विलादत बसआदत
हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! की विलादत मुल्के अफगानिस्तान के शहर गज़नी! में एक सय्यद घराने में 555/ हिजरी में हुई, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, के हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक अज़ीम सूफी बुज़रुग हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह से फीयूज़ो बरकात हासिल किए, हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदों में से एक शख्स कपड़े का सौदागर था, एक रोज़ उसने हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर हो कर अर्ज़ की मेरे घर बेटा पैदा हुआ है जो हुज़ूर का गुलाम ज़ादा है, हुज़ूर उसपर करम फरमा कर अपने फैज़ान से नवाज़ें, हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया बहुत अच्छा है,
कल सुबह जब में नमाज़े फजर से फारिग हो जाऊं तो अपने बच्चे को मेरी दाहिनी तरफ से ला कर पेश करना, उसी दिन, हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश हुई थी, आप के वालिद मुकर्रम हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में उस वक़्त मौजूद थे, उन्होंने ये बात सुनली, चुनांचे उस वक़्त ज़बान से तो कुछ नहीं कहा अलबत्ता ये दिल में ये तहिय्या कर लिया के कल में भी अपने नोमोलूद बच्चे को ले आऊंगा और हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमते बा बरकत में पेश करूंगा, दूसरे रोज़ सुबह उठे और नमाज़े फजर से पहले ही अपने साहबज़ादे को मस्जिद में ले गए, जब हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह नमाज़े फजर अदा कर चुके तो फ़ौरन आप ने हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह की दाहिनी तरफ से हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! के सामने कर दिया, हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह ने नज़रे करम फ़रमाई, ये तमाम नेमतें उसी नज़रे फैज़ का करम है और असर है, इधर उस ताजिर मुरीद को आने में देर हो गई, कुछ देर के बाद उसने आ कर अपने बच्चे को हज़रत शैख़ मुहम्मद अजल शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किया तो हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया ये नेमत तो सय्यदा ज़ादा की किस्मत में थी, लिहाज़ा इसी को दे दी।
तालीमों तरबियत
आप ने पहले शहर गज़नी ही में अपने मामू से तालीम हासिल की, फिर बाग्दाद् शरीफ जा कर हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी से फैज़ा हासिल किया,
बैअतो खिलाफत
शैखुल मशाइख हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के मंज़ूरे नज़र और खलीफा थे, आप ने ही आप को खिलाफत से नवाज़ा था, रूहानी मुक्तदा और दिल्ली के “शैखुल इस्लाम” थे, बादशा सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह के दौरे हुकूमत में “मीरे दिल्ली” के लक़ब से याद किया जाता था, सुल्तान मुहम्मद गौरी और सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह आप से बहुत अक़ीदतो मुहब्बत रखते थे, इन बादशाहों ने अपने अपने दौरे हुकूमत में हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! को “शैखुल इस्लाम” के उहदा दिया था, और “शैखुल इस्लाम” के नाम से मशहूर थे, ये दोनों आप की बहुत तआज़ीम करते थे, लड़ाइयों से पहले आप से दुआ कराते थे।
आप की चंद नसीहत
एक मरतबा आप ने सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह के भरे दरबार में तकरीर फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया के बादशाहों की निजात इसी में है के वो इस्लाम के लिए, दीन पनाह, बने, और इस के लिए चार बाते लाज़मी हैं, अव्वल ये के इस्लाम की मुहब्बत को बरक़रार रखें, और अपने बाज़ूएं कुव्वत को आलाए कलमतुल हक और शिआरे इस्लाम को बुलंद करने और अम्र बिलमारूफ़ व नहीं अनिल मुनकर में सर्फ़ करे, दूसरे इन पर फ़र्ज़ है के इस्लाम और इस्लामी शहरों और कस्बों के दरमियान फिस्को फ़ुजूर और गुनाहों मआसियत को ताकत के ज़रिये बिलकुल ख़त्म करे, तीसरे ये के एहकाम दीने मुहम्मदी सलल्लाहु अलैही वसल्लम के इजरा के लिए सिर्फ अहले तक़वा, ज़ाहिद, खुदा तर्स और दीनदार लोग मुकर्रर किए जाएँ और बद दियानत, दुनिया परस्त लोगों के हाथ में इख़्तियार न दिया जाए, चौथी ज़रूरत अदलो इंसाफ की है, बादशाह की निजात इसी में है के अदलो इंसाफ में कोई ददीका फिरो गुज़ाश्त छूट ना पाए, न ज़ुल्मो ज़ियादती इस के मुल्क में बिलकुल ना हो।
करामत
एक मर्तबा दिल्ली में बारिश नहीं हुई, लोग आप के भांजे हज़रत निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमते बा बरकत में हाज़िर हुए और बारिश के लिए दुआ की दरख्वास्त की, हज़रत मिम्बर पर तशरीफ़ लाए और दुआ करते हुए अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह! अगर तूने बारिश न की तो में इससे पहले किसी भी आबादी में नहीं जाऊँगा, उसी वक़्त बारिश शुरू हो गई, एक बुज़रुग ने कहा के आप से हमारी पुख्ता अकीदत है और हम ये भी जानते हैं बारगाहे इलाही में आप को नियाज़ कामिल हासिल है, लेकिन आप ने ये क्यों अर्ज़ किया के अगर तूने बारिश ना की तो में किसी भी आबादी में नहीं जाऊंगा, हज़रत निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद रहमतुल्लाह अलैह ने जवाब दिया ये बात दोस्त दोस्त से कहता है, चूंकि मुझे यकीन था के बारिश होगी इस लिए में ने कह दिया इन बुज़रुग ने दरयाफ्त किया के आप को यकीन कैसे हासिल हो गया? हज़रत ने फ़रमाया के मुझे यकीन यूं हासिल हुआ के एक मर्तबा सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह के दरबार में बैठने पर मेरे और हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! के दरमियान कोई बात हुई थी में ने कुछ कह दिया जिससे वो कबीदाह खातिर हो गए, उस वक़्त लोगों ने जब मुझ से दुआ के लिए कहा तो में आप के मज़ार शरीफ पर गया और अर्ज़ किया के आप तो मुझ से नाराज़ हैं अगर आप मुझ से राज़ी हो जाएं और दुआ में शरीक हो जाएं तो में बारिश के लिए दुआ करूंगा वरना नहीं, हज़रत निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद रहमतुल्लाह अलैह के तुम से राज़ी हूँ फरमाते हैं के इन के मज़ार शरीफ से ये आवाज़ आई के तुम से राज़ी हूँ, जा कर दुआ करो, बारिश ज़रूर होगी।
फायदा
इस वाकिए से हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! की अज़मतो शान कशफो करामत और तसर्रुफ़ व इख़्तियार का पता चलता है हज़रत निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यद रहमतुल्लाह अलैह को मालूम था के जब तक मेरे मामू मुझ से राज़ी हो कर दुआ में शरीक ना होंगें तो मेरी दुआ कारगर साबित नहीं हो सकती, और हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! को इस दुनिया से पर्दा फरमाने के बावजूद इस बात का इल्म है के अगर में अपने भांजे से राज़ी हो कर इस की दुआ पर आमीन कह दूँ तो इस की दुआ कबूल हो जायेगी और अल्लाह पाक के हुक्म से बारिश ज़रूर आएगी।
वफ़ात
हज़रत ख्वाजा शैख़ नुरुदद्दीन मुबारक ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह! जुमेरात को वाइज़ फरमा रहे थे और इस मजलिस में हज़रत मौलाना अलाउद्दीन किरमानी ! में आइंदा जुमेरात को इस दुनिया से चला जाऊँगा सिर्फ इसी हफ्ते आप का मेहमान हूँ इतने में मौलाना ने उठ कर फ़रमाया, वाकई ऐसा ही है जैसा सय्यद साहब फरमाते हैं, जुमेरात को आप सफर करेंगें और जुमे के रोज़ में, ये सुनकर मजलिस से नारों की आवाज़ आई, आखिर वैसा ही हुआ जैसा दोनों ने फ़रमाया था, सय्यद साहब ने हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह के दौरे हुकूमत में 1/ मुहर्रमुल हराम 632/ हिजरी मुताबिक 1234/ ईसवी में वफ़ात पाई।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ लाडो सराए महरोली शरीफ दिल्ली 30/ में महता चौक से आगे सीधे हाथ को बुलंदी ऊंचाई पर जाकर काला महिल से आगे ही मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
मर्दाने खुदा
मनाकिबे शैखुल इस्लाम