हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

बहरे इब्राहीम हमपे नारे गम गुलज़ार कर
भीक दे दाता भिकारी बादशाह के वास्ते

पैदाइश मुबारक

आप की विलादत शरीफ कस्बा काकोरी ज़िला लखनऊ उत्तर परदेश 890, हिजरी मुताबिक 1485, ईसवी में हुई ।

आप का नाम मुबारक

आप का इस्म मुबारक “मुहम्मद निज़ामुद्दीन” है और मुरीदीन व खुलफ़ा में आप “भिकारी” के नाम से मशहूर हैं, नीज़ मसनवी शजरा वगेरा में भी आप इसी नाम से मशूरो मारूफ हैं, और शजराए आलिया क़ादिरिया रज़विया में भी आप इसी लफ्ज़ “भिकारी” से याद किए जाते हैं ।

आप का लक़ब

आप का लक़ब “शरीफ दानिशमंद” है चुनांचे एक शाही फरमान जो दरबारे अकबरी से 982, हिजरी मुताबिक 1547, ईसवी में जारी हुआ था, आप को “कारी आबाई निज़ामुद्दीन शैख़ भीका दानिशमंद” के लक़ब से याद किया जाता है ।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम “सैफुद्दीन” है आप अपने वक़्त के बड़े ही मायाए नाज़ आलिम व फ़ाज़िल, और किराते सबा के इमामे मुस्लिम थे, तमाम उलूम व फुनून को अपने वालिद माजिद से हासिल फ़रमाया और दर्स व तदरीस के ज़रिए अज़ीम दीनी व इस्लामी खिदमात को अंजाम दिया ।

आप का नसब नामा शरीफ

आप “अल्वी सय्यद” हैं और मुहम्मद बिन हनफ़िया आप के जद्दे अमजद हैं इक्कीस वास्तों से आप का सिलसिलए निस्बत वहां तक पहुँचता है जो इस तरह है: “हज़रत मौलाना निज़ामुद्दीन भीका अल मारूफ शाह भिकारी, बिन कारी अमीर सैफुद्दीन, कारी हबीबुल्लाह निज़ामुद्दीन अल्मारूफ़ बा अमीर कलां, बिन कारी अमीर नसीरुद्दीन दलीलुल्लाह, बिन कारी मुहम्मद सिद्दीक अल्मारूफ़ बाबू मुहम्मद खाफी, बिन कारी उबैदुल्लाह, बिन कारी अब्दुस समद, बिन कारी अमीर शमशुद्दीन खुर्द अल्मारूफ़ कारी (मुहक्किके जामे जामिउल जवामे कबीर लुगत अहादीस व तफ़ासीर) बिन अब्दुल मजीद दरबाने आस्तानए रसूले मकबूल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, बिन हाजी हरमैन सुल्तान हुसैन बिन कारी अमीर इब्राहीम नबीराए व खलीफा सय्यद अब्दुर रज़्ज़ाक़, बिन कारी सुल्तान अब्दुल लतीफ़, बिन कारी अब्दुल्लाह खाफी, बिन शमशुद्दीन साबरी बिन कारी मजीदुद्दीन खाफी, बिन कारी अमीर सुलेमान, बिन मौलाना वजीहुद्दीन अहमद, बिन कारी मुहम्मद, बिन कारी अहमद, बिन अली, बिन मुहम्मद, बिन हनफ़िया, बिन अमीरुल मोमिनीन हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम व रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।

आप का वतने असली

आप के खानदाने ज़ी वाकार का असली वतन “सहराम” है जो बग़दाद के मुज़ाफ़ात गाऊं या कसबे में मौजूद है मगर जब कारी मुहम्मद सिद्दीक साहब का ज़माना आया तो उस वक़्त के बादशाह इन से बेज़ार हो गए और इसी बेज़ारी की वजह से आप का दिल क़स्बाए सहराम से उखड़ गया और मशरिक की जानिब रखते सफर बांधा, जब कारी मुहम्मद सिद्दीक साहब रहमतुल्लाह अलैह का ज़माना आया तो मज़हबे सलातीन ईरान व ईरानियों की मुखालिफत की बिना पर नीज़ ना इंसाफी व अहले ज़माना की कैदो बंद और उन लोगों की एहसान फरामोशी पर बे इंतहा सब्रो तहम्मुल किया मगर इन संग दिलों पर कुछ असर न हुआ, जब देखा के इज़्ज़तो नामूस की हिफाज़त दुश्वार हो जाएगी तो बा दिले न ख्वास्ता अपने अहलो अयाल के साथ क़स्बा सहराम से कूच किया मशरिक़ी ज़िलों की राह ली,

आप के आबाओ अजदाद मुल्के हिंदुस्तान ऊध उत्तर प्रदेश तशरीफ़ ले आए, अव्वल तो मुख्तलिफ जगह क़याम फ़रमाया फिर मुस्तकिल तौर पर क़स्बा काकोरी में सुकूनत पज़ीर हो गए, और उलूमे शरीअत व तरीकत से अहले ज़मान को रोशनास कराया नीज़ अपने खानदानी फैज़े रहमानिया व फैज़े गौसिया से तरीक दिलों को मुनव्वर किया और देखते ही देखते ये घराना इल्मो इकान का गहवारा बन गया, दूर दूर से लोग इल्मे कुरआन, इल्मे हदीस को सीखने आप की खिदमत में आते और आप अपने दामन को गोहरे मुराद से भर कर वतन को लोट जाते थे और आप के आबाओ अजदाद से सिर्फ फिरंगी महिल ही उलूमो मआरिफ़ का खज़ाना न बना बल्कि मुल्के हिंदुस्तान का गोशा गोशा रोशन व ताबनाक हो गया ।

आप की तालीमों तरबियत

आप की तालीम व तरबियत वालिद माजिद की आगोश में हुई और इन्हीं की ज़ेरे निगरानी में आप ने उलूमे अकलिया व तफ़ासीर व तजवीद नीज़ आमाल व अज़कार हासिल किए इस लिए आप के उस्तादे अव्वल के वालिद माजिद ही हैं ।

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

उम्दतुल असफिया, सरताजे ज़ुमरतुल असफिया, रहबरे दीने आज़म, सानिए इमामे आज़म, हज़रत “सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु” आप सिलसिलए आलिया क़ादिरिया रज़विया के सत्ताईसवें 27, वे इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप मशाहीर व अकाबीरीन उल्माए हिन्द से हैं, आप कादरी मशरब, हनफ़ी मज़हब, हाफिज़े कलामुल्लाह, सात किरातों के कारी, आलिमे बे नज़ीर और फ़ाज़िले बे दलील थे, आप ने मुतअद्दिद बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की है और बारगाहे रिसालत से अज़ीम बशरतों से फ़ैज़याब हुए हैं, अक्सर मर्तबा हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्ह की भी ज़ियारत फ़रमाई है, चुनांचे आप खुद ही इरशाद फरमाते हैं के अक्सर ज़ियारत हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्ह से मुशर्रफ हुआ हूँ, मगर हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्ह को कभी भी तनहा नहीं देखा बल्कि आप के साथ हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहर वरदी रदियल्लाहु अन्ह भी होते थे और बा वक़्ते कलाम भी हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहर वरदी रदियल्लाहु अन्ह (मुतवफ़्फ़ा 622, हिजरी) को हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्ह की पैरवी करते देखा और हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहर वरदी रदियल्लाहु अन्ह ने खुद कभी गुफ्तुगू नहीं फ़रमाई जिस की वजह से मुझे एक किस्म का तरद्दुद रहता है,

लिहाज़ा में ने अपने वालिद माजिद से अर्ज़ किया तो आप ने इरशाद फ़रमाया: परेशानी की कौन सी बात है हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु को अहले कश्फ़ “ज़ुल जनाहीन” यानि दो बाज़ुओं वाले कहते हैं, जनाह अव्वल हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहर वरदी रदियल्लाहु अन्हु और जिनाह दोम हज़रत शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी रदियल्लाहु अन्ह (मुतवफ़्फ़ा 638, हिजरी) हैं, चूंके इस ज़माने में तुम्हारी हिम्मत शराए और इत्तिबाए सुन्नत की तरफ मुतवज्जेह है इस लिए हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहर वरदी रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्ह के साथ नज़र आते हैं, हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्ह इरशाद फरमाते हैं के में ने इल्मे मुआरिफ़ हज़रत शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी रदियल्लाहु अन्ह को दिया,

हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु की ख़्वाब में ज़ियारत

हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु मुतअद्दिद बार इन हज़रात की ज़ियारत से मुशर्रफ हो चुके हैं, फरमाते हैं के एक मर्तबा माहे रमज़ानुल मुबारक में मुझे ये ख़याल आया के बहुत दिनों से हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत नहीं हुईं? तरावीह पढ़ कर सो गया तो देखा के हज़रत तशरीफ़ लाए हैं और दो साहिबान और भी साथ में हैं जिन में एक हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहर वरदी रदियल्लाहु अन्हु हैं और दुसरे साहब जिन पर मस्ती व ज़ोको शोक का गलबा था उनको में ने नहीं पहचाना तो हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से इस्तिफ़सार किया, तो हज़रत ने इन बुज़रुग से मेरी तरफ इशारा कर के इरशाद फ़रमाया: इन से मुसाफा करो के यही निज़ामुद्दीन हैं जिन के तुम मुश्ताक थे और यही तुम्हारे कलाम की तरफदारी करते हैं? इन बुज़रुग ने मस्ती व सुक्र से होशियार हो कर बड़े तपाक व गर्म जोशी से मुझ से मुसाफा व मुआनका किया और कहा के अगर ये लोग मेरे कलाम की हिमायत न करेंगें तो कौन करेगा? लोग इस की क़द्र क्या जाने ये कारी इब्राहीम बगदादी रदियल्लाहु अन्ह के पोते हैं,

इस के बाद मुझ से हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: यही शैख़ मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी हैं, इस के बाद हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु बैठ गए और दाहिनी तरफ हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहर वरदी रदियल्लाहु अन्हु और बाएं जानिब हज़रत शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी रदियल्लाहु अन्ह बैठे और मुझे अपने रूबरू बिठाया और हज़रत शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी रदियल्लाहु अन्हु ने मुझ से फ़रमाया: तुम्हारे दादा ने मुआतरिज़ीन के जवाब में अच्छा रिसाला लिखा है और तुमने भी इससे कम नहीं लिखा तो में ने इस का जवाब अर्ज़ किया,

हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं के में ने इस वाकिए को वालिद माजिद को सुनाया तो उन्हों ने फ़रमाया: अल हम्दुलिल्लाह तुम को मशग़ूलि गौसिया से बहुत अच्छा फायदा हुआ है, इस को जारी रखो जिस के तुफैल में हकीकत मरातिब गौसिया से भी जानकारी होगी,

हज़रत शाह अब्दुल कादिर बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह का फरमान

आप के मुतअल्लिक़ हज़रत सय्यद इब्राहीम बगदादी आप पोते हैं हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के फरमाते हैं के तुम हिंदी हो, तुम फखरे अहले मदीना हो अपना मिस्ल नहीं रखते, हज़रत शाह अब्दुल कादिर बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के जान लो के हज़रत सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु काकोरवी पाबंदे शरआ आलिम और तक्वा में इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह के सानी थे, सालो साल दरस व तदरीस और खुदाए पाक की मखलूक को फायदा पहुंचाया, कुरआन शरीफ के हाफ़िज़ थे और सय्यद इब्राहीम के शागिर्द थे, और आप के बारे में हज़रत कारी मुहम्मद शरीफ फरमाते हैं के जब में अपने वतन को वापस हुआ तो रास्ते में हज़रत ख़्वाजा अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह से बयान क्या के इस सफर में, में ने एक अज़ीम बुज़रुग से मुलाकात की है जो जामे जमीं सिफ़ात विलायत है जैसे अदब सय्यदुत ताइफ़ा हज़रत जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु, और तक्वा इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह और रुमूज़ व निकात तजवीद व किरात में मज़हरे साबिक़ीन देखना मंज़ूर हो वो हज़रत सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु को देखे लेकिन बावजूद इन सब कमालात के बा जुज़ निशाने उबूदियत और कुछ नहीं, इस वाकिए को हज़रत ख़्वाजा बाकि बिल्लाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने पीरे तरीकत मुर्शिद करीम हज़रत ख़्वाजा अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह से सुन कर हज़रत अब्दुल करीम जो पोते हैं हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु के और आप से ही मुलाकात के वक़्त अपने ख़लीफ़ए खास हज़रत सय्यदना शैख़ इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी शैख़ अहमद फारूकी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से बयान फ़रमाया,।

तुम को हिंदुस्तान में ही रहना चाहिए ताके तुम से लोग फाइदा हासिल करें

हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु खुद ही इरशाद फरमाते हैं के में ने दस साल की उमर में कलामुल्लाह शरीफ का मुकम्मल हाफ़िज़ हो कर दरसी किताबों का पढ़ना शुरू कर दिया और चौदह साल की उमर में फ़ारिगुत तहसील हो गया, इस के बाद हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन मुहद्दिसे मदनी से हदीस शरीफ का दर्स लिया, हज़रत मदनी ने एक रोज़ इसनाए दरस में दुरूद शरीफ की इजाज़त दी जिस के पढ़ने से में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से मुशर्रफ हुआ, और ये भी इरशाद फरमाते हैं के एक रोज़ लड़कपन के ज़माने में, में ने कहा: मुझे इन लोगों पर तअज्जुब होता है जो हरमैन शरीफ़ैन जाते और वहां से वापस चले आते हैं, अगर मुझे ये सआदत नसीब हो तो तो में वापस ना आऊं! तो इस सवाल पर मालिके जन्नत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से मुशर्रफ हुआ और इरशाद फ़रमाया: तुम जो ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन कर के फिर वापस नहीं आना चाहते, तो ऐसा न करो तुम को हिंदुस्तान में ही रहना चाहिए ताके लोग तुम से फाइदा हासिल करें और तुम वहां अक़्द करोगे, जिसे से नेक सालेह व आबिद औलाद पैदा होगी फिर मेरे सर पर दस्ते मुबारक रखा जिससे मेरा दिमाग ऐसा मुअत्तर हुआ के में बेखुद हो गया तो दस्ते मुकद्द्स से सर को हरकत दे कर इशारा फ़रमाया: बे खुद होना आसान है और बा खुद होना मुश्किल है बंदा साकितुल खिदमत से माबूद का काम ठीक नहीं बनता, खुदा का शुक्र करो जिससे तुम को इस क़द्र कवि इस्ते दाद अता की है सिर्फ हिम्मते रिजाल सबए कामिलीन से तुम्हारी तकमील होगी, और इस वक़्त मरतबाए एहसान हकीकत तुम पर खुल जाएगी, फिर दस्ते मुबारक सीने पर रख के फ़रमाया इस की तफ्सील दूसरे वक़्त पर मोकूफ है उस के बाद सीने पर से हाथ दाहिनी जानिब से बाएं जानिब फेर कर साबिका मुकर्रर फ़रमाया इस के बाद दस्ते मुबारक उठा कर ये आयत पढ़ी “सुबहाना रब्बिका रब्बिल इज़्ज़ती अम्मा यसीफून व सलामुन अलल मुर्सलीन वल हमदू लिल्लाहि रब्बिल आलमीन”

सुबह को ये वाक़िआ में ने हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन मुहद्दिसे मदनी रदियल्लाहु अन्हु से बयान किया तो वो मुझ को अपने हमराह ले कर वालिद माजिद हज़रत कारी अमीर सैफुद्दीन रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में ले गए, और इन से बयान किया हज़रत वालिद माजिद ने शुक्राने की नमाज़ अदा की और हज़रत से फ़रमाया: में ने इस के हक में बहुत सी बशारतें बुज़ुरगों से सुनी हैं, जिन में से एक ये है जो आप की तवज्जुह से ज़ाहिर हुई हैं।

वो औरत मेरे सामने से भाग गई

हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं के जब मेरी उमर 12, साल की हुई तो एक रात सुबह की नमाज़ से पहले में ने अब्दुल लतीफ़ हिराती के रोनी की आवाज़ सुनी, में बे करार हो कर हाज़िरे खिदमत हो गया और रोने की वजह पूछी की? तो उन्होंने फ़रमाया ऐ निज़ामुद्दीन! मेरा हाल न पूछो, एक हसीन औरत को मेरे पास ला कर कहा जाता है के ये तुझ पर बिला निकाह मुबाह है इससे कुर्बत करो, में हर चंद उज़्र करता हूँ, मगर किसी तरह मेरी बात नहीं सुनी जाती है अभी मुझ से यही मुबाहिसा हो रहा था के तुम्हारे पास पाऊं की आवाज़ सुन कर वो औरत मेरे सामने से भाग गई, थोड़ी देर यहाँ बैठ कर इस्तगफार पढ़ो क्यों के इस राह में रहज़न बहुत हैं जिन के दिफ़ाअ के लिए अस्तगफार से तेज़ कोई चीज़ नहीं, उन के इरशाद के मुताबिक में ने अस्तगफार पढ़ना शुरू किया, थोड़ी देर के बाद मुझ से फ़रमाया: जाओ और अपना काम करो! में ने ये वाक़िआ हज़रत वालिद माजिद से बयान किया तो आपने फ़रमाया हज़रत सय्यद अब्दुल लतीफ़ हिराती साहब ने सुलूक के नशेबो फ़राज़ से तुम को आगाह फ़रमाया है, खबरदार ये वाक़िआ किसी से न कहना के ये असरार है, और औरत से मुराद दुनिया है, इस राह में नफ़्स शैतान बनकर तारिके मुजर्रद की तवज्जोह को हक से अलैहदा कर के दुनिया की तरफ मुतवज्जेह करना चाहता है इस के दिफ़ाअ के लिए अस्तगफार बहुत मुफीद है इसी लिए हुक्म दिया है ।

बारगाहे रिसालत से तकमीले उलूम की बशारत

आप ने आलमे रोया सादिका में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया था के तुम्हारी तकमील उलूमे ज़ाहिर वा बातिन सात कमिलीन से होगी जिन में पाचं से ज़ाहिर में और दो से आलमे अरवाह में होगी चुनांचे ऐसा ही हुआ के उस्तादे,

  • अव्वल: तो आप के वालिद गिरामी ही हैं और,
  • दोम: हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन मुहद्दिसे मदनी रदियल्लाहु अन्हु जिन से आप ने इल्मे हदीस पढ़ी और इस दुरूद शरीफ की इजाज़त हासिल की जिस ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत व बशारत नसीब हुई,
  • सोम: हज़रत हाजी अब्दुल लतीफ़ हिराती रदियल्लाहु अन्हु जिन के पास अनफास की तालीम हुई और इन्ही की तवज्जुह सेअसरारे बातनी भी मशकूफ हुए नीज़ उन्होंने बीस साल गुज़िश्ता और आइंदा के हालात की आप को बशारत दी थी जो सब के सब पूरे साबित हुए,
  • चौथे उस्ताद: हज़रत अमीर सय्यद इब्राहीम बिन मुईनुद्दीन ईयरजी जो नबीराए व साहब ज़ादे हज़रत गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के हैं, जो आप के पीरे बैअत व इजाज़त व खिलाफत हैं, जिन की खिदमत में रह कर आप ने मराहिल सुलूक तैय किए और दीगर फवाइद भी हासिल किए,
  • पांचवे: हाफ़िज़ सय्यद मुहम्मद इब्राहीम बिन अहमद बिन हुसैन बगदादी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, मुन्दर्जा ज़ैल बुज़ुरगों से निस्बत ओवैसी को आप ने हासिल फ़रमाया,
  • छटे उस्ताद: हज़रत शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल कादिर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु,
  • सातवे: हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहर वर्दी रदियल्लाहु अन्हु हैं, ।
बैअतो खिलाफत

आप मुरीद हैं हज़रत सय्यद इब्राहीम ईयरजी रदियल्लाहु अन्हु से, और आप के ऊपर आप के शैख़े तरीकत की जो इनायात हुईं उस की तफ्सील खुद ही बयान फरमाते हैं, “में ने बा मकाम फ़िरोज़ह आबाद में हज़रत सय्यद इब्राहीम ईयरजी रदियल्लाहु अन्हु से बैअत का शरफ़ हासिल किया तो हज़रत ने ऐसी इनायात फ़रमाई जो बयान से बाहर हैं चंद महा हज़रत की खिदमते अक़दस में रहा, रोज़ाना कोई न कोई इंकिशाफ़ ज़रूर होता था दरस व तदरीस के मुतअल्लिक़ भी कभी कभी दरयाफ्त फरमाते नीज़ अहादीस के दरस के वक़्त भी मुझे याद फरमाते और मुझि से नमाज़ की इमामत करवाते और फरमाते के तुम से किरात खूब अदा होती है और आवाज़ भी उम्दह है, तुम्हारे आने से मुझे बड़ी ख़ुशी हुई है।

आप मुर्शिदे बरहक़ ने आप से फ़रमाया: आमाल का दारो मदार नियत पर हैं इस के क्या माने है, हक बीन व हक शनास मुरीद ने ऐसे निक़ात बयान किए के शैख़ पर एक ख़ास कैफियत तारी हो गई और फ़रमाया: फिर कहो? इस के बाद खुश हो कर सर मुबारक से टोपी उतार कर मुरीदे अरशद के सर पर रख दी और फ़रमाया: हदीस शरीफ के माना करने के लिए ऐसा ही अच्छा मुँह चाहिए, फिर रोज़ाना के वज़ाइफ़ दरयाफ्त फरमाकर अपनी किताब जिस में वज़ाइफ़ लिखे हुए थे और साथ में हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु का पैराहन अता फ़रमाया, आप चंद रोज़ के बाद रुखसत हो कर वतन काकोरी तशरीफ़ लाए और तमाम हालात अपने वालिद माजिद से अर्ज़ किए ।

वालिद माजिद की ख़ुशी

आप अपने पीरो मुर्शिद की बारगाह से लोट कर जब अपने घर तशरीफ़ लाए तो वहां के हालात वालिद माजिद से तफ्सील से बयान किए जिससे वालिद गिरामी के चेहराए मुबारक पर मसर्रत के आसार नमूदार हुए और इसी आलम कैफो मस्ती में इरशाद फ़रमाया: अल्लाह पाक ने तुझे इससे भी ज़ियादा क़बूलियत औलिया अल्लाह की नज़र में अता फरमाए, के इस फ़कीर के दिल की तमन्ना यही और में शबो रोज़ इस काम के लिए दुआ गो हूँ, ।

हज़रत सय्यद इब्राहीम बगदादी की आमद

हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु मज़कूरा बाला इरशाद व बशारत के बाद से बराबर हज़रत सय्यद इब्राहीम बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की आमद के मुन्तज़िर रहे और हर उस शख्स से मालूम करते जो मगरिब की तरफ से आता यहाँ तक के उसी दौरान में आप को मालूम हुआ के हज़रत मौसूफ़ लाहौर से आग्रह वगेरा होते हुए झांसी तशरीफ़ ला रहे हैं तो आप ने अपने साथ दस बारह दोस्त अहबाब को साथ ले कर काकोरी से झाँसी का रखते सफर बाँधा और इधर हज़रत सय्यद इब्राहीम बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की ये कैफियत थी के हर आने वाले से हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु के खानदान का हाल मामूल कर रहे थे, इस लिए के बाग्दाद् शरीफ से चलते वक़्त हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने आप से इरशाद फ़रमाया था के हिंदुस्तान पहुंच कर हज़रत कारी अमीर इब्राहीम नवासा हज़रत सय्यद अब्दुर रज़्ज़ाक बिन गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की औलाद का हाल ज़रूर मालूम करना और अगर इन में कोई काबिले मुलाकात हो तो मिलना बिला आखिर हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु इसी हालात इन्तिज़ार में हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में काकोरी से झाँसी पहुंचने जैसे ही हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने देखा मुआनका फ़रमाया और निहायत ख़ुशी का इज़हार फ़रमाया, और फ़रमाया:

"यार दर खाना व मन गर्द जहाँ मी गरदम"

फिर आप की जानिब गौर से नज़रे इल्तिफ़ात फरमा कर वालिद माजिद का नाम पूछा हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु ने अपने वालिद माजिद का नाम बताया, हाज़रीने महफ़िल हैरान व तअज्जुब में थे, इस लिए हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने आप की खानदानी ख़ुसुसियात बयान फ़रमाई, चुनांचे हाज़रीने महफ़िल ने ये सुन कर नियाज़ मंदाना और तअज़ीमन दस्त बूसी की, हज़रत सय्यद साहब मौसूफ़ रहमतुल्लाह अलैह ने आप के वास्ते अपनी क़याम गाह से मुत्तसिल ही एक मकान तजवीज़ फ़रमाया जिस में आप ने अपना क़याम रखा, महिरबान मेज़बान ने मेहमान की ज़ाहिरी व बातनी खूब खातिर तवाज़ुह की, और दुसरे ही दिन अशराक़ की नमाज़ के बाद जुमला हालात व वाक़िआत गुज़िश्ता दरयाफ्त फरमाए, आप ने तमाम हालात तफ्सील से बयान किए जिन को सुन कर हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया: अब अनक़रीब कालपी शरीफ पहुंच कर एतिकाफ के मकान को मुअय्यन कर के मशग़ूलि “इरसाले गौसिया” इजाज़त दी जाएगी, क्यूंके ज़ाब्ता मुक़र्ररा मशरूत बशाराइत एतिकाफ है “बिल फेल रिसाला” “मुलहिमात क़ादरी” देखो?

चुनांचे दूसरे दिन मज़कूरा किताब अता हुई और आप ने इस को देखना शुरू किया, तो सब से पहले “इरसाले गौसिया” का ज़िक्र था और दीगर बहुत से असरार व निकात गवामिज़ तसफ्फुव का बयान था जिस के मुताले से बहुत फायदा हुआ, यहाँ तक के बीस दिन तक हज़रत की खिदमत में झांसी ही में आप ने गुज़ारे, इसी दौरान में एक दिन हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने दरयाफ्त फ़रमाया: इस किताब “मुलहिमात क़ादरी” के मुतालआ से असल मतलब भी निकला? तो किताब मज़कूर से आप को जो फवाइद हासिल हुए थे उन को बयान फ़रमाया, फिर दरयाफ्त फ़रमाया: “अवा लिमुल मुआलिम” किताब भी देखि है? इस के जवाब में आप ने इरशाद फ़रमाया: अरसा हुआ के जब वालिद माजिद से “जामे शरह इब्राहीमी जो हामिलुल मतन” है पढ़ी थी, तो हज़रत बगदादी रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया: शरह इब्राहीमी भी मेरे पास है कालपी पहुच कर उस का भी दरस होगा, इस लिए के मेरे वालिद माजिद हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु का इरशाद है के जिस ने किताब “अवा लिमुल मुआलिम” गौर से नहीं देखि उस को मसाइल मुलहिमात के समझने में दिक्क्त होगी, अल हम्दुलिल्लाह! के तुम किताब “अवा लिमुल मुआलिम” पढ़ चुके हो, तो हज़रत ने फ़रमाया किताब के मतालिब समझने के लिए ज़हन आला दरकार है में इतना काबिल नहीं जब तक आप की तवज्जुह न हो? इस पर हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु ने निहायत ख़ुशी का इज़हार फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया: राहे हस्ती में नेस्ती है इस लिए के हस्ती हक दम नकद है ।

आप की कालपी शरीफ में आमद

आप कुछ दिनों के बाद हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु के हमराह कालपी तशरीफ़ लाए, हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु ने एक पुरानी मस्जिद में जो दरियाए जमना के पास थी एतिकाफ के लिए तजवीज़ फ़रमाया और एतिकाफ का हुक्म दिया और शराइत एतिकाफ भी एक कागज़ पर लिख दिए, चुनांचे गराए ज़ी कायदा से एतिकाफ शुरू हुआ, हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु रोज़ाना रात में पैदल एतिकाफ की जगह तशरीफ़ लाते जिस की दूरी एक मील के बराबर थी और वाक़िआत दरयाफ्त फरमाते जब ईदे अज़हा के दिन एतिकाफ से फारिग हुए तो उस रोज़ सय्यद साहब की मुसर्रत की इंतिहा न थी, जो उन के पास आता उसे फ़ौरन हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु के पास भेजते और नज़र दिलवाते, एतिकाफ से फारिग होने के बाद एक दूसरा मकान जो उन के मकान से मुत्तसिल था क़याम के लिए तजवीज़ कर दिया, सय्यद साहब रोज़ाना बा नमाज़ सुबह मशग़ूलि तलकीन फरमाते, “शरह अवालिम जैदी मआ मुलहिमात” का दर्स देते और ज़ोहर की नमाज़ के बाद “तफ़्सीर मुआलिम व बुखारी शरीफ” सुनते और बाद नमाज़े असर मुसब्बआत कादरी पढ़वाते, फिर मगरिब की नमाज़ तक सुकूत बारिया यत पास निफ़ास, ज़िक्रे ख़फ़ी हुक्म फरमाते और बाद नमाज़े मगरिब कुरआन शरीफ की तिलावत करवाते, चार महीने तक जो तीन चिल्लों की मिआद होती है औकात मुनज़बित करने की ताकीद फ़रमाई,

गरज़ के हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु छेह महीने हाज़िरे खिदमत रहे इस बीच जो कैफियात वारिद होती थी वो अर्ज़ करते छेह महीने के बाद वतन आने की इजाज़त दी और वापसी की ताकीद भी फ़रमाई, रुखसत के वक़्त कोलाहे मुबारक, (टोपी) और इजाज़त नामा मुहरी और रुमाल हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने अपने दस्ते मुबारक से अता फ़रमाई हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत से रुखसत हो कर अपने वतन काकोरी तशरीफ़ लाए और अपने वालिद माजिद की कदम बोसी कर के सफ़रों हज़र के तमाम हालात बयान किए जिस को सुनकर इरशाद फ़रमाया ऐ निज़ामुद्दीन! राहे सुकूल में सब से अलैहदा और हक से मिले रहना चाहिए, दो महीने के बाद फ़ौरन हज़रत सय्यद अहमद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में जाओ और ऐसे जवान मुबारक की सुहबत अपने हक में किबरीते अहमर समझो मेरी दिली तमन्ना है के अल्लाह पाक तुम को बुलंद मर्तबा अता फरमाए ।

आप की तकरीर का असर

एक रोज़ सय्यद साहब बगदादी रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया: आज मुहब्बत व इखलास की अहादीस बयान करो! चुनांचे आप ने तकरीर शुरू की, उस वक़्त हाज़रीन पर जो कैफियत तारी हुई वो बयान से बाहर है, खुद सय्यद साहब बगदादी रहमतुल्लाह अलैह को ऐसा इस्तग्राक हुआ के तमाम महफ़िल बेहोश हो गई, इस्तग रॉक के बाद सय्यद साहब बगदादी रहमतुल्लाह अलैह ने कमर बंद गौसिया अता फ़रमाया और सुबह की नमाज़ हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु की इक़्तिदा में आप की क़याम गाह पर ही पढ़ी और इरशाद फ़रमाया:

तुम को अपने जद्दे अमजद कारी इब्राहीम का मनसब मिला और फ़रमाया के जिस रोज़ मेरे जद्दे अमजद हज़रत सय्यदना अब्दुर रज़्ज़ाक बिन गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हुमा ने कारी इब्राहीम रहमतुल्लाह अलैह को मसनदे खिलाफत पर बिठाया और वो ईदुल अज़हा का दिन था, तुम भी आज अपने जद्दे अमजद के काइम मकाम हो लिहाज़ा तुम ही इमामत करो,
आप ने नमाज़ पढ़ाई, नमाज़ के बाद खादिमो से इरशाद फ़रमाया: ख्वानो में शिरीनी लाओ? चुनांचे पचास ख्वानो में मिश्री के प्याले हाज़िर किए गए, इस पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और पीराने सिलसिला की फातिहा पढ़ी गई, और पांच प्याले हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु को वतन में तकसीम के लिए दिए गए और बाकी महफ़िल में तकसीम किए गए, और आधा हिस्सा रूसाए कालपी में बांट दिया गया, इस के बाद मिसालि मुहर, इरसाले गौसिया, मजमूआ औराद शरीफ, अता फ़रमाया, और मुसाफा व मुआनका कर के वतन आप को रुखसत फ़रमाया, सय्यद साहब बगदादी रहमतुल्लाह अलैह जब तक कालपी शरीफ मुकीम रहे आप साल में मुतअद्दिद बार हाज़िरे खिदमत होते रहे।

शाह अब्दुर रहीम मजज़ूब से मुलाकात

हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रदियल्लाहु अन्हु की कालपी शरीफ से लौटते वक़्त रास्ते में शाह अब्दुर रहीम मजज़ूब से मुलाकात फ़रमाई, जो आप के वालिद माजिद के करीबी दोस्त थे हस्बे इरशाद इनका पता रास्ते में लोगों से पूछते रहे चुनांचे मालूम हुआ के करीब ही में एक बुज़रुग हैं जिन का सारा वक़्त जंगल के गश्त में गुज़रता है और जब कुछ इफाका होता है तो गाऊं में आ कर बाबुल्लाह तकिया दार के मकान पर क़याम फरमाते हैं, ये तफ्सील मालूम कर के आप मिर्ज़ा शमशुद्दीन खान और मौलाना अब्दुर रशीद मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह को साथ ले कर बाबुल्लाह तकिया दार के मकान पर तशरीफ़ ले गए वहां जा कर आप ने उनको इस हालत में पाया के बरहना बैठे हुए बड़ को मार रहे हैं, आप ने करीब जा कर उनको सलाम किया तो मजज़ूब साहब ने बहुत ही कड़क कर जवाब दिया और इरशाद फ़रमाया: ऐ निज़ाम! मस्लए शेर मादर सूफ़िया तो पढ़ चुका अच्छा पढ़ा और अरब के कारियों के सामने तूने किताब “फुसुसुल हिकम” भी खूब पढ़ी, नसे मुहम्मदी मेरे सामने पढ़, आप ने पढ़ना शुरू किया मगर इस के मतालिब से आम सामईन ने कुछ भी नहीं समझा जिस की हज़रत मजज़ूब ने अपने लाइक करीबी दोस्त के शहज़ादे को सिखाया, तकरीर ख़त्म होने के बाद हज़रत मजज़ूब ने हाथ उठा कर ये दुआ मांगी के जो कुछ सुन्नत है फ़र्ज़ हुआ और जो फ़र्ज़ है वो सब हो, अमीन, अमीन, अमीन, इस के बाद फ़रमाया ऐ निज़ाम! मेरा भाई तेरे इन्तिज़ार में है इस लिए अपने वालिद माजिद की खिदमत में जल्दी जाओ, और मेरा सलाम अर्ज़ करना और ये कहना के जो कुछ मेरे पास था वो में ने तेरे बेटे को दे दिया, आप वहां से रुखसत हो कर अपने वतन काकोरी तशरीफ़ लाए और वालिद माजिद को तमाम हालात से आगाह किया इस को सुन कर वालिद माजिद ने ये दुआ दी, ऐ रब्बुल इज़्ज़त! हर वो नेमत जो तूने हमारे बुज़ुरगों को अता की में उम्मीद वार हूँ के मेरी औलाद भी उन नेमतों से मालामाल हो ।

आप के इरशादाते आलिया

आप के इर्शादाते आलिया बड़े आली और मार्फ़त से पुर होते थे, फरमाते के शराफत दो किस्म की होती है, शराफत कस्बी, अगरचे शराफत नसबी का दर्जा बड़ा है लेकिन शराफत कस्बी में से रज़ाइल बशरी दूर करना और अमाइद इंसानी से मुत्तसिफ़ होना मुराद है और ये मख़सूस रियाज़त व मुजाहिदा से हासिल होती है और ये शराफत नो किस्मो पर है जैसा के कारी अमीर इब्राहिम “शरह अवालिम जुनैदी” में तहरीर फरमाते हैं जिस के दो अक्साम मुन्दर्जा ज़ैल हैं:

  1. मार्फते इलाही
  2. मारफते कलाम
  3. मारफते हदीस
  4. मारफते अक़्वाले औलिया अल्लाह
  5. मारफते कलामे मुलुके आदिल
  6. मारफते अख़लाके हमीदह
  7. मारफते कलामे सालिहीन व उल्माए मुहक़्क़िक़ीन
  8. मारफते क़ुलूब (
  9. मारफते ईमान व यकीन,

फरमाते के मेरी औलाद में कोई शराब खोर या राफ्ज़ी होगा, उसकी नस्ल मुनक़ता (खत्म) हो जाएगी, और निहायत ज़िल्ल्त से दुनिया में रहेगा और अज़ाबे आख़िरत में गिरफ्तार होगा, मेरी औलाद में जो कोई शादी बियाह में नाच रंग करेगा, उस का अंजाम रंज व गम के सिवा कुछ न होगा, मेरी औलाद कयामत तक हाफिज़े क़ुरआने मुबीन और आलिम उलूमे दीन व फुकरा होते रहेगें, वो लोग निहायत काबिले अफ़सोस हैं जो अपने अख़लाक़ से लोगों के दिलों को खुश नहीं रखते हालांके दिलों का खुश रखना खुदा की ख़ुशनूदी की दलील है,

मन्क़ूल: है के मखदूम शैख़ सआदि सिद्दीकी चिश्ती काकोरी को जो कुछ फुतुहात होते उनको उसी दिन खर्च कर डालते और फरमाते: न बासी बचे न कुत्ता खाए, आप ने इस जुमले को सुन कर इरशाद फ़रमाया: बेहतर है के बासी बचे कुत्ता खाए, क्यूंके बचाने में गैर को नफा पहुँचाना न मुमकिन है इस के अलावा ये अम्र बाइसे इत्मीनान भी है इसी वजह से सहाबाए किराम बराबर खुश्क सोखी रोटी के टुकड़े जेबों में रखते थे और ये अम्र तवक्कुल के मुनाफि नहीं ।

आप की औलादे अमजाद

हज़रत का निकाह क़स्बा हरगाम ज़िला सीतापुर यूपी में हुआ था जिससे छेह 6, साहब ज़ादे और चार साहब ज़ादिया हुईं, एक साहब ज़ादी क़स्बा कशूर में सादात के खानदान में आप का निकाह हुआ, जिन के बतन से सय्यद पीर मुहम्मद हुए, दूसरी का निकाह सय्यद जलालुद्दीन बिन मखदूम शैख़ सआदि चिश्ती सिद्दीकी काकोरी के साथ हुआ था, तीसरी का निकाह हर गाम में हुआ था और चौथी साहब ज़ादी का इन्तिकाल हो गया था, साहब ज़ादे भी जो थे वो बड़े आलिम व फ़ाज़िल ज़ुहदो तक्वा से आरास्ता थे जिन के नाम मुबारक ये हैं:

  1. हज़रत शैख़ आलम
  2. हज़रत शैख़ सुमन
  3. हज़रत हाफ़िज़ शैख़ शहाबुद्दीन मारूफ बिहि शैख़ सूंधन
  4. हज़रत शैख़ फ़ितन
  5. हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह
  6. हज़रत शैख़ ख़्वाजा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन
खुलफाए किराम

आप के जलीलुल क़द्र खुलफाए किराम के नाम ये हैं:

  1. हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह बिन मखदूम शैख़ निज़ामुद्दीन
  2. हज़रत शैख़ क़ाज़ी ज़ियाउद्दीन उर्फ़ जिया
  3. हज़रत मुल्ला अब्दुर रशीद मुल्तानी मुसन्निफ़ ज़ादुल आख़िरत
  4. हज़रत मीर शरफुद्दीन शिकार पूरी
  5. हज़रत शैख़ मुहम्मद खोर जवी
  6. हज़रत शैख़ बदीउद्दीन मानकपुरी
  7. हज़रत मौलाना नसरुद्दीन संभली
  8. हज़रत मुहिबुल्लाह खैरा आबादी
  9. हज़रत मिर्ज़ा शमशुद्दीन खान कोका
  10. हज़रत मुल्ला अब्दुल करीम नबीरा हज़रत मुहम्मद निज़ामुद्दीन उर्फ़ शाह भिकारी बादशाह रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।
आप की तसानीफ़

आप की चार तसानीफ़ मौजूद हैं

  1. किताब मन्हज, जो उसूल से मुतअल्लिक़ है,
  2. किताबे मुआरिफ़, इस में इल्मे तसव्वुफ़ पर बहस है,
  3. तर्जुमा व शरह किताबे मुलहिमात कादरी बा ज़बान फ़ारसी ये तर्जुमा और शरह आप ने दौरान कालपी शरीफ हस्बे हुक्म हज़रत सय्यद अहमद बगदादी तस्नीफ़ फ़रमाई,
  4. तुहफाए निज़ामिया ये रिसाला तीन सवालों के मुदल्लल व मबसूत जवाबात पर मुश्तमिल है ।
आप का विसाल व उर्स

आप का विसाल आठ 8, ज़ी क़ाइदा 981, हिजरी मुताबिक 1572, ईसवी इक्कीयांन वे साल की उमर में हुआ ।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार पुर अनवार क़स्बा काकोरी के वस्त में मुहल्लाह झंझरी रोज़े में वालिद माजिद के मुत्तसिल में है ।

रेफरेन्स हवाला:
  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • कशफ़ुत तवारी फी हाले निज़ामुद्दीन भिकारी
  • तज़किराए उल्माए हिन्द
  • मशाहीर काकोरी
  • नफ़्हाते अम्बरिया अनफासुल कलंदरिया

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