देख ली, इल्मो फ़ज़्ल का ये आलम के अपने अहिद में बिल इत्तिफाक अलल इतलाक़ मुफ्तिए आज़म! कहलाए, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के फियूज़ो बरकात को हिंदुस्तान व पाकिस्तान और बेरूने हिन्द में फैलाने के लिए अल्लाह पाक ने हज़रत मुफ्तिए आज़म! की ज़ात का इंतिख्वाब फ़रमाया इत्तिबाए रसूल और खिदमते ख़ल्क़ के अनवारो बरकात का ज़हूर रुजहान खलक की सूरत में हुआ वो ऐसी ज़ात थी जिसकी मजलिस में बैठो तो उठाने का जी नहीं चाहता था।

“शारेह बुखारी शरीफ” हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शरीफुल हक अमजदी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

में शहादत देता हूँ के हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह भी जुमला माकूल व मन्क़ूल के इमाम थे, तमाम ख्वास हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह के मुक्तदा होने के दिल से मोअतरिफ थे, खवास का एक एक फर्द हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह को वक़्त का सब से बड़ा आलिम, सब से बड़ा मुफ़्ती, सब से बड़ा फकीह, सब से बड़ा वारिसे नबी, सब से बड़ा आरिफ, सब से बड़ा हक आगाह और सब से बड़ा वली! मानता था, मुफ्तिए आज़म! एक शमआ हैं जिस पर निसार होने के लिए पूरी दुनियाए सुन्नियत परवाना वार टूट पड़ती है जिस का नज़ारा पूरी दुनिया ने बार हा किया है।

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान रहमानी मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

जब आप के इल्मो फन की सलाहीयत और फ़िक़्ही महारत उजागर होती चली गई तो आप हज़रत मुफ्तिए आज़म! कहलाए और ऐसे कहलाए के ये लक़ब ही गोया आप का इस्म! हो गया, आप की फ़िक़्ही अज़मत सिर्फ हिंदुस्तान तक ही महदूद ना रही बल्कि वो वक़्त भी आया जब आप मुफ्तिए आज़म आलम बनकर जलवा फ़िगन हुए, उल्माए हिजाज़ व मिस्रो शाम, इराक, व तुर्की वगेरा के उल्माए आलम ने आप से मसाइल दरयाफ्त किए और बैअत से मुशर्रफ हुए।

रईसुत तहरीर अल्लामा अर्शदुल कादरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

इस दरियाए ना पैदा किनार के तलातुम का तो ये हाल है के बहस के जिस नुक्ते पर कलम उठता है मुख्तलिफ सिम्तों में इतनी दूर तक फ़ैल जाता है के उसका समेटना मुश्किल है, इब्ने इसहाक की हदीस! पर हुज़ूर मुफ्तिए आज़म! ने फन्ने हदीस के ऐसे ऐसे इल्मी ज़ख़ायर व नवादिर का अम्बार लगा दिया है के अक्ल हैरान है, के हम किस किस रुख से इस जलवे का तमाशा देखें और इस चमकते निगार खाने में किस किस गोहर ताब दार की निशान दही करें, हुज़ूर मुफ्तिए आज़म! को अब तक अपने वक़त के एक फकीहे आज़म! और मुज्तहदाना बसीरत रखने वाले एक फाकीदुल मिसाल और वहीदुल अस्र अमीरे किश्वर इफ्ता की हैसियत से जानते थे, और वो फन्ने हदीस में तो अपने दौर में “इमामे आज़म” थे।

फकीहे मिल्लत मुफ़्ती शाह जलालुद्दीन अहमद अमजदी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ओझा गंज ज़िला बस्ती यूपी

नाइबे सय्यदुल मुर्सलीन, सनादुल मुहक़्क़िक़ीन, ताजदारे अहले सुन्नत, आफ़ताबे रुश्दो हिदायत, वाक़िफ़े असरारे शरीअत, दानाए रुमूज़े हकीकत, इमामुल फुकहा, मख़्दूमुल उलमा, क़ुत्बे आलम, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी कादरी बरकाती रहमतुल्लाह अलैह दुनियाए इस्लाम में अगरचे मुफ़्ती आज़म! के नाम से मशहूर हैं लेकिन वो सिर्फ मुफ़्ती आज़म! नहीं थे बल्के अपने ज़माने के मुफ्तिए आज़मे इस्लाम थे, इस लिए के आप के इफ्ता और तफ़क्कुह फिद्दीन की अज़मत सिर्फ हिंदुस्तान तक महदूद ना थी बल्के अरब, अफ्रीका, और इंग्लैंड, व अमरीका वगेरा मुल्कों मे तस्लीम की जाती हैं, तरह तरह की मसरूफियत के बावजूद मौज़ूआत पर तस्नीफ़ात व तालिफ़ात का एक बे बहा खज़ाना छोड़ गए हैं जो आप के बे पनाह इल्मो फ़ज़्ल, ज़हानत और इल्मी अबकरीयत पर शाहिदे अद्ल है।

बहरुल उलूम मुफ्ती अब्दुल मन्नान आज़मी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

खुद मेरी वारफतगि और गरवीदगी का सबब हज़रत का कोई गैर मामूली इल्मी कार नामा या उन की अज़ीम बुज़ुर्गी और खुदा रसीदगी नहीं है ये उनकी शख्सीयत की दिल कशी ही थी के जिसने मुझे अपनी तरफ खींच लिया, ज़िन्दगी मे उन्हें सैंकड़ों बार देखा और मुख्तलिफ हालातों मे देखा मगर जब देखा जमालो वकार, हुस्ने दिल कशी का मुरक्का देखा और जिस हाल मे देखा उनकी हर अदा दिल को भाति रही, वो एक बहुत बड़े आलिम थे, सवादे आज़म अहले सुन्नत व जमाअत के सब से बड़े फकीह थे, मुतअद्दिद दीनी किताबों के बालिग़ नज़र मुसन्निफ़ थे, अहले दिल सूफी और बा कमाल बुज़रुग थे।

अल्लामा मुश्ताक अहमद निज़ामी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी इलाहबाद

मुफ्तिए आज़म! का तफ़क्कुह फिद्दीन सिर्फ हासिल करदह नहीं है बल्के उनका वो खमीर, उनका ज़मीर सुरिश्त व फितरत इसी साँचें मे ढली ढलाई है, वो इसी फितरत पर पैदा किए गए, उल्माए मुआसिर किसी मसले के सुबूत मे दलाइल के अम्बार लगा देते मगर हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह का एक इंकार उनके सैंकड़ों दलाइल पर भरी भरकम होता।

मुहद्दिसे बरेलवी सदरुल उलमा मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

ताजदारे अहले सुन्नत हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की ज़ाते गिरामी मुहताजे तआरुफ़ नहीं, शरीअतो, तरीकत, इल्मो अमल, ज़ुहदो वरा, तक्वा तक़द्दुस, तफ़क्कुह, और इस तरह के सैंकड़ों कमालात उस दौर में जिस एक ज़ात अक़दस में मजमूई तौर पर पाए जाते थे वो आकाए नेमत हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की मुकद्द्स शख्सीयत थी।

हज़रत मौलाना मुहम्मद हसन अली रज़वी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी मेलसी पाकिस्तान

हुज़ूर इमामुल उलमा हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह इल्मो फ़ज़्ल, ज़ुहदो वरा, तक्वा इत्तिबाए शरीअत और जूदो सखावत में अपने ज़माने के फर्दे यगाना थे और अहले सुन्नत के सभी उल्माए किराम व रूहानी खानकाही हलकों में आप की शख्सीयत की अज़मत मुसल्लम थी और आप को अपने मुआसिरिन में बिला शुबा अफ्ज़लीयत फौकियत व बरतरी हासिल थी।

हज़रत अल्लामा शाह अहमद नूरानी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी पाकिस्तान

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह इल्मो फ़ज़्ल और फ़िक़्ही बसीरत के ऐतिबार से ला सानी, इस्लाम और आलमे इस्लाम के लिए आप की अज़ीम खिदमात ना काबिले फरामोश हैं।

मुबल्लिगे सुन्नियत मौलाना मुहम्मद इब्राहीम खुश्तर सिद्दीकी कादरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी मॉरीशस

सूरतो सीरत, शरीअतो तरीकत के महासिन को अगर मुजस्सम कर दिया जाए तो वो मुफ्तिए आज़म आलमे इस्लाम मौलाना शाह मुहम्मद मुस्तफा रज़ा खान कादरी रज़वी नूरी बरेलवी का सरापा करार पाएगा, आप की विलादत व रेहलत, कमलातो फ़ज़ाइल का उन्वान इतना हमागीर है के लिखने वाले मुसलसल लिख रहे हैं मगर क़िस्साए ना तमाम अभी ना तमाम है ।

माहिरे रज़वियात डॉक्टर मुहम्मद मसऊद अहमद मुजद्दिदी नक्शबंदी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी पाकिस्तान

सलाम उस पर जिस ने इश्के मुस्तफा के चिराग रोशन किए, सलाम उस पर जो गुफ़्तारो किरदार में अल्लाह की बुरहान! था, सलाम उस पर जिस को देख कर खुदा याद आता था, सलाम उस पर जो कदम कदम पर खुदा को याद रखता था, सलाम उस पर जो वासिल बिल्लाह था, सलाम उस पर जो बाकी बिल्लाह था, देखने वाले कहते हैं के शहज़ादाए आली जाह! अपने वालिद माजिद का अक्से जमाल था।

आप की औलाद

हज़रत को छह 6, साहबज़ादियाँ और एक साहबज़ादे थे, साहबज़ादे मुहम्मद अनवर रज़ा! का विसाल नो उमरी में हो गया, हज़रत का सिलसिलए नसब आप के नवासे व नवासियां से चला जिन में पांच नवासे और तीन नवासियां हैं साहबज़ादियों के नाम ये हैं: (1) निगार फातिमा, (2) अनवार फातिमा, (3) बरकाती बेगम, (4) राबिया बेगम, (5) हाजिरा बेगम, (6) शाकिरा बेगम|

सरकार मुफ़्ती आज़म हिन्द के विसाल के हैरत अंगेज़ वाक़िआत

हज़रत को इस बात का इल्म था के उन का विसाल किस दिन होगा चुनाचे 6 मुहर्रमुल हराम 1406 हिजरी फरमाते हैं के जो लोग भी मुझ से मुरीद होने की चाहत रखते थे और किसी मजबूरी की वजह से मेरे पास बैअत होने के लिए न आ सके मेने उन सभी लोगों को बैयत किया और इन का हाथ सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते पाक में दिया|

इस के अलावा 12 मुहर्रमुल हराम को फ़रमाया के जिसे ने मुझ से दुआ करने के लिए कहा था मेने उन सब के जाइज़ मक़ासिद के पूरे होने के लिए दुआ करता हूँ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़बूल फरमाए इसी रोज़ हाज़रीन से पूछा के आज कौनसा दिन है? हाज़रीन ने अर्ज़ की हुज़ूर आज मंगल है और मुहर्रम की बारह 12 तारीख हज़रत जवाब सुनकर खामोश हो गए फिर 13 मुहर्रमुल हराम को कुछ मुरीदीन व मोतक़िदीन हाज़िरे खिदमत हैं सुबह के दस बजे का वक़्त है हज़रत पूछते हैं आज कौन सा दिन है? गुलाम अर्ज़ करते हैं हुज़ूर आज चार शंबा यानि बुध का दिन है और मुहर्रमुल हराम की 13 तारीख है हज़रत फरमाते हैं नमाज़ नो मोहल्ला मस्जिद में होगी|

हाज़रीन इस का मतलब समझ नहीं पाए मगर अदबन कोई सवाल नहीं करते और खामोश रहे कुछ देर के बाद फरमाते हैं क्या किसी ने नमाज़ के लिए कह दिया है जुमा की नमाज़ नो मोहल्ला मस्जिद में पढूंगा कुछ देर के बाद फरमाते हैं क्या किसी ने फातिहा के लिए कहा हाज़रीन एक दुसरे का मुँह तकते हैं और खामोश रहते हैं|

मज़कूरा वाक़िआत की रौशनी में हुज़ूर मुफ़्ती आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह अपने तर्ज़े अमल से बेक़रारों को हौसला दिए रखा और अपने सफर आख़िरत की इत्तिला भी दी तो इस तरह के इज़्तिराबे ख़ल्क़ एतिदाल की हदें न फलांग सकें |
आप हमेशा मस्जिद में नमाज़ अदा करते थे मगर बुध के दिन ज़ुहर और असर के लिए जब आप मस्जिद में न पहुंचे तो लोगों के दिल इस एहसास से धड़कने लगे के आप की तबियत ज़्यादा नासाज़ हो गई है ख़िलाफ़े मामूल नमाज़ें घर पर ही अदा फ़रमाई मगरिब की अज़ान हुई तो आपने तीमारदारों से कहा आप सब मस्जिद में जाकर मगरिब अदा करें लोग चले गए तो आप ने फ़रमाया मुझे उठाओ ताज़ा वुज़ू करूंगा आप की हालत देखकर लोग आबदीदा हो गए|

मगर तीन अफ़राद ने सहारा देकर उठाया और वुज़ू गाह तक ले गए हाथ पैरों पर लरज़ा तारी था बैठा भी नहीं जा रहा था एक साहब ने वुज़ू करने के लिए लोटा उठाया तो उन से कहा लोटा रख दो वुज़ू में खुद करूंगा और फिर बदिक़्क़त तमाम वुज़ू किया और मुसल्ले पर खड़े होकर नमाज़ अदा की खादिम पास ही खड़े रहे के सहारा की ज़रुरत पड़े तो सभाल सकें|

मगर नमाज़ आप के लिए सर चश्मए तवानाई थी इस तरह अदा की जैसे आप बीमार ही न हों मगर जब दुआ से फारिग हो गए तो लोगों को सहारा देकर उठाना पड़ा आप को बिस्तर पर लिटा दिया गया अभी कुछ देर ही गुज़री थी के आपने बिस्तर से उठने की कोशिश की मगर जिस्म ने इरादे से ताव्वुन न किया तो लेट गए और फिर आपने रिजालुल ग़ैब और उन जिन्नो को बैअत किया जो दुनिया के दूर दराज़ इलाक़े से आये थे | हाज़रीन बैअत होने वालों को तो न देख सके मगर आप को देख रहे थे|
आप का हाथ उठा हुआ था बिलकुल इसी अंदाज़ से जिस अंदाज़ से आप किसी को बैअत किया करते थे मेने तुम्हारा हाथ गौसे आज़म के हाथ में दिया तुम भी कहो मेने अपना हाथ गौसे आज़म के हाथ में दिया बैअत होने वालों को जेब से तावीज़ निकाल कर देते थे जेब से जब हाथ निकलता था उस में तावीज़ मौजूद होता मगर जब हाथ गैर मुरीद को तावीज़ देकर उठाते तो हाथ खली हो जाता था ईशा की नमाज़ बिस्तर पर ही अदा फ़रमाई इस के बाद सब पर दम किया और ख़ामोशी से ऑंखें बंद करके लेट गए ताके मामूलात मुकम्मल करलें अब जुमेरात की शब् अपना निस्फ़ सफर तय कर चुकी थी|

आप की आखरी वसीयत

आधी रात गुज़र गई तो आखें खोल कर बड़े ज़ब्त से मगमूम चेहरों पर नज़ए डाली और फिर बतौरे वसीयत फ़रया “सुन्नते मुस्तफा पर हर हाल में अमल पैरा रहना के यही राहे निजात व कामरानी है”

फिर कुछ देर के बाद फ़रमाया “हस्बू नल्लाहो व नेमल वकील” पढ़ते रहना इन दो अहम वसीयतों के बाद पहले सूरह मुल्क की तिलावत फ़रमाई इस के बाद आयतुल कुर्सी कलमा तय्यबा का विरद पढ़ते पढ़ते विसाल फ़रमा गए | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो|

आप का मज़ारे मुबारक

मज़ार मुक़द्दस खानकाहे रज़विया बरैली शरीफ उत्तर प्रदेश में है इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के बाएं पहलू में ज़्यारत गाह खासो आम हैं हर साल लाखों अक़ीदत मंद मशाइख व उलमा दानिश्वरान शरीक होते हैं और फुयूज़ व बरकात से मुस्तफ़ीज़ होते हैं|

आप का ग़ुस्ल व जनाज़ा शरीफ

बरोज़ जुमा 15 मुहर्रमुल हराम 1402 हिजरी 13 नवम्बर 1981 सुबह आठ बजे हज़रत के जनाज़े को ग़ुस्ल दिया गया हज़रत के नवासे मौलाना मन्नान रज़ा खान साहब ने वुज़ू कराया और ग़ुस्ल हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने कराया सुल्तान अशरफ साहब लोटे से पानी डालते थे ग़ुस्ल के वक़्त हज़रत अल्लामा रिहान रज़ा खान साहब, सय्यद मुश्ताक़ अली साहब, सय्यद मुहम्मद हुसैन साहब, सय्यद चीफ साहब कानपुरी मौलाना नईमुल्लाह साहब, मौलाना अब्दुल हमीद साहब अफ्रीकी, मुहम्मद ईसा साहब मोरिशस, अली हुसैन साहब, अब्दुल गफ्फार साहब, कारी अमानत रसूल साहब, हाजी मुहम्मद फ़ारूक़ साहब बनारस, और दुसरे मुरीदीन और खानदान के लोग भी मौजूद थे सब ने ग़ुस्ल में हिस्सा लिया|

आप के ग़ुस्ल के वक़्त अज़ीम करामत

हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह व हज़रत अल्लामा रिहान रज़ा खान साहब व हज़रत कारी अमानत रसूल व जनाब हाजी मुहम्मद फ़ारूक़ साहब बनारस व जनाब मास्टर शमीम अहमद रज़वी बनारस और दुसरे उल्माए अहले सुन्नत का बयान है के जब हज़रत के जनाज़े को ग़ुस्ल दिया जा रहा था तो सहोवन रान के ऊपर से चादर ज़रा सी हैट गई यका यक हज़रात के दस्ते मुबारक ने दो उँगलियों ने चादर को पकड़ कर रान को छुपा लिया लोगों ने समझा शायद यूँही उँगलियाँ फैन गयीं होंगीं ज़ोर लगा कर छोड़ाना चाहा लेकिन उँगलियाँ चादर से नहीं हटी इस तरफ सब से पहले हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह की तवज्जु गई फिर उन्होंने सब को दिखाया उँगलियाँ उस वक़्त तक नहीं हटी जब तक उन लोगों ने रान का वो हिस्सा ठीक से छुपा नहीं दिया|

आप की नमाज़े जनाज़ा

वारिसे उलूमे आला हज़रत सरकार ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान साहब रहमतुल्लाह अलैह ने पढ़ाई|

जुलूसे जनाज़ा

आप का जनाज़ा सुबह 10 बज कर 35 मिनट पर आप के दौलत कदे से उठा खानदान के अफ़राद और दुसरे मुरीदीन व मोतक़िदीन ने कांधा दिया जुलूसे जनाज़ा के साथ सोगवारों का एक अज़ीमुश्शान बेहरे बेकरां रवा दवां था एक मुहतात अंदाज़े के मुताबिक़ 250000 पच्चीस लाख अफ़राद ने आप की नमाज़े जनाज़ा व जुलूस में शिरकत की इमामे अहले सुन्नत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के बाद चश्मे फलक ने ऐसा मजमा न देखा था के तमाम गवरमेंट दफ्तर ट्रैफिक यहाँ तक के चाय व पान की दोकाने भी बंद थीं और पूरे शहर में एक सोगवार मंज़र तारी था|

यहाँ तक के मुख्तलिफ शाहराहों से गुज़रता हुआ जनाज़ा शरीफ ख़ानक़ाह रज़विया शरीफ में शाम को पंहुचा|
जनाब हाजी मुहम्मद फ़ारूक़ साहब बनारसी और हज़रत के भतीजे नबीरए उस्ताज़े ज़मान मौलाना सिब्तैन रज़ा खान साहब क़ब्र शरीफ में उतरे खानदान के अफ़राद व हाज़िरीन का आखरी दीदार किया और फिर जनाज़ा क़ब्र शरीफ में उतार दिया गया क़ब्र में उतारते ही हज़रत का चेहरा खुद बखुद क़िब्ले को हो गया और “बिस्मिल्लाह ही अला मिलते रसूलिल्लाह” की गूँज में आफताब इल्मों हिकमत माहताब विलायत व करामत क़यामत तक के लिए अपने वालिदे माजिद सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह के पहलू में इकसठ 61 साल की जुदाई के बाद जलवागर हो गया|

तारीखे विसाल

आप 13 मुहर्रमुल हराम 1402 हिजरी मुताबिक़ 11 नवम्बर 92 साल बरोज़ बुध बा वक़्ते एक बज कर चालीस मिनट रात में दाई अजल को लब्बैक कहा|

आप का मज़ारे मुबारक

आप का मज़ारे मुबारक मुक़द्दस खानकाहे रज़विया बरैली शरीफ उत्तर प्रदेश में है इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के बाएं पहलू में ज़्यारत गाह खासो आम हैं हर साल लाखों अक़ीदत मंद मशाइख व उलमा दानिश्वरान शरीक होते हैं और फुयूज़ व बरकात से मुस्तफ़ीज़ होते हैं|

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो “

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • मुफ्तिए आज़म हिन्द और उनके खुलफ़ा
  • तज़किराए उल्माए अहले सुन्नत
  • मुफ्तिए आज़म हिन्द

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