बैअतो खिलाफत
आप हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदो खलीफा हैं, आप बादशाहे वक़्त के साथ साथ आदिल और सालेह, बा शऊर निहायत हसीन, हुस्ने सीरत, बड़े ही दानिशमंद, फ़य्याज़, सखी नेक सीरत इन्साफ परवर, आलिम और फ़ाज़िल, पाबंदे शरआ, हर वक़्त बावज़ू रहते थे।
खानदानी हालात
हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली के तीसरे हुक्मरान और खानदाने गुलामा के तीसरे बादशाह थे, “तबकाते नासरी” में तहरीर है: के हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! कराखताई! तुरकों के एक बहुत बड़े घराने की औलाद में से थे, आप के वालिद का नाम “ऐलम खान” था, जो अलबरी! कबीले के सरदार थे, इन्होने अपनी दौलत मंदी और खिदमतगारों की वजह से आस पास के इलाकों में बड़ी शुहरत पाई थी, हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! अपनी हुस्ने सूरतो सीरत के लिहाज़ से अपने तमाम भाइयों में मुमताज़ थे, इस वजह से “ऐलम खान” आप के वालिद माजिद अपने बेटों में सब से ज़ियादा चाहते थे, आप रहमतुल्लाह अलैह! के भाई इससे खुश ना थे, हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! के साथ आप के दुश्मनो ने वही सुलूक किया जो हज़रते युसूफ अलैहिस्सलाम के साथ उनके भाइयों ने किया था, आप के भाइयों या भतीजों ने तुर्किस्तान के इस युसूफ यानि हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह!
को गल्ला बानी के बहाने से एक सौदागर (तिजारत करने वाला) के हाथ बेच डाला, कुछ अरसे तक इस आका के घर में आप बड़े आराम से रहते रहे, लेकिन किस्मत ने यहाँ भी आप को ना रहने दिया और आप को एक सौदागर (तिजारत करने वाला) हाजी बुखारी ने खरीद लिया,
हाजी बुखारी ने आप को हाजी जमालुद्दीन के हवाले किया, हाजी जमालुद्दीन आप को शहर गज़नी अफगानिस्तान ले कर आया, शहर गज़नी वालों ने उस वक़्त तक हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! जैसा खूबसूरत तुर्की गुलाम नहीं देखा इस लिए हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! के शहर गज़नी पहुंचते ही आप के हुस्नो जमाल का बड़ा शुहरा हुआ, बादशाह के दरबारियों ने हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! का तज़किरा शहाबुद्दीन गौरी! से किया, शहाबुद्दीन ने आप की कीमत मुतअय्यन की, हाजी जमाल के पास हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! के अलावा एक गुलाम और भी था दोनों गुलामो की कीमत दो हज़ार दीनार बताई गई, शहाबुद्दीन गौरी! ने एक हज़ार दीनार के एवज़ दोनों गुलामो को खरीदने का ख़याल ज़ाहिर किया, हाजी जमाल ने इस कीमत पर इन गुलामो को बेचने से इंकार कर दिया, इसी इस्ना में हज़रत सुल्तान अल्तमश अलैहिर रह्मा की किस्मत का सितारा चमका, हुआ ये के कुतबुद्दीन ऐबक राजा नहरों को शिकस्त देकर नसीरुद्दीन ख़रमील के साथ शहर गज़नी आया, कुतबुद्दीन ऐबक ने जब
हज़रत सुल्तान अल्तमश अलैहिर रहमा के हुस्न का शुहरा सुना तो उसने आप को खरीद लिया और आप को हिंदुस्तान ले आया, कुतबुद्दीन ऐबक आप पर बड़ा एतिमाद करता था, यहाँ तक के गोवालियर का किला फ़तेह कर के आप को हाकिम बना दिया, कुछ अरसा बाद आप को बरन और उस के आस पास के इलाकों की जागीरें दे दी, और बदायूं शरीफ का हाकिम मुकर्रर कर दिया, कुतबुद्दीन ऐबक को अल्लाह पाक ने तीन बेटियां अता की थीं उनमे से एक तो हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! से निकाह कर दिया, और बाकी दो दरबारी नासिरुद्दीन कुबाचा के निकाह में आई, कुतबुद्दीन ऐबक की वफ़ात के बाद दिल्ली के अमीरों और अरकाने सल्तनत ने हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! को तख़्त नाशिनी के लिए दिल्ली आने के लिए दावत दी, आप बदायूं शरीफ से उमरा रुऊसा और अपने लश्कर के साथ दिल्ली आए और तख्ते सल्तनत पर जलवागर हुए, और शमशुद्दीन! का लक़ब इख़्तियार किया,
आप का अदलो इंसाफ
एक बादशाह के लिए अदलो इंसाफ बड़ी अच्छी सिफ़त है, ये सिफ़त हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! में पूरी की पूरी मौजूद थी, आप हर वक़्त अदलो इंसाफ का ख़याल रखते थे, आप ने सख्ती से हुक्म दे रखा था के खबरदार! किसी पर रत्ती भर भी ज़ुल्म ना होने पाए, अगर किसी पर ज़ुल्म हो तो वो रंगीन कपड़े पहिन कर घूमे फिरे ताके चलते फिरते बादशाह की नज़र उस पर पड़ जाए और मज़लूम अलग हो जाए क्यों के उस दौर में लोग आम तरीके से सफ़ेद कपड़े पहना करते थे, रात दिन दरबार शाही खुला रहता था, रात के लिए ये सूरत निकाली थी,
के महल के दोनों दरवाज़ों की छतों पर दो शेर संगे मर्मर के और उनके गलों में ज़ंजीरें और ज़ंजीरों में घंटियां डालकर बिठा दिए थे, जब कोई इंसाफ चाहने वाला ज़ंजीर हिलाए तो फ़ौरन बादशाह को खबर हो जाए और फ़ौरन उस के मुकदमे का फैसला कर दिया जाए, इससे भी आप के दिल को तशफ्फी नहीं होती थी, अक्सर फ़रमाया करते थे के अल्लाह पाक जाने मखलूके खुदा पर रात में क्या क्या मज़ालिम हो जाते हैं और सुबह होते कुछ का कुछ हो जाता है।
हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी से मुहब्बत
हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! को क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से बड़ी अक़ीदतो मुहब्बत थी, आप की वफ़ात की खबर सुन कर आप बड़े बेचैन हुए और फ़ौरन दौड़े हुए आए और खुद आप को ग़ुस्ल दिया, जब क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह का जनाज़ा तय्यार हो गया, तो हज़रत मौलाना सईद अलैहिर रहमा, की वसीयत बयान की के हमारे ख्वाजा ने वसीयत फ़रमाई है के मेरे जनाज़े की नमाज़ वो शख्स पढ़ाए जिस ने कभी हराम काम न किया हुआ, और जिसने असर की नमाज़ की सुन्नते, और तक्बीरे ऊला कभी फौत ना हुई हो,
जब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह! की ये वसीयत लोगों को मालूम हुई तो लोग हैरान थे, के आखिर वो कौन खुश किस्मत शख्स है के जो आप के जनाज़े की नमाज़ पढ़ाएगा, कुछ देर सुकूत तारी रहा, आखिर हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! आगे बड़े और कहा मुझे हरगिज़ मंज़ूर ना था के किसी को मेरे हाल से आगाही हो मगर क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की मर्ज़ी से चारह नहीं, चुनांचे हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और आप के जनाज़े को कन्धा दिया।
होज़े शम्शी की तामीर
सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश अलैहिर रहमा बड़ा नेक सिफ़त औलियाए किराम व सूफ़ियाए इज़ाम से बे पनाह अक़ीदतो मुहब्बत और एहतिराम करने वाले हाकिम थे, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! अलैहिर रह्मा की बड़ी ख्वाइश ये थी के शहर के नज़दीक पानी का एक होज़ तामीर करवाया जाए ताके शहर के लोगों को पानी आसानी से मिल सके क्यों के उन दिनों शहर में पानी की बहुत ज़ियादा किल्लत थी और पानी का हुसूल बहुत मुश्किल था, एक दिन सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! अलैहिर रह्मा ने ख्वाब में हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! अलैहिर रह्मा ने देखा के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घोड़े पर तशरीफ़ फरमा एक मकाम पर खड़े हैं और इरशाद फरमा रहे हैं ऐ शमशुद्दीन! इस जगह पर लोगों के लिए पानी का एक होज़ बनवा दो, सुबह हुई तो, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने फ़ौरन एक खादिम हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में भेजा के मेने आज रात जो ख्वाब देखा है अगर आप हुक्म दें तो में खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ करूँ, खादिम ने जब ये पैगाम पेश किया तो आप ने फ़रमाया:
बादशाह! से जा कर कह दो के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिस मक़ाम पर होज़ तामीर करने का हुक्म दिया है में उसी जगह पर जा रहा हूँ तुम भी वहां पर पहुंच जाओ, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! अलैहिर रह्मा ये बात सुन कर बहुत हैरान हुए के हज़रत क़ुतुब साहब! ने नूरे बातिन से इस ख्वाब को मालूम कर लिया चुनांचे वो घोड़े पर सवार हो कर एक समत चल पड़ा उसको रास्ते में किसी ने बताया के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फुलां मक़ाम पर जलवा अफ़रोज़ हैं और तुम्हारा इन्तिज़ार कर रहे हैं सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! अलैहिर रह्मा तेज़ी से घोड़ा दौड़ाता हुआ उस मक़ाम पर पहुंच गया, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! अलैहिर रह्मा ने देखा के आप नमाज़ में मशगूल हैं, नमाज़ से फारिग होने के बाद सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! अलैहिर रह्मा आगे बड़े और आप के हाथों को बोसा दिया, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! अलैहिर रह्मा ने जिस मक़ाम पर हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख्वाब में ज़ियारत की थी उस जगह पर घोड़े के सुम के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे और वहां पानी भी था, चुनांचे सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने उसी जगह पर होज़ की तामीर शुरू करादी,
सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! का तामीर कराया हुआ होज़ आज भी इस मक़ाम पर मौजूद है, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की अक्सर इसी होज़ के किनारे इबादते इलाही में मसरूफ रहा करते थे, सुल्तानुश शोरा हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने इस होज़ की बहुत कुछ तारीफ की, आप फरमाते हैं, इस होज़ के किनारे अक्सर बुज़ुर्गाने दीन औलियाए किराम मदफ़ून हैं, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अक्सर इस होज़ के किनारे इबादतों रियाज़त में मशगूल रहा करते थे, इसी होज़ के किनारे हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का दरबारे कुतबियत आरास्ता होता था, दरबारियों में हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी, हज़रत ख्वाजा महमूद मुअय्यना दोज़, हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी, हज़रत ख्वाजा ताजुद्दीन मुनव्वर रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, काबिले ज़िक्र हैं, इस होज़ के किनारे एक “औलिया मस्जिद” भी है जहाँ आप ने कुछ अरसा चिल्ला कशी की ।
सीरतो ख़ासाइल
हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह! अल्लाह पाक से डरने वाले थे, यही वजह है के किसी ने आप को सोते हुए नहीं देखा, रातों को जागते रहते और आलमे तहय्युर में खड़े रहते थे, अगर सो भी जाते तो फ़ौरन जाग उठते और खुद ही पानी ले कर वुज़ू करते और मुसल्ला पर जा बैठते और किसी नौकर को नहीं जगाते और फरमाते के में सोते हुए हुओं को क्यों तकलीफ दूँ, रात में फकीराना लिबास पहिनकर अपने हमराज़ को अपने साथ ले कर और बहुत सी थैलियां सोने की भर कर हर मुसलमान के दरवाज़े पर जाते और हर एक का हाल मालूम कर के उनको बाँट देते, जब वहां से फारिग होते तो मस्जिदों और खानकाहों और इबादत खानो और बाज़ारों में घूमते और इनमे जो ज़रुरत मंद होते उनको माज़रत के साथ अता फरमाते और साथ ही ये भी फरमाते ख़बरदार किसी से इस का ज़िक्र मत करना, जब सुबह होती तो हुक्म देते के इन मुसलमानो को लाओ के जिन्होंने रात फाका से गुज़ारी है, वो हाज़िर किये जाते तो उनकी ज़रूरत पूरी फरमाते और उन से कसम लेते के जब कभी तुम्हें अनाज वगेरा की ज़रूरत हो या कोई तुम पर ज़ुल्म करे तो मेरे पास चले आना के में तख़्त पर बैठा हुआ हूँ, और इंसाफ की ज़ंजीर में ने दरवाज़े में लटका दी है, इसको हिलाओ में तुम्हारा इंसाफ करूंगा ताके कहीं क़यामत को मुझ पर दावा न करो,
आप फ़रमाया करते थे जिस को देता है अल्लाह तआला देता है, में दरमियान में कौन हूँ जो कहूँ के में ने कुछ दिया और उसे न दिया, जो कुछ है सब अल्लाह पाक की मर्ज़ी पर मोकूफ।
वफ़ात
आप मुल्तान की जंग में तशरीफ़ ले गए थे वहीँ तबियत नासाज़ हो गई, हाथी पर बिठा कर दिल्ली लाया गया, यहाँ आ कर 14/ शाबानुल मुअज़्ज़म 633/ हिजरी मुताबिक 1235/ ईसवी को वफाअत पाई।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार मुबारक महरोली दिल्ली 30, में क़ुतुब मीनार के अंदर पच्छिम की जानिब मरजए खलाइक है जिस पर गुंबद नहीं है लेकिन चारों तरफ लाल पथ्थर की दीवारें बनी हुईं हैं, और मज़ार मुबारक भी संगे मर्मर से पक्का बना हुआ है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
- दिल्ली के 32, ख़्वाजा
- रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
- औलियाए दिल्ली की दरगाहें
- तारीखे फरिश्ता