हज़रत नासिरुद्दीन सुलतान महमूद गारी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत नासिरुद्दीन सुलतान महमूद गारी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत नासिरुद्दीन सुलतान महमूद गारी अलैहिर रहमा

आप हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश अलैहिर रह्मा के बड़े फ़रज़न्द थे, आप बादशाहों में से थे, लेकिन बुज़ुरगों सूफ़ियाए किराम की सुहबत में रह कर विलायत के आखरी दर्जे तक पहुंच गए थे।

आप का मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ: पालम सड़क पर कुतब मीनार से 8/ किलो मीटर जुनूब महिपालपुर में बसंत कुंज, कालोनी के सामने वाके है, अठ्ठारवी सदी ईसवी में लिखी गई मशहूर किताब “मुरक़्क़ाअ दिल्ली” में दिल्ली की दरगाहों के बारे में निहायत बेहतर अंदाज़ में वज़ाहत के साथ तफ्सील मौजूद है,

हज़रत नासिरुद्दीन सुलतान महमूद गारी अलैहिर रहमा का ज़िक्र करते हुए लिखा है के: हालांके ये एक सुल्तान का मकबरा है लेकिन ये सूफ़ियाए किराम की सुहबत में रहने के सबब विलायत के आला मकाम तक पहुंच गए, इनकी विलायत के बारे में “रियाज़ुल औलिया” में ज़िक्र मिलता है, के इन का मज़ार शरीफ! जन्नत के बागों का नमूना है, जहाँ से फैज़ आम जारी रहता है, यहाँ पर अल्लाह पाक की रहमत नाज़िल होती है, बारिश के दिनों में ये मकाम कश्मीर की तरह सर सब्ज़ो शादाब होकर दिलफरेब मंज़र पेश करता है, और ये अकीदतमंदों को अपनी जानिब रागिब करता है मुहिब्बीन आशिक़ीन यहाँ आने के बाद ज़ियारत के साथ साथ अपने अंदर सुकून महसूस करते हैं, “मुरक़्क़ाअ दिल्ली” के मुताला से मालूम होता है के ये मकबरा दौरे वुस्ता में एक दरगाह की शक्ल में इस्तेमाल होती थी और इस मकाम की अपनी एक खासियत थी, अकीदतमंद आज भी आप की दरगाह पर आते हैं, जुमेरात के रोज़ खास मजमा होता है, लोग अच्छे खाने बना कर लाते हैं और गरीबों फकीरों में तकसीम करते हैं, मज़ार शरीफ के अंदर इस क़द्र अगर बत्ती जलाते हैं के दरगाह के अंदर इस का धुँआ ही धुँआ छाया रहता है, जिस की वजह से दरगाह काली पड़ गई है।

वफ़ात

आप ने सात ज़ीकायदा 626/ हिजरी में वफ़ात पाई,

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ दिल्ली में महिपालपुर में बसंत कुंज कालोनी मसऊद पुर गाँव के करीब में ही मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
औलियाए दिल्ली की दरगाहें

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