हज़रत अल्लामा शैख़ बुरहानुद्दीन महमूद बल्खी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत अल्लामा शैख़ बुरहानुद्दीन महमूद बल्खी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश मुबारक शहर बल्ख जो के अफगानिस्तान एक मशहूर तारीखी शहर है, इसी बल्ख शहर में 1209/ ईसवी हुई,

तालीमों तरबियत

हज़रत अल्लामा ख्वाजा शैख़ बुरहानुद्दीन महमूद बल्खी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिदा माजिद का नाम मुबारक अबुल खेर असद बल्खी! है, आप गियासुद्दीन बलबन के दौर के सब से बड़े उम्दह आलिमे दीन थे, उलूमे शरीअतो तरीकत के जामे नीज़ शेरो शायरी से भी बड़ा लगाओ रखते थे, आप ने मशारिकुल अनवार! इस के मुसन्निफ यानि हज़रत शैख़ रज़ियुद्दीन हसन रहमतुल्लाह अलैह से पढ़ी थी, इसी तरह फ़िक्हा हनफ़ी की मश्हूरो मारूफ किताब हिदाया! इस के लिखने वाले मुसन्निफ यानि हज़रत अल्लामा बुरहानुद्दीन मरगीनानी रहमतुल्लाह अलैह से पढ़ी और दोनों की सनद हासिल की,

पेशन गोई

हज़रत अल्लामा ख्वाजा शैख़ बुरहानुद्दीन महमूद बल्खी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते थे, के जब मेरी उमर तकरीबन छेह सात साल की थी तो एक मर्तबा में अपने वालिद माजिद के साथ कहीं जा रहा था, इत्तिफाकन रास्ते में हज़रत अल्लामा शैख़ बुरहानुद्दीन मरगीनानी रहमतुल्लाह अलैह की आमद की सुनाई दी, तो वालिद माजिद मुझ को छोड़ कर करीब की एक गली में किसी काम से तशरीफ़ ले गए, अभी में वहीँ खड़ा था के हज़रत अल्लामा शैख़ बुरहानुद्दीन मरगीनानी रहमतुल्लाह अलैह की सवारी आ गई, में ने आगे बढ़ कर बड़े अदब से हज़रत को सलाम किया, आप ने मुझ को ज़रा गौर से देखने के बाद इरशाद फ़रमाया के अल्लाह पाक ने मुझे इस बात को कहने का हुक्म दिया है,
के ये लड़का आइंदा अपने ज़माने के अज़ीम आलिमे दीन फ़ाज़िले नौजवान होगा, ये सुन कर में थोड़ी देर आप के साथ चलता रहा, फिर आप ने फ़रमाया:

के अल्लाह पाक मुझ से काहिल वा रहा है, के ये बच्चा आइंदा इतना बड़ा होगा के शाहाने वक़्त इस के दतवाज़े पर फैज़ हासिल करने के लिए, आया करेंगें, चुनांचे यही हुआ तारिख में लिखा हुआ है, के जुमा की नमाज़ के बाद गियासुद्दीन बलबन अपनी पूरी शाही जमाअत के साथ आप के घर जाता और ताज़िमों तौकीर बजालता था, इल्मे हदीस में आप के मश्हूरो मारूफ शागिर्द हज़रत अल्लामा कमालुद्दीन ज़ाहिद थे, जिन्होंने मशारिकुल अनवर! आप से पड़ी थी और फिर उसको पढ़ाना शुरू किया, इनके शागिर्द हैं, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह थे जिन्होंने आप से मशारिकुल अनवार पढ़ी।

विसाल

आप का विसाल सुल्तान केकबाद के दौरे हुकूमत में 687/ हिजरी मुताबिक 1288/ ईसवी में हुआ,

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुक़द्द्स महरोली शरीफ दिल्ली तीस 30/ में होज़ शम्शी से पूरब की जानिब औलिया मस्जिद के सामने से रास्ता ऊपर को जा रहा है, हज़रत ख्वाजा नजीबुद्दीन फिरदोसी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह के सामने एक चबूतरे पर बना हुआ है,

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
औलियाए दिल्ली की दरगाहें

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