हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ आबिद सनामी नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ आबिद सनामी नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत मुबारक

हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ आबिद सनामी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश मुबारक क़स्बा सनाम में हुई जो के सरहिंद शरीफ के पास है, इस लिए आप को सनामी कहते हैं।

खिलाफ़तो इजाज़त

हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ आबिद सनामी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! आप इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी हज़रत शैख़ अहमद सरहिंदी रहिमहुल्लाह के पोते हज़रत अब्दुल अहद नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदो खलीफा हैं, आप का सिलसिलए नसब अमीरुल मोमिनीन खिलफाए अव्वल हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु से मिलता है।

दो सो उलमा आप की खिदमत में

हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ आबिद सनामी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! आप के इल्मो अमल और तकवाओ तदय्युन परहेज़गारी में अज़ीम आला शान रखते थे, दिन रात इबादते इलाही में मसरूफ रहते थे, आला मर्तबा हाकिमे सरहिंद फ़िरोज़ खान मेवाती ने नाजाइज़ तरीके से मवेशी हासिल किए तो आप ने उस वक़्त से 20, साल तक गोश्त नहीं खाया, जब आप दिल्ली तशरीफ़ लाए तो रास्ते में सिर्फ उस आटे को इस्तेमाल किया जो हलाल ज़रिए से हासिल हुआ था, आप का ये अज़ीम तक़वा है, आप को मुकम्मल मकबूलियत हासिल हुई और खासो आम ने आप की तरफ रुजू किया, हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ आबिद सनामी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! का आस्ताना और खानकाह अल्लाह वालों का मावा व मलजा बन गए, तकरीबन 200/ उल्माए किराम व सूफ़िया वक़्त हर वक़्त आप की खिदमत में रहते थे,

आप की खिदमात

हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ आबिद सनामी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! से बहुत से लोगों ने आप की तवज्जुह से ऊंचे मकाम को पहुंचे और बहुत से लोग आप की मुबारक सुहबत में रह कर विलायत और तहज़ीबे अख़लाक़ पर फ़ाइज़ हुए, इल्मे हदीस व फ़िक़्ह पढ़ाने के बाद आप क़िबला की तरफ मुँह कर के मुराकिबा में बैठ जाते थे, और जो शख्स भी आप की खिदमते बा बरकत में हाज़िर होता ज़िक्रो अनवार इस के अंदर इलका करते, जुमा शरीफ, को तालिबाने हक का बहुत बड़ा मजमा होता था जब कोई आप के चेहरे को देखता तो ज़िक्रे इलाही करने लगता था, आप फरमाते के दिल के ज़िक्र के नूर की बरकत से ईमान सलामत रहता है, आप के फीयूज़ो बरकात से सिलसिलए मुजद्दिदीय के अनवार चमक उठे इस सिलसिले मुबारक की बहुत इशाअत हुई,

आप के मामूलात

आप रहमतुल्लाह अलैह कसरत से इबादत और ज़िक्र करने वाले थे, तहज्जुद की नमाज़ में सूरह यासीन शरीफ 60/ मर्तबा पढ़ा करते थे और हर दो रकअत और मुराकिबा भी करते थे, आधी रात से लेकर सुबह तक तमाम वक़्त यादे इलाही में बसर करते थे,

करामात

एक मर्तबा का वाक़िआ है के आप एक मस्जिद में तशरीफ़ ले गए तो वहां एक शख्स मजमे बैठा हुआ लोगों को अपना मुरीद बना रहा था लेकिन उस का बातिन अल्लाह पाक की निस्बत के नूर से खाली था, आप ने उस के हाल पर शफकत फ़रमाई, देर तक आप उस के हाल पर तवज्जुह फरमाते रहे, यहाँ तक के उस को उस मकाम तक पंहुचा दिया जिस की एक शैख़ को ज़रूरत होती है।

एक रोज़ आप कब्रिस्तान में तशरीफ़ ले गए और वहां खड़े खड़े मुराकिबा कर के मर्दों के हाल पर तवज्जुह फ़रमाई, तमाम कब्रिस्तान आप की तवज्जुह की वजह से अनवारो बरकात की वजह से भर गया।

वफ़ात

आप रहमतुल्लाह अलैह ने 18/ रमज़ानुल मुबारक 1160/ हिजरी में वफ़ात पाई।

मज़ार मुबारक

आप रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार शरीफ, जी, टी करनाल रोड गजरों वाला टाउन के सामने ही मरजए खलाइक है,

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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